Dhundhalee Tasveeren books and stories free download online pdf in Hindi

धुँधली तस्वीरें

1)

ऐसा ज़रूरी नहीं, राह का हर व्यक्ति हँस कर मिलें,

कोई गले मिलकर, थोड़ा सा रो दें, और कुछ न कहें।


यहाँ पर वो ख़ुशियाँ हर वक़्त क़िस्मत में ना भी मिलें,

मगर कोई साथ चलकर हिम्मत देने की बात तो कहें।


इस अनचाहे सफ़र में वो शख़्स हर एक मोड़ पर मिलें,

वो मुझसे इश्क़ करे या दोस्ती, मगर कोई बात तो कहें।


ज़माने की परवाह करके वो आज छत पर ना भी मिलें,

मैंने चाँद के इंतज़ार में घर सजाया, सब उसे मंदिर कहें।


टूटें हुए मकाँ से कुछ आवाज़ तुम्हारी राहों पर भी मिलें,

शहर का शोर कुछ ख़फ़ा हैं, भीगीं मिट्टी ये हवा से कहें।


2)


शराब का नशा किसे था, पीने की लत किसे थीं,

रुकने का वक़त किसे था, मरने की फ़िक्र किसे थीं?


धूप का ग़म किसे था, रात की तलब किसे थीं,

चलने का होश किसे था, सोने की जल्दी किसे थीं?


शहर का ग़ुमा किसे था, भीड़ की ख़ुशी किसे थीं,

चमकने का जुनूँ किसे था, छलकने की चाह किसे थीं?


सपनो का दुःख किसे था, जगने की उम्मीद किसे थीं,

घर का अरमा किसे था, लोगों की पड़ी किसे थीं?


जलने का खोफ किसे था, अस्क़ो की ख़्वाहिश किसे थीं,

रोशनदान का शोख़ किसे था, अंधेरो की खली किसे थीं?


3)

सुन कर उस की हँसी मेरी राहें गुज़र जाती हैं,

दिन हो या राते, नींदो में बातें, हो जाती हैं।


अचानक नहीं था मर्ज़ी तुम्हारी भी आ जाती हैं,

उड़ते हुए तिनक़ो से हवायें ना-जाने किधर जाती हैं।


ख़बर ही नहीं थी या नज़रें यूँ ही चली जाती हैं,

काफ़िर नहीं हुँ, मेरी भी ग़ज़ले खुदा तक जाती हैं।


मुन्तसिर हुँ वरना मेरी हर एक गलियाँ मिल जाती हैं,

आशा हैं मूजको, ये अस्क़ो की भाषा बदल जाती हैं।


मिला था कभी वो किनारे जहाँ पर नज़र जाती हैं,

हैं मुश्किल मगर अब, ये यादें धुआँ सीं उड़ जाती हैं।



4)

राहें हमें सीखती, ये ज़िंदगी क्या हैं,

कभी मुड़ती, कहीं जुड़तीं किसी से हैं।


जब पड़े ये अकेली, बोल पड़ती हैं,

ख़ुद तो बस अकेली सोया करती हैं।


और हमारी साँसे उन पर चलती हैं,

ये ख़ुद से कभी-कभी टूट भी जाती हैं।


फिर भी, मरम्मत का पाठ सिखाती हैं,

भीगतीं अकेली, रात भर यूँही ठिठुरतीं हैं।


ये ज़िंदगी तो हमें बस रास्ते दिखाती हैं,

और ये राहें हमें उन पर चलना सिखातीं हैं।

5)


आज शहर में उनकी बातें हर लफ़्ज़ों पर रही हैं,

ऐसी भी क्या नींद थी जो उन्होंने आज तोड़ी हैं।


फ़क़त उनकी ख़्वाहिश कुछ पल चमकना रही हैं,

उसमें कौन सी शाब्बासी थीं दीवार ही तो तोड़ी हैं।


उसकी हर हवा बस उसी की ही तारीफ़ कर रही हैं,

एक ख़ामोशी थी जिसने आज किसी की चुप्पी तोड़ी हैं।


उसकी हमेशा से ही आदत बस चिल्लाने की रही हैं,

बातें भी कौन सी थीं जिन से उसकी कुर्शी तोड़ी हैं।


निकलो कभी तुम गली से जहाँ वो बच्ची रो रही हैं,

आवाज़ उसी भेड़िए की थीं जिसने उसकी रोटी तोड़ी हैं।


6)

ये कौन-सी रेत है जो उड़ा रहीं है मेरी ख़ुशी,

आइना ला कर दे, पता नहीं क्या है बेरुख़ी।


परवाना यूँ ही कहाँ रात-भर रहता है दुःखी,

कोई अपना ही होगा, जिसे देता है रोशनी।


कर भी क्या सकता, मेरा ख़्वाब, है ऐ-खुदा,

वो बैठें है ज़मीं पर, जिसे इल नहीं आयत-की।


ज़रा जा कर देख आ कहाँ छिपा हैं वो पल,

जो यहीं था, बेख़बर थीं जिससे मेरी ज़िंदगी।


एक लम्हा जो खो गया कहीं हैं देख ‘विनय’,

अब शिकवा हैं, और श्याहि है शमशीर-सीं।