ishq 92 da war - 8 books and stories free download online pdf in Hindi

इश्क़ 92 दा वार (भाग-8)

इश्क़ 92 दा वार (भाग-8)

अनु और मनु की नज़रे इश्क़ के एहसास को मज़बूर कर रही थी अनु के चेहरे का रंग सुर्ख गुलाबी हो चुका था वही मनु की सांसो ने नज़रो की कशिश को अपनी ताल में पिरो लिया था... तभी रिया ने आकर दोनों की इश्क़गी में खलल ड़ालते हुए अपने गले की खराश से गला साफ करते हुए बोली थी..

रिया - चलो जल्दी से गरमा गरम नास्ता तैयार हैं..

पीछे हीं मनु की मम्मी भी अपने दोनों हांथो में चाय की ट्रे लाते हुए बोली

मां - मनु तुम्हारे लिए भी नास्ता लेकर आई हूं.. अब कोई बहाना नहीं चलेगा

रिया- आंटी जी कैसा बहाना..? आज हम मनु को खिला कर हीं जाएंगे अब आप हीं देखिये मनु के चेहरे को..

मां- चलो ये बहुत अच्छा हुआ जो तुम लोग आ गए बेटा (बैठते हुए ) लो अनु बेटा... ये लो...

अनु नास्ते की प्लेट लेते हुए

अनु- थेंक्यू आंटी

मां- इसमें थैक्यू की क्या बात हैं.. रिया लो तुम भी लो.. बेटा तुम इस घर को भी अपने घर की हीं तरह समझो जब मन करें चले आया करो...

अनु- (मनु की तरफ देखते हुए)जी आंटी...

मां- इस गधे को समझाओ.. हमेशा नाजुक सा बना रहता हैं... हर बिमारी का इलाज दवा नहीं होती.. इसने तो अपने कोई दोस्त भी नहीं बना रखें हैं पता नहीं कैसा लड़का हैं.. लें दे कर एक हीं इसका दोस्त हैं जो मुझें आज तक समझ नहीं आया उठमुल्ला सा आता हैं चला जाता हैं पता नहीं कैसा दोस्त हैं..

रिया- तभी तो आंटी हम लोग मनु से मिलने आए हैं.. स्कूल में भी इसका यही हाल हैं..

बातों का सिलसिला नास्ते के लुफ्त के साथ ज़ारी था... और नज़रों के इशारों का परवान भी ज़ारी था... महफिले गुफ़्तगू में कुछ खलल सी हुई.. जब डोर बेल की आवाज पुरे घर में गूंज उठी..

मां - अब कौन आया होगा...?

वो उठते हुए बोली थी... और वो आंगतुक को देखने चली जाती हैं..

अनु इशारे से मनु से पूछती हैं.. कि कौन हो सकता हैं उसके जवाब में मनु भी अपने कंधे बिचका कर पता नहीं मुझें का जवाब दे देता हैं...

रिया - कही वो उठमुल्ला तो नहीं आ टपका

तभी मां के बढ़ बड़बड़ाने की आवाज़ इन लोगों के कानों में पडती हैं

मां- तुझे अब फुर्सत मिली जावेद..! देख मनु कितने दिन से बीमार पड़ा हैं.. दोस्त ऐसे हीं होते हैं क्या..? मैं अभी तेरे बारे में हीं बात कर रही थी

अनु- हे भगवान.. !

इतना सुनते हीं अनु मनु के पास बेड पर बैठ जाती हैं और रिया सरक कर अनु की जगह पर आ जाती हैं अनु बड़ बढ़ती हैं..

अनु - इस कमीने को भी आज हीं आना था.

मां- देख मनु जावेद आया हैं..

और वो दोनों इन लोगों के पास आ जाते हैं जावेद अनु को देखता हैं तो उसके चेहरे का रंग उतर जाता हैं.

मां- आ बैठ... मैं तेरे लिए नास्ता लेकर आती हूं..

जावेद- अरे नहीं आंटी जी.. मैं नास्ता नहीं करूंगा मुझें जल्दी जाना भी हैं.. अरे अनु तुम यहां..? मैं तुम्हारे हीं घर जा रहा था सोचा मनु से मिलता चलू...

अनु- कोई खास काम..?

जावेद- वो अम्मी ने शीरखोरमा बना रही थी तो बोली अनु को बुला ला.. इसलिए मैं तुम्हारे हीं घर जा रहा था फिर मनु की याद आई तो सोचा मिलता चलू

रिया- ये तुमने बहुत अच्छा किया जावेद.. अब यही तुम्हारी दोनों से मुलाक़ात हो गयी.. आज अनु को आंटी के हाथ का हलवा खाना था इसलिए आज हम लोग यहां चले आए.. लो तुम भी खाओ ना कितना टेस्टी बना हैं हलवा..

अनु- हां हां तुम भी लोना जावेद आंटी के हांथो में जादू हैं.. जादू..

जावेद- धत तेरे की.. (जैसे कुछ याद आया हो उसे)

मां- क्या हुआ बेटा.?

