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मेगा 325 - 1

मेगा 325

हरीश कुमार 'अमित'

(1)

''वैरी-वैरी हैप्पी बर्थडे, बड़े दादू।'' कहते हुए शशांक ने दादा जी को जगाया.

शशांक की आवाज़ सुनते ही बड़े दादा जी एकदम से उठ गए.

''वैरी-वैरी हैप्पी बर्थडे, बड़े दादू।'' शशांक ने अपनी बात दोहराई.

बड़े दादा जी ने उठकर शशांक को गले से लगा लिया ओर कहने लगे, ''थैंक यू, वेरी मच, बेटा!''

''बड़े दादू, वैसे तो हर सुबह आप मुझे जगाते हो, मगर आज मैंने पूरा प्रबन्ध किया हुआ था कि मैं सुबह पाँच बजे अपनेआप उठ जाऊँ. अपने दिमाग़ की प्रोग्रामिंग में सुबह पाँच बजे उठने की बात फीड कर दी थी मैंने.'' शशांक बताने लगा.

''वाह, बेटा.'' बड़े दादा जी बोले.

''घूमने चलें, बड़े दादू?''

''हाँ, ठीक है चलते हैं. मैं कपड़े-वपड़े बदलकर तैयार हो जाता हूँ. तुम भी तैयार हो जाओ.'' बड़े दादा जी कहने लगे.

दरअसल बड़े दादा जी शशांक के परदादा जी थे. शशांक के मम्मी-पापा मंगल ग्रह पर रहते थे और उसके दादा जी नेपच्यून ग्रह पर. शशांक की अपने परदादा जी से बड़ी गहरी बनती थी, इसलिए वह उनके साथ पृथ्वी पर रहता था. वे लोग भारत की राजधानी नई दिल्ली में एक गगनचुम्बी इमारत में रहते थे.

कुछ ही देर में तैयार होकर बड़े दादा जी व शशांक अपने घर से निकले. उनका लैट 487वीं मंज़िल पर था. उन दोनों ने मुँह और नाक पर मास्क लगाया हुआ था और उन दोनों की पीठ पर एक-एक ऑक्सीजन सिलिंडर था, जिसकी पाइप उनके मास्क से सटी थी.

घर से बाहर आकर बड़े दादा जी ने अपने हाथ की कलाई में घड़ी की तरह बंधे एक यंत्र की ओर देखा. इस यंत्र की मदद से उस व्यक्ति का रक्तचाप (ब्लड प्रेशर), रक्त शर्करा (ब्लड शूगर), नब्ज़ की गति इत्यादि तो देखे ही जा सकते थे, साथ ही उस वक्त का तापमान, वायु में नमी की मात्रा, आनेवाले समय में मौसम का अनुमान, प्रदूषण की मात्रा आदि का पता भी चल सकता था.

उस यंत्र को देखते ही बड़े दादा जी कहने लगे, ''बेटा, आज तो प्रदूषण बहुत ज़्यादा है दिल्ली में. कहीं और चलते हैं सैर करने.''

''ठीक है, बड़े दादू.'' कहते हुए शशांक ने अपनी कलाई पर बँधे वैसे ही यंत्र का एक बटन दबाया. यंत्र पर लगी स्क्रीन पर उन जगहों के नाम आ गए जहाँ प्रदूषण कम था.

बड़े दादू, माउंट आबू में काफी कम है प्रदूषण. आज वहीं चलते हैं?'' शशांकने कहा.

‘‘ठीक है, बेटा. माउंट आबू ही चलते हैं. वहाँ गए हुए हो भी गए हैं कई दिन.'' बड़े दादा जी ने हामी भरी.

प्रदूषण ज़्यादा होने की समस्या घर से बाहर निकलने पर ही होती थी. घर के अन्दर तो प्रदूषण रोकने के सारे प्रबन्ध थे. हर घर में हवा और वातावरण को लगातार साफ़ और प्रदूषण-मुक्त रख सकने वाले यंत्र लगे थे. घर की खिड़कियाँ-दरवाज़े सब बन्द रहते थे. खिड़कियों वाली जगह पर बेहद साफ़ पारदर्शी शीशा लगा होता था, जो खोला ही नहीं जा सकता था. बस दरवाज़े ही ज़रूरत पड़ने पर खुलते थे.

इन्सान की गंध पहचानकर ही दरवाज़े खुल जाते थे. इसलिए घर से बाहर जाते समय या बाहर से अन्दर आते समय न तो दरवाज़ों को बन्द करना या खोलना पड़ता था और न ही ताला लगाने या खोलने की ज़रूरत पड़ती थी. हालाँकि कोई चाहे तो पासवर्ड बोलकर भी दरवाज़ों को खोल सकता था या बन्द कर सकता था.

घर के अन्दर प्रदूषण को नियन्त्रित करने के सभी यंत्र लगे थे जो हवा और वातावरण को हरदम साफ़ रखते थे.

फिर उन दोनों ने अपने-अपने बाएँ जूते पर लगे एक यंत्र पर माउंट आबू टाइप किया और एक बटन दबा दिया. उसके बाद वे तीव्र गति से माउंट आबू की ओर उड़ने लगे. आसमान में उनकी तरह और भी बहुत से लोग उड़कर इधर-से-उधर और उधर-से-इधर आ जा रहे थे, लेकिन हर व्यक्ति के यंत्र में ऐसी प्रोग्रामिंग अपनेआप ही थी कि कोई जना दूसरे जने से टकराता नहीं था.

