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पढ़ना एक ज़रूरत हे।

अगर आप इस पुस्तक को पढ़ने की शुरुआत कर चुके हे तो इसका यह अर्थ हे की आप पढ़ने के बारेमे पहलेसे जागृत हे। आज कल लोगोंमें ये अक्सर बातें होती रहती हे की हमारी नयी पेढी पढ़ना पसंद नहीं करती, तो मेरा कहना यह हे अगर नयी पेढी पढ़ना पसंद नहीं करती होती तो शायद आज कोई भी e-news या enternet informition इतनी तेज़ी से आगे नहीं बढ़ता या फिर यू कहे के वह इतनी बड़ी सफलता हासिल नहीं कर पाता।
तो आप सोच रहे होगे की यह पुस्तक आपकी पढ़ने में किस तरिकेसे सहाय कर सकता हे? जी पर में यहाँ आपको कोई बड़ी बात कहने नहीं आया बस आपका पढ़ने के बरेमे थोड़ा नजरीया बादलने आया हु।
में यह चाहता हु की जो नज़रिया पढ़ने के बरेमे मेरा हे वह सभी लोग जाने की एक १८ साल का लड़का पढ़नेके बरेमे क्या सोचता हे? में जब १२ साल का था तब मूँजें मेरे सभी रिसतेवाले आके कहते थे कि परीक्षाए नज़दीक आ रही हे तुम्हारी पढ़ाई शुरू हो गई । यानी सबको पता तो हे ही की परीक्षा के लिए पढ़ना आवश्यक हे ,पर क्या उस परीक्षा के परिणाम के दमपे आप ज़िंदगी की परीक्षा दे पाओगे?
देखो मेरा कहने का मतलब यह नहीं के की अभी जो हम पढ़ाई कर रहे हे वो ग़लत कर रहे हे पर में यह ज़रूर कह सकता हु की जो हम पढ़ाई कर रहे हे वह कम कर रहे हे। ज़िंदगी कोई किताब नहीं देती हमें की यह किताब कल इसिकी परीक्षा होगी।
ज्ञान की आवश्यकता क्यों हे इसका सीधा जवाब चाहिए तो में यह कह सकता हु की इस दुनिया में अगर कोई राज कर रहा हे तो वो इंसान ही हे, ओर आगेभी शायद यही चलने वाला हे।तो इसका मतलब हे की हममें ओर उनमें कुछ तो अंतर हे ओर वो सोचनेकी ओर अनुमान लगानेकी ताक़त हे।
एक reaserch के अनुसार पढ़ने वाले लोग में काफ़ी ज़्यादा ख़ूबियाँ होती हे,
- वे लोग दूसरोसे काम ग़ुस्सा करते हे।
- वह लोग बातों को ओर गहेराईओ से सोच सकते हे ओर vision power बहोत कमाल का होता हे।
- ज़्यादा पढ़ने वाले लोग इस दुनियाको ज़्यादा realistic देख सकते हे।
ओर सबसे अच्छा advantage हे की पढ़ना दिमाग़ के लिए सबसे बढ़िया exersice हे।
पर यह सारी बात तो आप पहलेसेही जानते तो क्या में यह सब बताने के लिए यह लिख रहा हु?
कूछ साल पहले india में एक श्यामसुंदर इंसान आया था ओर बोला था,”knowlage is the currency of २१ centuary.” यह बात ५००० साल पहले कृष्ण ने जीके बताई हे। जब वे १३ साल के थे तब उन्होंने क़ंश को मारा था यह इतिहास साक्षी हे इस बात का, वो चाहते तो उसी वक़्त वह मथुरा नगरी के राजा बन सकते थे, गोपीओ के साथ रास-लीला कर सकते थ, चाहते तो वहाँसे धन ले सकते थे पर उन्होंने यह सब छोड़के शिक्षा को महत्व दिया ओर वोभी एक सामान्यसी गुरुकुल में जहाँ आप जानते हो की उनके सुदामा जेसे मित्र बने पर इस बात से में साबित क्या करना चाहता हु? यही की जो स्वयम् सबकुछ छोड़कर शिक्षा को अपना लेता हे फिर उसे किसी की मथुरा नगरी की जरूरत नहीं रहती वह खूदकी सोने की नगरी बना सकता हे।

“जपट के पलटना, पलटकर जपटना,
लहु गर्म रखनेका हे एक बहना,
परिंदोकी दुनियाका दरवेश हु में,
की शाहि बनता नहीं आशियाना,”

यह पंक्ति जो लोगोके दिलमें आग ओर शांति भरनेका प्रयास करती हे वेसेही मेभी आशा करता हु की यह बातें आपके दिलोको भी स्पर्शी हो।
अगर कोई बात ग़लत कह दी हो तो क्षमा माँगता हू।
आपके भीतर बेठे उस परमात्मा को मेरा प्रणाम।