Vivek aur 41 Minutes - 10 books and stories free download online pdf in Hindi

विवेक और 41 मिनिट - 10

विवेक और 41 मिनिट..........

तमिल लेखक राजेश कुमार

हिन्दी अनुवादक एस. भाग्यम शर्मा

संपादक रितु वर्मा

अध्याय 10

जगज्योति स्वामी जी का प्रवचन अभी भी चल रहा था, तभी नित्यानन्द ने विवेक और विष्णु को मुस्कुरा कर देखा |

“स्वामी जी 99 साल के है इसे साबित करने के लिए मैलापुर में एक साक्षी है | उनका नाम नरसिम्हाचारी है | उनकी उम्र 99 साल है | नजर, बातें और सुनने की शक्ति सब उनकी बिल्कुल ठीक है | वे और स्वामी जी छोटी उम्र में मैलापुर में जो क्रिश्चिन मिश्नरी स्कूल है वहाँ पाँचवी तक साथ-साथ पढे हैं | स्वामी जी के बचपन का नाम जगज्योति था | स्वामी जी के बारे में उनसे पूछ कर देखिएगा | बड़े खुश होकर यादों को ठीक से बयान करेंगे |”

विवेक ने पूछा – “इस उम्र में स्वामी जी में इतनी फुर्ती कैसे है ?”

“इसका कारण महा गुरु मुद्रा अभ्यास और श्वास बंद का अभ्यास............... इन अभ्यासों को वे सत्तर साल से कर रहे हैं|जैसे स्फटिक बिल्कुल बिना दाग के क्लियर होता है वैसे ही स्वामी जी का शरीर और मन भी है |” कह कर नित्यानन्द उठ गए |

“आइये स्वामी जी का प्रवचन खत्म होने वाला है | उनके कमरे में जाकर इंतजार करेंगे | आपके इंक्वायरी खत्म होने में बहुत समय लगेगा क्या ?”

“पंद्रह मिनिट बहुत है...............”

“स्वामी जी आपके इन्क्वायरी में अच्छी तरह साथ देंगे | इस तरफ से आईयेगा...............”

“नित्यानन्द ने ध्यान वाले हाल के समीप ही एक लंबे बरामदे से ले जाकर, हॉल के पिछवाड़े के कमरे में उन्हें बैठाया | विवेक ने उस कमरे के चारों ओर अपनी नजर दौड़ाई |

कमरे में दीवार पर स्वामी जी की विभिन्न ध्यान मुद्राओं में फोटो दिखाई दीं | फोटो के नीचे पेंट से कुछ लिखा हुआ था |

मुद्राएँ कुल 108

पहले सप्त मुद्राओं में 7 मुद्राएँ

दूसरे सप्त मुद्राओं में दूसरे सात मुद्राएँ ऐसे 108 मुद्राएँ ऐसे अभ्यास के लिए दिखाया गया |

विवेक और विष्णु ने दीवार में लगे फोटो देखते हुए पंद्रह मिनिट बिताए होंगे इतने में स्वामी जी तेज चलते हुए अंदर आए |

उस 99 साल में भी 55 साल जैसी फुर्ती |

“आईएगा...........” उनका स्वागत करते समय दाढ़ी मूछों के बीच में पूरे दांत लाइन से चमक रहे थे | विवेक और विष्णु दोनों ने हाथ जोड़े | उनके सिर पर हाथ रख आशीर्वाद देकर स्वामी जी वहाँ जो कुर्सी थी उसमें आराम से बैठे |

“बताइये.............. किस बारे में पूछताछ करनी है |”

विवेक ने दो मिनिट रुक कर शोरवरम से मिले खोपड़ी के स्कल् और उसके गड्ढे में मिले पारस की मणिमाला के बारे में बताया और एक प्लास्टिक कवर में डाले हुए उस पारे की मोतियों की माला को निकाल कर दिखाया |

स्वामी जी ने उस पारे की मणिमाला को हाथ में लेकर देखा, बाएँ हाथ की अंगुलियों से अपनी दाढ़ी को सहलाते हुए पूछा-

“हत्या हुई वह लड़की............?”

