Nariyottam Naina - 15 - last part books and stories free download online pdf in Hindi

नारीयोत्तम नैना - 15 - अंतिम भाग

नारीयोत्तम नैना

भाग-15

सभी रस्सी पर लटक गये। उन्होंने रस्सी पकड़कर धीरे-धीरे आगे की ओर खिसकना आरंभ किया। दलदली भूमि जैसे-तैसे पार हो गयी। पहाड़ पर चढ़ाई के पुर्व ही रात्रि घिर आई। सैनिकों ने टेन्ट आदी की सहायता से खुले स्थान पर तम्बू तान दिये। तिलकरत्ने अट्टपटू ने आग सुलगा कर उपलब्ध खाद्य सामग्री का सेवन करने का निर्देश सैनिकों को दिया। जितेंद्र ठाकुर अधुरे मन से भोजन कर रहे थे। अट्टपटू ने उनके कंधे पर सहानुभूति का हाथ रखते हुये कहा- "सबकुछ ठीक हो जायेगा ठाकुर साहब। आप धैर्य रखे।" जितेंद्र ठाकुर को श्रीलंकाई सैनिकों की बहादुरी देखकर विश्वास हो गया कि वे सब मिलकर नैना को बचा लेंगे।

असंख्य बाधाओं को चीरते हुये जितेंद्र ठाकुर डकाल नगर पहूंचे। डाकाच्या ने विशाल चुम्बकीय क्षेत्र का निर्माण डकाल नगर की सीमा चारों ओर बनवाया था। इसका उद्देश्य यह था यदि हथियारबंद शत्रु डकाल नगर में पहूंचे तब चुंबकीय क्षेत्र के संपर्क में आते ही उनके समस्त अस्त्र शस्त्र नगर सीमा पर लगे चूंबकों में चिपक जाये। जिससे निहत्थे शत्रु को सरलता से समाप्त किया जा सके। यही तिलकरत्ने अट्टापटू और उनकी सैना के साथ हुआ। नगर की सीमा में प्रवेश करते ही सभी सैनिकों के हथियार चूंबकों से जा चिपके। जितेंद्र ठाकुर और तिलकरत्ने अट्टपटू ने सभी का ध्येर्य बढ़ाया और उन्होंने निहत्थे ही आगे बढने का निर्णय लिया।

डाकाच्या दैत्य को देखकर उन सभी के होश उड़ गये। यह वही दैत्य मानव था। जिसके चर्चे दुर दुर तक थे। संथाल को बेड़ियों से जकड़ा गया था। उसके शरीर पर मारपीट के निशान स्थान-स्थान पर रक्त के धब्बों के रूप में अंकित थे। भुख प्यास से व्याकुल संथाल को उसकी पत्नी जैकलीन ने स्तनपान कराया रही थी। ऐसा करते हुये डाकाच्या के एक अन्य सहयोगी पाण्डूरंगा ने देख लिया था। उसने यह बात डकाच्या को बता दी। क्रोधित डकाच्या ने हुंकार भरी। डकाच्या उसी अवसर पर जा पहूंचा जहां जैकलीन अपने पति को स्तनपान करवाकर उसके प्राण बचाने का प्रयास कर रही थी। गुफा नुमा प्राकृतिक भवन के विशाल कक्ष में डकाच्या का न्यायालय संजा था। संपूर्ण काबीला आज यहां उपस्थित था। स्थान-स्थान पर आग की मशालें सुलग रही थी। संथाल और जैकलीन किसी अपराधी की भांति खड़े थे। ऊंचे स्थान पर बैठा डकाच्या जोरदार ध्वनी के साथ हंस पड़ा। उसका अट्टहास सुनकर जैकलीन को पेट में असहनीय दर्द आरंभ हो गया। उसका गर्भपात हो गया था। उसे रक्त स्त्राव आरंभ हो गया। जैकलीन पृथ्वी पर पछाड़ खाकर गिर पड़ी। डाकाच्या यहां भी नहीं रूका।

"इस औरत ने मेरी आज्ञा के बिना अपने पति को स्तन पान कराया है।" डाकाच्या दहाड़ रहा था।

"रावणा!" डाकाच्या पुनः चिल्लाया।

"जी सरदार"! रावणा ने उत्तर दिया।

"पिछली बार जब टुविना को उसकी पत्नी ने हमारी अनुमति के बीना जल पिलाया था। तब हमने क्या किया था?" डाकाच्या ने पुछा।

"सरदार आपने उसकी पत्नी के दोनों हाथ काट दिये थे।" रावणा ने कहा।

"आज भी ऐसा हो होगा।" कहते हुये डकाच्या ने जैकलीन का दाहिना स्तन धारदार हथियार से काटकर अलग कर दिया।

