Nariyottam Naina - 13 books and stories free download online pdf in Hindi

नारीयोत्तम नैना - 13

नारीयोत्तम नैना

भाग-13

पड़ती। जिससे की डकाच्या की वासना को संतृप्त किया जा सके। ऐसा न करने पर मद के नशे में चूर होकर पागल हाथी के समान व्यवहार करने लग जाता। जो अत्यंत भयानक स्थिति के समान होता। मदमस्त होकर डकाच्या हिंसक हो जाया करता था। वह उन्मादी बहुत तोड़-फोड़ और निर्दोष कबीले वालों पर तब कोई काल बनकर टुट पड़ता। कबीले वालों के लिए मद मस्त डकाच्या प्राण घातक सिद्ध होता। अतएव कबीले वाले ऐसी स्थिति निर्मित ही नहीं होने देने का संपूर्ण प्रयास करते। अपनी पत्नी डकाच्या के उपभोग हेतु भेजने का विरोध उसके एक सहयोगी संथाल ने किया तब डकाच्या ने उसे बंदी बना लिया। उसे न-न प्रकार की शारीरिक प्रताड़ना दी गई। डकाच्या इससे प्रसन्न नहीं था। वह संथाल को ऐसा दण्ड देना चाहता था जिससे कि पुरे डकाल नगर में उसके विरूद्ध कोई भी सिर न उठा सके। संथाल की पत्नी जैकलीन गर्भ से थी। उसे भी बंदी बना लिया गया। जैकलीन एक पतिव्रता स्त्री थी। नैना की देखभाल की समुचित जिम्मेदारी उसे ही सौंपी गई थी। नैना का मधुर व्यवहार और असत्य का पुरजोर विरोध करने की प्रवृत्ति ने उसे बहुत हिम्मत दी। वह जैकलीन की प्रेरणा बन गई।

नैना अक्सर कबीले वालों को प्रेरणास्प्रद कहानियां सुनाती, ताकी वे लोग डकाच्या का विरोध कर सके।

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" *तू* बार-बार अपना मजाक बनाने यहां क्यों आ जाता है पण्डित!" वहिदा हंसते हुये प. कमल पर कटाक्ष करते हुये बोली।

"यह तुम्हारे लिए मजाक का विषय हो सकता है वहिदा, मेरे लिए नहीं।" प. कमल अपने कथन का दृढ़ता से समर्थन करते हुये बोले।

पण्डित कमल शहर के रेड लाइट एरिया में नवनिर्मित मंदिर के पुजारी नियुक्त होकर एक वर्ष पुर्व ही यहां आये थे। नगर पालिका निगम ने इस क्षेत्र विशेष में बढ़ते यौन अपराध और वेश्यावृत्ति जैसी सामाजिक बुराई पर धार्मिक आयोजन आदि के माध्यम से नियंत्रण करने के उपाय आरंभ कर दिये थे। क्षेत्र में पुजा-पाठ और दान-धर्म की घटनाएं के विस्तार होने से निश्चित रूप से यहां कार्यरत महिला-पुरुष का हृदय अपराधिक प्रवृत्ति से विमुख हो सकेगा! ऐसे कयास लगाये जा रहे थे।

इस परिवर्तन की संभावना का दायित्व युवा पण्डित कमल पर छोड़ा गया। प.कमल पुरोहित सरल स्वभाव के धनी होकर कुर्ता पायजामा पहनते थे। सिर पर लम्बी चोटी और मस्तक पर चन्दन का तिलक उनको अन्य से पृथक करता था। नगर स्थित मंदिर में पण्डिताई कर रहे प. कमल ने एक दिन अचानक मुख्य कोठे की रौनक वहिदा को विवाह हेतु प्रस्ताव दे दिया। वहिदा यह जानकर पहले तो खुब हंसी। फिर कमल के विवाह प्रस्ताव पर अपनी अस्वीकृति प्रदान कर दी। विमला बाई अपने कोठे की शान वहिदा को किसी मूल्य पर खोना नही चाहती थी। वहिदा के सौन्दर्य के पुजारी शहर भर में फैले थे। जो प्रसिद्ध पूंजीपति वर्ग से संबंधित थे। वहिदा के होने से विमला बाई के कोठे मे धनवर्षा होना सामान्य घटना थी।

