Nariyottam Naina - 11 books and stories free download online pdf in Hindi

नारीयोत्तम नैना - 11

नारीयोत्तम नैना

भाग-11

"शादी सदैव अपने बराबर वालों के संग करना चाहिए", "पानी पीओ छानकर, वर चूनो जानकर" ऐसे ही बहूत सी कहावते महेश सोलंकी और उनके परिवार को सुनने को मिल रही था। जो निश्चित रूप से उनकी पीड़ा कई गुना बढ़ाने के लिए बहुत थी। स्मिता का ध्येर्य टूट चूका था। अब उसने अपनी जुबान खोल दी थी। सगे-संबंधी और पड़ोसी जो सोलंकी परिवार के प्रति हमदर्दी कम दिखाते, जले पर नमक अधिक छिड़कते थे। आये दिन कोई न कोई उनके घर आ धमकता था। स्मिता ने अपनी वाकपटूता और चातुर्य से सभी को मुंहतोड जवाब देना शुरू कर दिया था। कूछ ही दिनों में सोलंकी परिवार के संबंध में विभिन्न प्रकार की चर्चाओं का दौर थम ही गया।

तनुश्री और जितेंद्र दोनों ही यह शादी नैना की खुशी के लिए कर रहे थे। तनुश्री अपना पुरा मन बना चुकी थी की नैना के लौटते ही वह जितेंद्र की जिन्दगी से दुर चली जायेगी।

नूतन और विक्रम ने श्रीलंका की धरती पर उतरते ही नैना की खोज शुरू कर दी। उस समय लिट्टे द्वारा विद्रोह घोषित कर दिया था। स्थानीय पुलिस नूतन और विक्रम को गलतफहमी वश लिट्टे का सदस्य मानकर गिरफ्तार कर लिया। चार दिनों की लम्बी पुछताछ और यातनाएं देने के उपरांत उन्हें रिहा किया गया। बहुत सी अड़चनों और बाधाओं से जूझते हुये अंततः नूतन ने नैना को खोज ही लिया। दो प्राणों से भी प्यारी सहेलीयां बहुत दिनों के बाद मिल रही थी।

"अरे वाह नैना! तेरे तो बड़े ठाठ है। इतने बड़े बंगले में एक रानी की तरह रह रही है।" नूतन मजाक में कह रही थी। उसकी गला भर आया था। जब दोनों सहेलीयां गले मिली तो चाहकर भी अपने-अपने आसुं रोक नहीं पा रही थी। विक्रम दोनों की मित्रता के आगे नतमस्तक था।

"जितेंद्र कैसे है नूतन?" नैना ने नूतन से पुछा।

"अच्छे ही होंगे! नैना तु अब भी उनकी चिंता कर रही है जिसने इस हालत में तुझे छोड़ दिया?" नूतन का गुस्सा फुट पड़ा।

"नूतन! उन्होंने मुझे नहीं छोड़ा! मैंने उनकी इच्छा को स्वीकार कर स्वयं यहां रहना तय किया था। नूतन आधुनिक युग में यदि कोई पत्नी अपने पति के साथ रहना चाहे तो संसार की कोई शक्ति उसे ऐसा करने से रोक नहीं सकती।" नैना ने बताया।

"देख नैना! मैं तो इतना जानती हूं कि अगर जितेंद्र ठाकुर तुझे सीता बनी हुई देखना चाहते थे तो उन्हें भी राम बनकर दिखाना चाहिये था।" नूतन ने तंज कसा।