जावेद- कुछ नहीं आंटी अम्मी ने कहा था पहले ड्राय फ़ूड दें जाना और मैं यहां आगया.. मैं अभी चलता हूं बाद में आता हूं..

रिया- शीर खोरमा तो वैसे भी आज हमें नहीं खाना.. कल पक्का तुम्हारे घर आएंगे जावेद.. तो कल हीं लें लेना ना ड्राय फ़ूड्स..

जावेद - आज कुछ खास मेहमान भी आ रहे हैं.. अच्छा आंटी मैं अभी चलता हूं..

जावेद फुर्ती से खड़ा होता हैं और लम्बे लम्बे डग भरता हुआ कमरे से निकाल कर चला जाता हैं..

अनु, रिया और मनु के साथ साथ मां भी हँसने लगती हैं

मां- कैसा भुलक्कड़ लड़का हैं... मैं गेट बंद करके आती हूं.. और मनु की मां उठ कर चली जाती हैं

रिया- आग लग गयी जावेद में.

अनु- हां रिया लेकिन वो अब फिर कुछ ना कुछ उल्टा ज़रूर करेगा.

मनु- उसकी चिंता तुम मत करो अनु उससे मैं निपट लूंगा..

रिया- मनु तुम लोग अपने मम्मी पापा को क्यों नहीं बता देते हो.

अनु- क्या बता दें अभी 12th भी कम्प्लीट नहीं हुई है....जान ले लेंगे घर वाले मेरी, अब तो पापा भी नहीं हैं आजकल सारे फैसले बड़े पापा और बड़े मामा हीं करते हैं.. उधर बड़े मामा ने तो कह दिया मेरे एग्जाम होते हीं वो मुझें और मम्मी को दिल्ली बुला लेंगे.

रिया -अभी पूरे सात महीने हैं एग्जाम होने को कुछ ना कुछ रास्ता ज़रूर निकाल लेंगे

तभी मनु की मां आ जाती हैं

मां- किस बात का रास्ता निकलने की बात चल रही हैं..?

मनु- कुछ नहीं मम्मी वो हमारे प्रेक्टिकल की बात हो रही थी..

रिया- हां आंटी जी हमारे स्कूल की लेब बंद कर दी हैं उसी के बारे में हमलोग सोच रहे थे..

अनु- अच्छा आंटी अब बहुत देर हो गयी हैं मम्मी भी चिंता कर रही होंगी.. अब हम लोग चलते हैं..

मां- ठीक हैं बेटा आते रहना..

मनु- अरे हां कल तुम लोग स्कूल जाओगे क्या..?

रिया- अनु- हां.. क्यों....?

मनु- मुझें लगता हैं अब कल से मुझें भी कल स्कूल जाना चाहिए.. !

मां- अरे वाह मेरा बेटा.. ये तो तूने बहुत अच्छी बात कही..देखा तुम लोगों के आने से मनु की कितनी हिम्मत बढ़ गयी..

तभी रिया अनु को चिमटी काटती हैं

अनु -अच्छा आंटी अब हम लोग चलते हैं..

दोनों मनु की मां और मनु से इज़ाज़त लेकर जानें लगते तभी मां मनु से कहती हैं

मां- मनु बेटा इन्हे दरवाज़े तक तो छोड़ आओ..

मनु- हां हां.. मम्मी

और मनु भी उन लोगों के साथ चल देता हैं और मनु की मां बर्तन समेटने में लग जाती हैं..
-----------

यहां जावेद मनु के घर से निकल कर फूटे मकबरे के खंडहर में अकेला बैठा था वो बेहद परेशान था... आखिर अनु मनु के घर कैसे पहुंच गयी ये कैसे हो सकता हैं इन्ही बातों को लेकर जावेद को चिढ़ आ रही थी... अनु उसके हांथों से रेत की तरह जो फिसलती जा रही थी..लाख कोशिशों के बाद भी वो उससे दूर हो रही थी.. मनु में ऐसा क्या हैं जो मुझ में नहीं...इसी बात को वो अपने ज़ेहन में घुमाए जा रहा था जावेद को समझ नहीं आ रहा था कि अनु को मनु से कैसे दूर किया जाए... वो किसी भी हाल में अनु को अपने से दूर नहीं जानें देना चाहता था..जावेद अपना हाथ ज़मीन पर मारते हुए बड बड़ाता हैं..

जावेद - लेकिन कैसे...? कुछ तो करना पड़ेगा...हूं.... ये साला मनु रहेगा तो अनु मेरी ज़िन्दगी में कभी नहीं आएगी.. इस मनु का कुछ करना पड़ेगा... क्या करूं... क्या करूं... हूं लतीफ भाई.. अब वही कुछ कर सकते हैं.. ! उसे लतीफ भाई के नाम में एक उम्मीद पक्की होती दिखाई दी थी..
अनु... अब इश्क़ नहीं होगा और ना अब मोहब्बत होंगी... अब सीधा तेरा मेरा निकाह हीं होगा...

और वो वहां से उठ कर चला जाता हैं... !

जावेद ने ठान लिया था के वो अब किसी भी कीमत पर अनु को अपना बना कर हीं रहेगा...
--------------
कंटिन्यू - पार्ट -9