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भारतका सुपरहीरो - 3

3. अंतरराष्ट्रीय तलवारबाजी खेल महोत्सव

सुबह को मास्टर ध्यान मुद्रा में बैठे थे और थोड़ी देर के बाद मास्टर घर के अंदर चले गए और चाय बनाई और नाश्ता लेकर टीवी के सामने बैठ गए। टीवी पर न्यूज की चेनल चल रही थी उसके उपर कोई अंतरराष्ट्रीय तलवारबाजी खेल महोत्सव का दिखा रहा था। वो न्यूज मास्टर एकदम गौर तरीके से देखने लगे, मास्टर को यह न्यूज अच्छे लगे और आगे सब देखने लगे कि कैसे भाग ले सकते हैं।

बाद में मास्टर ने सब ऑनलाइन देखा और रोज के समय पत्रक में एक और प्रक्रिया ऐड हो चुकी थी, मास्टर हर रोज तलवारबाजी की तैयारी कर रहे थे। लगातार मास्टर ने दो हफ्ते तक अपनी तैयारी चालू रखी। मास्टर की तलवारबाजी की प्रतियोगिता चालू हो गई थी। मूनसिटी में तलवार बाजी चल रही थी, मास्टर अपनी तलवार और शिल्ड लेकऱ उधर पहुँच गए। मूनसिटी में कोई मास्टर की तलवार का मुकाबला नहीं कर सका। सब की तलवार मास्टर की तलवार के सामने टीक नहीं सकी और मूनसिटी के अंदर मास्टर ने विजेता प्राप्त की। ऐसे ही तलवार बाजी तालुका, जिला और राज्य स्तर में हुई और सब में मास्टर उत्तीर्ण हो गए। इन विजेता का मुख्य कारण उसकी मेहनत और उसकी खोज की बदौलत थी।

भारतीय स्तर पर तलवार बाज की पसंदगी......

भारत में से दो प्रतियोगि को पसंद करना था क्योंकि हर देश में से दो ही प्रतियोगी को पसंद कर सकते थे ऐसा नियम था और अंतरराष्ट्रीय तलवारबाजी खेल महोत्सव ऑस्ट्रेलिया में आयोजन किया गया था। विजेता को इनाम के रूप में पैसे और मेडल दिया जाएगा और 'अंतरराष्ट्रीय कमांडर' के नाम से जाना जाएगा।

भारत की राजधानी में पूरा खेल का आयोजन किया गया था। सब राज्यों में पसंद किए गए प्रतियोगिओ उस दिन राजधानी में इकट्ठा हुए, खेल की शुरुआत हो चुकी थी धीरे धीरे प्रतियोगिता चालू हो गई सब अपना अपना अच्छा प्रदर्शन दिखा रहे थे। अलग अलग राज्यों के प्रतियोगी के बीच तलवार बाजी चालू हो गई थीं और हारे हुए प्रतियोगी बाहर निकलते जा रहे थे। आखिर में सब खेल समाप्त होने के बाद भारत की ओर से दो प्रतियोगी को पसंद किया गया, उनमें से एक उत्तर भारत का था और दूसरा पश्चिम भारत का और वो थे अपने मास्टर।
अंतरराष्ट्रीय तलवारबाजी की तैयारी पूरे जोश से चल रही थी, मास्टर भी मेहनत कर रहे थे क्योंकि उसको जिंदगी में कुछ बनना था। ईशा के साथ फोन पर ज्यादा बात भी नहीं करते थे, मास्टर अपना शरीर एकदम लचीला बनाना चाहते थे इसलिए उसने कठोर मेहनत चालू कर दी थी।

अंतरराष्ट्रीय तलवारबाजी खेल महोत्सव के दिन.......