नूतन ने नैना को उसके परिवार की कुशलता बताकर यह भी बताया की जितेंद्र ठाकुर और तनुश्री की शादी हो चुकी है। वे दोनों पति-पत्नी के रूप में खुश है। अपनी घर वापसी पर नैना ने साफ इंकार कर दिया। नूतन की ज़िद पर नैना ने तनुश्री और स्वयं के बीच हुई शर्तों के बारे में बता दिया। तनुश्री और जितेंद्र ठाकुर के विवाह के एक वर्ष पश्चात ही वो घर लौटेगी। वो भी पुरे सम्मान के साथ। उसे जितेंद्र ठाकुर पर पुरा विश्वास था कि जैसे ही तनुश्री उन्हें उन दोनों की शर्तों के विषय में अवगत करायेगी, जितेंद्र ठाकुर उसे लेने श्रीलंका जरूर आयेगें। नूतन और विक्रम को सुखद भविष्य की शुभकामनाएं देकर नैना ने उन्हें वहां से विदा किया।

तनुश्री और जितेंद्र एक साथ होते हुये भी एक नहीं हो पा रहे थे। तनुश्री आत्मग्लानि में डुबकर आधी हुई जा रही थी। नैना के साथ जो घटित हो रहा था उसका जिम्मेदार वह स्वयं को मान रही थी। अगर वो शर्तों का जाल न फेंकती तो आज शायद नैना की यह स्थिति नहीं होती। जितेंद्र ठाकुर नैना को भुल नहीं पा रहा थे। नैना उसका फोन कभी-कभार ही रीसिव कर पाती थी। ताकी जितेंद्र ठाकुर अपने उत्तरदायित्व से विहीन न होकर उसके पास सबकुछ छोड़कर चले न आये। एक दिन हिम्मत कर तनुश्री ने जितेंद्र को सबकुछ बता ही दिया। उसकी और नैना के बीच जो शर्तें लगी थी उसकी जानकारी लगते ही जितेंद्र आगबबूला हो गया। उस दिन पहली बार जितेंद्र ठाकुर का हाथ अपनी दूसरी पत्नी तनुश्री के गालों को लाल कर गया। तनुश्री को अनुभव हुआ कि केवल एक चाटें की मार उसके अपराध के दण्ड के लिए कम बहुत ही कम है। उसे तो इससे बड़ी सज़ा मिलनी चाहिए। उस दिन से जितेंद्र ठाकुर और तनुश्री के बीच दुरीयां ओर बढ़ गयी। नूतन ने यह जानकारी खुशखबरी मानकर फोन पर नैना को बता दी। नैना मायूस हो गयी। वह यह कतई नहीं चाहती थी कि तनुश्री और जितेंद्र आपस में बैर रखे। उसका तो यह मन्तव्य था कि वे दोनों मिलकर ठाकुर परिवार को नया वारिस जल्द से जल्द देवे। लेकिन जितेंद्र ठाकुर की तनुश्री के प्रति नाराज़गी नैना के मंन्सुबे पुरे नहीं करने दे रही थी। कुछ निश्चय कर नैना ने विधायक महोदय को फोन लगाया।

"ये क्या कह रही हो तुम नैना! मैं और तनुश्री एक हो जाये। ऐसा कभी नहीं होगा। मैं तुम्हारा अधिकार किसी ओर से बाट नहीं सकता। एक वर्ष के पुरे होते ही मैं तुम्हें लेने श्रीलंका आऊंगा। फिर हम सब साथ में रहेंगे।" जितेंद्र ने फोन पर नैना को अपनी असहमति जता दी।

"विधायक महोदय! आप बच्चों की तरह यूं जिद न करे। अभी आपको प्रदेश का मुख्यमंत्री बनना है। मेरे पिता समान दिवंगत ससुर जी की अभिलाषा पूर्ण करनी है। मेरा आपके पास रहने से यह सब संभव नहीं होगा। आपको मां जी और भैया-भाभी की भी चिंता करनी चाहिए। मां जी आज है कल नहीं! आखिर वे कब अपने नाती-पोते का मुंह देखेगीं? मेरी तपस्या को व्यर्थ न जाने दीजिए। तनुश्री को अपना लिजिए।" नैना बोली।