“हाँ.............”

“उम्र कितनी बताई ?”

“पच्चीस से पैंतीस साल के बीच ?”

“वह लड़की मेरे आश्रम में आकर मुझसे इस माला को लेकर गई हो सकता है | इसी विचार से मेरे पास पूछताछ करने आए तो ठीक है ?”

“हाँ जी...........”

स्वामी जी कुछ क्षण सोचकर विवेक को देखने लगे | “ये मेरे द्वारा तैयार करवाया पारस (पारे) की माला ही है ! इसमें संदेह ही नहीं है ! परंतु इसे लेकर जाने वाली लड़की कौन है ये मुझे नहीं पता | एक साल में मेरे पास कितने ही लोग आते है और पारे की माला लेकर जाते हैं | सभी लोगों को मैं याद नहीं रख सकता ना..........!”

विवेक उसके पास जो दूसरा कवर था उसे खोल कर उसके अंदर जो तीन फोटो थी उसे निकाला |

“स्वामी जी...........! जो खोपड़ी मिली उसकी कम्प्यूटर द्वारा वह लड़की कैसे रही होगी ऐसे एक हद तक तैयार किया फोटो है ये | इन फोटोओं को देखने से वह लड़की कौन है | शायद आपको मालूम हो जाए |

स्वामी जी ने उन फोटोओं को लेकर देखा | आँखों को बंद कर कुछ क्षण विचार में रह कर पास में खडे उनके सहायक नित्यानन्द के तरफ मुड़े |

“नित्या”

“स्वामी !”

“इन फोटोओं को देखने से कारूँणया जैसे झलक आ रही है | आप भी देखिएगा |”

नित्यानन्द फोटोओं को लेकर देख कर सिर हिला कर समर्थन किया |

“हाँ स्वामी जी........... करीब-करीब कारूँणया जैसे ही झलक है |”

“वह लड़की आश्रम को छोड़ कर बाहर गए कितना समय हो गया होगा ?”

“डेढ़ साल करीब हो गया होगा स्वामी !”

स्वामी जी विवेक की तरफ देख “इस फोटो में जो लड़की है उसकी शक्ल ‘कारूँणया’ नामक एक लड़की जो तीन साल इस आश्रम में रही फिर वह मन के कुछ बदलाव की वजह से डेढ़ साल पहले इस आश्रम को छोड़ कर चली गई |

“वह कारूँणया अब कहाँ है ये आपको पता है क्या स्वामी......!”

“कारूँणया इस आश्रम में रहती थी तब तक प्रभावती नाम की दूसरी लड़की के ज्यादा नजदीक थी | उस प्रभावती को बुला कर पूछें तो सच्चाई मालूम हो सकती है............. प्रभावती को जाकर बुला लाऊं क्या स्वामी.............? स्वामी ने सहमति से सिर हिलाया तो नित्यानन्द उस कमरे से बाहर जाकर कुछ मिनिटों के अंदर ही, गोरी सी, दुबली-पतली एक लड़की को बुलाकर लेकर आए |

प्रभावती स्वामी जी के पैरों को छू कर फिर दूर जाकर खड़ी हुई तो स्वामी जी ने उससे पूछा- “फोटो में जो लड़की है वह किसके जैसे है बताओं तो देखें ?”

वह देख कर सकुचाते हुए “कारूँणया” बोली |

“कारूँणया को इन दिनों कहीं देखा क्या ?”

“नहीं स्वामी...........! उसे आखिर में जो देखा वह इस आश्रम में रह रही थी तब ही देखा |”

“उसके बाद उसे नहीं देखा ?”

“नहीं.......”

“ठीक है ! अब वह कहाँ ठहरी है पता है क्या ?”

“वह इस आश्रम से जाते समय एक कागज के टुकड़े में वह जहां रुकने वाली थी उसे लिख कर देकर गई थी स्वामी जी............”

“वह कागज का टुकड़ा अभी तुम्हारे पास है क्या ?”

“है.............”

“लेकर आओ...............”

***