Ek Jindagi - Do chahte - 36 books and stories free download online pdf in Hindi

एक जिंदगी - दो चाहतें - 36

एक जिंदगी - दो चाहतें

विनीता राहुरीकर

अध्याय-36

दयाबेन के आने से तनु का मन थोड़ा ठीक हुआ। घर में अपने अलावा किसी और के भी पास होने का अहसास काफी तसल्ली भरा था। दयाबेन तनु की दिनचर्या में या काम में कोई बाधा नहीं डालती थी लेकिन घर में उनकी उपस्थिति से तनु को बहुत राहत मिलती थी और मन में एक अच्छापन सा लगता रहता था। और ऑफिस में अनूप के साथ बाते करके उसका मन लगा रहता। परम की याद तो काम के दौरान भी पूरे समय दिन दिमाग पर छायी रहती थी फिर भी अनूप से बाते करते, हँसते-बोलते तनु के दिन कट जाते थे। अब तक वह अपने आपको काफी स्थिर कर चुकी थी। बाईस दिन बीत चुके थे। अभी भी अड़सठ दिन बचे थे परम से मिल पाने में। दिन बीत रहे थे लेकिन बचे हुए दिनों की गिनती कम ही नहीं हो रही है ऐसा लग रहा था। परम समझाता रहता था-

''देख कितनी जल्दी बाईस दिन निकल गये। अभी देखते ही देखते बचे हुए दिन भी निकल जायेंगे। पता ही नहीं चलेगा और मैं तुम्हारे पास आ जाऊँगा।"

तनु समझती थी। परम का काम मामूली नहीं है। उसके जीवन का उद्देश्य जनसामान्य से ईतर कहीं अधिक महत्तर है, ऊँचा है और तनु को उस पर गर्व होता था। उसके इसी गुण से प्रभावित होकर तो तनु उससे प्यार करती थी, उसका सम्मान करती थी।

लेकिन अंदर पता नही कौन ऐसा था जो नासमझ था और अपनी इसी नासमझी में सारे समय तनु के अंतर को एक अव्यक्त और बेचेनी भरे दर्द से सालता रहता था।

और इस दर्द को भुलाने के लिये तनु दिन पर दिन अपने आपको काम में ज्यादा से ज्यादा व्यस्त करती जा रही थी। दयाबेन रात में भी कभी उसे देर तक काम करते देखती तो डाँट डपट कर जबरदस्ती उसे सुला देती वे उसके मन की दशा से परिचित थी लेकिन मन की बेचेनी के कारण शरीर पर अनावश्यक अत्याचार करना समझदारी नहीं थी।

दयाबेन ग्यारह बजे के बाद तनु को काम नहीं करने देती थी। तनु पलंग पर पड़ी-पड़ी करवटें बदलती रहती। कभी चुपचाप उठती और स्टडी रूम मे सोफे पर जा लेटती। सिग्नल मिल जाते तो परम से बातें करती रहती। रूम में परम के अलावा भी आठ-दस लोग तो और रहते ही थे। ऐसे में सबकी नींद खराब होने का डर और फिर व्यक्तिगत बातें दूसरों के सामने करना अच्छा भी नहीं लगता तो परम या तो बाहर जाकर गाड़ी में बैठ कर उससे बाते करता या फिर पेट्रोलिंग की ड्यूटी अपने नाम करवा लेता और ड्यूटी करता हुआ अकेले में निश्चिंती से तनु से बातें करता रहता। बातों के बीच-बीच में से व्हिसल बजाकर वह ड्यूटी पर तैनात दूसरे बंदे को अपने एरिया में सबकुछ ठीक ठाक होने की सूचना देता और उधर से दूसरा भी अपने ठीक होने की व्हिसल बजा देता।

रात ऐसे ही कट जाती।

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उस दिन सुबह ही ग्र्रेनेड फायरिंग के लिए पूरी यूनिट फायरिंग रेंज में गयी। करीब पन्द्रह लोग थे। सब रेडी पोजीशन में थे। इंसट्रक्टर (गे्रनेड फायरिंग में ट्रेंड सोल्जर) अपने निर्देशन में फायरिंग करवा रहा था। उसके आदेश अनुसार टर्न बाय टर्न दो-दो आदमी आते और गे्रनेड फायरिंग करते परम की भी बारी आयी। परम ने ग्रेनेड हाथ में लिया, लॉबिंग की (ग्रेनेड की पिन निकाली) और गे्रनेड को दूर फेंक कर अपने स्थान पर वापस आ गया। तीस सेकेन्ड बाद ग्रेनेड ब्लास्ट हो गया। तब तक राजाराम की बारी आयी। राजाराम ने भी ग्रेनेड एक हाथ में पकड़ा दूसरे हाथ से उसकी पिन निकाली और गे्रनेड को दूर फेंक दिया और अपनी जगह पर वापस आ गया।

