Vivek aur 41 Minutes - 3 books and stories free download online pdf in Hindi

विवेक और 41 मिनिट - 3

विवेक और 41 मिनिट..........

तमिल लेखक राजेश कुमार

हिन्दी अनुवादक एस. भाग्यम शर्मा

संपादक रितु वर्मा

अध्याय 3

नाइट गाउन पहन कर सोफ़े में अध लेटे हुए जज सुंदर पांडियन स्टार टी. वी. के समाचारों को ध्यान से सुनते हुए उसी में खोये हुए थे |

दीवार घड़ी में रात के साढ़े दस बज रहे थे |

“अप्पा.............”

पीछे की तरफ से आवाज सुन वे घूमे | उनके लड़के गोकुलवासन और उसकी पत्नी सुभद्रा कमरे के दरवाजे पर दिखाई दिये |

“आओ........... गोकुल.............! आओ बेटा सुभद्रा............” कह कर सुंदर पांडियन ने रिमोट कंट्रोल से टी. वी. को बंद कर दिया | दोनों अंदर आए | दोनों के चेहरे पर चिंता साफ झलक रही थी |

“क्या बात है गोकुल..............?”

“आपसे कुछ बात करनी है |”

“पहले बैठो..........” वे बैठे | उनके बैठते ही उन्होंने पूछा “क्या बात है........... बोलो...........?”

“डी.जी.पी. वैकुंड शर्मा ने मुझे फोन करके सब बातें बता दी हैं |”

सुंदर पांडियन मुस्कुराए | “किसी से भी विशेष रूप से तुमसे, नहीं बोलना है मैंने बोला था, फिर भी तुम्हें बोल ही दिया ?”

सुभद्रा बीच में बोली |

“मामा.........! ये कोई खेल का विषय नहीं है | उस विनोद कुमार के हत्या के केस से अपने आप को अलग कर लीजिए क्या................?”

“तुम क्या बोल रही हो..............! केस से मैं अलग हो जाऊँ............? केस फैसला सुनाने की स्थिति में आ गया बच्ची !”

“हो गया तो क्या हुआ मामा............... किसी केस में पूछताछ करना, फैसला देना, इच्छा नहीं हो तो उस केस से अपने आपको अलग होने के लिए कानून में प्रावधान है ना.........!”

“हाँ हो सकता है............ परंतु मेरी मर्जी नहीं है | विनोद कुमार जैसी अमीरों की कटिली झाड़ियाँ इस समुदाय में नहीं रहनी चाहिए |”

“अप्पा............” गोकुल वासन बीच में बोला |

“बोलो..........|”

“न्याय, नीति, सदाचार.............. ये सब शब्द अब दिखाई नहीं देते | वह भगवान भी अब राजनेताओं के गिरफ्त में आ गया | किसीबडे़ राजनेता का मन हो तो ही मंदिर में पूजा हो सकती है और दीपक जल सकता है |”

“ये मुझे भी मालूम है...............”

“मालूम होने के बाद........... भी राजनैतिक दृष्टि से सक्षम विनोद कुमार से टकराना चाहिए..............?”

“ये देखो गोकुल...............! एक न्यायाधीश को किसी से भी डरना नहीं चाहिए | इस केस में मैं सही और साफ फैसला करना चाहता हूँ इसलिए राजनैतिक वरदहस्त रखने वाले ‘विनोद कुमार के हत्या के केस को मुझे दिया गया है............. मेरे लिए नीति और ईमानदारी दोनों दो आँखों जैसे हैं | आँखें बंद रख कर फैसला देने के लिए मैं तैयार नहीं हूँ | विनोद कुमार ने किस निर्दयता पूर्वक एक लड़की की हत्या की है | एक ब्लेड को लेकर उस लड़की के पूरे शरीर को चीर-चीर कर मार डाला | इस तरह एक हत्यारे का हमारे समाज में रहना एक न्यायाधीश होकर मैं अनुमति नहीं दे सकता ?”

“अप्पा आप जो कह रहे हो उसको मैं स्वीकार करता हूँ | फिर भी.............”

“नहीं गोकुल.............! दूसरी बात करो............ तुम्हारा एक्सपोर्ट बिजनस कैसे चल रहा है ? अपने स्टेट में जो चाय पैदा होती है वह एक्सपोर्ट लायक नहीं है तुमने पिछले महीने बोला था ! अब उसका स्तर बढा की नहीं ?”

“बढ़ा तो है............. पर ऑर्डर नहीं आया............”

“ऑर्डर जरूर आएगा | नहीं तो तुम ऑर्डर लेने के लिए यूरोप का मिनी टूर करके आ जाओ..............”

“अप्पा अभी मुझे बिजिनेस के बारे में फिकर नहीं है | आपके बारे में ही फिकर है |”

“अभी मुझे क्या करना है बता रहे हो........?”

“एक उस विनोद कुमार को छोड़ना है | नहीं तो इस केस से अलग हो जाओ..............”

“तुम जो बोल रहे हो वह दोनों ही मैं नहीं कर सकता | विनोद कुमार का फांसी पर लटकना तो निश्चित है...........”

“अप्पा..........”

“चुपचाप जाकर सो जाओ............! लोग अभी सिर्फ न्याय विभाग पर ही विश्वास करते हैं | उसे खराब करने को मैं तैयार नहीं हूँ |”

गोकुलम और सुभद्रा दोनों आगे बात करें या कमरे से बाहर जाएं ऐसा सोच रहे थे तब ही सुंदर पांडियन के पास रखा टेलीफोन बजा |

रिसीवर को उठाकर सुंदर पांडियन बात करने लगे |

“हैलो”

दूसरी तरफ से डी.जी.पी. वैकुंड शर्मा ही बात कर रहे थे |

“सॉरी........... फॉर......... दी........... डिस्टरबेन्स | कल सुबह ही फोन करूं सोच रहा था पर मन नहीं माना...........”

“क्यों क्या बात है..............?”

“फिर से एक केसेट आ गया...........”

“केसेट को डाल कर देखा ?”

“देखा”

“क्या बोल रहा है..............?”

“थोड़ा विपरीत |”

***