Mega 325 - 11 - last part books and stories free download online pdf in Hindi

मेगा 325 - 11 - अंतिम भाग

मेगा 325

हरीश कुमार 'अमित'

(11)

कुछ दिनों बाद शाम के समय शशांक अपने कमरे में बैठा टी.वी. देख रहा था. अचानक उसकी नज़र खिड़की के बाहर पड़ी तो उसे कुछ उड़ता हुआ नज़र आया. उड़ती हुई उस चीज़ का रंग-रूप हवाई जहाज़ जैसा नहीं था. यह तो कोई नई तरह की चीज़ थी.

शशांक ने अपने दिमाग़ पर ज़ोर डाला. उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह चीज़ क्या हो सकती है. तभी उसके दिमाग़ में आया कि यह कहीं कोई यू.एफ.ओ. (उड़नतश्तरी) तो नहीं. उड़नतश्तरियों के बारे में उसने बहुत बार पढ़ा था. टी.वी. और फिल्मों में भी उड़नतश्तरियों को उड़ते हुए उसने कई बार देखा था.

शशांक को पक्का विश्वास हो गया कि हो-न-हो यह उड़नतश्तरी ही है. धीमे-धीमे उड़ती हुई वह उड़नतश्तरी खिड़की के सामने से ग़ायब होने ही वाली थी.

अचानक ही शशांक के मन में आया कि जीवन में पहली बार अपनी आँखों से देखी हुई इस उड़नतश्तरी का वीडियो क्यों न बना लिया जाए. उसके पापा ने उसे एक बढ़िया कैमरा लेकर दिया हुआ था, जिससे वह फोटोग्राफी का अपना शौक पूरा किया करता था. शशांक ने झट-से अलमारी से अपना कैमरा निकाला और तेज़ी से घर के बाहर की तरफ़ भागा.

बड़े दादा जी उस वक्त घर पर नहीं थे. वे अपने एक दोस्त को मिलने मुम्बई गए हुए थे. उस दोस्त से बड़े दादा जी की फ़ोन वग़ैरह पर तो बातचीत होती रहती थी, लेकिन काफ़ी समय से वे उससे आमने-सामने नहीं मिले थे. बड़े दादा जी का देर रात तक वापिस आने का कार्यक्रम था. जाने से पहले बड़े दादा जी मेगा 325 को कहकर गए थे कि वह शशांक का ध्यान रखे.

शशांक को तेज़ी से घर से बाहर जाता देख मेगा 325 भी उसके पीछे-पीछे भागा. बाहर आकर शशांक ने उस दिशा में देखा जिस तरफ़ उड़नतश्तरी उड़कर जा रही थी. शशांक को उड़नतश्तरी की झलक दिखाई दी. उड़ते-उड़ते उसने जल्दी ही किसी गगनचुम्बी इमारत के पीछे छुप जाना था.

शशांक ने उस उड़नतश्तरी का वीडियो बना लेना चाहा. उड़नतश्तरी बस ग़ायब होने ही वाली थी. वीडियो बनाने के लिए शशांक रेलिंग पर झुका उड़नतश्तरी किसी भी पल ग़ायब हो सकती थी.

'फिर कभी उड़नतश्तरी का वीडियो बनाने का मौका क्या पता मिले या न मिले' - यही सोचते हुए शशांक रेलिंग पर कुछ और झुका, मगर इतना ज़्यादा झुकना उसे बड़ा मँहगा पड़ा.

रेलिंग पर इतना अधिक झुकने से उसका सन्तुलन बिगड़ गया और वह नीचे गिरने को हुआ. कैमरा उसके हाथ से छूटकर नीचे गिरता चला गया. शशांक भी साथ ही गिर रहा था, मगर पास खड़े मेगा 325 ने उसे कंधों के पास से मजबूती से पकड़ लिया.

