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इश्क़ 92 दा वार (भाग-9)

इश्क़ 92 दा वार (भाग-9)

कंटिन्यू - पार्ट -9

सुबह का वक़्त हो चला था लंबे समय के बाद मनु और अनु इश्क़ के दूसरे पायदान पर सफर कर रहे थे अक्सर इश्क में देखा जाए तो तीन पायदान होते है पहला पायदान पर पैर रखने के लिए लंबा अरसा लगता है कुछ होते है जो सब्र किये बगैर हीं पहले पायदान से गिर जाते है.. और जो चढ़ जाते है तो दूसरा पायदान बेहद जोखिम भरा होता है जिसमे ज़माने वाले अपने वाले भी दुश्मन हो जाते है क्योंकि दूसरे पायदान के सफर में ज़माने को खबर लगते देर नहीं लगती..इस पायदान में अनु और मनु के इश्क़ में क्या लिखा था ये कोई नहीं जनता था.. मनु बड़ी बेसब्री से स्कूल जानें के वक़्त का इंतज़ार कर रहा था.. और यही हाल अनु का भी था.. ना जानें ये वक़्त भी क्यों नहीं आगे बढ़ रहा था.. अनु अपने हाथ घड़ी में बार बार टाइम देखते हुए बेसब्री से कभी इधर तो कभी उधर टहल रही थी.. अनु की मां अनु की इस बेसब्री को देखते हुए बोली थी..

मां - क्या बात है अनु बेटा आज तुम कुछ बेचैन सी लग रही हो..

अनु - म.. मैं.. नहीं तो.. ममा

मां- फिर क्या बात है..? अभी स्कूल जानें के टाइम में पूरा एक घंटा बाकी है.. और तुम एक घंटे पहले तैयार होकर इधर से उधर दौड़ लगा रही हो.. क्या बात है मुझें बताओ..?

अनु- क कुछ नहीं ममा वो तो मैं रिया का इंतज़ार कर रही हूं वो क्या है कि आज हमें प्रेक्टिकल बुक लेनी है दूकान से इसलिए

मां- तो इसमें इतना परेशान होने की क्या ज़रूरत है प्रेक्टिकल बुक कोई भागे थोड़ी जा रही है.

अनु- नहीं ममा ये बुक मार्केट में मिल हीं नहीं रही है.. वोतो कल स्कूल से आते समय हम दोनों ने ऐसे हीं पूछ लिया तो बुक दूकान पर वो आखिरी बुक बची थी लेकिन हम लोगों के पास इतने पैसे उस वक़्त थे नहीं जितने पैसे थे हमारे पास हमने उस दूकानदार को एडवांस में दे दीए लेकिन दुकानदार एडवांस में मान नहीं रहा था उसे हमने बड़ी मुश्किल में समझाया कि हम 10 बजे आकर बाकी पैसे देकर बुक लें जाएंगे उस दुकानदार ने ये भी कहा अगर कोई और बुक लेने आएगा तो मैं उसे देदूंगा.

मां- ओह.. तो फिर तुम्ही क्यों नहीं रिया के घर से होती हुई चली जाती हो.

अनु- ये बात तो मेरे दिमाग़ में आई हीं नहीं.. तो ममा मैं हीं चली जाती हूं

मां- हां हां जाओ.. और सुन पैसे है..तेरे पास

अनु जल्दी से अपना स्कूल बेग उठाते हुए बोलती है

अनु- हां पैसे है मेरे पास ममा.. थेंक्यू ममा..

और अनु अपनी ममा के गाल पर एक पप्पी लेती है

अनु-अपना ख्याल रखना ममा.. मैं चलती हूं..

जाते जाते अनु भगवान से मन हीं मन माफ़ी मांगती है

अनु- सॉरी भगवान आज मेने अपनी ममा से झूठ बोला
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इधर मनु भी स्कूल की यूनिफार्म पहने तैयारी से था वो अपने पापा के ऑफिस जानें का इंतज़ार कर रहा था..

मनु- वैसे तो पापा जल्दी ऑफिस चले जाते है आज पता नहीं क्यों अभी तक नहीं जा रहे है.

पापा- क्या हुआ..?

मनु- क कुछ भी तो नहीं..

पापा- फिर ये क्या अपने आप से बड़बड़ा रहे हो तुम ..? अभी तो टाइम है ना स्कूल चलने में..

मनु- चलने में...?

पापा- हां आज मैं तुम्हे स्कूल छोड़ते हुए ऑफिस जाऊंगा इसीलिए अभी तक नहीं गया हूं

मनु- मर गए.. !

पापा- क्या..?

मनु- कुछ नहीं पापा वो मैं अपने पेन देख रहा था.. पता नहीं किधर गए..

पापा- क्या तुम्हारे स्कूल का टाइम बदल गया है..?

मनु- नहीं तो..?