"लेकिन नैना..।" विधायक महोदय बोले ही थे कि नैना ने उन्हें बीच में ही टोक दिया।

"लेकिन-वेकिन कुछ नहीं। मैंने तनुश्री को मना लिया है। अब आप भी मान जाईये। और हां मैं आपकी प्रतिक्षा करूंगी। ईश्वर ने चाहा तो हम एक न एक दिन अवश्य मिलेंगे।" नैना ने बताया।

"नैना! जरा फोन अपने पेट पर रखना तो। मुझे अपने बच्चों को अनुभव करना है।" जितेंद्र ठाकुर ने चहा।

नैना ने मोबाइल फोन अपने आकार में कुछ फूल चूके पेट पर रखा। विधायक महोदय ध्यान लगाकर सुनने की कोशिश करने लगे। नैना के नैनों से अश्रु धार बह निकली। विधायक जितेन्द्र ठाकुर भी आंखों से आसुं रोक नहीं सके। जितेंद्र ठाकुर को रोते हुए देखकर तनुश्री और माला ठाकुर भी एक दुसरे के गले लगकर सुबक रहे थे।

लव-कुश अब दस वर्ष के हो चुके थे। नैना की ममता से उन्हें मां और बाप दोनों का प्यार मिल रहा था। आचार्य भगवती प्रसाद लव-कुश को आधुनिक शिक्षा और भारतीय संस्कृति, संस्कार की दीक्षा नियमानुसार प्रदान कर रहे थे। अपने पिता जितेंद्र ठाकुर और माता के परित्याग के विषय में शनैः शनैः वे सबकुछ जान चूके थे। अपनी मां से असीम प्रेम करने वाले लव-कुश भारत जाने की अभिलाषा मन में पाले बैठे थे। अपने पिता द्वारा मां के साथ किये गये दुर्व्यवहार पर दोनों भाई अप्रसन्न थे। उन दोनों ने अल्पायु में ही अपनी माता को उनका उचित अधिकार दिलाने का संकल्प ले लिया था किन्तु नैना से उन्हें भारत जाने की अनुमति नहीं मिल रही थी। आचार्य भगवती प्रसाद ने लव और कुश को उनके पिता से मिलवाकर लाने का उत्तरदायित्व स्वयं के ऊपर लेकर नैना को मना ही लिया।

-----------------

मुख्यमंत्री निवास पर आमजनों का प्रवेश प्रतिबंधित था। आचार्य भगवती प्रसाद अपने साथ लव-कुश को लेकर मुख्यमंत्री जितेंद्र ठाकुर से मिलने का प्रयास कर रहे थे। मुख्यमंत्री निवास पर मंत्रीमंडल की महत्वपूर्ण बैठक चल रही थी। इसलिए सुरक्षा कर्मी उन तीनों को अन्दर नहीं जाने दे रहे थे। थक-हारकर वे बाहर ही कुछ देर सुस्ताने बैठ गये। तनुश्री की कार मुख्यमंत्री निवास के प्रवेश द्वार पर आकर रूक गयी। तनुश्री ने दो प्यारे-प्यारे बच्चों को बाहर धुप में बैठै देखकर उन्हें अपने पास बुलाया। आचार्य भगवती प्रसाद ने दोनों बच्चों और स्वयं का परिचय तनुश्री को दिया। तनुश्री ने कहा कि वे मुख्यमंत्री जी की धर्म पत्नी है। आचार्य जी ने तनुश्री को यह नहीं बताया कि लव-कुश जितेंद्र ठाकुर की ही संतान है। मुख्यमंत्री जी से पल भर की भेंट उपरांत वे तीनों यहां से चले जायेंगे ऐसा। आचार्य जी ने यह आश्वासन देकर तनुश्री से निवेदन किया कि वे लव-कुश को मुख्यमंत्री जी से मिलवा देवे। तनुश्री ने तीनों को अपनी कार में बैठा लिया। कार में बैठकर सभी मुख्यमंत्री निवास में प्रवेश कर गये। तनुश्री ने लव-कुश को चाय-नाश्ता करवाया। आचार्य भगवती प्रसाद का आशिर्वाद लिया। मंत्रीमंडल बैठक के भोजनावकाश में तनुश्री ने लव-कुश को मुख्यमंत्री से भेंटवार्ता करवाने को कहा। उसने मुख्यमंत्री तक अपने केयर टेकर स्टाॅफ के द्वारा यह सुचना पहूंचा दी की आश्रम के एक ॠषि महाराज और दो छोटे बच्चें उनसे मिलना चाहते है।

