Ek Jindagi - Do chahte - 28 books and stories free download online pdf in Hindi

एक जिंदगी - दो चाहतें - 28

एक जिंदगी - दो चाहतें

विनीता राहुरीकर

अध्याय-28

तनु और परम लगभग रोज ही ऑफीस चले जाते। तनु के पिताजी के साथ बैठना परम को भी बहुत अच्छा लगता। खास तौर पर जिस दिन वो पहली बार तनु और परम के घर पर खाना खाने आए थे उस दिन के बाद से उनकी आँखों में जो स्नेह तनु के लिए दिखाई देता है वही स्नेह और अपनापन उनकी आँखों में परम के लिए भी दिखाई देने लगा है। कभी तनु की माँ भी ऑफिस आ जाती थीं लंच टाईम में घर से खाना लेकर। तब वो सुबह ही तनु को मना कर देती थी कि वो घर पर खाना न बनाए। तब परम उनको कहता कि- ''तनु की तो सुबह खिल उठती है जब आपका फोन आता है कि आज खाना मत बनाना। इसे सबसे ज्यादा आलस खाना बनाने में आता है।"

तब तनु चिढ़ जाती थी और भरत भाई और शारदा हँस देते थे। और परम परिवार के साथ हँसी-मजाक के बीच दिल में बहुत सारी खुशी महसूस करता। एक दिन शनिवार था तो शारदा बहुत पीछे पड़ गयी कि आज रहने के लिए देसाई विला अर्थात भरत भाई के घर पर ही चलो। बहुत दिन हो गये हैं तनु को घर से गये हुए तो घर में सूना-सूना सा लग रहा है। दो दिन अब चलकर वहीं रहो। शारदा के बहुत आग्रह करने पर परम को स्वीकार करना पड़ा।

ऑफिस से घर जाकर परम और तनु दो दिन के लिए अपने कपड़े पैक करने लगे।

''सालों बाद तो अपने घर में बिवी के साथ रहने को मिला है जरा चैन से। उसमें भी तुम्हारी मम्मी ने उधर बुला लिया रहने के लिये।" परम ने तनु की कमर में बाहें डालते हुए कहा।

''यहाँ रहें या वहाँ रहे क्या फर्क पड़ता है जी। आपकी बिवी तो आपके साथ ही रहेगी ना।" तनु ने कहा।

''हाँ मगर मम्मी-पापा में बिजी रहेगी ना। वहाँ तो मैं तुम्हारे साथ रोमांस भी नहीं कर पाता यार।"

''अरे रात में तो हम दोनों अकेले ही रहेंगे ना।"

'' पता हैं वहाँ मम्मी-पापा के सामने तेरे साथ कमरे में जाते हुए बड़ा अजीब सा लगता है।" परम हँसने लगा।

तनु को भी हँसी आ गयी।

''हाँ कितने नखरे करते थे आप। शादी होने के बाद भी गेस्ट रूम में अकेले सोने की जिद करते थे। हाथ पकड़कर जबरदस्ती अपने कमरे में लाना पड़ता था। और पलंग पर लेटते ही गुडनाईट कहकर पलटकर सो जाते थे।"

''हाँ यार वहाँ पता नहीं कैसा एक हेजीटेशन सा लगता है। कमरे में तुम्हारे साथ अकेले होने के बाद भी ऐसा लगता रहता था कि जैसे मम्मी-पापा भी हैं।" परम बोला। ''इसलिए तुम्हें छूना, प्यार करना भी अजीब लगता था।"

'' पता नहीं आप क्या-क्या सोचते रहते हो। चलो छोड़ों मुझे। कपड़े रखने दो।" तनु ने अपने आप को छुड़ाते हुए कहा।

''वो बाद में रख लेना। अभी तो मुझे रात का काम पूरा करने दो।" परम तनु के चेहरे पर झुकते हुए बोला।

''नहीं, अभी बिलकुल नहीं यह कोई टाईम है क्या?" तनु अपना चेहरा दूसरी ओर घूमाते हुए बोली।

''मायड़ा बीवी से प्यार करने का भी कोई शुभ महूरत होता है क्या। बीवी तो चैबीसों घन्टे प्यार करने के लिये होती है।" परम उसे अपनी बलिष्ट बाहों में कसते हुए बोला।

''छोड़ों ना!" तनु छूटने के लिए कसमसाई। ''जरा भी शरम नहीं है आपको।"

