Vivek aur 41 Minutes - 5 books and stories free download online pdf in Hindi

विवेक और 41 मिनिट - 5

विवेक और 41 मिनिट..........

तमिल लेखक राजेश कुमार

हिन्दी अनुवादक एस. भाग्यम शर्मा

संपादक रितु वर्मा

अध्याय 5

सुंदर पांडियन चौंक गए |

“क्या विपरीत हुआ ?”

“आपके कार ड्राइवर का नाम दुरैमाणिकम है क्या ?”

“हाँ”

“आपके पास तीस सालों से वह ड्राइवर है ?”

“हाँ”

“उस ड्राइवर दुरैमाणिकम का अपहरण होकर अब वह उनके कब्जे में है | आप उनकी बातों को नहीं माने तो दुरैमाणिकम जिंदा नहीं बचेगा | एक विश्वास पात्र ड्राइवर की बलि चढ़ाना या नहीं चढ़ाना आपके हाथ में ही है ऐसा बोल रहें है.......... केसेट को आपके घर में लाकर बजा कर बताऊँ............?”

“नहीं शर्मा.......... उस गली के कुत्ते को भौकने दो | उसकी परवाह न कर अपने काम को हम देखेंगे |”

“सुंदर पांडियन ! मैं एक योजना बताऊँ ?”

“कहिए............”

“उस विनोद कुमार से संबन्धित केस के फैसले को अगले हफ्ते न सुनाकर दो महीने के लिए आगे बढ़ा दो...........”

“ऐसे आदमी को देख न्यायाधीश को डरना नहीं चाहिए डी. जी. पी. साहब.........”

“ये डर नहीं है............ विरोधी को संभालने के लिए |”

“सॉरी शर्मा............... एक हत्यारे से मैं........... डरने जैसे नाटक करने के लिए भी तैयार नहीं | अगले हफ्ते मेरे फैसले में जरा भी बदलाव नहीं होगा | मेरे फैसला सुनाने के पहले ड्राइवर दुरैमाणिकम को जिंदा बचाने का जिम्मा आप पुलिस वालों का ही है........... बोल कर रिसीवर को रख दिया | उसी तेजी से लड़के गोकुल वासन को देखा |

“चल............... एक जगह जाकर आते हैं |”

“कहाँ अप्पा ?”

“आओ…………… बताता हूँ...........” आवेश के साथ उठ कर तेज चाल में बोर्डिको की ओर गए | गोकुल वासन असमंजस के साथ उनके पीछे गया |

***