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एबॉन्डेण्ड - 3

एबॉन्डेण्ड

- प्रदीप श्रीवास्तव

भाग 3

‘अजीब पगली लड़की है। घर में सामान रखना शुरू करोगी। उसे लेकर निकलोगी तो जिसे शक ना होना होगा वह भी जान जाएगा और तुरन्त पकड़ ली जाओगी।’

‘अरे कुछ कपड़े तो लूंगी। बाहर निकलूंगी तो क्या पहनूंगी, क्या करूंगी?’

‘तुम उसकी चिंता ना करो। हम कई साल ज़्यादा से ज़्यादा पैसा इकट्ठा करते आएं हैं। हमने काम भर का कर भी लिया है जिससे कि यहां से कोई सामान लेकर ना चलना पड़े। जो कपड़ा पहनें बस वही और कुछ नहीं। ताकि सामान के चक्कर में धरे ना जाएं। जब जरूरत होगी तब खरीद लेंगे।

सामान के नाम पर तुम केवल अपना आधार कार्ड, पढ़ाई के सर्टिफ़िकेट वगैरह ले आना। पॉलिथीन में रखकर सलवार में खोंस लेना, समझी। अब घर जाओ और कल इसी टाइम यहीं आ जाना। ऐसा ना करना कि मैं इंतजार करता रह जाऊं और तुम घर पर ही बैठी रहो।’

‘यह क्या कह रहे हो, मैं हर हाल में आऊंगी। ना आ पाई तो दुपट्टे से ही फांसी लगा लूंगी या फिर बाहर कुएं में कूदकर मर जाऊंगी। बहुत सालों से सूखा पड़ा है, ऊपर से पानी बरसता नहीं, नीचे पानी बचा नहीं है। मेरे खून से उसकी बरसों की प्यास बुझ जाएगी।’

‘हद कर दी है। अरे, तुम्हें मरने के लिए नहीं बोल रहा हूं। तुम मरोगी तो मैं भी मर जाऊंगा। कितनी बार बोल चुका हूं। समझती क्यों नहीं। इसलिए तुम यहां आओगी, हर हाल में आओगी और हमारे साथ चलोगी। कुछ बहाना करना क्या सोचना भी नहीं। थोड़ी बहुत देर हो जाए तो कोई बात नहीं। चलेगा। जितने काम कहे हैं वह सब आज ही कर लेना। कुछ भूलना नहीं।’

‘ठीक है, नहीं भूलूंगी। तुम भी भूलना नहीं। यह अच्छी तरह समझ लो, हमारा दिल बहुत धड़क रहा है। पता नहीं क्या होगा।’

युवती अचानक ही बड़ी गम्भीर हो गई है। चेहरे पर चिंता, भय की लकीरें उभर आईं हैं। उसका भ्रम दूर करते हुए युवक कह रहा है, ‘कुछ नहीं होगा। हमने सालों से तैयारी की है। तुम्हें हर हाल में लेकर चलेंगे। अपनी दुनिया बसाएंगे। अपनी तरह से रहेंगे। बहुत हो गयी सबकी। अब हम अपने मन की करेंगे। अच्छा, अब तुम जाओ, नहीं तो देर हो जाएगी। तुम्हारे घर वाले पचास ठो बात पूछेंगे, दुनिया भर की गालीगुत्ता करेंगे, मारेंगे।’

‘मारेंगे क्या, अम्मी अब भी चप्पलों से मारने लगती हैं तो गिनती नहीं। बस मारे चली जाएंगी। ऐसे मारती हैं जैसे कि कपड़ा धो रही हों। कोई गलती हो या नहीं। उन्हें मारना है तो मारेंगी। कहने को कोई बहाना भी नहीं ढ़ूंढ़ती।’

‘अब तुम्हें कोई छू भी नहीं पाएगा। बस एक दिन की ही बात रह गई है। ठीक है, जाओ कल मिलेंगे।’

‘इतनी बेरूखी से ना भेजो। बड़ा दुख हो रहा है।’

‘अभी प्यार का समय नहीं है। समझो इस बात को। इसलिए जाओ। हमेशा प्यार पाने के लिए थोड़ा दुख भी हंसते हुए सहना चाहिए।’

युवक युवती का हाथ मज़बूती से पकड़े-पकड़े कह रहा है। मन युवती का भी रुकने का है। लेकिन जाना जरूरी है। इसलिए वह कह रही है, ‘एक तरफ कह रहे हो जाओ-जाओ और हाथ छोड़ते ही नहीं। कुछ समझ ही नहीं पा रही हूं, क्या करना चाह रहे हो, क्या कहना चाह रहे हो?’

