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मानव धर्म

अचानक इंसान महसूस करता है जीवन कितना छोटा है और हमेशा जैसा कुछ नहीं है ।सब कुछ मन मुताबिक घट रहा था, कोई कमी नहीं थी तो नीतू को गुमान हो गया अपनी योग्यता से कुछ भी हासिल किया जा सकता है। आसपास वाले जो इस आर्थिक सफलता की दौड़ में पिछड़ गए उनसे वह किनारा कर लेती, ऐसे लोगों की जीवन में क्या आवश्यकता है।

पति राकेश काम के सिलसिले में दूसरे शहर गया हुआ था ।संध्या काल में अचानक फोन आया कि राकेश की तबीयत खराब हो गई है और उसे अस्पताल में दाखिल करा दिया गया है ।सुनते ही नीतू के होश उड़ गए, समझ ही नहीं आया क्या करें। सातवीं आठवीं में पढ़ने वाले दोनों बच्चे, मां की हालत देख घबरा गए। "क्या हुआ मम्मी?" जब दोनों ने बार-बार पूछा तो वह रो पड़ी। बड़ा बेटा घबरा गया और तुरंत पड़ोस में रहने वाली सुजाता और उसके पति ललित को बुला लाया। ‌ सारा मामला समझकर ललित ने जैसे तैसे हवाई यात्रा की टिकट करवाईं। नीतू को होश नहीं था वह कब हवाई अड्डे पहुंची और कब प्लेन में बैठी। उसके बच्चों के लिए सुजाता अपनी बेटी को कहकर आई थी ध्यान रखने के लिए।

ललित तीन कप कॉफी के लाया प्लेन में बैठने से पहले। लेकिन नीतू के हाथ ऐसे कांप रहे थे उससे कप पकड़ा ही नहीं जा रहा था। सुजाता ने प्रेम से अपने हाथों से उसे कॉफी पिलाई। उसके कांपते हाथों को अपने हाथों में पकड़ कर बोली," चिंता मत करो, इस समय तुम्हें हौसले की सबसे अधिक आवश्यकता है, ‌भगवान का नाम लो।"

नीतू सुजाता के गले लग कर रो पड़ी ,"क्या होगा अगर राकेश को कुछ हो गया तो? पता नहीं किस हालत में है ?मुझसे मिल भी पाएंगे कि नहीं? बच्चों का और मेरा क्या होगा उनके बिना?" अनंत प्रश्न उसके दिमाग में उठ रहे थे ।लगा जिस जिंदगी पर इतना घमंड था वह ताश के पत्तों के महल की तरह ढ़हने वाली है।

एयरपोर्ट से सीधे तीनों अस्पताल पहुंचे । वहां राकेश आराम से लेटा हुआ था ,डॉक्टर ने भी कहा खतरे की कोई बात नहीं है। नीतू की जान में जान आई और उसका ध्यान सुजाता और ललित की तरफ गया। कितना साथ दिया दोनों ने इस मुसीबत की घड़ी में । वह दोनों से बोली," बहुत आभारी हूं आप दोनों की। अपने सब काम छोड़कर आप तुरंत मेरे साथ यहां आ गए।"

सुजाता मुस्कुराते हुए बोली," इसमें आभार कैसा? यह तो मानव धर्म है, एक दूसरे की सहायता करना ।लेकिन अब हम दोनों फ्रेश होकर कुछ खा पी कर निकलेंगे। मांजी अभी अस्पताल में ही है ।"

नीतू आश्चर्य से बोली ,"अच्छा क्या हुआ आंटी जी को और अस्पताल में कब से हैं ?"

सुजाता दुखी स्वर में बोली," एक हफ्ता हो गया है, घर में रात के आठ बजे चलते चलते चक्कर आए और गिर गई । काफी चोटें आई, डॉक्टर ने न्यूरो की परेशानी भी बताई है। " नीतू को ध्यान आया एक हफ्ते पहले सुजाता रात को बदहवास सी उसके पास दौड़ी दौड़ी आई थी । हांफते हुए बोली थी ,"नीतू कुछ कैश पड़ा हो तो दे दो, मां जी को अस्पताल लेकर जाना पड़ेगा।" नीतू के पास पच्चीस-तीस हजार रुपए हमेशा रहते थे। लेकिन उसे लगा यह लोग लौटा नहीं पाएंगे इसलिए झूठ बोल दिया।" मेरे पास तो बिल्कुल कैश नहीं है और राकेश अभी तक आए नहीं है। फिर अगले दिन उसके ध्यान से बिल्कुल उतर गया सुजाता से उसकी सास के बारे में पूछने का।

नीतू शर्मिंदगी महसूस कर रही थी, चिंतित स्वर में बोली ,"एकदम से कैसे जाओगे ?प्लेन की टिकट देखने पड़ेंगे।"

सुजाता थके हुए स्वर में बोली ,"नहीं प्लेन की टिकट ऐसे कैसे मिलेंगे ?वहां तो ललित जी के दोस्त ने इंतजाम कर दिया था ,वही काम करते हैं। यहां से तो बस से चले जाएंगे, हर एक घंटे में जाती है।"

नीतू संकोच में बोली," आते हुए भी टिकट के इतने पैसे लग गए होंगे। मैं चैक काट कर दे देती हूं।"

सुजाता ने उसका हाथ पकड़ते हुए कहा ," ऐसा कहकर छोटा मत बनाओ।"

नीतू धीरे से बोली," नहीं इस समय पैसे की बहुत आवश्यकता होगी। मांजी के इलाज में भी लग रहे होंगे।" सुजाता नम आंखों से बोली ,"खबर सुनते ही देवरजी आ गए थे। दोनों भाइयों ने मिलकर सब मेनेज कर लिया है। तुम बच्चों की बिल्कुल चिंता मत करना ,मैं उनको संभाल लूंगी। तुम बस राकेश जी की सेहत का ध्यान रखना और जब डॉक्टर इजाजत दे आराम से लेकर आ जाना। अब हम चलते हैं ।"

नीतू ठगी से उन दोनों को जाते हुए देख रही थी।