Mukhbir - 22 books and stories free download online pdf in Hindi

मुख़बिर - 22

मुख़बिर

राजनारायण बोहरे

(22)

हत्या

अगले दिन

दिन भर की थकान मिटाने पुलिस पार्टी के लोग एक पहाड़ी के शिखर पर टांगे फैलाए लेटे थे कि दूर पेड़ों की ओट में कुछ साये से चलते-फिरते दिखें तो पायलट सैनिक सतर्क हो गये । पुलिस दल ने पोजीशन ले ली और फायर खोलने वाले थे कि सेकंड-लेफ्टीनेंट सिन्हा ने रघुवंशी को याद दिलाया-‘‘ अपना वायरलेस सेट चालू करके तो देखलो साहब, कही ये लोग अपनी ही किसी टीम के सदस्य न हों, और गलतफहमी में हम अपने किसी भाई पर ही न गोली चल बैठे ।‘‘

और यही सच निकला ।

वे लोग एडी टीम नम्बर पंद्रह के सदस्य थे । एक हादसा होते-होते रह गया । इस सतर्कता के लिए सबने सिन्हा साहब को धन्यवाद दिया ।

रात को सब लोगों ने सिन्हा साहब को घेर लिया-‘‘ आपको यह सतर्कता कहां से मिली साहब ? ‘‘

सिन्हा देर तक फौज से रिटायर्ड अपने पिता और कश्मीर में तैनात अपने फौजी भाई के संस्मरण सुनाता रहा ।

उसनेे बताया कि उसके पिता फौज में कैप्टन थे । वे एक बार मिजोरम में तैनात थे कि एक रात जब उनके मेजर भोजन के बाद अपने कैंपस में टहल रहे थे उनने दूर पेड़ों के तले एक छाया सी खड़ी देखी तो उन्हे शक हुआ । उनने अपनी टॉर्च से उस छाया पर प्रकाश फेंका तो सचमुच उन्हे एक आदमी भागता हुआ सा दिखा । उन्हे लगा कि उनके कैम्प को मिजो विद्रोहियों ने घेर लिया है और वे छुप कर उन पर हमला करने जा रहे हैं। आनन-फानन में उनने सिन्हा साहब को बुलाया तो सिन्हा साहब ने अपने सैनिकों को तैयार होने का हुक्म दे दिया । वे सब तैयार हो कर हमला करने के लिए मोर्चाबंदी ही कर रहे थे कि एकाएक उन्हे याद आया कि अंधेरे में खड़ा आदमी फौज का मुख़बिर ‘मणि‘ तो नही है ! उनने तुरंत ही अपने डिप्टी को याद दिलाई तो वह चौंकता सा बोला-‘‘ हां आज मणि को आना तो था, लेकिन वो तो रात को आने वाला है !‘‘

‘‘ ये लोग सबसे छुपते-छुपाते आते है, इसलिए जिस वक्त मौका मिला तभी चल देना ठीक मानते है । इसलिए हो सकता है कि रात की बजाय वह शाम को ही आ गया हो !‘‘

हमले के लिए तत्पर खड़े लोग अब संशय में थे ।

डिप्टी ने अपने सैनिको को चारों ओर फैल कर कैम्प की रखवाली का कमांड दिया और वे खुद मणि का इंतजार करने लगे।

वो रात सुरक्षित बीत गई । सुबह आसपास की जमीन की सूक्ष्म जांच करने पर पता चला था कि रात को सिर्फ एक आदमी के आने के संकेत हैं । इसका मतलब यह था कि रात को मिजो विद्रोहियों के आने का खतरा नही था, अपना ही आदमी आया था । एक हादसा होते होते बच गया सबने ईश्वर का लाख-लाख शुक्र अदा किया कि कैप्टन साहब को ठीक समय पर याद आ गया, वरना एक कीमती मुख़बिर से हाथ धोना पड़ता ।

सिन्हा साहब के अनुसार ऐसी ही एक घटना उसके भाई के साथ कश्मीर में तैनाती के दौरान घटी थी । हुआ ये था कि वे लोग अपने कैम्प में थे कि खबर मिली-एक मिलिटैंट पास के गांव में आया है और एक दुंमंजिला मकान में जबरन घुस कर घरवालो को धमका कर शायद उस घर की अस्मत लूट रहा है ।

