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दिल की ज़मीन पर ठुकी कीलें - 19

दिल की ज़मीन पर ठुकी कीलें

(लघु कथा-संग्रह )

19-चंदन

अपने छोटे शहर के एकमात्र डिग्री कॉलेज में जब अंकिता ने प्रवेश लिया तो आसपास के लोगों की आँखों में सवालिया प्रश्न तैरने लगे | तीस वर्ष पुरानी बात आज भी यदाकदा उसे झंझोड़ देती है, खिलखिलाने पर मज़बूर कर देती है |

जाटों का शहर था जिसमें अधिकतर लोग छोटे काम-धंधे वाले, अध्यापक, पंडित लोगों के साथ एक बड़ा तबका किसानों के परिवारों का निवास करता था जिनके घरों में खूब ज़मीनें होती थीं, खेती से खूब पैसा आता उन घरों के बच्चों को बहुधा पास के शहरों में पढ़ने के लिए भेजा जाता था |

अंकिता के पिता दिल्ली में काफ़ी ऊँचे पद पर थे और उसकी माँ इंटर-कॉलेज की प्रिंसिपल थीं | तीनों बच्चों की प्राइमरी एजुकेशन पिता के पास दिल्ली में हुई | जैसे-जैसे अंकिता बड़ी होने लगी दादी ने शोर मचाना शुरू कर दिया ;

"भूषण ! या तो तुम सबको लेकर दिल्ली चले जाओ या बिटिया को यहाँ भेजो, बहुत पढ़ ली अंग्रेज़ी स्कूल में ---"

सो, अंकिता को उस कस्बेनुमा शहर में भेज दिया गया, दोनों भाई पिता के पास ही दिल्ली में पढ़ते रह गए | अंकिता लड़की थी, उसे उसकी कीमत चुकानी ही थी | अंकिता खुले दिमाग़ और खुले विचारों की युवती में परिवर्तित हो चुकी थी |

डिग्री कॉलेज में उसके प्रवेश लेने के बाद दो-चार और लड़कियों को पढ़ने की छूट मिली और वे उसके साथ कॉलेज जाने लगीं | इनमें से एक ऊमा नाम की लड़की थी जो घर के पास ही रहती थी, वह अंकिता की साइकिल पर पीछे बैठकर कॉलेज जाती | धीरे-धीरे कॉलेज में पंद्रह-बीस लड़कियाँ हो गईं और अब चहलक़दमी बढ़ने लगी |

साइकिल अंकिता के अलावा किसीको नहीं मिल पाई थी और उसके साथ साइकिल वाले लड़कों का 'स्कॉड' चलता | अंकिता को इन सब बातों से कोई फ़र्क न पड़ता | वह कॉलेज में केवल प्रबुद्ध लड़कों से बात करती जिनमें अशोक नामक लड़का भी था | वह धीरे-धीरे लड़कियों के बीच लोकप्रिय होता जा रहा था जबकि वातावरण से प्रभावित भयभीत घरवाले अपनी बेटियों की किसी से भी बात करना पसंद नहीं करते थे |

अंकिता अक्सर अशोक से बात करती, कला, साहित्य की चर्चाएं होतीं | शहर के एकमात्र नए खुले क्लब में शास्त्रीय संगीत व शास्त्रीय गायन सीखने का मौका भी लड़कियों को मुहैया होने लगा था |अशोक भी लखनऊ से शास्त्रीय संगीत सीखकर आया था | साल भर होते अंकिता,

ऊमा व अशोक इन तीन लोगों का ग्रुप सबमें प्रसिद्ध हो गया |

कॉलेज में अक्सर साइकिल-स्टैंड पर अपनी रज़ाई कैरियर में लगाता एक श्याम वर्ण का लड़का दिखाई देता जो साइकिल पर तो रज़ाई ओढ़कर आता और कॉलेज में आते ही अपने नीले रंग के सूट और लाल टाई का प्रदर्शन करने के लिए रज़ाई छिपाता नज़र आ ही जाता |अंकिता और ऊमा के चेहरों पर नीची मुस्कान पसर जाती | खिलखिलाकर हँसने का तो प्रश्न था नहीं |

एक दिन दोनों ने देखा, अशोक का हँसते हुए बुरा हाल हो रहा था, अकेला खड़ा हँस रहा है !

"क्या हुआ भैया ? " अंकिता और ऊमा उसके पास खड़ी थीं |

काफ़ी देर तक तो अशोक हँसता रहा पेट पकड़े, जब दोनों लड़कियाँ वहाँ से खीजकर जाने लगीं |

"अरे ---बताता हूँ न, सुनो ----" फिर दाँत फाड़कर हँसने लगा | उसकी हँसी रुक नहीं रही थी |

"उसका नाम चंदन है ----" उसने थोड़ी दूरी पर खड़े रज़ाई व सूट पहनने वाले लड़के की ओर इशारा किया |

"तो ----" दोनों लड़कियों के मुख से झुंझलाहट में निकला |

"अरे सुनो तो ---वो तुम दोनों से दोस्ती करना चाहता है, कह रहा था --'भाई असोक ! तेरे में के लाल चिपटे हैंगे जो तुझे देखके तो ये गुड़ की भेल्ली सी चिपट जावैं अर मन्नै देखते ही काग्गे ती उड़ जावैं हैंगी -----"दो सेकेंड्स लगीं अंकिता को यह सब समझने में ---

अब तीनों के दाँत फाड़कर हँसने की बारी थी, पहली बार उस कॉलेज का प्रांगण लड़कियों के खिलखिलाने की गूँज से महक रहा था |

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