"देखो पण्डित जी! आप यहां पुजा पाठ हेतु पधारे है। आप स्वयं पुज्यनीय है। ये प्रेम, विवाह आदि आपको शोभा नहीं देता। अच्छा होगा आप वहिदा से दुर ही रहे।" विमला बाई की बातों में धमकी भरे स्वर थे।

"देवी! वहीदा और मैं दोनों युवा अवस्था को प्राप्त है। उचित आयु में विवाह होना हम दोनों के हित में है।" प. कमल की बातों में आत्मविश्वास था।

वहिदा की सहेलियां आरंभ में उसे कमल का नाम लेकर चिढ़ाना करती थी। किन्तु वहिदा की कमल के प्रति अरूचि जानकर अदिति और बाकी की सहेलियों ने पण्डित कमल को शिक्षा देने की ठान ली।

"पण्डित जी! आप ईश्वर के उपासक होकर वहिदा से प्रेम करते फिर रहे है। क्या आपका यह आचरण अमर्यादित नहीं है।" वहिदा की सहेली पुनम ने प. कमल से कहा।

"यदि मेरा आचरण अमर्यादित है तब आप लोगों का कृत्य क्या कहा जायेगा? यह सत्य है कि वेश्यावृत्ति आप लोगों को रोजगार है किन्तु यदि यह उचित होता तो आज इसे सर्वत्र मान्यता नहीं मिल जाती?" प. कमल बोले।

"जहां तक मेरा प्रश्न है, तो मैं वहिदा से प्रेम कर कोई अशोभनीय हरकत नहीं कर रहा हूं। मुझे इस बात पर और भी अधिक गर्व होगा जब वहिदा और मेरा विवाह संपूर्ण समाज के सम्मुख होगा।" प. कमल बोले।

मंदिर में पुजा अर्चना के उपरांत प्रसाद वितरण के माध्यम से कोठे पर आकर प.कमल, वहिदा का दर्शन नियम से किया करते। पण्डित कमल की वहिदा के प्रति बढ़ती प्रित से विमला बाई चिंतित थी।

एक दिन रेड लाइट एरिया में बहुत चहल पहल थी। बहुत से ग्राहक अपनी वासना रूपी तृष्णा को शांत करने नगर में आ रहे थे। नगर की रौनक आज देखते ही बनती थी। वेश्यावृत्ति में लिप्त सभी महिला-पुरुष धन की अधिक आवक से प्रसन्नचित थे।

"पण्डित! आज मैं बहुत प्रसन्न हूं। मैं तुझसे विवाह तो नहीं कर सकती। हां... मगर तेरे साथ सुहागरात अवश्य मना सकती हूं। वो भी बिल्कुल मुफ्त! सिर्फ तेरे लिए। बोल क्या बोलता है?" शराब के नशे में धुत्त वहिदा बोल रही थी।

"तुम्हें प्रसन्न देखकर मैं भी प्रसन्न हूं। किन्तु विवाह पुर्व तुम्हें छुना भी मैं अमर्यादित आचरण समझता हूं।" कमल ने बाहों का सहारा देकर लड़खड़ाती वहिदा को सहारा देकर समझाया।

इतने में पुलिस ने वहां अघोषित छापा मारी कर दी। चारो ओर भगदड़ मच गयी।

महिला-पुरुष जो भी वहां मिले, पुलिस ने सभी को गिरफ्तार कर लिया। कुछ लोग अवसर पाकर फरार हो गये।

"आपको शर्म नहीं आई पण्डित जी! वेश्याओं के कोठे पर जाते हुये? आप समाज की प्रेरणा है यदि आप ही वेश्यावृत्ति को प्रोत्साहित करेंगे तो सरकार के समाज सुधार के प्रयास तो विफल हो जायेंगे न?" इन्सपेक्टर सलीम खान गुस्से में बोले रहे थे।

पण्डित कमल भी अन्य महिलाओं और पुरूष के साथ पुलिस के हत्थे चढ़ गये थे।

"क्या आपको शर्म आई श्रीमान! आप भी तो उस कोठे से आ रहे है।" कमल बोले।

आसपास के पुलिस कांस्टेबल हंस पढ़े।

"शटअप! मैं वहां रंगरलियां मनाने नहीं गया था। अपना फर्ज निभा रहा था।" सलीम खान ने कहा।

