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एबॉन्डेण्ड - 7

एबॉन्डेण्ड

- प्रदीप श्रीवास्तव

भाग 7

युवक ने बड़ी फुर्ती से एक पैकेट उसे थमा दिया। मगर युवती कहां मानने वाली है। कह रही है, ‘नहीं, मैं अकेले नहीं खाऊंगी, तुम भी लो।’ अब दोनों ही कुछ खा रहे हैं। युवती खाते-खाते ही लेट गई है। सिर युवक की जांघों पर रख दिया है। दोनों फुसफुसाते हुए कुछ बातें भी कर रहे हैं। जो सुनाई नहीं दे रही हैं। बीच-बीच में एक-दूसरे को प्यार करते-करते दोनों जल्दी ही उसी में खो गये हैं। दोनों के प्यार की नज़र इतनी तेज़ है कि उन्हें लाइट की जरूरत ही नहीं पड़ी। बड़ी शांति से घंटा भर निकल गया। चटाई, सामान वगैरह फिर से व्यवस्थित करने के बाद युवती कह रही है, ‘मैं जानती हूं कि तुम गुस्सा होने लगे हो। लेकिन जरा एक बार फिर से टाइम देख लो।’

‘अभी तो ग्यारह ही बजे हैं।’

‘अच्छा मान लो कि ट्रेन दो घंटे लेट हो गई तो।’

‘तो सवेरा हो जाएगा। लोग हमें आसानी से देख लेंगे। तब इसी जगह छिपे रहने के सिवाय और कोई रास्ता नहीं बचेगा ।’

‘लेकिन क्या दिन में कोई ट्रेन नहीं है?’

‘हैं तो कई, लेकिन दिन में खतरा कितना रहेगा, यह भी तो सोचो। कोई ना कोई तुम्हारे, हमारे परिवार का ढूंढ़ता हुआ यहां मिल सकता है। तब तक हो सकता है पुलिस में रिपोर्ट लिखा चुके हों। ऐसे में पुलिस भी सूंघती फिर रही होगी।’

‘मतलब कि चाहे जैसे भी हो हम लोगों को साढ़े तीन बजे वाली ट्रेन से ही चलना है और ऊपर वाले से दुआ यह करनी है कि ट्रेन टाइम से आ जाए। आधे घंटे भी लेट ना हो कि सवेरा होने लगे।’

‘मुझे पूरा विश्वास है कि ट्रेन टाइम से आएगी। भगवान से यही प्रार्थना करता हूं कि हे भगवान, जैसे भी हो आज ट्रेन को टाइम से ही भेजना। माना कि हम लोग अपने मां-बाप से छिपकर भाग रहे हैं, गलत कर रहे हैं। वह भी आपकी तरह भगवान ही हैं, आप ही का रूप हैं। लेकिन एक तरफ यह भी तो है कि हम एक-दूसरे को जी जान से चाहते हैं। अगर नहीं भागेंगे तो मार दिए जाएंगे। इससे हमारे मां-बाप पर भी हमारी हत्या का ही पाप चढ़ेगा। वह जीवन भर दुखी अलग रहेंगे। बाद में आप भी उनको इसके लिए सजा देंगे।

हम नहीं चाहते कि हमारे मां-बाप को आप एक मिनट की भी कोई सजा दें। हम यहां से बच के निकल जाएंगे तो कुछ दिन बाद उनका गुस्सा धीरे-धीरे कम हो जाएगा। फिर जब कभी हम वापस लौटेंगे तो वह हमें फिर से अपना लेंगे। इस तरह ना उनसे कोई पाप होगा, ना आप उनसे नाराज होंगे और हम अपना-अपना प्यार पाकर पति-पत्नी बन जाएंगे।’

‘तुम सही कह रहे हो। जैसे भी हो ट्रेन टाइम से आए ही और जब तक हम यहां से दूर बहुत दूर ना निकल जाएं तब तक किसी को कानों-कान खबर तक ना हो।’

