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मैं कहानी नहीं


मैं कहानी नहीं @रोहित जयपुर
सुकेत का फोन वाइब्रेट कर रहा था। सुकेत का फोन केवल इसी नंबर पर वाइब्रेट करता था रिगटोन इस नंबर के लिए साइलेंट थी। लेकिन यह वाइब्रेशन वह तत्काल पीछे पहुंच जाता है जब वह ऑफिस में बैठा था और एक चपरासी उसे बुलाने आया था
"मैडम ने बुलाया है आपको"
सुनते ही सुकेत हड़बड़ी में उठा और मैडम के चैम्बर की तरफ यह सोचते हुए चल दिया "पता नहीं क्या गलती हो गयी।"
मैडम के चैम्बर में प्रवेश करते ही मैडम गुस्से से बोली "सुकेतजी आप नोट शीट पर इतना क्यों लिखते हो कहानी की तरह।आपको पता यह नकट शीट है?"
फिर हंस कर बोली "आप मेरे लिए भी तो गुंजाइश ही छोड़ दिया करो।"
सुकेत को समझ में नही आ रहा था क्या प्रतिक्रिया दे।
“खड़े क्यों है? बैठिये, आप भी ऑफिसर हैं।" फिर पूछने लगी "आपने साहित्य पढ़ा है या इसमें रूचि है ?"
“नहीं मैडम, साहित्य मेरे लिए दूर की कौड़ी है। मैं ठहरा इंजीनियर।"
"फिर आप लिखते तो ऐसे हैं एक लहर की तरह, एक से एक कड़ी जोड़ते हुए। आप कहानी क्यों नहीं लिखते? आप कल अपने अनुभव से एक कहानी लिखकर लाइए। थोडा उसमें अपनी कल्पनाएँ भी डालियेगा।"
दूसरे दिन मैडम खुद सुकेत को बुलाने आई । कहानी देखते ही मैडम उछल कर बोली
"सुकेत तुम ये कहाँ से लिखते हो ! हाथ से या दिल से।“
दोनों जोर से हंस पड़े । “बहुत अच्छा लिखते हो। मेरे कई पत्रकार जानकार है।मैं इसे प्रमुख पत्र पत्रिकाओं में छपवाने का प्रयास करती हूँ।"
अगले सप्ताह सुकेत की कहानी मुख्य अखबार के रविवार विशेष संस्करण में थी।अब सुकेत का लंच मैडम के चैम्बर में ही होता था ।
“सुकेत, तुम मेरे लिए भी कुछ लिखो ना, फिर मैं लिखूं , फिर वापस तुम”।
“लेकिन मैडम मैं आपके बारे में कुछ नहीं जानता।"
“जानने की भी आवश्यकता नही है। मेरे पति सरकार में प्रमुख शासन सचिव हैं उनके व्यक्तित्व के आगे मैं बहुत गौण हूँ । मेरे सामने तुम जूनियर हो । पता नही कब हम एक दूसरे को बराबर मानेंगे । सुकेत लिखो ना प्लीज”।
“लेकिन मैडम ...”।
“एक तो मुझे लंच टाइम में मधु बोला करिये।”
“जी मै..... मधु।”
फिर तो दो धागों से हवाओं मेँ कई रंगीन सपने बुने गए। एक दिन सुकेत ने मधु से पूछा "क्या रिश्ता है आपका मेरा?"
“हर रिश्ते का कोई प्रचलित नाम हो जरुरी तो नहीं।"
मधु का स्थानांतरण दूसरे विभाग में हो गया। सुकेत कहानियाँ लिखने में व्यस्त हो गया । उसकी कहानियाँ बहुत सराही भी जाने लगी। मधु की भी मोबाइल पर प्रतिक्रिया आती रहती थी।
सुकेत ने फोन उठाया
"हाँ मधु कैसी लगी आज छपी मेरी कहानी?"
"सुकेत, क्या कर रहे हो? तुम्हारी कहानियों से मुझे अब डर लगने लगा है। क्या हर बात लिख दोगे ? क्या खाली हो जाओगे और मुझे भी खाली कर दोगे? क्या उस कच्चे धागों के रिश्ते पर लेखनी की कैंची चला दोगे ?"
ईश्वर के लिए रुक जाओ सुकेत। तुम्हे अपने सपनों की कसम। मैंने प्यार जिया नहीं बस महसूस किया है तुम्हारे साथ सपनों में"
"ठीक है मधु। तुमसे शुरू तुम पर खत्म।"
सुकेत ने निश्चय कर लिया आगे केवल इंजीनियरिंग वर्क्स पर ही केंद्रित रहेगा।