बड़े से हाॅल में चारों ओर बिछी बड़ी-बड़ी रौबदार कुर्सियों पर सरकार के मंत्रीगण बैठे थे। मंत्रियों के बीचों-बीच मुख्यमंत्री जितेंद्र ठाकुर सिंहासन आरूढ़ थे।

राम दरबार का दृश्य चरित्रार्थ हो रहा था। लव-कुश के साथ ॠषि वेश में आचार्य भगवती प्रसाद दरबार में धीरे-धीरे प्रवेश कर रहे थे। लव-कुश चारों ओर देखते हुए आगे बड़ रहे थे। आचार्य भगवती प्रसाद जी नज़र भगवान श्री राम के वेश में बैठे जितेंद्र ठाकुर पर जम गई थी। दरबार में बैठे मंत्रीगण दोनों नन्हे-मुन्ने जुड़वा बालकों के मस्तक पर विशेष तेज देख रहे थे। जितेंद्र ठाकुर की दृष्टि लव-कुश पर से हट हीं नहीं रही थी। उनके ह्रदय में ममत्व का ज्वार फुट रहा था।

"आदरणीय ॠषि वर के श्री चरणों में राम का प्रणाम!" अपने स्थान से उठकर नीचे उतरकर आये श्रीराम ने ॠषि वाल्मीकि को प्रणाम किया।

"आयुष्मान भवः। प्रिय लव-कुश!"

"जी आचार्य।"

"पुत्रों! महाराज श्री राम को प्रणाम करो।"

"जो आज्ञा आदरणीय।"

"प्रणाम महाराज।"

"चिरंजीवी भव:।" श्री राम ने उत्तर दिया।

"महाराज! हमारे ये दोनों शिष्य आपको एक भजन सुनना चाहते है। यदि आपकी अनुमति हो तो कृपया आदेशित करे।" आचार्य वाल्मीकि ने पुछा।

"अहो भाग्य आचार्य! सुनाओं प्यारे बच्चों!" श्रीराम लव-कुश से बोले। श्रीराम ने आचार्य को उचित स्थान पर विराजमान किया। तथा स्वयं बैठकर लव-कुश का भजन श्रवण करने बैठ गये। संपूर्ण सभा लव-कुश के भजन को सुनने हेतु आतुर दिखाई दे रही थी।

दो शब्द की भूमिका में लव-कुश ने पति द्वारा त्यागी जा चूकी पत्नी की पीड़ा गीत के रूप प्रस्तुत करने की अनुमति मांगी। सभा ने हाथ उठाकर सहमती प्रदान कर दी।

तान-तंबुरा लेकर लव-कुश ने भजन अपनी सुमधुर ध्वनि में गाना आरंभ कर दिया-----

"राम तुम्हारी अवधपुरी में मैं वापस नहीं आऊंगी..."