‘भरोसा रखो भगवान पर। वह हम लोगों का अच्छा ही करेंगे। हमारी इच्छा पूरी करेंगे और हमारे मां-बाप को भी सारे कष्टों से दूर रखेंगे। जानता हूं कि इससे वह लोग बहुत दुखी होंगे। बहुत परेशान होंगे, लेकिन क्या करें और कोई रास्ता भी तो नहीं बचा है। दुनिया वालों ने ऐसे नियम-क़ानून परम्पराएं सब बना रखे हैं कि किसी को चैन से जीने ही नहीं देते। अपनी मनमर्जी से कुछ करने ही नहीं देते। जहां देखो कोई परम्परा खड़ी है। जहां देखो कोई नियम खड़ा है। कोई कुछ कर ही नहीं सकता। बस इन्हीं लोगों के हिसाब से करो। ज़िंदगी हमारी है और मालिक ये दुनिया बनी बैठी है।’

‘सख्त नियम-क़ानून, परम्पराओं तथा रीति-रिवाजों से हमें दुख के अलावा मिलता ही क्या है?’

‘हां, लेकिन यह जरूरी भी तो है। अगर नियम क़ानून परम्पराएं ना हों तो सारे लोग एक-दूसरे को पता नहीं क्या कर डालेंगे।’

‘कुछ नहीं कर डालेंगे। सब सही रहेगा। ऐसा नहीं है कि तब कोई किसी को कुछ समझेगा ही नहीं, जो जैसा चाहेगा वैसा ही करेगा। सब एक-दूसरे को मारेंगे, काटेंगे जब जो चाहेंगे वह करेंगे एकदम अंधेर राज हो जाएगा। बिल्कुल जंगल के जानवरों से भी बदतर हालत हो जाएगी।’

युवती बड़े आवेश में आ गई है। युवक शांत करते हुए कह रहा है, ‘क्या बताऊं, मानता तो मैं भी यहीं हूं। लेकिन नियम-कानून समाज ने इसीलिए बनाए हैं कि हम में और जानवरों में फ़र्क़ बना रहे। मगर यह इतना सख्त भी नहीं होना चाहिए कि दो लोग अपने मन की, जीवन की बातें ना कर सकें। अपने मन से जीवन जी ना सकें। अपने मन का कुछ कर ना सकें।’ इसी समय युवती अचानक ही दोनों हाथों से युवक का मुंह टटोलने लगी है तो वह चौंकते हुए पूछ रहा है, ‘अरे! यह तुम क्या कर रही हो?’

‘तुम्हारा मुंह ढूंढ़ रही हूं। किधर है?’

‘क्यों?‘

‘चुप रहो। मुझे लग रहा है कि आसपास फिर कुछ आहट हो रही है।’

‘अच्छा, मुंह पर से हाथ तो हटाओ। मुझे सुनाई दे रहा है। यह कोई कुत्ता जैसा जानवर है। इतना फ़र्क़ तो तुम्हें पता होना चाहिए ना।’

‘अरे पहली बार ऐसी रात में इस तरह कहीं पर बैठी हूं, किसी की आहट पहचानने का कोई अनुभव थोड़ी ना है मेरे पास।’

‘होना चाहिए ना। तुम्हारे घर में तो बकरी, मुर्गी-मुर्गा, कुत्ता सब पले हुए हैं। तुम्हारी मुर्गियां तो इतनी बड़ी और जबरदस्त हैं कि कुत्तों को भी दौड़ा लेती हैं।’

‘दौड़ा तो तुम्हें भी लेती हैं।’

‘हां, तुमने मुर्गियों को खिला-खिलाकर इतना मोटा ताजा जो कर दिया है कि जब देखो तब लड़ने को तैयार रहती हैं और कुत्तों को तो खाना देती ही नहीं हो। वह सब साले एकदम सूखे से ऐसे हैं जैसे कि मॉडलों की तरह डाइटिंग करके सूख गए हैं।’

‘ऐसा नहीं है। देशी कुत्ते इसी तरह रहते हैं, दुबले-पतले।’

‘कुत्तों के बारे में इतनी जानकारी है। देशी-विदेशी, कौन मोटा होगा, पतला होगा, कैसा होगा, सब मालूम है।’

‘कमाल करते हो। घर में पले हैं तो क्या इतना भी नहीं जानूंगी।’

‘सच बताऊं, तुम्हारी बात एकदम गलत है। पूरे गांव में बाकी देशी कुत्तों को नहीं देखा है क्या, जो मोटे और बड़े भी हैं।’

‘तुमने तो हद कर दी है। गांव भर के कुत्तों की मैं जांच-परख करती फिरती हूं क्या? मेरे पास जैसे कुछ काम ही नहीं है।’