पापा- जब टाइम नहीं बदला है तो फिर आज इतनी जल्दी तैयार हो कर क्यों बैठ गए तुम अभी पूरे पेंतालिस मिनट है

तभी मनु की मां लांच बॉक्स लेकर आती है और मनु को देते हुए बोलती है

मां-आप भी ना बाल की खाल निकलने लगे हो.. अगर ये जल्दी तैयार हो भी गया तो आपको क्या परेशानी हो रही है.. इतने दिनों बाद आज स्कूल जा रहा है थोड़ा एक्साइडमेन्ट तो रहेगा हीं...आप वेबजह अपने दिमाग़ में प्रेसर दिये जा रहे हो.. आप से इतना तो होता नहीं है कि चलो आज थोड़ा टाइम मिला है तो लॉन में रखें गमलों के पेड़ो में हीं पानी देदे... बस बैठ गए सबेरे से अखबार पकड़कर

इतना सुनते हीं मनु के पापा उठकर जानें लगते है.

मां- अब कहां चलदिये आप

पापा- अब आपने जो मुझें ज्ञान दिया है उसे सार्थक करने जा रहा हूं..

मां- रहने दें आप.. एक काम करोगे और मुझें पचास बार बुला बुला कर जान खाओगे मैं खुद हीं कर लुंगी.. आपका भी लंच तैयार कर दिया मनु के स्कूल का समय भी हो रहा है आप तैयार हीं होलो वही अच्छा है..

मनु के पापा अखबार एक तरफ रखते हुए तैयार होने को चले जाते है.. तभी मनु मौका पाते हीं मां से कहता है

मनु- मम्मी पापा फालतू में परेशान हो रहे है मैं अकेला हीं चला जाऊंगा..

मां- नहीं बेटा तुम अपने पापा को जानते हो ना क्या दिक्कत है तुम्हे

मनु- कोई दिक्कत नहीं मैं तो यूं हीं कहा रहा था..

तभी मनु के पापा की आवाज़ आती है

पापा- वो मेरी सेंडो बनियान कहां रखी है..?

मां- अच्छा हुआ तूं तैयार होके पहले हीं बैठ गया.. तेरे पापा को तैयार करा कराती हूं... नहीं तो हर चीज के लिए ऐसे हीं चिल्लाते रहेंगे..

मां वहा से चली जाती है मनु अपना सिर पकड़ कर बैठ जाता है..
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अनु और रिया धीरे धीरे क़दमों से इस स्कूल जानें वाली गली को एक छोर से दूसरे छोर तक लग भाग चार पांच बार नाप चुके थे

रिया- यार अब नहीं चला जाता.. पता नहीं मनु आएगा भी या नहीं.

अनु- आएगा

रिया-लेकिन कब यार..?

अनु- आता हीं होगा...

रिया- लें वो देखले तेरी लव स्टोरी का हीरो तो आया नहीं लेकिन विलेन जरूर आ गया..

जावेद अपने किसी दोस्त के साथ सायकिल पर चला आ रहा है अनु जावेद को देख थोड़ा असहज सी हो जाती है ये लोग मुड़ कर स्कूल की तरफ को जानें लगते है... जावेद सिटी बजाता हुआ स्कूल की तरफ निकल जाता है... सायकल पर पीछे बैठा उसका दोस्तअनु और रिया की तरफ देखता हुआ जावेद से पूछता है

दोस्त - कौनसी वाली है..?

जावेद- वो उस तरफ वाली..

दोस्त- लेकिन यार बुरी तो ये भी नहीं है..?

जावेद- ये रिया है बहुत तेज़ है.

और दोनों आगे जा कर मोड़ से मुड़ जाते है..

रिया- देखा कैसे घूर घूर कर देख रहा था.. कमीना

अनु चुप रहती है तभी पास से हीं एक स्कूटर निकलती है जिस पर मनु बैठा है जो अपने दोनों हाथ से कानों को पकडे है
तभी रिया अनु से बोलती है

रिया- मनु.

इतना सुनते हीं अनु अपनी नज़रे उठा कर सामने देखती है मनु अपने दोनों कान पकड़े हुए है जो अनु से माफ़ी मांग रहा है. अनु के चेहरे पर मुस्कुराहट बिखर जाती है..

अनु- मेने कहां था ना ज़रूर कोई बात है नहीं तो ऐसा कभी नहीं हुआ है कि मुझें इंतज़ार करना पड़े..

रिया- सही है.. साला तुम दोनों के प्यार में बेंड तो मेरी बज रही है..

अनु- तो तूं भी कर लें किसी से

रिया- रहने दे रहने दे तुम दोनों से दोस्ती करके क्या कम भुगत रही हूं..

और दोनों हंसते लड़ते स्कूल पहुंच जाते है.. !
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कंटीन्यू - पार्ट - 10