वह मछली की तरह तड़प रही थी। बेड़ियों में जकड़ा संथाल चाहकर भी अपनी पत्नी की मदद नहीं कर पा रहा था। डकाच्या के वहां से जाते ही तिलकरत्ने अट्टपटू ने अपने सैनिकों के साथ वहां पहूंचा। सैनिकों ने जैकलीन को प्राथमिक चिकित्सा उपलब्ध करायी। जिससे उसके प्राण बच गये। संथाल ने तिलकरत्ने अट्टपटू और जितेंद्र ठाकुर का धन्यवाद अदा किया। जितेंद्र ठाकुर ने उससे नैना के विषय में पुछा। उसने बताया की नैना सकुशल है। नैना ने अपनी अस्मत अभी तक उस राक्षस से बचाकर रखी थी। नैना ने अतुलनीय साहस का परिचय दिया। उसने डकाच्या दैत्य को स्पष्ट कह दिया कि यदि उस पर जबरदस्ती बलात्कार किया गया तब वह इससे पुर्व ही पाॅयजन की दवाई खाकर आत्महत्या कर लेगी। डकाच्या नैना पर मोहित हो गया था। सो वह नैना को खोना नहीं चाहता था। उसने नैना के लिए विशेष कक्ष बनवाया। जहां नैना को सुख पुर्वक रहने और सम्पूर्ण कबीले में भ्रमण करने की स्वतंत्रता थी। न्यायालय अथवा डकाच्या के स्त्री संभोग वाले दिवस नैना को उसी विशेष कक्ष में रहने का निर्देश रहता ताकि विभस्य दृश्य देखकर नैना भयभीत अथवा दुखी न हो। डाकाच्या स्वयं नहीं चाहता था कि वह नैना के साथ संभोग करे। यह भुख तो वह अन्यत्र नारियों से मिटा ही लेता। किन्तु प्रेम की प्राप्ति तो उसे नैना से ही होगी, ऐसी उसकी अभिलाषा थी।

तिलकरत्ने अट्टपटू ने संथाल से शक्तिशाली डकाच्या की मृत्यु का कारण जानना चाहा।

संथाल ने उन्हें बताया की डकाच्या दैत्य का विशाल जननांग काट दिया जाये तब सरलता से वह मृत हो सकता है। किन्तु वह प्रत्येक समय जननांग पर लोहे का कवच धारण करता है जिससे कि उसे कोई भी हानी न पहूंचा सके।

नैना को ढूंढकर जितेंद्र ठाकुर ने उसे अपने साथ लौटने को कहा। नैना चाहती तो डकाच्या से छिपकर तिलकरत्ने अट्टपटू और अपने पति के साथ यहां से सकुशल लौट सकती थी। किन्तु डकाच्या के खात्मे के उपरांत ही वह यहां से जाना चाहती थी। उसकी परमार्थ की भावना देखकर तिलकरत्ने अट्टपटू ने डकाच्या को मौत के घाट उतारने की एक योजना बनाई। नैना को डकाच्या के सम्मुख उपस्थित होना था। डकाच्या यह जानकर अति प्रसन्न हो गया की नैना स्वयं उसके साथ शयन करने का आग्रह कर रही है। शराब में सर्प विष पिलाकर उस दैत्य को अचेत अवस्था में लाकर नैना ने उसी के हथियार से डकाच्या का जननांग काट दिया। दर्द से कराहता हुआ डकाच्या यहां वहां भाग- दौड़ करने लगा। सैनिको ने उसे जाल में उलझकर फंसा लिया। डकाच्या के सहयोगियों और सैनिको के बीच जमकर युध्द हुआ। किन्तु जीत सत्य की हुई। जैकलीन ने दर्द से कराह रहे डकाच्या की चिता में अग्नि प्रज्ज्वलित कर दी। देखते ही देखते भय और आंतक का प्रतिक डकाच्या जलचर भस्म हो गया। जितेंद्र ठाकुर ने डकाल नगर का प्रभार संथाल और उसकी पत्नी को सौंप दिया। दोनों पति-पत्नी ने नगर की समुचित व्यवस्था बनाये रखने के वचन के साथ सैनिकों को विदाई दी। नैना ने जैकलीन को हृदय से लगा लिया। दोनों की आंखें नम हो गयी।

समुन्दर मार्ग से लौटकर जितेंद्र ठाकुर अपने निवास की ओर चल पढ़े। मगर नैना ने जितेंद्र ठाकुर के साथ घर लौटने हेतू इंकार कर दिया। नैना ने दृढ़ता के साथ जितेंद्र ठाकुर से विवाह विच्छेद करने का संकल्प सुना दिया। नैना का यह निर्णय जितेंद्र ठाकुर और लव-कुश को व्याकुल कर गया। नैना ने अपना सर्वस्व जितेंद्र ठाकुर की दुसरी पत्नी के लिए छोड़ दिया। इसके साथ ही उसने संसार को यह भी बता दिया कि केवल पुरूष ही नारी को नहीं छोड़ सकता। अपितु असत्य के मार्ग पर चल रहे पुरूष पति को उसकी अर्ध्दागंनी भी छोड़ सकती है। अपराध बोध से ग्रसित जितेंद्र ठाकुर पश्चाताप के दुःख में डुब गया। नैना आधुनिक युग की सीता के समान थी। जो अन्य के लिए जीना अपने जीवन का उद्देश्य मान चुकी थी। उसने न केवल अपना स्वाभिमान बचाया अपितु समाजिक चेतना प्रज्ज्वलित की। जो युगों-युगों तक महिलाओं को अपने अधिकार और कर्तव्यों का बोध कराता रहेगा। लव-कुश अपनी माता के लिए गर्वित थे तो अपने श्रीराम समान पिता को प्राप्त कर अपना जीवन सफल मान रहे थे।

समाप्त