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एक जिंदगी - दो चाहतें - 48

एक जिंदगी - दो चाहतें

विनीता राहुरीकर

अध्याय-48

''न.... नहीं यहाँ कोई तहखाना नहीं है।" अकरम हड़बड़ा कर बोला।

''अबे तू तो यहाँ किसी के होने से भी इनकार कर रहा था फिर ऊपर वो तीन मुस्टन्डे क्या तेरे घर ने पैदा किये हरामजादे।" सूर्यवंशी चिल्लाया। विक्रम ने इशारा करके बाहर के भी चार पाँच लोगों को अंदर बुलवा लिया।

लड़का अभी भी अपने पैर का अंगूठा जमीन पर मार रहा था। जवान तुरत-फुरत में जमीन पर बिछे गालीचे उठाने लगे। एक कमरा, दूसरा कमरा, तीसरे कमरे में पलंग पर दुबकी हुइ एक औरत डर से थर-थर कांप रही थी। वो अमरम की बीवी थी। परम ने उसको कमरे से बाहर किया। दो तीन जवानों ने उस कमरे का गलीचा हटाया। लकड़ी के फर्श में तहखाने का रास्ता था। सूर्यवंशी ने अकरम को ऐसी नजरों से देखा जैसे अभी उसकी खोपड़ी में दस-बीस गोलियाँ उतार देगा। अपनी-अपनी रायफलों का निशाना साधे सारे जवान तैनात हो गये और सूर्यवंशी ने तख्ता खोल दिया। नीचे जाने के लिए लकड़ी की सीढ़ीयाँ बनी थी। चारों ओर देखने के बाद एक-एक कर सूर्यवंशी, परम, अर्जुन और फिर विक्रम नीचे उतरे। उतरने के बाद दायीं ओर एक कमरा था। अंदर का दृश्य देखकर शर्म के मारे परम सन्न रह गया।

बहुत ही घिनौना दिखने वाला एक अधेड़ मिलिटेंट् अपने आगे एक लड़की की आड़ लेकर खड़ा था। उसके ठीक पीछे एक चारपाई थी। उस लड़की के बदन पर एक भी कपड़ा नहीं था। वह दाढ़ीवाला अधेड़ शायद कुकर्म में ही लिप्त था और उन लोगों की आहट पाते ही उसी हालत में लड़की के सिर पर बंदूक तानकर खड़ा हो गया।

चारों सकते की सी हालत में किंकर्तव्यविमूढ़ की तरह खड़े हो गये।

''बंदूकें फेंक दो नही ंतो लड़की को मार डालूँगा।" वह चिल्लाया।

''बंदूके तो किसी भी हालत में नहीं फैंकी जायेंगी। अच्छा होगा माद... तू लड़की को छोड़ दे।" अर्जुन गुर्राया।

''नहीं-नहीं साहब मैं रहम की भीख मांगता हूँ। लड़की की इज्जत तो गयी ही है उसकी जान बक्श दीजिये। यहाँ से चले जाईये साहब चले जाईये।" लड़की का बाप अर्जुन के पैरों पर गिरकर गिड़गिड़ाया।

परम के हाथ में रायफल थरथरा गयी।

''यह लड़की को नहीं मार सकता सर क्योंकि इसे बहुत अच्छे से पता है कि जिस पल लड़की खत्म होगी उसी पल हम चारों की रायफलों में जितनी भी गोलियाँ हैं सब की सब इसके बदन में उतर जायेंगी।" अर्जुन ने दूरंदेशी से काम लिया।

परम की आँखें शर्म से झुकी जा रही थी लेकिन अर्जुन का पूरा ध्यान अपने शिकार पर था। वह इस तथाकथित आखरी भेडिय़े को किसी भी कीमत पर जिंदा नहीं छोड़ सकता था चाहे...।

''चले जाईये साब चले जाईये। मेरी लड़की की जान बक्श दीजिये।" लडकी का बाप गिड़गिडाया।

अर्जुन के मुँह से जबरदस्त गाली निकलने वाली थी लेकिन उसने अपने आप को जप्त कर लिया। ''हरामखोर हमारी जान क्या फालतू है, हमारे क्या घर परिवार नहीं है। हम कब तक तुम बेईमानों के पीछे अपनी जान देते रहें। लड़की की इतनी ही परवाह थी मादर... तो इसे घर में घुसाया क्यों?"