"तब आप कैसे कह सकते है कि मैं वहां कोई अनुचित कार्य कर रहा था। मैं भी वहां अपना कर्तव्य निभा रहा था।" कमल बोले।

"रात के दो बजे आप वहां कौन-सा कर्तव्य निभा रहे थे पण्डित जी!" सलीम खान ने व्यंग कसा।

"इसमें आपको कोई दोष नहीं है। यह सब प्राकृतिक है। ताड़ी के वृक्ष के नीचे बैठकर अगर गंगा जल भी पिया जाये तब भी उसे देखकर लोग कहेंगे कि ताड़ी पी रहा है।"

(ताड़ी- एक प्रकार की शराब)

इन्सपेक्टर सलीम खान को एक पुलिस कांस्टेबल ने कान में आकर कूछ कहा। वे समझ गये कि स्थानीय शासन ने रेड लाइट एरिया स्थित मंदिर के पुजारी हेतु कमल पण्डित जी का चयन किया है। प. कमल वेश्यावृत्ति रोकने हेतु सशक्त प्रयास कर रहे थे। इन्सपेक्टर सलीम खान ने यह जानकर पण्डित कमल को रिहा कर दिया।

"क्षमा करे पण्डित जी। जाने-अनजाने अगर कुछ अभद्रता हो गई हो तो कृपया मुझे माफ करे।" सलीम खान बोले।

"नहीं खान साहब! आपने अपनी ड्यूटी बहुत कुशलता से निभाई। हमें आपकी कर्त्तव्यनिष्ठा पर गर्व है। आप जैसे सक्रिय पुलिस अधिकारीयों के कारण ही वेश्यावृत्ति जैसी सामाजिक बुराई थर-थर कांप रही है।" प. कमल बोले।

समस्त रेड लाइट एरिया में प. कमल की चर्चा थी। उनकी उपस्थिति से वेश्यावृत्ति व्यवसाय पर संकट उत्पन्न करने लगा था।

"पण्डित जी! आप वहिदा से इतना प्रेम क्यों करते है? आखिर वहिदा में ऐसी कौन-सी बात है जो हम किसी में भी आपको नज़र नहीं आई।" अदिति ने कोठे पर पुजा का प्रसाद वितरण करने आये प. कमल से मसखरी वश पुछ लिया। वहिदा और अन्य महिलाओं को अदिति की शरारत समझ आ गयी। विमला बाई भी इस बात का आनंद लेना चाह रही थी।

"प्रथमतया तो अन्य पुरूषों की भांति वहिदा का सौन्दर्य मुझे प्रिय लगा।" प. कमल बोले।

सभी चौंक गए।

"मैं वहिदा के अन्तर्मन के सौन्दर्य की बात कर रहा हूं। तत्पश्चात उसका मेरे प्रति निश्छल प्रेम देखकर मैं अभिभूत हूं।" प. कमल बोले।

"क्या वहिदा ने आपसे कहा कि वह आपसे प्रेम करती है?" एक अन्य महिला विनिता ने पुछा।

"प्रत्येक बात मुख से कही जाये यह आवश्यक तो नहीं। मुझसे विवाह कर वह मुझे समाज के सम्मुख अपमानित होने नहीं देना चाहती। इसी भय के कारण वहिदा मुझसे विवाह नहीं कर रही है।" बात को घुमाकर प. कमल बोले।

विमला बाई के साथ वहिदा और कोठे की अन्य महिलाओं को इस बात की अधिक चिंता थी कि यदि कुन्दन को प. कमल की वहिदा के प्रति दीवानगी की तनिक भी जानकारी लगी तब प. कमल के प्राणों को संकट उत्पन्न हो जायेगा। कुन्दन शीघ्र ही जेल से छूटने वाला था। असंख्य अपराध उस पर पंजीकृत थे। कुन्दन पर दो मनुष्यों की हत्या के प्रकरण अदालत में लम्बीत थे। उसके विरूद्ध ठोस प्रमाण के अभाव में पुलिस उसे दण्डित नहीं कर पा रही थी। कुन्दन वहिदा पर अत्यधिक मोहित था। वह जब तक जेल से बाहर रहता, वहिदा पर उसका एकाधिकार ही रहता। उसके रहते अन्य ग्राहक वहिदा को छु भी नहीं सकते थे। विमला बाई और शेष सभी वेश्यावृत्ति में लिप्त महिला कुन्दन से डरती थी। मगर एक वहिदा ही थी जो कुन्दन का विरोध खुले मन से कर सकती थी। कुन्दन वहिदा पर धन भी खुब लुटाया करता।

