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एबॉन्डेण्ड - 6

एबॉन्डेण्ड

- प्रदीप श्रीवास्तव

भाग 6

‘इतना डरने से काम नहीं चलेगा। इतना ही डरना था तो घर से निकलती ही ना। मैंने तुम्हें पहले ही कितनी बार बताया था कि हिम्मत से काम लेना पड़ेगा, तभी निकल पाएंगे। डरने से कुछ नहीं होगा, समझी। इस तरह डरोगी तो ऐन टाइम पर सब गड़बड़ कर दोगी। सबसे अच्छा है कि इस समय कुछ भी बोलो ही नहीं। रात गहराती जा रही है, ढूंढ़ने वाले पूरी ताकत से चारों तरफ लगे होंगे। सब इधर-उधर घूम रहे होंगे। इसलिए एकदम सांस रोक के लेटी रहो या बैठी रहो। जैसे भी रहो, आवाज़ बिल्कुल भी नहीं करो, जिससे मुझे कुछ बोलने के लिए मजबूर ना होना पड़े।’

‘लेकिन सुनो।’

‘हां बोलो।’

‘मतलब यह कि मुझे, मुझे जाना है.. मतलब कि...। तुमने वहां भी तो देख लिया था ना सब कुछ। सब ठीक है ना। दरवाजा बंद तो नहीं है।’

‘पता नहीं, इसका तो मुझे ध्यान ही नहीं रहा कि इतने घंटों तक रहेंगे तो बाथरूम भी जाना पड़ेगा। अच्छा तुम यहीं पर लेटी रहो, मैं देखकर आता हूं किधर ठीक-ठाक है। फिर ले चलता हूं।’

‘नहीं। मैं भी साथ चलूंगी। यहां मैं अकेले नहीं रुकूंगी।’

‘ठीक है आओ।’

युवक युवती का हाथ पकड़कर एकदम झुके-झुके बाथरूम के पास पहुँच गया है। लाइट के लिए बीच-बीच में मोबाइल को ऑन कर रहा है। बाथरूम में नज़र डाल कर कह रहा है, ‘देखो बाथरूम तो गंदा पड़ा है। दरवाजा भी एकदम खराब है। आधा खुला है, जाम है, बंद भी नहीं होगा।’

घबराई युवती और परेशान हो उठी है। वह बड़ी जल्दी में है। कह रही है, ‘बंद नहीं होगा, तो मैं जाऊंगी कैसे?’

‘देखो दरवाजा बहुत समय से जाम है। बंद करने के चक्कर में आवाज़ हो सकती है समझी। मैं नहीं चाहता कि इस तरह का कोई खतरा उठाऊं। मैं इधर ही खड़ा हूं तुम जाओ अंदर।’

लग रहा है कि युवती के पास समय नहीं है। वह कह रही है, ‘मोबाइल की टॉर्च तो जला दो।’

‘पगली हो क्या? बार-बार कह रहा हूं कि लाइट इस अंधेरे में बहुत दूर से ही लोग देख लेंगे। स्क्रीन लाइट ही बहुत है। समझ लो दीये की रोशनी में हो। ठीक है। जल्दी से जाओ।’

‘अच्छा तुम यहीं खड़े रहना, कहीं जाना नहीं।’

‘ठीक है, मैं यहीं बगल में खड़ा हूं।’

‘नहीं, और इधर आओ। मुझसे दूर नहीं जाओ।’ डर के मारे युवती ýआंसी हो रही है। लेकिन युवक हिम्मत बढ़ा रहा है।

‘तुम तो एकदम छोटी बच्ची जैसी हरकत कर रही हो।’

‘डांटो नहीं। नहीं तो मेरी ज़ान ही निकल जाएगी।‘

‘डांट नहीं रहा हूं। तुम्हें समझा रहा हूं, रिस्क लेना अच्छा नहीं है। अब जाओ जल्दी से।‘

हड़बड़ाती, लड़खड़ाती, सहमी सी युवती अब बाथरूम से होकर लौट रही है। उसकी आंखों में आंसू चमक रहे हैं। सुनिए अब क्या कह रही है, ‘चलो, अब उधर चलो। एक मिनट रुकने को कहा तो दुनिया भर की बातें सुना डाली। तुम्हें भी करना हो तो कर लो। नहीं तो बाद में मुझे अकेला छोड़कर आओगे। लेकिन मैं आने नहीं दूंगी।’

‘हां, लगी तो मुझे भी है।’

यह सुनकर पता नहीं क्यों युवती हंस पड़ी तो युवक खिसिया गया है। कह रहा है, ‘अरे इसमें हंसने की क्या बात है। पांच घंटे हो गए हैं, तुम्हें लग सकती है तो क्या मुझे नहीं?’

