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विद्यादान

विद्यादान

परिधि एक संभ्रांत परिवार की पुत्रवधू थी। वह प्रतिदिन अपने आस-पास के गरीब बच्चों को निशुल्क पढ़ाती थी। उसकी कक्षा में तीन चार दिन पहले ही एक बालक बब्लू आया था। बब्लू की माँ का देहांत हो चुका था और पिता मजदूरी करके किसी प्रकार अपने परिवार का पालन पोषण करते थे। वह प्रारंभिक शिक्षा हेतू आया था। बब्लू शिक्षा के प्रति काफी गंभीर था। वह मन लगाकर पढ़ना चाहता था।

एक दिन अचानक ही उसका पिता नाराज होता हुआ आया और बच्चे को कक्षा से ले गया। वह बड़बडा रहा था, कि मेडम आपके पढ़ाने का क्या औचित्य है, मैं गरीब आदमी हूँ और स्कूल की पढ़ाई का पैसा मेरे पास नही है। इसे बड़ा होने पर मेरे समान ही मजदूरी का काम करना है। यह थोडा बहुत पढ़ लेगा तो अपने आप को पता नही क्या समझने लगेगा। हमारे पड़ोसी रामू के लड़के को देखिए बारहवीं पास करके दो साल से घर में बैठा है। उसे बाबू की नौकरी मिलती नही और चपरासी की नौकरी करना नही चाहता क्योंकि पढ़ा लिखा है। आज अच्छी अच्छी डिग्री वाले बेरोजगार है जबकि बिना पढ़े लिखे, छोटा मोटा काम करके अपना पेट पालने के लायक धन कमा लेते है। आप तो इन बच्चों को इकट्ठा करके बडे-बडे अखबारों में अपनी फोटो छपवाकर समाजसेविका कहलाएँगी परंतु मुझे इससे क्या लाभ? इतना कहते हुए वह परिधि की समझाइश के बाद भी बच्चे को लेकर चला गया।

एक माह के उपरांत एक दिन वह बच्चे को वापिस लेकर आया और अपने पूर्व कृत्य की माफी माँगते हुए बच्चे को वापिस पढ़ाने हेतु प्रार्थना करने लगा। परिधि ने उससे पूछा कि ऐसा क्या हो गया है कि आपको वापिस यहाँ आना पड़ा? मैं इससे बहुत खुश हूँ कि आप इसे पढ़ाना चाहते हैं, पर आखिर ऐसा क्या हुआ?

बब्लू के पिता ने बताया कि एक दिन उसने लाटरी का एक टिकट खरीद लिया था, जो एक सप्ताह बाद ही खुलने वाला था। इसकी नियत तिथि पर सभी अखबारों में इनामी नंबर की सूची प्रकाशित हुयी थी। उसने एक राहगीर को समाचार पत्र दिखाते हुए अपनी टिकट उसे देकर पूछा कि भईया जरा देख लो ये नंबर भी लगा है क्या? मैं तो पढ़ा लिखा हूँ नही, आप ही मेरी मदद कर दीजिए। उसने नंबर को मिलाते हुए मुझे बधाई दी कि तुम्हें पाँच हजार रूपए का इनाम मिलेगा परंतु इसके लिए तुम्हें कार्यालय के कई चक्कर काटने पडेंगे तब तुम्हें रकम प्राप्त होगी। यदि तुम चाहो तो मैं तुम्हें पाँच हजार रूपए देकर यह टिकट ले लेता हूँ और आगे की कार्यवाही करने में स्वयं सक्षम हूँ। यह सुनकर मैंने पाँच हजार रूपए लेकर खुशी खुशी वह टिकट उसको दे दी और अपने घर वापस आ गया।

उसी दिन शाम को मेरा एक निकट संबंधी मिठाई फटाके वगैरह लेकर घर आया। उसने मेरी टिकट का नंबर नोट कर लिया था। मुझे बधाई देते हुए उसने कहा कि तुम बहुत भाग्यवान हो, तुम्हारी तो पाँच लाख की लाटरी निकली है। मैं यह सुनकर अवाक रह गया। जब मैंने उसे पूरी आप बीती बताई तो वह बोला कि अब हाथ मलने से क्या फायदा यदि तुम कुछ पढ़े लिखे होते तो इस तरह मूर्ख नही बनते इसलिए कहा जाता है कि जहाँ सरस्वती जी का वास होता है वहाँ लक्ष्मी जी का निवास रहता है। यह कहकर वह दुखी मन से वापस चला गया।

“ मैं रात भर सो न सका और अपने आप को कचोटता हुआ सोचता रहा कि बब्लू को शिक्षा से वंचित रखकर मैं उसके भविष्य के साथ खिलवाड कर रहा हूँ। मैने सुबह होते होते निश्चय कर लिया था कि इसको तुरंत आप के पास लाकर अपने पूर्व कृत्य की माफी माँगकर आपसे अनुरोध करूँगा कि आप जितना इसे पढ़ा सके पढ़ा दे उसके आगे भी मैं किसी भी प्रकार से जहाँ तक संभव होगा वहाँ तक पढ़ाऊँगा।“ परिधि ने उसे वापिस अपनी कक्षा में ले लिया और वह मन लगाकर पढ़ाई करने 0लगा।

बीस वर्ष उपरांत एक दिन परिधि ट्रैन से मुंबइ जा रही थी। रास्ते में टिकट निरीक्षक आया तो उसे देखते ही उसके चरण स्पर्श करके बोला, माँ आप कैसी है ? परिधि हतप्रभ थी कि ये कौन है और ऐसा क्यों पूछ रहा है? तभी उसने कहा कि आप मुझे भूल रही है, मैं वही बब्लू हूँ जिसे आपने प्रारंभिक शिक्षा दी थी। जिससे उत्साहित होकर पिताजी से अथक प्रयासो से उच्च शिक्षा प्राप्त करके आज रेल्वे में टिकट निरीक्षक के रूप में कार्यरत हूँ। परिधि ने उसे आशीर्वाद दिया एवं मुस्कुरा कर देखती रही। उसके चेहरे पर विद्यादान के सुखद परिणाम के भाव आत्मसंतुष्टि के रूप में झलक रहे थे।