कुन्दन जेल से बाहर आ गया। वह सीधे वहिदा से मिलने उसके कोठे पर गया। कुन्दन के चेले सम्राट ने वहिदा और प. कमल के प्रेम प्रसंग के विषय में उसे बता दिया। विमला बाई भी चाहती थी किसी तरह कमल से वहिदा का पीछा छुट जाये। इसलिए उसने जानबूझकर कुन्दन को नहीं रोका।

"क्यों बे पण्डित! पुजा अर्चना करने वाले पण्डित प्यार-मोहब्बत कब से करने लगे।" कुन्दन मंदिर के पास आते ही दहाड़ा। कुन्दन की ललकार सुनकर कोठों से महिलाएं झाकने लगी। उन्हें विश्वास था कि आज कोई न कोई नया तमाशा अवश्य होगा।

"आपके विषय में बहुत सुना था। आज देख भी लिया।" कमल ने कुन्दन से कहा।

"कुन्दन भैया आपको चेतावनी देने आये है कि आप वहिदा भाभी से दुर रहो।" सम्राट बोला।

"क्यों भाई सम्राट! वहीदा से दुरी हम क्यों बनाये। हमने ऐसा कौन-सा अपराध किया है?" प .कमल ने पुछा।

इससे अधिक उत्तर देना कुन्दन अपनी प्रतिष्ठा के विपरीत समझता था। वह प .कमल को पीटने के लिए आगे बढ़ा। उसने प. कमल को काॅलर से पकड़कर मंदिर से बाहर निकला। एक धक्के की मार से प .कमल मंदिर के बाहर नीचे खुली जगह पर गिर पड़े। क्षेत्र की महिलाएं घरों की बालकनी और छतों से इस मनोरंजन से भरे क्रियाकलाप को देखकर प्रसन्नता व्यक्त कर रही थी। मात्र वहिदा ही एक ऐसी महिला थी जिसे यह दृश्य उचित नहीं नहीं लग रहा था। क्योंकि यह लड़ाई वहिदा को प्राप्त करने के अधिकार के लिए लड़ी जा रही थी।

"मित्र कुन्दन! जानता हूं कि तुम्हारे मन में मेरे प्रति बहुत क्रोध है। अगर मुझे मारने-पिटने से तुम्हारे मन को सांत्वना मिलती है तब मैं मार खाने को सहर्ष तैयार हूं।" प .कमल बोले।

"इसे तैयार होना नहीं विवशता कहते है पण्डित!" कुन्दन ने पुनः दोनों हाथों से पृथ्वी पर गिरे प. कमल को उठाते हुये कहा। अगले ही पल कुन्दन के दाहिने हाथ के सशक्त प्रहार से प.कमल दुर जा गिरे।

"कुन्दन! अब भी तुमसे अधिक वीर मैं ही हूं।" प. कमल बोले।

"कैसे?" सम्राट दुर से पास आकर बोला।

आसपास के लोग भी प.कमल पर हंस रहे थे। कुन्दन के हाथों बुरी तरह पीटने के बावजूद वे स्वयं को बहादुर योद्धा बता रहे थे।

"किसी को दण्ड देना बहुत सरल है सम्राट! क्रोध के वशीभूत कुन्दन ने मुझे दण्ड देने में तनिक भी विलंब नहीं किया। इसके विपरीत क्षमा करना सबसे बड़ा साहसिक कार्य माना गया है। किसी को उसके गलती या अपराध पर क्षमा करना सबके वश में नहीं होता। कहा भी गया है 'क्षमा वीरस्स भूषणम'। मैंने कुन्दन को क्षमा कर दिया है। इसलिए उसके साहस से बड़ी मेरी वीरता हुई।" प.कमल बोल चूके थे।