‘साफ-साफ तो समझा रहा हूँ। पता नहीं तेरी समझ में पहली बार में कोई बात क्यों नहीं आती? यहां पर प्यार दिखाने लगे और किसी ने देख लिया तो सारा प्यार निकल जाएगा। प्यार करेंगे, तुम्हें पूरा प्यार करेंगे। इतना करेंगे कि तुम ज़िंदगी भर भूल नहीं पाओगी। लेकिन अभी जाओ जिससे हम दोनों को ज़िंदगी भर प्यार करने को मिले, समझी। इसलिए अभी बेरूखी जरूरी है, जाओ।’

दुविधा में पड़ा युवक युवती का हाथ अब भी पकड़े रहा तो इस बार युवती हाथ छुड़ाकर चल दी। युवक ने उसका हाथ छोड़, उसे जाने दिया। असल में दोनों एक-दूसरे को पकड़े हुए थे और कोई किसी को छोड़ना नहीं चाहता था। मगर परिस्थितियों के आगे वो मज़बूर हैं। दोनों का प्यार इतना प्रगाढ़ हो गया है कि इनकी जीवन डोर दो से मिलकर एक हो गई है। चोटी की तरह मज़बूती से गुंथ गई है। इनके निश्छल प्यार, निश्छल बातों को हमें यूं ही हवा में नहीं उड़ा देना चाहिए।

यह दोनों किशोरावस्था को कुछ ही समय पहले पीछे छोड़ आए हैं। इनके बीच जब इस रिश्ते का बीज पड़ा तब यह किशोर थे। ये ना एक साथ पढ़ते हैं, ना ही पड़ोसी हैं। कभी-कभी आते-जाते बाज़ार में नज़र मिल जाती थी। पहले आंखों से बातें हुईं फिर जुबां से। जब बातें शुरू हुईं तो यह रिश्ता अंकुरित होकर आगे बढ़ने लगा, वह भी बड़ी तेज़ी से। अब देखिए यह कहां तक जाता है। कल दोनों फिर यहीं आएंगे। वचन तो यही दिया है। मैं यह वचन आपको दे रहा हूं कि तब मैं फिर आपको आँखों देखा दृश्य बताऊंगा। आगे जो होने वाला है वह बेहद दिलचस्प है। मैं गोधुलि बेला में आ जाऊंगा और आगे का हाल बताऊंगा।

मित्रों, पूरे चौबीस घंटे बीत चुके हैं। सूर्यास्त होने वाला है। केसरिया रंग का एक बड़े थाल बराबर गोला क्षितिज रेखा को छू चुका है यानी गोधुलि बेला है और मैं आपको दिये वचन को निभाने के क्रम में नाले किनारे आ गया हूं, आंखों देखा हाल बताने। युवक भी आ चुका है। उसकी बेचैनी देखिए कि दो घंटे पहले से ही आकर बैठा हुआ है, नाले में ही। कभी लेटता है, कभी बैठता है। इंतजार कर रहा है। इतना बेचैन है कि उसी में उलट-पुलट जा रहा है। पसीने से तर है, चेहरा लाल हो रहा है। कभी घास उखाड़-उखाड़ कर फेंक रहा है, कभी कोई तिनका मुंह में रख कर दूर उछाल रहा है।

लेकिन पहाड़ सा उसका इंतजार, बेचैनी खत्म ही होने वाली है। वह युवती दूर से जल्दी-जल्दी आती मुझे दिखाई दे रही है। इधर युवक फिर लेट गया है पेट के बल और युवती मुंडेर पर पहुँच कर बड़ी सतर्क नज़रों से हर तरफ देख रही है। उसे कोई खतरा नहीं दिखा तो वह बिल्ली की तरह फूर्ति से नाले में उतरकर युवक से लिपट गई है। एकदम दुबकी हुई है। उसको देखते ही युवक भनभना रहा है। अब आप सुनिए उनकी बातें, जानिए आज क्या करने वाले हैं ये दोनों।

