मुख़बिर - 20 (7) 535 797 Listen मुख़बिर राजनारायण बोहरे (20) मुठभेड़ मजबूतसिंह उस दिन अपने कंधे झुकाये जमीन पर आंख गढ़ाये हुए आता दिखा तो हम सबको उत्सुकता हुई । कृपाराम लपक के मजबूतसिंह से मिलने आगे वढ़ गया। ये क्या, मजबूतसिंह की बात सुनते ही कृपाराम ने उसे एक जोरदार धक्का दिया और मजबूतसिंह जमीन पर गिर कर धूल चाटता नजर आया । यह देख दूर खड़े बाकी डाकुओं ने अपनी बंदूकें संभाली तो कृपाराम ने वहीं से इशारे से उन सबको शांत रहने का आदेष दिया । फिर उसने जमीन पर गिरे मजबूतसिंह को सहारा देकर खुद ही उठाया और गुफा तक ले आया । कृपाराम का मुंह उतरा हुआ था और वह एकदम चुप था । श्यामबाबू ने मिसमिसा के पूछा-‘‘ काहे रे मजबूता, सारे का भयो ?‘‘ मजबूत ने शांत और उदास रहकर एक बार कृपाराम को देखा फिर अपनी जाकेट के भीतर खोंसा हुआ एक मुड़ा-तुड़ा सा अखबार निकाल कर श्यामबाबू को दे दिया, और नीची नजर करके खड़ा हो गया । मैं मन ही मन हंसा ! बिना पढ़ा-लिखा श्याम बाबू अखबार का क्या करेगा ? वही हुआ उसने अखबार ले तो लिया और उसे इस तरह से अलटा-पलटा भी मानो पढ़ रहा हो, पर अगले ही पल जैसा का तैसा मेरी तरफ वढ़ा दिया । मैंने तत्परता से अखबार खोला और मुखपृष्ठ की खबर पढ़ने लगा । खबर पढ़ते-पढ़ते मेरे माथे पर बल पड़ने लगे थे । मुझे चुप देखकर श्यामबाबू बोला था-‘‘तू चुप कैसे हो गयो रे लाला ?‘‘ ‘‘ दाऊ दाऊ अखबार में गलत बात छप गयी है । ‘‘ कहते हुए मैं पूरी बात कहने की हिम्मत नहीं कर पा रहा था, या यूं कहूं कि उपयुक्त वाक्य नहीं मिल रहे थे मुझे। ‘‘बोल सारे नाहीं तो जबाड़ों तोड़ देंगो ।‘‘श्यामबाबू की उतसुकता चरम पर थी । लेकिन में चुपचाप खड़ा रहा । झुझंला कर अजयराम ने मेरे हाथ से अखबार छीना और लल्ला पंडित को दे दिया । लल्ला ने खबर पढ़ी तो वह भी सन्न रह गया और अखबार चुपचाप मेेरी तरफ बढ़ा दिया । मैंने एक बार फिर अखबार पढ़ा जी कड़ा किया और कृपाराम को ताका। ‘‘ अखबार में खबर छपी है कि पुलिस ने कल रात श्यामबाबू डकैत को इनकांउटर में मार डालो ।‘‘ आंख मूद कर मैंने जो सच था, वो बोल दिया । ऑंख खोल कर देखा तो पाया कि श्यामबाबू ही नहीं, सारे बागी माथे पर बल दिये मेरी तरफ ताक रहे थे। मैंने हिम्मत करके आंख खोली औेर अखबार खबर बांचने लगा - दुर्दान्त डाकू श्यामबाबू मारा गया शेरसिंह का पुरा, चम्बल़ (मंगलवार) 10 जनवरी कल रात पुलिस बल को उस समय बड़ी सफलता मिली जबकि आंतंक बने कृपाराम घेासी गिरोह के आधार स्तंभ डाकू श्यामबाबू को इंसपेक्टर तोमर ने आमने-सामने की लड़ार्इ्र में एक एनकांउटर के दौरान मार गिराया। उल्लेखनीय है कि तोमर ने इस क्षेत्र का चार्ज्र लेते समय कसम खाई्र थी कि वे कृपाराम गिरोह का नामोनिशान मिटाकर दम लेंगे । उनने बड़े जोरदार तरीके से अपनी कसम पूरी करने की शुरूआत श्यामबाबू जैसे दुर्दान्त दस्यु को धराशायी करके कर दी है । देखना यह है कि वे अपनी कसम पूरी करने के लिये कितना खतरा उठा पाते हैं औंर कितने समय में बाकी रहे डाकुओं को समाप्त कर पाते हैं ।