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इश्क़ 92 दा वार (पार्ट -3)

पार्ट -3
खत में दोनों ने अपनी अपनी दिली दास्तान लिख दी थी.. अनु और मनु की आंखो में चमक और चेहरे पर एक आत्म विश्वास की आभा फैल चुकी थी... एक सुकून जो दिलों दिमाग़ को राहत दें चुका था मानो दोनों ने प्रत्यक्ष आमने सामने हो कर बात कही हो... मनु चैन से सो चुका था लेकिन अनु की आंखो से नींद अभी कोसो दूर थी.. उसे चिंता इस बात की थी कि ये खत मनु तक कैसे पहुंचेगा...

इश्क़ की राहों में जितनी आस होती हैं उतनी ही कठिनाइयां भी और हर कठिनाई को पार करने वाला ही सच्चा प्रेमी होता हैं.... अनु भी इसी तरह मुकाम दर मुकाम कठिनाइयों के रास्तों पर चल कर बचते बचाते निकल रही थी... उसने मन में फैसला किया चाहें जो हो कल मनु को खत खुद ही अपने हांथो दूंगी... मनु कोई अब गैर थोड़े ही हैं... जो मेरा ये खत भी ना ले सकेगा...
यही सोचते सोचते अनु की कब झपकी लग गयी उसे पता भी ना चला था...

मां की पुकार सुनते ही अनु उठ बैठी थी... जब उसने दीवार घड़ी पर समय देखा तो उसके मुंह से चीख सी निकल गयी थी अनु हड़बड़ा कर एक दम उठी थी... और दौड़ कर मां के पास जा कर बोली.... क्या मम्मी आप भी अब उठा रही हो... ओह गॉड...

रात को तूं पढ़ते पढ़ते स्टेडी टेबल पर ही सो गयी थी... वो तो तेरे पापा जब रात को बाथरूम के लिए उठे तो उन्होंने तुझे बेड पर लेटाया था... ऑफिस जाते जाते कह गये कि अनु को सोने देना.... जगाना मत...

फिर अभी क्यों जगाया आपने....? अनु ने खीजते हुए पूछा था...

तो क्या पूरे दिन सोने का इरादा था क्या... 10 बजने को हैं चलो जल्दी से ब्रश करो... और नास्ता करलो... जब मन करे नहा लेना.... चाय और नास्ता किचिन में रखा हैं मैं मंदिर जा रही हूं...

और अनु की मां मंदिर के लिए निकल जाती हैं... अनु धप्प से सोफे पर गिर जाती हैं... उसके आंसू निकल ने लगते हैं... और वो अपने आपको ही कोसने लगती हैं...
गुस्से में पास में पड़ा अखबार फाड़ देती हैं... और कुशन में अपना सिर भींच कर रोने लगती हैं...

स्कूल की छुट्टी हो चुकी थी रास्ते में मनु ने जावेद से इज़ाज़त लेने के पहले उससे बोला...

अरे जावेद भाई.... यार तूं मेरा एक काम करेगा...
हां बोलना क्या काम हैं...?

यार तू तो जानता हैं हम दोनों एक दूसरे से बात नहीं कर पा रहे हैं... यार तू ये मेरा खत अनु को दें देगा क्या...?

नहीं यार ये सब मेरे से नहीं होगा.... इन सब लफड़ो से तू मुझें दूर ही रख...

अच्छा वैसे तो तू बड़ी बड़ी डींगे हाकता फिरता हैं... इतना सा काम नहीं कर सकता तूं मेरा... जा यार तुझे भी देख लिया... मनु मायुश सा हो जाता हैं...

जावेद उसे चुप चाप खड़ा देखता हैं..... और फिर जोर से हसता हैं... उसकी ये हरकत देख मनु कुछ समझ नहीं पाता...

क्यों मनु भाई मानता हैं ना मेरी एक्टिंग को....
अबे साले.... तूने तो मेरा खून ही सूखा दिया... कमीने...
और हंसता हुआ जावेद मनु से लिपट जाता हैं... मनु भी हसने लगता हैं...

क्या यार तूं भी ना एवई हैं... तेरे लिए तो भी ये खत क्या खत की पूरी किताब ही पहुंचा दूंगा... साले...और तूं मुझसे रेकवेस्ट कर रहा हैं...

अच्छा बताना कब पहुंचा देगा...?

यार ये खत तूने मुझें अभी दिया हैं... अब पहले घर जाऊँगा... नास्ता चाय पीयूंगा... फिर अनु के घर जानें का मूढ़ बनाऊंगा... उसके घर जाऊँगा मौका देख कर उसे देदूंगा.... अब में घर जाऊं..?

हा निकलना यार कितना बोलता हैं... चल बाय... लेकिन भाई...

ले.. ले... तूं ही जाके देदे उसे लेना...

मनु अपने घर की तरफ दौड़ लगा देता हैं...

जावेद उसे जाता हुआ देखता हैं... मनु आंखो से ओझल हो जाता हैं... जावेद मनु के खत को देखता हैं... उसे खोलता हैं और फिर पढ़ने लगता हैं... खत पढ़ते पढ़ते उसके चेहरे के भाव आक्रोशित होने लगते हैं... खत पूरा पढ़ते ही वो उस खत को फाड़ देता हैं... उसके छोटे छोटे टुकड़े कर के हवा में उछाल कर एक कुटिल मुस्कान से हंसता हैं... और बुदबुदाता हैं... मनु भाई माफ़ करना अनु सिर्फ मेरी हैं... मेरी....

कंटीन्यू पार्ट -4..