कुन्दन, प.कमल को तब तक लात-घुसों से पीटता रहा जब तक वह स्वयं थक कर चूर नहीं हो गया। ऐन वक्त पर पुलिस आ गयी। इन्सपेक्टर सलीम खान ने प.कमल को हाथों का सहारा देकर खड़ा किया।

"आपकी यह हालत किसने की पण्डित जी! मुझे बताईये, उसकी खाल खींचकर भुसा न भर दिया तो मेरा नाम सलीम खान नहीं।" इन्सपेक्टर सलीम खान ने क्रोधित होकर पुछा।

प. कमल कुछ बोल पाते इससे पुर्व ही वे अचेत हो कर पृथ्वी पर गिर पड़े। उन्हें तुरंत नजदीक के हाॅस्पीटल ले जाया गया। वहिदा कुन्दन पर जमकर बरसी। कुन्दन पर पुनः गिरफ्तारी का खतरा मंडराने लगा था। किन्तु प.कमल ने उसके खिलाफ कोई बयान नहीं दिया। अपितु तीसरे माले से चक्कर आकर गिर पड़ने का झुठा कथन दर्ज करवाकर प्रकरण बंद करवा दिया।

तीन दिनों के उपचार के दौरान रेड लाइट एरिया की बहुत सी महिलाएं प. कमल से मिलने हाॅस्पीटल गई। मगर वहिदा चाहते हुये भी नहीं गई। मंदिर से लगी पुजारी कुटीयां में प. कमल स्वास्थ्य लाभ ले रहे थे।

"पण्डित जी! क्यों अपने प्राण खतरे में डालते हो, भुल जाइये मुझे। आप युवा है, निष्कलंक है। आपको उत्तम से उत्तम लड़कीयां मिल जायेंगी।" मंदिर की कुटिया में प.कमल से मिलने आई वहिदा ने कहा।

"प्रिय वहिदा! मेरे प्राण तो तुम हो। तुमसे दुर होकर तो वैसे भी यह देह मृत समान है।" प. कमल बोले।

"आप समझ क्यों नहीं रहे है? कुन्दन का कोई भरोसा नहीं। वह दोबारा भी आप पर हमला कर सकता है।" वहिदा ने चिंता व्यक्त की।

"यदि हम दोनों एक होकर आने वाली इस चैतावनी का सामना करे तो निश्चित ही जीत हमारी होगी।" प. कमल बोले।

"पण्डित! तु इतनी मार खाकर भी वहिदा को नहीं भुला।" कुन्दन वहा पुनः आ धमका। कुन्दन की उपस्थिति कोठे के आसपास पुनः किसी संकट का संकेत थी। यह जानकर विमला बाई और अन्य महिलाएं कुन्दन को समझाने पण्डित जी की कुटीयां में आ पहूंची।

"लगता है तुम्हारी जीवन लीला मेरे हाथों ही समाप्त होना लिखी है पण्डित।" कुन्दन पुनः पण्डित जी को धमका रहा था। मगर इस बार पण्डित कमल की ढाल वहिदा थी जो कुन्दन के सामने खड़ी थी। विमला बाई ने भी वहिदा का साथ दिया। और कुन्दन को वहां से लौट जाने का निर्देश दिया। मगर प.कमल ऐसा नहीं चाहते थे।

"कुन्दन! तुम्हें अपनी शारीरिक शक्ति पर बड़ा अभिमान है न! चलो हम दोनों एक खेल खेलते है, यदि मैं हारा तो यहां से चुपचाप चला जाऊँगा और अगर तुम हारे तो तुम्हे अपने सभी बुरे काम छोड़कर एक अच्छा आदमी बनने के प्रयास करना होगें! बोलो स्वीकार है?" प. कमल बोले।

"मंजूर है। मगर खेल क्या है?" कुन्दन बोला।

"तुम्हें मेरे साथ पंजा लड़ाना होगा।" प. कमल के इतना कहते ही कुन्दन जोर से हंस पढ़ा। उसके साथ ही उपस्थित सभी महिलाएं प. कमल के इस प्रस्ताव पर अप्रसन्न थी। कुन्दन बलिष्ठ था। वह सरलता से पंजा लड़ाने के खेल में प. कमल को हरा देगा,

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