तलवार बाजी का खेल सुबह नौ बजे चालू होने वाला था उस दिन दोनों प्रतियोगी और उसके कोच और भारतीय लोग सुबह कि जल्दी की फ्लाइट पकड़ कर ऑस्ट्रेलिया पहुंच गए। खेल का मैदान बीच में था और चारों तरफ देखने वाले लोगों के लिए बैठक व्यवस्था की गई थी। इस प्रतियोगिता में अलग अलग चौंसठ देशों ने भाग लिया था। खेल शुरू हो गया था अलग अलग देश के खिलाड़ी तलवार बाजी करने लगे।

लड़ाई का मैदान था उसमें आठ जगहों पर लड़ाई चल रही थी और उसमें छह राउंड रखे गए थे। छह राउंड छह दिन तक चलने वाला था, पहला राउंड खत्म होते ही बत्तीस खेल से बाहर निकल गए थे और बत्तीस दूसरे राउंड में पहुँच गए थे। दूसरे राउंड में अपने दोनों स्पर्धी पसंद हो गए थे। दूसरे दिन सुबह ही दूसरा राउंड चालू हो गया था, दिन ढलते ही इस राउंड के बाद सोलह लोग बाहर निकल चुके थे और उसमें अपना भारतीय खिलाड़ी भी शामिल था। भारत के खिलाड़ी जो तीसरे राउंड में पहुंचे वो थे अपने मास्टर, मास्टर ने अपना अच्छा प्रदर्शन दिखा के पांचवें राउंड तक पहुंच गए थे। पांचवा राउंड पांचवे दिन था, पांचवा राउंड चालू हो गया और मास्टर इस राउंड में भी सफल होकर फाइनल मैच में पहुंच गए। छठे दिन सुबह नौ बजे फाइनल मैच चालू होने वाली थी।
फाइनल तलवार बाजी मैच.........

मास्टर सुबह जल्दी उठकर प्रतियोगिता की तैयारी चालू कर दी थी, थोड़ी ही देर में प्रतियोगिता चालू हो गई। मैदान में मास्टर और उसका प्रतिस्पर्धी आमने सामने थे। दोनों के हाथ में एक तलवार और एक शिल्ड थी। बेल बजने के बाद दोनों आमने सामने भिड़ पड़े, तलवार के प्रहार एक दूसरे पर हो रहे थे और शिल्ड की मदद से वो प्रहार रोकते थे। कहीं समय तक लड़ाई चालू रही।

लड़ाई के दरम्यान एक बार तलवार मास्टर के हाथ से गिर गई थी, उस समय मास्टर तलवार की ओर बढ़ रहे थे, उसी वक्त सामने वाले स्पर्धीने मास्टर पर प्रहार किया। अचानक से प्रहार होते ही मास्टर ने अपना बचाव किया किन्तु उसकी तलवार की नोक मास्टर की आँख की ऊपर की जगह पर छूकर निकल गई और मास्टर के वो घांव में से खून निकलने लगा। मास्टर को गुस्सा आया और अपनी तलवार उठाई और उसके ऊपर जोर से प्रहार किया। उस प्रतियोगी ने वो प्रहार अपनी तलवार से रोका किन्तु मास्टर का प्रहार इतना पावरफुल था कि सामने वाले की तलवार में तिरार हो गई। थोड़ी ही देर में उसकी तलवार टूट गई, मास्टर ने फिर भी उसके ऊपर प्रहार करने लगे और वो अपनी जान बचाने के लिए शिल्ड का उपयोग कर ने लगा। शिल्ड भी टूटने पर आ गई थी और मरने के डर से उसने अपनी हार स्वीकार ली।

हार स्वीकारते ही बेल बजा और अपने मास्टर विजय हुए और उस वक्त विदेश की भूमि पर भारत का राष्ट्र ध्वज गर्व से लहराने लगा। यह मुकाबला देखने वाले हर भारतीयों की छाती चौडी हो गई थी। मास्टर को 'अंतरराष्ट्रीय कमांडर' घोषित किया और उसका सम्मान किया गया और उसका नाम इतिहास के पन्नों में छप गया।