माउंट आबू की ओर जाते हुए रास्ते में शशांक और बड़े दादा जी को कुछ परिचित लोग भी मिले. उन लोगों का अभिवादन इन दोनों ने अपने मास्क पर लगी एक नीली रोशनी को जलाकर किया. उन लोगों ने भी जवाब में उसी तरह मास्क पर लगी नीली रोशनी को दो बार जलाकर उनके अभिवादन का जवाब दिया.

क़रीब दस मिनट में ही वे दोनों माउंट आबू पहुँच गए. एक पार्क में पहुँचकर उन दोनों ने अपने चेहरे से मास्क उतार दिया. मास्क उतरने के साथ ही ऑक्सीजन की नली का पाइप भी उनके नाक से हट गया.

''अब कुछ देर खुली हवा में साँस लेते हैं.'' कहते हुए बड़े दादा जी तेज़-तेज़ सैर करने लगे.

बड़े दादा जी इतनी तेज़ चल रहे थे कि शशांक को उनके साथ चलने में थोड़ी मुश्किल हो रही थी. शशांक ने किसी तरह अपनी गति बढ़ाई और बड़े दादा जी के साथ-साथ चलने लगा.

''बड़े दादू, आप इस उमर में भी इतना तेज चल लेते हैं?'' तेज-तेज़ चलते हुए शशांक ने कहा.

''अरे बेटा, अभी मेरी उम्र ही क्या है. अभी तो मैं सिर्फ एक सौ चालीस साल का हूँ. आजकल तो लोग दो-दो सौ साल तक जीते रहते हैं.'' बड़े दादा जी ने उत्तर दिया.

''बड़े दादू, मेरा सुपर कम्प्यूटर बता रहा था कि पहले के समय में तो लोग सौ साल तक भी बड़ी मुश्किल से जीते थे.'' शशांक बोला.

''बेटा, पहले की बात और थी. अब तो साइंस ने बहुत तरक्की कर ली है. पहले तो लोग डेंगू, कैंसर, हार्ट अटैक जैसी मामूली बीमारियों से ही मर जाया करते थे. अब तो इन बीमारियों को बीमारियाँ समझा ही नहीं जाता. इसलिए दो सौ साल तक जी सकना कोई ऐसी मुश्किल बात नहीं रह गई.'' बड़े दादा जी शशांक को समझाने लगे.

''क्या ऐसा भी हो सकता है बड़े दादू कि आदमी हमेशा ज़िन्दा ही रहे?'' शशांक ने एक और प्रश्न किया.

''हो सकता है आनेवाले समय में ऐसा हो ही जाए. वैज्ञानिक लोग कर तो रहे हैं कोशिश कि आदमी अमर हो जाए, मतलब मरे ही नहीं.'' बड़े दादा जी ने बताया.

''तब तो बहुत बढ़िया हो जाएगा न. सब लोग हर साल अपना बर्थडे मनाते रहेंगे.'' शशांक ख़ुशी से चहकते हुए बोला.

''न सिर्फ़ ये कोशिशें हो रही हैं कि आदमी कभी मरे ही नहीं, बल्कि इसके लिए भी वैज्ञानिक प्रयोग किए जा रहे हैं कि आदमी कभी बूढ़ा ही न हो. आदमी को जवान बनाए रखने में कुछ हद तक तो सफलता मिल ही गई है.'' बड़े दादा जी थे.

''वो तो है बड़े दादू. अब आपकी उमर एक सौ चालीस साल की है. फिर भी आप मुझसे अधिक चुस्त और फुर्तीले हैं. मेरे से तेज़ तो आप चल लेते हैं.'' शशांक कहने लगा.

''बेटा, यह तो इन्सान का दिमाग़ है जिसने नए-नए अविष्कार करके यह सब पाया है. अभी तो न जाने और क्या-क्या अविष्कार होंगे, क्या पता.'' तेज़ी से सैर करते हुए बड़े दादा जी कह रहे थे.

सैर करते-करते चालीस मिनट हो गए थे. शशांक को थकावट-थकावट-सी लगने लगी थी. उसका मन चाहने लगा कि अब वापिस घर चला जाए. यही बात कहने के लिए उसने बड़े दादा जी की तरफ़ देखा.

तभी बड़े दादा जी बोल उठे. ''लगता है थक गए हो. अब चलें घर वापिस?''

''जी, बड़े दादू.'' शशांक ने उत्तर दिया. तभी उसके दिमाग़ में एक बात आई और वह बड़े दादा जी से पूछने लगा, ''क्या ऐसा भी हो सकता है बड़े दादू कि एक आदमी दूसरे आदमी के मन की बात बिना कहे जान ले?''

''बेटा, इस बारे में भी बहुत रिसर्च की जा रही है. अगर वैज्ञानिक लोग इसमें सफल हो गए, तब तो समझो दुनिया ही बदल जाएगी.'' बड़े दादा जी ने ज़वाब दिया.

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