पता लगा है कि अपने मुखबिर से ज्यों ही पता लगा कि ष्बगल के इलाके में डाकू आने वाले है निडर तोमर ने अपने बड़े अधिकारियों को खबर से अवगत कराया और उनके निर्देषानुसार मुठभेड़ की तैयारी कर ली । वीहड़ में गिरोह को देखते ही तोमर ने उसे आत्मसमर्पण हेतु ललकारा लेकिन डाकुओं ने फायर खोल दिया । आत्मरक्षा मे पुलिस ने भी गोलियां चलाई और गिरोह के आधार स्तंभ को मार लेने में सफलता प्राप्त की । पुलिस के आला अधिकारियों, गृह मंत्री और मुख्यमंत्री ने पुलिस इंसपेक्टर तोमर को इस वीरता पूर्ण कार्य के लिये बधाई प्रेषित की है । पुलिस महानिर्देशक ने इस सफलता के लिये पुरस्कार के तौर पर इंसपेक्टर तोमर को समय से पहले प्रमोशन देने की घोषणा की है । स्मरणीय है कि पुलिस इंसपेक्टर को प्रमोशन के यह तमगे स्वयं मुख्यमंत्री अपने हाथों से अगले महीने उनके थाने में पहुंचकर पहनायेंगे । खबर पढ़ के मैं चुप हुआ तो चारों ओर सन्नाटा छा गया । श्यामबाबू से लेकर हरेक डकैत के चेहरे पर भय की छाया तैर गयी । मेरे सीने पर चढ़ आया अजयराम गुर्राया-‘‘मादरचो़......तैने सही सही बांचों है, के अपने मन से कछू को कछू पढ़ के सुना रहो है ? ‘‘ मुखिया, मेरी का मौत आयी है कै मैं झूठ सच्च बोलूगों । जो लिखो है वही पढ़ के सुना दयो है मैंने । आप चाहो तो लल्ला पंडित से पूछ लो ।‘‘ ‘‘ देखो तो जो अखबार सच्चौ है कै नही ? माने जो वो ही अखबार है जो लश्कर में छप के बंटतु है ! ऐसो न होवे के पुलस ने झूठो सच्चो अखिबार छाप कै हमे डरपायवे के लाने इतें भेज दियो होवे ।‘‘ कृपाराम दुखी स्वर में मुझसे पूछ रहा था । ‘‘ अरे मुखिया पूरे गांम में जो अखबार बंट रहे है ।‘‘ मजबूत ने अपने लाये अखबार की असलियत का समर्थन किया तो श्यामबाबू ने उसे घुड़क दिया -‘‘ तैं चुप्प बैठ सारे, तेयो का विसवास ! पुलस ने ज्यादा माल मत्ता दे दयो होय, कै गरदन में घुटनों धर दयो होय सो तैं भी वही बात बोलन लागों होय जो पुलस कहवो चाह रही है । ‘‘ मजबूतसिंह चुप हो गया था । अब प्रश्नाकुल निगाहों का केन्द्र मैं था । हिम्मत करके मैं बोला-‘‘ मुखिया अखबार तो सच्चो है । हां, पुलिस इंसपेक्टर को विश्वास नहीं, कै अपनी तरक्की के लाने का का खेल कर डारे !‘‘ ‘‘ कैसे कैसे खेल ?‘‘ शंकित नजरो ंसे श्यामबाबू ने मुझे घूरा । ‘‘ कोउ न मरो होय और झूठ-मूठ की कहानी बना दई्र होवे । हारी-बीमारी से मरे काउ आदमी को श्यामबाबू के नाम से जहार कर देवो कहा कठिन है ? कोई भी गैरकानूनी बदूक लाश के बगल में धरि दो और बनि गयी कथा !औैर फिर श्याम बाबू तो शहर में जाके खुद कहेंगे ना कै हम तो जे फिर रहे ।‘‘ मेरी बात से सारे बागी सहमत दिखे । बाद के दिन बड़ी कशमकश के दिन थे, सारे डाकू चुप चुप रहते, तो अपहृत भी चुप्पी साधे रहते । न किसी का खाने में मन लगता, न पीने में । पकड़ के आदमी से जरा सी गलती हो जाती तो बड़ी बेदर्दी से पीटते थे बागी उन दिनों । अमावस्या की रात कृपाराम, श्यामबाबू, दोनों रावत भाइयों को लेकर माता वारी पहाड़ी पर गये । लेकिन घंटे भर बाद ही वे लोग हांपते-हांपते उल्टे पांव लौट आये, दोनों पकड़ वाले लोग उनके साथ थे । अजय राम ने पूछा तो पता लगा कि माता वाली पहाड़ी के नीचे लाल बत्ती वाली दो तीन कारें और सैकड़ों पुलिस जवान इकट्ठा थे । यह सुना तो क्रोध से फट पड़े अजयराम ने अचानक ही बंदूक का बट उठा के उन दोनों भाइयों के मारना आरंभ कर दी-‘‘ सारे तुम्हाओ बाप, हमे पकरवाउन चाहत है । अब तुम जिन्दे न रहोगे सारे ! मार खाते किसन और विसन रावत कान पकड़ते और इशारे से मना करते हुए चुपचाप आंसू बहाते रहे । श्यामबाबू ने अजय राम को रोका-‘‘ मुखबिर ने तो पूरे विश्वास से बतायो है कि इनका बाप पुलस के पास तो बिलकुल नहीं गया, इसलिये पता लग जाने दो कि सही बात क्या है ? इन हरामियों को फिर देखेंगे ।