''अरे अपनी बीवी के सामने कोई शरमाता है क्या। अपनी बीवी से कैसी शरम मेरी ही बीवी है ना किसी और की थोड़े ही है कि शरम करूँ।" परम ने कहा।

''नहीं मानोगे?" तनु ने नकली गुस्से से पूछा।

''तू मेरा सोना है ना तू मेरा स्वीट बच्चा है ना, मेरी जान अच्छी पत्नी पति की हर बात मानती है ना। देख तू कल रात को भी सो गयी थी। मैंने कुछ कहा। अब मेरी जान बहुत मूड़ हो रहा है...।" परम उसके गाल पर अपना गाल रगड़ता हुआ बोला।

तनु पिघलकर मुस्कुरा दी। परम उसे बाहों में जकड़े हुए ही पलंग पर लेट गया।

———

रात में शारदा और भरत देसाई के यहाँ एक छोटी-मोटी पार्टी जैसा ही आयोजन था। तनु की बुआ और मौसी जो सूरत में रहती हैं उन्हें भी शारदा ने बुला लिया था। तनु के राजकोट वाले मामाजी भी आए थे। सब लोग तनु और परम को देखकर बहुत खुश हुए। बुआ, मौसी और मामीजी ने दोनों को दिल से आर्शीवाद दिया वहीं तनु के फूफाजी, मामाजी और मौसाजी बड़ी गर्मजोशी से परम से मिले।

देसाई विला के शानदार ड्राईंगरूम में सब लोग बैठकर बातें करने लगे। तनु के मामाजी और बुआ बहुत मजाकिया थे। वे दोनों शायद अपने-अपने विवाह के पहले से तनु के यहाँ आने-जाने के कारण एक-दूसरे के काफी नजदीक रहे होंगे। वही नोंक-झोंक और मजाक मस्ती उन दोनों के बीच आज भी बेझिझक चल रही थी। सब लोग उनकी बातों पर हँस-हँस कर बेहाल हो रहे थे। परम इन लोगों से अपनी शादी के अवसर पर और पूजा वगैरह के समय औपचारिक रूप से मिला था। ये पहला मौका था जब वह अनौपचारिक रूप से तनु के परिवार के सदस्यों के साथ बैठकर गप्पे मार रहा था। उसे बहुत अच्छा लग रहा था। लेकिन बीच ही में कभी उसे अपने परिवार की याद आ जाती और वह अपने लोगों की सोच और मेन्टेलिटी को लेकर अफसोस से भर जाता।

उसके माता-पिता ऐसे क्यों नहीं हैं।

तनु के घर के लोगों की तरह समझदार, ऊँचे विचारों वाले और सुलझे हुए क्यों नहीं हैं।

मामाजी का छोटा बेटा आकाश थोड़ी देर तक तो परम से शरमाता रहा फिर धीरे-धीरे आकर परम के पास बैठकर बड़ी दिलचस्पी से उसे देखने लगा।

''आप आर्मी में हो ना?" उसने बड़े कौतूहल से पूछा।

'' हाँ बेटा।" परम ने मुस्कुराकर जवाब दिया।

''आप दुश्मनों से ढि़शुंग-ढि़शुंग करते हो।"

'' हाँ करनी तो पड़ती है अक्सर ही।"

आकाश सोफे पर उछलकर बैठ गया। ''आप के पास गन भी है।"

''हाँ मेरे पास गन भी है।"

''कौन सी गन है?"

''एके 47" परम ने जबाव दिया।

आकाश का मूँह, आश्चर्य से खुला रह गया ''वॉव और कौन-कौन से वेपन है आपके पास?"

परम ने उसे कुछ हथियारों के नाम बताये और ये भी बताया कि उसके पास बॉम्ब भी है। आकाश ये सुनकर खुशी से उछल-उछल गया।

''वॉव जीजू आपकी लाईफ कितनी थ्रिलिंग है। कितना मजा आता होगा ना आपको।"

परम तनु की ओर देखकर मुस्कुरा दिया ''बेटा तेरी दीदी से पूछ कितना मजा आता है।"

तनु ने उदास मुँह बना लिया।

आकाश की माँ उसकी बातें सुनकर हँसने लगी ''इसे भी अपने साथ ले जाईये। ये लड़का तो फौजी बनने के लिए पागल है। सारा दिन बस बंदूक तानकर दुश्मनों पर निशाना लगाता रहता है। और कोई भी खेल इसे पसंद ही नहीं है।"