राजाराम के बाद में अनिल की बारी थी। अनिल यूनिट में नया आया था। वह पहली बार ग्रेनेड फायरिंग कर रहा था। अनिल बहुत घबराया हुआ था। उसने जल्दी में गे्रनेड हाथ में लिया और इंस्ट्रक्टर की बातें सुने बिना तुरंत ही ग्रेनेड की पिन निकाल दी।

''स्टॉप-स्टॉप। ग्रेनेड को फेंकना मत। कसकर हाथ में पकड़े रहना। देखना उसका सेफ्टी लॉक फ्री न हो जाये।" इंस्ट्रक्टर चिल्लाया।

राजाराम को ग्रेनेड फेंके हुए तीस सेकेण्ड हो गये थे लेकिन उसका ग्रेनेड ब्लास्ट नहीं हुआ था।

''राजाराम का ग्रेनेड ब्लाइंड था।" इंस्ट्रक्टर ने बताया।

ग्रेनेड की पिन खोलने के बाद जैसे ही उसे फेंकते हैं तो उसका सेफ्टी लॉक फ्री हो जाता है और अंदर का स्प्रिंग उछलकर बाहर आ जाता है। पिन निकालने के बाद तीस सेकेण्ड का समय रहता है ठीक तीस सेकण्ड बाद ग्रेनेड ब्लास्ट हो जाता है। अगर नहीं हुआ तो इसका अर्थ है कि ग्रेनेड ब्लांइड है। उसे एक्सप्लोसीव लगाकर ब्लास्ट करवाना जरूरी है। अगर इस ब्लाइंड ग्रेनेड के पास दूसरा लाईव ग्रेनेड फट जाये तो उसके धमाके से ब्लांइड ग्रेनेड उड़कर कहीं भी गिर सकता है, धमाके से किसी पर गिरकर अचानक एक्टिव होकर ब्लास्ट हो सकता है। अथवा अगर कोई उसको उठाने जाये तो हिलने से ब्लास्ट हो सकता है, किसी जानवर का पैर पडऩे से या मुँह लगने से, या उस रास्ते जो भी गुुजरा तो भी कोई भी दुर्घटना हो सकती है।

इसीलिए इंस्ट्रक्टर ने अनिल को मना किया ग्रेनेड फेकने से। इंस्ट्रक्टर एक्सप्लोसीव लगाकर उसे ब्लास्ट करवाने गया। तब तक पूरी यूनिट दम साधे खड़े रही। अनिल पूरा पसीने से भीग गया था। मौत कहीं सामने नहीं उसके अपने हाथ मे थी। जरा सा उसकी उंगलियों का दबाव कम ज्यादा हुआ और सब खत्म... परम अनिल की हालत समझ रहा था। एकबारगी उसका मन किया कि ग्रेनेड अनिल के हाथ से ले और अपने हाथ में पकड़ ले लेकिन लेन देन में केचिंग हेन्डल ढीला हो गया और स्प्रींग बाहर निकल गया तो...

तो दोनों की ही मौत निश्चित। अभी तो ये उम्मीद भी थी कि अनिल ग्रेनेड को मजबूती से थामे रखेगा तो दुर्घटना टल जायेगी।

मौत को हाथ में मजबूती से थामें अनिल पसीने से पूरा भीग कर थर-थर काँप रहा था। ग्रेनेड फायरिंग का उसका पहला ही अनुभव दिल दहला देने वाला रहा था।

जब एक्सप्लोसीव लगाकर ब्लाइंड ग्रेनेड को ब्लास्ट करवा दिया गया तब अनिल ने हाथ में थामा ग्रेनेड फेंका। सिर से मौत का मंडराता साया दूर हो गया। अनिल के पैर अब जवाब दे गये थे, दिमाग सुन हो चुका था बड़ी मुश्किल से वह यूनिट पहुँचा, रूम में गया और पलंग पर कटे पेड़ की भांति गिर पड़ा। अगले दो दिनों तक अनिल बुखार में तपता रहा।

उस रात परम को रात भर नींद नहीं आयी। फौजी जीवन में कदम-कदम पर मौत का खतरा है। जरा सी लापरवाही या अज्ञानता से सीधे जान पर बन आती है। लोगो को लगता होगा कि सिर्फ लड़ाई के दौरान ही या मिलिटेंट्स के हमलों के दौरान ही सैनिकों को खतरे का सामना करना पड़ता होगा। लेकिन ऐसा नहीं है। यहाँ सुबह से लेकर रात तक और रात से लेकर सुबह तक जीवन मौत की ना जाने कितनी चुनौतियों का सामना करते हुए आगे बढ़ता है।

प्राकृतिक आपदाओं में फँसे लोगों की जाने बचाते हुए न जाने कितने सैनिक अपनी जाने कुर्बान कर देते हैं। और भी कई तरह की दुर्घटनाएं होती ही रहती हैं जहाँ फौजी जवानों को ही दौड़कर जाना पड़ता है।

आज अगर अनिल दुर्भाग्य से ग्रेनेड को ठीक से नहीं पकड़कर रख पाता तो...