‘कितनी देर कर दी, मालूम है तुम्हें। दो घंटे से यहां इंतजार कर रहा हूं।’

‘लेकिन मैं तो आधा घंटा ही देर से आई हूं। तुम दो घंटे पहले ही आ गये तो मेरी क्या गलती।’

‘अरे आधे घंटे की देरी कोई देरी ही नहीं है क्या?’

‘जानती हूं, लेकिन क्या करें। आज तो निकलना ही मुश्किल हो गया था। छोटे भाई ने कुछ उठा-पटक कर दी थी। अम्मी पहले से ही ना जाने किस बात पर गुस्सा थीं। बस उन्होंने पूरे घर को बवाले-ए-घर बना दिया। आज जितनी मुश्किल हुई निकलने में, उतनी पहले कभी नहीं हुई थी। दुनिया भर का बहाना बनाया, ड्रामा किया कि यह करना है, वह करना है, सामान लाना है। तब जाकर बोलीं, ‘जाओ और जल्दी आना।‘

मगर साथ ही भाई को भी लगा दिया। तो मैंने कहा, दर्जी के यहां भी जाना है। उसके यहां से काम ले कर आना है। ये रास्ते भर शैतानी करता है। इसे नहीं ले जाऊंगी। यह बात मानी तो एक काम और जोड़ दिया कि तरकारी भी लेती आना। घंटों क्या-क्या तरकीबें अपनाई, बता नहीं सकती। उनकी जिद देखकर तो मुझे लगा कि शायद अम्मी को शक हो गया है और मुझे अब सूखे कुंए में जान देनी ही पड़ेगी।’

युवती ने बहुत ही धीमी आवाज़़ में अपनी बात कहकर युवक का हाथ पकड़ कर चूम लिया है। उसकी हालत देखकर युवक कह रहा है, ‘वह तो ठीक है लेकिन ये कपड़ा कैसा पहन लिया है? एकदम खराब। रोज तो इससे अच्छा पहनती थी।’

‘क्या करूं, ज़्यादा अच्छा वाला पहनने का मौका ही नहीं मिल पाया। उनका गुस्सा देखकर तो मुझे लग रहा था कि आज घर से बाहर क़दम निकाल ही नहीं पाऊंगी। मैं यही कोशिश करती रही कि किसी तरह निकलूं यहां से। अच्छा कपड़ा भी रात में ही अलग कर लिया था। लेकिन मौका नहीं मिला तो सोचा जो मिल गया, वही सही। जल्दी में यही हो पाया। हम इतना डरे हुए थे कि दिल अभी तक घबरा रहा है। मैं बार-बार पानी पी रही थी। लेकिन फिर भी पसीना आ रहा था।’

‘चलो अच्छा, कोई बात नहीं, जैसा होगा देखा जाएगा। सारे पेपर्स रख लिए हैं ना?’

‘हां, जो-जो कहा था वह सब पॉलिथीन में रख के सलवार में खोंस लिया है। अब बताओ क्या करना है?’

युवती कुर्ते को थोड़ा सा ऊपर उठाकर दिखाते हुए कह रही है। युवक पेपर्स को देखकर निश्चिंत होकर कह रहा है, ‘बहुत अच्छा। ये पेपर्स हमारे सिक्युरिटी गॉर्ड हैं। अब यहां से जल्दी से जल्दी चल देना है। दस-पंद्रह मिनट भी देर होने पर तुम्हें घर वाले ढ़ूंढ़ना शुरू कर देंगे। इसलिए तुरन्त चलो।’ इसी के साथ युवक सिर नाले से ऊपर कर चारों तरफ एक नज़र डाल रहा है। उसे रास्ता साफ दिखा तो वह नाले से बाहर निकलते हुए कह रहा है, ‘आओ जल्दी। जल्दी-जल्दी क़दम बढ़ाओ और बात बिल्कुल ना कर। हमें थोड़ा आगे-आगे चलने दे।’

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