अनजाने ही दोनों नोंक-झोंक पर उतर आए हैं। युवती उत्तेजना में कुछ तेज़ बोल रही है। इसलिए युवक कह रहा है, ‘ऐसा है तू अब चुपचाप लेट जा, क्योंकि तू चुप रह ही नहीं सकती। बोलती रहेगी और कहीं किसी ने सुन लिया तो मुश्किल हो जाएगी।’

इसी बात के साथ दोनों ने ट्रैक चेंज कर दिया है। आवाज़ भी कम कर दी है। युवती एकदम फुसफुसाते हुए कह रही है।

‘ऐसे बात करते रहेंगे तो टाइम कट जाएगा नहीं तो बहुत परेशान हो जाएंगे। अभी बहुत टाइम बाकी है।’

‘परेशान होने के चक्कर में कहीं पकड़ लिए गए तो जान चली जाएगी।‘

‘तुम बार-बार जान जाने की बात करके डरा क्यों रहे हो?’

‘डरा नहीं रहा हूँ। तुम्हें सच बता रहा हूं। समझने की कोशिश करो, जहां तक हो सके शांत रहो। हो सकता है कि कोई नीचे से निकल रहा हो और हमारी बात सुन ले। बार-बार कह रहा हूं कि रात में आवाज़ बहुत दूर तक जाती है।’

‘क्यों? रात में ज़्यादा तेज़ चलती है क्या?’

‘तू अब बिल्कुल चुप रह। एकदम नहीं बोलेगी, समझी।‘

यह कहते-कहते युवक ने युवती का मुंह काफी हद तक बंद कर दिया है। युवती छूटने की कोशिश करते हुए कह रही है, ‘अरे मुंह इतना कसके मत दबाओ, मेरी जान निकल जाएगी।‘

‘और बोलोगी तो सही में कसके दबा दूंगा। तब तक छोड़ूंगा नहीं जब तक कि तू चुपचाप पड़ी नहीं रहेगी।’

‘ज़्यादा देर मत दबाना, नहीं तो मर जाऊंगी फिर यहीं की यहीं पड़ी रहूंगी।’

‘तो कितनी देर दबाऊं, यह भी बता दो।’

‘बस इतनी देर कि तुम्हें अपने अंदर देर तक महसूस करती रहूं। मगर, मगर हाथ से नहीं दबाना।’

‘तो फिर किससे दबाऊं?’

‘मुंह है तो मुंह से ही दबाओ ना।’

युवती को शरारत सूझ रही है। युवक तो खैर परम शरारती दिख रहा है। कह रहा है, ‘अच्छा तो इधर करो मुंह। बहुत बोल रही हो। अब महसूस...।’

इसके आगे युवक बोल नहीं पाया। अंधेरे में वह युवती के चेहरे तक अपना चेहरा ले जा रहा है। लेकिन थोड़ा भटक गया तो युवती कह रही है, रुको-रुको, इधर तो आंख है।’

अब दोनों के चेहरे सही जगह पर हैं। युवक की आक्रामकता पर युवती कर रही है, ‘बस करो, बस करो अब। यह सब नहीं। बस करो।’

युवक कुछ ज़्यादा ही शरारती हो रहा है। कह रहा है, ‘क्यों बस, और ज़्यादा और गहराई तक महसूस नहीं करोगी क्या?’

‘नहीं, अभी इतना ही काफी है। बाकी जब दिल्ली पहुंचेंगे सही सलामत तो पूरा महसूस करूंगी। बहुत देर तक महसूस करूंगी। इतना देर तक कि वह एहसास हमेशा-हमेशा के लिए बना रहेगा। कभी खत्म ही नहीं होगा। पूरे जीवन भर के लिए बना रहेगा। बस तुमसे इतना ही कहूंगी कि इतना एहसास कराने के बाद कभी भूलने के बारे में सोचना भी मत। यह मत सोचना कि मुझे छोड़ दोगे, क्योंकि तुम जैसे ही छोड़ोगे मैं वैसे ही यह दुनिया भी छोड़ दूंगी। अब मेरी ज़िंदगी सिर्फ़ तुम्हारे साथ ही चलेगी। जब तक तुम साथ दोगे तभी तक चलेगी उसके बाद एक सेकेंड को भी नहीं चलेगी।’

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