ग्रेनेड की स्प्रींग छूट जाती तो....

एक जवान की जान व्यर्थ में ही खर्च हो जाती। और सिर्फ जवान की ही क्यों? उसके पीछे उसके पूरे परिवार की जिंदगी अधर में टंग जाती।

उसकी पत्नी!

उसके बच्चे!

अगर वह अपने माता-पिता का इकलौता बेटा हुआ तो, उसके माता पिता की वृद्धावस्था भी। सबका जीवन एक बहुत बड़े शून्य से घिर जाता। परम को तनु की याद आयी। जीवन में एक समय ऐसा आ जाता है कि आदमी अपने जीवन से अपने लिए नहीं बल्कि अपने साथ जुड़े व्यक्तियों के कारण, उनके प्यार के कारण मोह करने लगता है। उसे अपने मरने का डर नहीं रहता, वह तो अपने परिवार पर उम्र भर के लिए जो विपत्ती टूट पड़ती है, उनके जीवन में जो दर्द, जो खालीपान भर जाता है उससे डरता है।

जब तक तनु जीवन में नहीं आयी थी परम को भी अपनी जान से लगाव नहीं था। वह मौत के मुँह में भी बेधड़क घुस जाता था। खतरे की जगह, परम सबसे पहले आगे रहता था। उसे कोई फर्क नहीं पड़ता था कि उसके साथ क्या हो सकता है।

लेकिन जबसे तनु उसके जीवन में आयी है, परम को पहली बार अपनी जिंदगी से प्यार हुआ है। अब उसके मन मे ंजिंदा रहने की इच्छा पैदा हुई है। अब मौत का सामना करते हुए उसकी आँखों के सामने तनु का चेहरा कौंध जाता है।

ऐसी ही नई-नई घटनाओं और चुनौतियों के बीच परम के दिन बीत रहे थे। पूरे दिन में से सबसे नाजुक समय होता था जब ड्यूटी बदलती थी अर्थात् एक जवान की या यूनिट की ड्यूटी बदलने के बाद उसके जाने और उसके स्थान पर दूसरी यूनिट या जवान के आने के बीच का समय। दूसरा खतरा रहता रात के दो बजे से सुबह चार बजे के बीच के दो घण्टे का समय। ये समय ऐसा होता था कि दिन भर के परिश्रम से थका मांदा सिपाही चाहे कितनी ही सतर्कता बरत ले लेकिन नींद उस पर हावी हो ही जाती है।

और इसी समय मिलिटेंट्स की घुसपैठ की गतिविधियाँ सबसे अधिक बढ़ जाती है। ताक में बैठे हुए मिलिटेट इन्हीं दो समय पर सीमा से अंदर घुसने की कोशिश करते हैं।

पिछले आठ दिनों में देा बार ऐसा हुआ कि मुखबिरों ने आसपास के इलाकों में संदिग्ध गतिविधि दिखाई देने की सूचना दी। परम ने तुरंत ही अपनी टुकड़ी को तैयार किया और बताए हुए स्थान पर रवाना हो गया। रात-दिन, ढाई दिनों तक ईलाके का चप्पा-चप्पा छान मारा लेकिन कुछ हाथ नहीं आया। चार-पाँच दिन बाद फिर खबर गलत निकली। परम झुंझला गया। दूसरी बार की खबर तो ऐसे दुर्गम पहाड़ी स्थान की थी कि बस। पूरे सर्च के दौरान परम और उसके सैनिक घुसपैठियों को गालियाँ देते रहे। सालों को और कोई जगह नहीं मिली, मरने के लिए ऐसे पहाड़ी स्थान पर आ छुपे।

तीन दिन और दो रातें परम इलाके मे सर्च करता रहा लेकिन कुछ भी हाथ नहीं आया। कोई सुराग या निशान भी नहीं मिला।

पता नहीं घुसपैठिये ने कहीं खुद ही तो परेशान करने के लिये या ध्यान भटकाने के लिए खबर नहीं उड़ा दी। ऐसा भी हो सकता है। कई स्थानीय लोग भी तो इनसे मिले हुए होते हैं। ऐसे व्यर्थ के परिश्रम से परम को बहुत झुंझलाहट होती।

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