अब स्थिति यह थी कि शशांक 487वीं मंज़िल से नीचे लटक रहा था और मेगा 325 ने उसे दोनों बाँहों से कंधों के पास से पकड़ा हुआ था. अगर मेगा 325 के हाथों की पकड़ कुछ ढीली पड़ जाती तो निश्चित तौर से शशांक का नीचे की तरफ़ गिरना तय था. इतनी ऊँचाई से गिरने का मतलब शर्तिया मौत ही था. मौत क्या एक बेहद दर्दनाक मौत.

शशांक का सारा शरीर पसीने से भीग गया. उसके दिमाग़ ने तो जैसे काम करना ही बन्द कर दिया. मौत उसे बिल्कुल सामने नाचती हुई नज़र आ रही थी. घबराहट के मारे उसकी ज़ुबान ही तालू से चिपक गई थी. उसे लग रहा था मानो उसका सारा ख़ून ही सूख गया हो. वह मेगा 325 को यह मिन्नत करना चाहता था कि वह उसे बचाए और ऊपर खींच ले, मगर उसके मुँह से एक शब्द भी नहीं निकल पा रहा था.

मेगा 325 ने शशांक को उसकी बाँहों से पकड़कर ऊपर खींच लेने की कोशिश की, पर वह खींच नहीं पाया. बड़े दादा जी तो घर पर थे नहीं. आसपास के फ्लैटों के लोग भी अपने-अपने घर में थे. कोई आता-जाता भी दिख नहीं रहा था. इस स्थिति में मेगा 325 के लिए भी यह संभव नहीं था कि वह किसी और को मदद के लिए बुला ले.

फिर भी मेगा 325 दो-तीन बार ज़ोर-ज़ोर से 'बचाओ बचाओ' चिल्लाया, मगर उसकी आवाज़ शशांक के अलावा शायद और कोई नहीं सुन पाया.

आखिरकार मेगा 325 ने पूरा ज़ोर लगाकर शशांक को ऊपर की तरफ़ खींचा. इतनी ज़ोर से खींचने पर वह ऊपर तो आ गया, पर उसका सिर बड़ी ज़ोर से फ़र्श से जा टकराया.

फर्श से सिर टकराते ही शशांक को कुछ होश नहीं रहा. शशांक के सिर से बहुत तेज़ी से ख़ून निकलने लगा.

******

शशांक को होश आया तो उसने अपने आपको हस्पताल में बिस्तर पर लेटा हुआ पाया.

उसने देखा कि उसके बिस्तर के आसपास बड़े दादा जी और मेगा 325 खड़े थे. शशांक को होश आ जाने की बात डॉक्टर साहब को सी.सी.टी.वी. कैमरे से अपने कमरे में बैठे-बैठे ही पता चल गई.

कुछ ही देर में डॉक्टर साहब नर्स के साथ वहाँ आ गए.

डॉक्टर साहब ने शशांक का मुआयना किया और फिर वे बड़े दादा जी से बोले, ''अब शशांक ठीक है. नया सिर ठीक तरह से जुड़ गया है. इसके पुराने दिमाग़ की सारी मेमोरी (याद्दाश्त) भी हमने डाउनलोड करके नए दिमाग़ में डाल दी है. किसी को क्या, ख़ुद इसे भी पता नहीं चलेगा कि इसका सिर बदल दिया गया है.''

''बहुत-बहुत शुक्रिया डॉक्टर साहब, आपने शशांक को नया जीवन दिया है.'' बड़े दादा जी ने कृतज्ञतापूर्ण नज़रों से डॉक्टर साहब को देखते हुए कहा.

''अरे नहीं साहब, यह तो सब विज्ञान का चमत्कार है. आजकल तो शरीर के किसी भी अंग को बदलकर उसकी जगह नया अंग लगाना इतना आसान हो गया है जैसे किसी ज़माने में कारों के टायर बदले जाते थे.'' डॉक्टर साहब मुस्कुराते हुए बोले.