''अच्छा है मामीजी देश और देशवासियों की सेवा और सुरक्षा से बढ़कर पुण्य का काम दूसरा नहीं है।" परम ने आकाश की पीठ थपथपाते हुए कहा।

''मगर जब सीमाओं पर तनावपूर्ण स्थिति रहती है तब वहाँ तैनात जवानों के घरवालों की बेचारों की कैसी स्थिति होती है। घरवाले तो ऐसे हालात में पल-पल चिंता करते रहते हैं। हम लोग तो अखबारों में ऐसी कुछ खबरें पढ़कर ही सिहर जाते हैं।" तनु की बुआ बोली।

''शहरों में रहने वाले लोग भी तो सड़क पर चलते हुए हादसों का शिकार हो जाते हैं तब कोई क्या कर लेता है। एक फौजी तो कम से कम अपने देश और लोगों की रक्षा के लिए शहीद होता है। उसकी जान किसी अच्छे काम में जाती है, तो मनुष्य का जीवन सार्थक होता है।" परम गर्व से बोला।

''वो सब तो पता है लेकिन मुझे तो ऐसी खबरों से बहुत डर लगता है। कभी किसी जवान के शहीद होने की बात सुनती हूँ तो दिल में मरोड़ उठती है। बहुत बुरा लगता है कि लोग शांती से क्यों नहीं रहते लड़ाई झगड़े क्यों करते हैं।" तनु की मौसी बोली फिर अचानक तनु की ओर देखते हुए उनके मन में पता नहीं क्या आया कि परम से पूछ बैठी ''आप फौज से कब रिटायरमेंट लेंगे दामादजी।"

''नहीं मौसीजी। मैं फौज को कभी नहीं छोडूंगा। मुझे गर्व है कि मैं सेना में हूँ। सेना का एक जिम्मेदार अफसर हूँ।" परम बोला।

''पर अभी इधर पिछले कुछ महीनों से सीमावर्ती गाँवों से जो खबरें आ रही हैं उन्हें सुनकर बहुत टेंशन हो जाता है।" तनु की बुआ बोली।

''टेंशन किस बात का बुआ जी। आप लोगों को तो खुश होना चाहिये कि आपका कोई सीमा पर तैनात होकर आप लोगों की रक्षा कर रहा है। हम वहाँ पर जागकर पहरा देते हैं तभी आप सब लोग अपने घरों में चैन की नींद सो पाते हो। आपको तो गर्व होना चाहिये।" परम ने हँसते हुए कहा तो सब निरूत्तर हो गये।

आकाश दुबारा कुछ पूछने जा ही रहा था कि मामाजी ने उसे चुप करा दिया-

''अब अपने सवाल बंद भी कर दे। जीजू को जरा चैन लेने दे।"

''क्या पापा" आकाश मुँह फुलाकर बैठ गया।

तभी सर्वेन्ट्स ने आकर कहा कि खाना लग गया है। शारदा ने सबको खाना खाने को कहा। बातों में सबको बहुत मजा आ रहा था। किसी का मन बातचीत के बीच से उठने को नहीं कर रहा था लेकिन शारदा ने कहा कि पहले खाना खा लेते हैं ताकि नौकर-चाकर भी अपने काम से फुसरत पाकर खाना खाकर घर जा सकें। बातें तो बाद में भी हो जायेंगी। यह सुनकर सब लोग उठकर डायनिंग रूम में आ गये। टेबल पर खाने के न जाने कितने प्रकार के व्यंजन बने रखे थे।

''अरे बाप रे भाभी आपने तो लगता है आज एक भी व्यंजन बनाना बाकी नहीं रखा है। दुनियाँ में जितने भी व्यंजन हैं सारे ही बनाकर टेबल पर रख दिये हैं।" फुफाजी बोले तो शारदा धीरे से मुस्कुरा दी।

''जय बोलो भाई दामाद देवता की।" मौसाजी बोले तो सब लोग ठठाकर हँस पड़े और परम झेंप गया।

बड़ी सी डायनिंग टेबल पर जब सब लोग बैठ गये तो वेटर सबकी प्लेटों में खाना परोसने लगे। खाने के टेबल पर भी सबके हँसी-मजाक, ठिठोली चलती रही। आज सचमुच खाने के व्यंजनों का स्वाद लाजबाब था। और उस पर रसभरी बातों का जायकेदार स्वाद।

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