इस स्थिति में भी दोनों हास-परिहास कर ही ले रहे हैं। युवक बाथरूम के दरवाजे पर है, उसकी हरकत पर युवती कह रही है, ‘क्या कर रहे हो? धक्का दे दूंगी, समझे। दरवाजा खोलो, जाओ, अंदर जाओ।’

‘अरे, तुम तो ऐसे शर्मा रही हो कि क्या बताऊं।’

‘हां तो, अभी हम पति-पत्नी तो हैं नहीं।’

इस बात का युवक लौटते वक्त जवाब दे रहा है। ‘अच्छा, तुम क्या कह रही थी अभी, हम पति-पत्नी नहीं हैं, तो क्या हैं, यह बताओगी।’

‘सही तो कह रही हूं। अभी हमारी शादी कहां हुई है। हम पति-पत्नी तो हैं नहीं। अभी तो हम दोनों एक साथ निकले हुए हैं। एक-दूसरे से प्यार करते हैं। प्रेमी हैं। एक-दूसरे की जान हैं। नहीं, नहीं एक ही जान हैं बस।’

‘मेरी नज़र में यही सबसे बड़ा रिश्ता है कि हम एक हैं। कुछ रस्में निभाने से दो अनज़ान लोगों के अचानक एक साथ मिलने से कोई फायदा नहीं। हम दोनों एक-दूसरे को चाहते हैं बस। मैं इसके अलावा कोई रिश्ता जानता ही नहीं।’

‘सही कह रहे हो तुम। मैं तो गलती कर रही थी। आओ बैठो।’ ये क्या बैठते वक्त युवती का सिर युवक की नाक से टकरा गया। तो वह बोला, ‘संभलकर।’

‘क्या करूं, अंधेरे में दिखाई नहीं दे रहा। तुम्हें ज़्यादा तेज़ तो नहीं लगी।’

युवती परेशान हुई तो वह बोला, ‘नहीं, तुम्हारा सिर भी मुझे फूल जैसा ही लगता है।’

युवक प्यार से युवती का सिर सहलाते हुए कह रहा है। जबकि नाक में उसे अच्छी खासी तेज़ चोट लगी है। युवती कह रही है, ‘अच्छा, कभी होठों को फूल कहोगे, कभी सिर को। खैर तुम चाहे जो कहो, अच्छा लगता है।’ युवती ने युवक का हाथ चूम लिया तो वह बड़ा रोमांटिक हो कह रहा है।

‘ऐसे प्यार मत जताओ, नहीं तो मुझे भी प्यार करने का मन करने लगेगा।’

‘तो करो ना। ऐसे तो अकेले में जब भी मिलते हो तो प्यार करने का कोई रास्ता छोड़ते ही नहीं हो। यहां तीन घंटे से एक साथ हैं। कोई आसपास भी नहीं है। अंधेरा भी है। मगर मैं देख रही हूं कि तुमने अब तक प्यार का एक शब्द भी नहीं बोला है। बस ये ना करो। वो ना करो। इसके अलावा कुछ बोला हो तो बताओ।’

‘मैं हर काम सही टाइम पर, सही ढंग से ही करता हूं। मेरा पूरा ध्यान ट्रेन पर लगा हुआ है कि कैसे यहां से निकलें।’ युवक बात पूरी भी नहीं कर पाया कि फिर कुछ हुआ है। उसने युवती का मुंह दबाकर उसे चुप करा दिया है। कह रहा है, ‘कुछ बोलना नहीं। लगता है दूसरी तरफ से कोई इधर ही आ रहा है। तुम यहीं रहो मैं खिड़की से झांक कर देखता हूं।’

‘नहीं, यहीं ध्यान से सुनो।’

‘बाहर देखकर ही सही बात पता चलेगी। इसलिए ऐसा है तुम एकदम सीट के नीचे जाओ, बिल्कुल नीचे। एकदम चिपक जाओ दीवार से। सांस लेने की भी आवाज़ न आए।’ युवक युवती को सीट के एकदम नीचे धकेल कर बंद खिड़की की झिरी से बाहर कुछ देर देखने के बाद वापस आया गया है। युवती से कह रहा है, ‘आओ, बाहर निकलो। तीन-चार शराबी लग रहे थे। सब आगे चले गए।’

‘मुझे बड़ा डर लग रहा है। कहीं यहां ना आ जाएं।’

‘बिल्कुल नहीं आएंगे। यहां साफ करने आया था, तो बहुत पुरानी शराब की बोतलें देखकर समझ गया था कि बहुत समय से यहां कोई नहीं आया। पुलिस रेड के बाद तो बिल्कुल भी नहीं। यह सभी आगे कहीं और ठिकाना बनाए होंगे, वहीं चले गए।’

‘सुनो, एक बात पूछूं, गुस्सा तो नहीं होगे ना।‘

‘पूछो।‘

‘देखो, अब कितना टाइम हो रहा है?’

युवती के टाइम पूछते ही युवक ने बड़े प्यार से उसके गालों को खींच लिया है। युवती भी प्यार से बोल रही है, ‘अरे, टाइम देखने को कहा है। गाल नोचने को नहीं।‘

‘मन तो कर रहा है तुम्हें पूरा का पूरा नोंच डालूं। अभी तो केवल दस बजे हैं।’

‘अब और कितने घंटे बाकी रह गए हैं।’

‘करीब साढ़े पांच घंटे बाकी हैं।’

‘अच्छा, तुम्हें भूख नहीं लग रही क्या?’

‘नहीं, मुझे भूख नहीं लगी है। तुम्हें लगी है तो लो तुम खाओ।’

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