तभी जैसे डॉक्टर साहब को कुछ याद आ गया और वे कहने लगे, ''सच पूछिए, तो शशांक को नया जीवन मिलने में मुझसे ज़्यादा आपके इस रोबोट का हाथ है. अगर यह समय पर हमें सूचना नहीं देता, तो शशांक का बचना बिल्कुल सम्भव नहीं था. सिर पर गहरी चोट लगने से इसके दिमाग़ ने काम करना बन्द कर दिया था. सिर इस बुरी तरह फट गया था कि अगर पाँच-दस मिनट की भी देर हो जाती, तो इसका इतना सारा ख़ून बह गया होता कि जीवित रहना मुमकिन न रहता.''

''ओह, यह सब तो मुझे पता ही नहीं था. मुझे तो मेगा 325, मतलब इस रोबोट ने तब फोन किया जब शशांक को ऑपरेशन थिएटर में सिर बदलने के लिए ले जाया चुका था.'' बड़े दादा जी ने कहा.

''बड़ा बुद्धिमान है आपका यह मेगा 325! ऐसी विपदा में और इतना कम समय होने के बावजूद इसने पूरी अक्लमन्दी दिखाई. इसी ने झटपट कम्प्यूटर से इस हॉस्पीटल का नम्बर लेकर हमें फोन किया और फौरन एयर एम्बुलेन्स भेजने के लिए कहा. शशांक की तो साँस भी चलनी बन्द हो गई थी. इसी मेगा 325 ने उसका सीना और पेट दबा-दबाकर ऑक्सीजन सिलिंडर की मदद से उसे कृत्रिम साँस तब तक दी, जब तक एयर एम्बुलेन्स आपके यहाँ पहुँच नहीं गई. सचमुच अगर शशांक को किसी ने नई ज़िन्दगी दी है, तो वह मेगा 325 ही है.''

''शाबाश, मेगा 325! शाबाश क्या बहुत-बहुत शुक्रिया!'' बड़े दादा जी ने मेगा 325 का कंधा थपथपाते हुए कहा.

तभी शशांक कहने लगा, ''एक और बात है जो आपको पता नहीं है.''

''क्या बेटा?'' पूछा तो बड़े दादा जी ने मगर डॉक्टर साहब और नर्स की आँखें भी प्रश्नवाचक मुद्रा में शशांक पर टिक गईं.

शशांक ने उड़नतश्तरी का वीडियो बनाए जाने के प्रयास में उसके रेलिंग से नीचे फिसल जाने की बात कह सुनाई. फिर वह बोला, ''वाकई मेगा 325 ने मुझे नया जीवन दिया है. मैं तो इससे हमेशा नाराज़ रहा करता था कि यह हरदम मेरा इतना ध्यान क्यों रखता है जैसे मेरी जासूसी कर रहा हो. इसी कारण मैंने हमेशा इसे परेशान करने और हानि पहुँचाने का काम किया. अगर उड़नतश्तरी का वीडियो बनाने के लिए मेरे घर से बाहर आने पर यह भी साथ ही बाहर गया होता तो न जाने क्या होता. थैंक यू वेरी मच, मेगा 325!'' कहते हुए शशांक ने अपना हाथ मेगा 325 की ओर बढ़ा दिया - हाथ मिलाने के लिए. मेगा 325 ने भी अपना हाथ आगे बढ़ाकर उससे हाथ मिलाया.

हाथ मिलाते समय शशांक के मन में यह बात कौंधी कि उसने मेगा 325 से पहली बार हाथ मिलाया है. अब तक तो मेगा 325 से हाथ मिलाने का मौका कभी आया ही नहीं था क्योंकि उससे शशांक का रिश्ता खटपटवाला जो था, मगर अब मेगा 325 उसका दुश्मन नहीं दोस्त था. सबसे पक्का दोस्त!

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: हरीश कुमार 'अमित',

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