सेना के दस्ते ने तुरंत ही उस दुमंजिला मकान को घेर लिया । कमांडोज ने अपनी पोजीशन ले ली तो एक जांबाज सिपाही ने किवाड़ खटकाना शुरू किया । दरवाजा खुलने में देर होती दिखी तो सिन्हा साहब ने ऊंची आवाज में किवाड़ तोड़ देने की धमकी दी ।

इस धमकी का जल्दी ही असर हुआ-आहिस्ता से किवाड़ खुल गये ।

दरवाजे के बीचोंबीच एक बूढ़ा अपनी पत्नी के साथ खड़ा था-‘‘ क्या बात है कैप्टन ?‘‘

‘‘ आप लोग सुरक्षित हो न ! वो मिलिटेंट कहां है ?‘‘ सिन्हा साहब ने बुजुर्ग दम्पत्ति को आश्वस्त किया था ।

डरते सहमते उन दोनों के बोल ही नहीं निकल पा रहे थे, तो कमांडोज ने समझा कि मिलिटेंट के डर से वे कुछ भी बताने में हिचक रहे हैं । सिन्हा साहब का संकेत पाकर वे सब उस मकान में बेहद सतर्कता के साथ दाखिल हो गये और उस मिलिटेंट को खोजने लगे थे । सतर्क सिन्हा साहब की नजरे उस वक्त भी उस बूढे़ कश्मीरी दम्पत्ति पर थी, उनने अनुभव किया कि कमांडोज के घर में दाखिल होते ही वे दोनों कातर हो उठे है। सहसा सिन्हा साहब को लगा कि गलतफहमी में कुछ अघट न घट जावे ! उनने अपने कमांडोज को आदेश दिया कि यदि कोई आदमी मिले तो उसे जिन्दा पकड़ लिया जावे। आधा घंटे की जद्दोजहद के बाद ऊपर के कमरे में एक युवती के साथ छिपा ए के 56 धारी एक युवक पकड़ा गया तो कमांडो उसे पकड़ के सिन्हा साहब के सामने ले आये ।

सिन्हा साहब ने बूढ़े कश्मीरी को बुलाया-‘‘बाबा, ये लड़का कौन है? सच बोलना !‘‘

बूढ़ा व्यक्ति वैसे ही कातर भाव से उन्हे ताकता रहा, जैसे कि उसने कमांडोज के घर में दाखिल होते वक्त उन्हे देखा था ।

सिन्हा साहब आगे वढ़े और उनने बूढ़े आदमी का कंधा थपथपाया

-‘‘ बाबा सच बोलोगे, तो हो सकता है यह लड़का बच जाये । बताइये न कौन है यह?‘‘

बूढ़े आदमी की निगाह नीचे झुक गईं, जमीन को ताकता वह बोला

-‘‘ जनाब, यह मेरा बच्चा है ।‘‘

सिन्हा साहब और उनकी टीम दंग रह गई-अरे बाप रे ! अपने घर आये इस युवक मिलिटेंट को उन सबने किसी दूसरे के घर में जबरन घुसा मिलिटेंट समझा था और उसे मारने में कसर ही क्या बची थी ? यहां तो मामला ही दूसरा निकला, लड़का अपने मां-बाप से मिलने आया था और जिस वक्त उनने घेरा वह अपनी पत्नी के पास था । सिन्हा साहब किंकर्तव्य विमूढ़ से रह गये थे उस वक्त ।

बाद में सिन्हा साहब की समझायस और बूढ़े की होशियारी ही थी कि उस नवयुवक ने आत्मसमर्पण कर दिया था और उसने अपने आतंकवादी दल के बारे में तमाम नये सुराग दिये थे । इस तरह सिन्हा साहब की सतर्कता की वजह से एक नहीं कई जानें बच गई थी ।

उनके पिता तो अपनी तेज याददाश्त के कारण अनेक बार युद्ध के दौरान इसी तरह से अपनी कंपनी को खतरनाक हादसों से बचा चुके थे । सन इकहत्तर के भारत-पाक युद्ध में उनने अखनूर और छम्ब के क्षेत्र में दुश्मन से लोहा लिया था । इस तरह की गलतफहमी के कारण द्वितीय विश्व युद्ध में मित्र देशों की सेनाओं में हुयी तमाम ऐसी झड़पों की घटनायें भी सिन्हासाहब रात भर सारे दल को सुनाते रहे थे ।

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