गीत क्या था? सीता जी के हृदय की संपूर्ण व्यथा लव और कुश ने अपने गीत के माध्यम से इस प्रकार व्यक्त की, की सम्पूर्ण सभा मंत्रमुग्ध हो गयी। श्री राम की आंखे नम हो गयी।

'साधुवाद'-'साधुवाद' के नारों से सभा गुंजायमान हो उठी। लव-कुश अपने पिता के प्रति अपनी आंखों से आक्रोश दिखा रहे थे। श्रीराम के स्नेह का उत्तर भी वे प्रति शोध से दे रहे थे।

लव-कुश जब लौट गये तब जितेंद्र ठाकुर की मोहनिद्रा भंग हुई। मंत्रीगण अभी भी लव-कुश के द्वारा गाये गये गीत की प्रशंसा कर रहे थे। भोजनावकाश सम्पन्न हो चूका था। मंत्रीमंडल सभागार में व्यवस्थित होकर बैठने लगे थे। मुख्यमंत्री जितेंद्र ठाकुर ने स्वास्थ्य ठीक नहीं है का बहाना बनाकर मंत्रीमंडल की बैठक स्थगित कर दी। लव-कुश में उन्हें बरबस ही अपने पुत्र दिखलाई दिये थे। वे अपने निवास से बाहर दौड़े। उन्हें लव-कुश को पुनः देखने की अभिलाषा हो रही थी। मगर लव-कुश जा चुके थे। जितेंद्र ठाकुर निराश नहीं हुये। विजिटर रजिस्टर पर उन्होंने उस मोबाइल फोन पर फोन लगाया जिसे आचार्य भगवती प्रसाद ने स्वयं लिखा था।

संसार की सबसे बड़ी खुशी आज ईश्वर ने जितेंद्र ठाकुर को दी थी। वह फोन नम्बर नैना का ही था। नैना ने जितेंद्र को बताया कि लव-कुश उन दोनों की संयुक्त संतान है। एक मुख्यमंत्री को राजधानी की सड़कों पर 'लव-कुश', 'लव-कुश' चिल्लाकर नग्न पांव दौड़ते हुए लोग पहली बार देख रहे थे। राजेंद्र ठाकुर ने समय रहते जितेंद्र ठाकुर को बीच सड़क पर संभाल कर कार में जबरन बैठाकर मुख्यमंत्री निवास पर लौटा लाये।

जितेंद्र ठाकुर उन्हें जबकी अब पता चल चूका था कि लव और कुश उनके ही बेटे है, अपने आपको संभाल नहीं पा रहे थे। तनुश्री, राजेंद्र और उनकी माता माला ठाकुर सभी जितेंद्र ठाकुर को समझा-बुझाने में असफल हो रहे थे। तनुश्री ने श्रीलंका फोन कर नैना से बात की। और जितेंद्र को संयम बरतने की अपील की। वो कोई मामूली आदमी नहीं था। अपितु राज्य का मुख्यमंत्री था। उसकी इन हरकतों से सत्तारूढ सरकार को बहुत परेशानी हो सकती थी। नैना के समझाने पर जितेंद्र ठाकुर शांत हो गये। नैना ने जितेंद्र ठाकुर को तनुश्री और उनकी संतान नकुल की याद दिलाकर उसे लव-कुश के समान ही प्रेम की आवश्यकता है, इस बात पर बल दिया। नकुल अपने सिर पर पिता के हाथों का स्नेहील स्पर्श पाकर जितेंद्र से लिपट गया। एक पिता का अपने पुत्रों के लिए तड़पते हृदय को नकुल के प्रेम ने सांत्वना दी।

श्रीलंका में धीरे-धीरे सुलग रहा गृह युद्ध चरम पर आ चूका था। तमिल भाषी और सिंहली के साम्प्रदायिक झगड़े दंगों में परिवर्तित हो चुके थे। श्रीलंका नौसेना ने दक्षिण भारतीय मछुआरों को काछादीवू द्विप पर मछली पकड़ने हेतु प्रतिबंधित कर दिया था। रोजगार और पेट की आग बुझाने के लिए छिपते-छिपाते भारतीय तमिल मछुआरे श्रीलंकाई आधिपत्य वाले काछादीवू समुद्री द्विप पर घुसपैठ करने लगे। श्रीलंका नौसेना ने मछुआरों को गिरफ्तार करना आरंभ कर दिया। यहां तक की गोली बारी में सौ से अधिक मछुआरे मारे गये।

***