''सोच क्या रहे हो दफा हो जाओं यहाँ से वरना मार डालूँगा इसे।" उस मिलिटेंट ने बेचैनी में पहलू बदला।

अर्जुन के लिए इतना ही मौका काफी था। जैसे ही वह मिलिटेंट हिला लड़की के दोनों पैरो के बीच में उसकी एक टांग दिखाई दी अर्जुन ने गन नीचे करने के बहाने लड़की के दोनों पैरों के बीच में गोली चला दी जो सीधे उस दाढ़ीवाले के पैर में लगी। वह एकटक इन चारों पर नजरें जमाए था तो अर्जुन की हरकत को समझ ही नहीं पाया। और इससे पहले की वो संभल पाता परम ने बिना एक क्षण गवाएँ उसकी ओर छलांग लगाई और सीधे उसकी कनपटी पर फायर कर दिया। मुँह से नाक से ढेर सारा खून उगल कर एक हिचकी के साथ वह मर गया।

चारों ने चैन की सांस ली ओर माथे का पसीना पोंछते हुए ऊपर आ गये। ऊपर अमजद महाराज नजरें जमीन में गड़ाए अपनी कार्यवाही कर रहे थे। अर्जुन ने उसे देखते ही ताना मारा-

''आपकी कानून और व्यवस्था की जिम्मेदारी के चार मेडल मिले है अमजद साहब शोकेस में सजाकर रखियेगा।"

अमजद जमीन में जैसे गढ गया और बची हुई औपचारिकताओं को पूरा करके आधे-पौन घण्टे बाद परम सब लोगों के साथ अपनी यूनिट की ओर वापस लौट पड़ा।

सबके चेहरों पर आज शांती थी। तथाकथित रूप से जितनों की खबर मिली थी उतने सब घुसपैठियें मारे जा चुके थे। एक बड़ी साजिश की योजना विफल की जा चुकी थी। तीन-चार सैनिकों को मामूली से जख्म हुए थे। यूनिट एरिया में पहुँचते ही परम ने उन्हें ड्रेसिंग के लिए अस्पताल भेज दिया।

अपने रूम में जाकर परम ने जूते खोले और कपड़े लेकर सीधे नहाने घुस गया। पंद्रह मिनट तक वह पानी के नीचे खड़ा रहा। पंद्रह मिनट बाद वह बाहर आकर पलंग पर लेट गया। वह बहुत ज्यादा थकान महसूस कर रहा था। आँखें बंद किये वह निश्चल पड़ा रहा। मन कर रहा था तनु से बात करने का लेकिन हिम्मत नहीं हो रही थी। सोचा थोड़ी देर बाद लगा लेगा।

मात्र दिस दिन बचे है बच्चे के जन्म में और वह अभी तक यहीं है पता नहीं...।

परम कुछ सोच पाता तभी उसके सातों बंदे ढेर सारे स्नैक्स और व्हिस्की की बोतलों और सोडे के साथ आ धमके। ''अरे सर उठिये आज तो जश्न मनाने का मौका है।"

परम उठ बैठा। देर तक पीना पिलाना और गप्पें चलती रहीं। उस रात सबने बहुत दिनों बाद पेट भरकर खाना खाया।

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दूसरे दिन परम की छुटटी मंजूर हो गयी। साथ ही उसकी नयी पोस्टिंग भी आ गयी- अहमदाबाद। परम की खुशी का ठिकाना ना रहा। दो महिने की लगातार छूटटी और फिर दो साल तनु और अपने बच्चे के साथ रहना। परम उसी दिन हैडक्वाटर जाकर अपना इंटरव्यू करवा आया। दूसरे दिन परम की डायनिंग आउट पार्टी थी। उसने सबके साथ भरपूर जी लिया। सबने इतने बडे जोखिम में कंधे से कंधा मिलाकर एक दूसरे का साथ दिया। बुरे हालातों में वे ही आपस में एक दूसरे के सुखदुख के साथी रहे, एक दूसरे का सहारा रहे। रात भर जश्न चलता रहा।

सुबह परम की जगह दूसरा मेजर आ गया। परम ने उसे चार्ज सौंपा और अपने साथियों से भरे मन से विदा ली। पता नहीं अब इनमें से किसी से कभी मुलाकात होगी भी या नहीं। अर्जुन और विक्रम उसे जम्मू तक छोडने आए। दोनों से गले मिलकर परम ने विदा ली। जब तक स्टेशन आँखों से ओझल नहीं हो गया तब तक परम दोनों को हाथ दिखाता रहा।

जिंदगी अब एक नये दौर में प्रवेश करने जा रही थी। पिछले सवा दो सालों का हैरासमेंट, कठिनाइयाँ, जोखिम थकान सब अतीत की बातें लग रही थी। लग ही नहीं रहा था कि दो दिन पहले ही वो मौत के आमने सामने था। काली रात बीत चुकी थी अब एक नयी सुनहरी सुबह गुनगुनी धूप का उजाला लिये उसके स्वागत में खड़ी है।

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