‘‘ ‘‘खैर, आठ दिन बाद फिरौती दे कर किसी तरह दोनों रावत छूटे ।‘‘ कह मैंने बात समाप्त की । फिर यकायक याद आया तो मैं बोला-‘‘ लेकिन उन की रिहाई से ही तो अखबार वालो केा यह पता लगा था कि जिसे मारने की खबर फैला कर तोमर वाहवाही लूट रहा है, वो डाकू श्यामबाबू मरा नहीं वो तो अब तक जिंदा है और जो आदमी श्यामबाबू के नाम से मारा गया बो तो बेचारा केाई निरपराध राहगीर था । फिर क्या था, धमाल मच गया । पुलिस इस प्रयास में लग गयी कि मारे गये आदमी को कोई दूसरा बता कर श्यामबाबू को जिन्दा बताने वाले किसन और विसन का मुंह बंद रखा जावे और अगर इसमें सफल न हों तो मरने वाले का नाम ऐसा कोई बताया जाये छोटा-मोटा अपराधी हो । उसे भी मुज़रिम बता के किसी तरह इस ऐनकाउंटर को सही सिद्ध करना लक्ष्य रहा उन दिनों पुलिस का ।‘‘ बड़े दरोगा रघुवंशी को यकायक जाने क्या बुरा लगा कि वह अकड़ के बोला-‘‘ तुम श्यामबाबू को मार देने पर बड़े नाराज दिख रहे हो ! इसमें गलत क्या था ? तुम तो तीन महीने उनके साथ रहे हो, तुम तो जानते हो, वे लोग कितने हत्यारे हैं । ऐसे लोग को तो जिंदा रखना बेकार है ! ज्यों ही दिखें सालों को गोली मार के फेंक देना चाहिये । नही तो पता नहीं किस अदालत से छूट जायें और फिर से जनता को परेशान करने लगें ।‘‘ ‘‘ लेकिन दरोगा जी, असली आदमी मरना चाहिये न, वो आदमी असली श्यामबाबू नहीं था न ! दरोगा तोमर की यह गलती तो..! ‘‘मैंने जानबूझ कर अपनी बात अधूरी छोड़ दी थी । ‘‘ उसने गलती करी इसी कारण तो उसकी तरक्की छिन गयी न ! बेचारा वो क्या जाने कि जंगल में बंदूक लेकर घूमने वाला बागी श्यामबाबू है या किसनबाबू !‘‘ रघुवंशी के स्वर में कड़वाहट भरी थी । मुझे लगा कि अब दरोगा का मूड खराब हो चुका है, इससे इस वक्त ज्यादा बात करना ठीक न होगा, सो मैं चुप हो गया । लेकिन मेरा मन अब भी अशांत था । ----------- ‹ Previous Chapter मुख़बिर - 19 › Next Chapter मुख़बिर - 21 Download Our App Rate & Review Send Review Suresh 7 months ago Rakesh 7 months ago Pawan Godara 9 months ago mritunjay Singh 11 months ago Rana M P Singh 11 months ago More Interesting Options Short Stories Spiritual Stories Novel Episodes Motivational Stories Classic Stories Children Stories Humour stories Magazine Poems Travel stories Women Focused Drama Love Stories Detective stories Social Stories Adventure Stories Human Science Philosophy Health Biography Cooking Recipe Letter Horror Stories Film Reviews Mythological Stories Book Reviews Thriller Science-Fiction Business Sports Animals Astrology Science Anything राज बोहरे Follow Novel by राज बोहरे in Hindi Social Stories Total Episodes : 31 Share You May Also Like मुख़बिर - 1 by राज बोहरे मुख़बिर - 2 by राज बोहरे मुख़बिर - 3 by राज बोहरे मुख़बिर - 4 by राज बोहरे मुख़बिर - 5 by राज बोहरे मुख़बिर - 6 by राज बोहरे मुख़बिर - 7 by राज बोहरे मुख़बिर - 8 by राज बोहरे मुख़बिर - 9 by राज बोहरे मुख़बिर - 10 by राज बोहरे