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झगड़ों में गाँव

झगड़ों में गाँव:
पहाड़ों में एक अद्भुत शान्ति होती है,अगर महसूस कर सको तो। समाज में कहीं आपसी मेलजोल है तो कहीं संघर्ष-विवाद की घटनाएं भी देखने को मिलती हैं।प्यार का अपना गणित भी होता है। किसी का हृदय शुद्ध होता है। कोई अपराधी प्रवृत्ति का होता है। कुछ लोग तात्कालिक आवेश में आकर गलत काम कर जाते हैं जैसे राजा परीक्षित ने ऋषि के गले में मरा साँप डाल दिया था। कभी हमारी भूमिका धृतराष्ट्र की तरह होती है तो कभी युधिष्ठिर की तरह। गाँवों में अधिकांश लोग बहुत संपन्न नहीं होते हैं,साधारण या फिर गरीब श्रेणी में अधिक होते हैं। वे खेतीबाड़ी और जंगलों पर निर्भर रहते हैं। झगड़े आमतौर पर जमीन-जायदाद या घास- फसल को घरेलू जानवरों के चरने आदि से सम्बन्धित होते हैं।
गाँवों में गूल से सिंचाई हुआ करती है। गूल के पानी के लिए प्रायः झगड़े हुआ करते हैं।बसंत अपने खेत की सिंचाई करना चाहता है,और योगेश अपने खेत
की।दोनों वितरण जगह पर पहुँच जाते हैं। बसंत कहता है," आज पानी मुझे चाहिए।" योगेश कहता है," भाई साहब, आज मेरी बारी है अत: पानी मैं ले जाऊँगा।" गूल का पानी अपनी-अपनी ओर करने के लिए कुदालें चल पड़ती हैं। थोड़ी देर बाद हाथापाई होने लगती है। योगेश ,बसंत की कमर पकड़ कर ठेलते हुए छोटी पहाड़ी के नीचे तक ले जाता है। इस दौरान बसंत बिहोश होकर गिर गया और योगेश पानी अपने खेत की ओर कर घर आ गया। बसंत होश में आने पर अपने घर चला गया। बाद में लोगों को बोला," योगेश को बहुत ताकत है।मुझे बुरी तरह हरा दिया उसने।" बात यहीं समाप्त हो गयी।
महिमा चाची गालियों की बरसात किये हुए है।उसके खेत को किसी की भैंस चर गयी है। और कोई उसके खेत के पास की घास काट के ले गया है।गाली सार्वजनिक है, सब सुनते हैं। गालियों का भंडार समाप्त होने का नाम नहीं ले रहा है।जब सूरज डूब जाता है तो चाची का स्वर मध्यम होने लगता है और धीरे-धीरे वातावरण में शान्ति छा जाती है।
नारंगी, ककड़ी आदि चुराने की घटनाएं भी गावों में जब-तब होती रहती हैं। गालियां उसके बार तीर की तरह दिशाहीन चलने लगती हैं। छोटी घटनाएं गाली पर समाप्त हो जाती हैं। कुछ गालियां सामान्य होती हैं- तुझे कीड़े पड़ जायं, तुझे पचे नहीं, तुझे अलहौंड़(विनाशकारी) हो जाय आदि। बड़ी घटनाओं में मन्दिर में "घात" डाली जाती है। देवता को न्याय करने को कहा जाता है। कभी-कभी एक-दूसरे के हाथ का लगा खाना-पानी भी छोड़ दिया जाता है। कुछ मामलों में पुछ्यारों(भविष्य वक्ताओं) की सहायता ली जाती है। पुछ्यारों के कारण परिवारों के बीच कभी-कभी मन मुटाव भी हो जाते हैं।यदि कर्म गति का बताया तो कुछ नहीं होता है। मन का मनोविज्ञान सर्वत्र दिखता है। जमीन-जायदाद के कुछ मामले न्यायालय में चले जाते हैं।
फिर शादी-विवाह,सांस्कृतिक, धार्मिक आयोजनों में सब एक भी हो जाते हैं।और छोटे-मोटे झगड़े समाप्त हो जाते हैं।समय के साथ स्नेह,क्रोध,राग-द्वेष,बल,स्वाभिमान आदि का आवागमन होता रहता है।
कभी-कभी दुर्भाग्यपूर्ण घटनाएं भी घटित होती हैं ये छन छन कर बहुत दूर तक चली जाती हैं। इन्हें अलग-अलग व्यक्ति अपने तरीके से बताते हैं।सच के साथ अपनी कथा शैली जोड़ दी जाती है,नमक-मिर्च लगाकर।
उमेश का एक घटना के बारे में कहना है," सुरेश के लड़के की शादी तय हुयी।उसके गाँव के प्रभावशाली लोगों ने तय किया कि इस बार बगल के गाँव से जब बारात निकलेगी तो दूल्हा डोली से नीचे नहीं उतरेगा। पुरानी परंपरा को नहीं माना जायेगा।उनके गाँव का मन्दिर हमसे बड़ा नहीं है। ठीक लग्न के दिन बरात निकली,सुरेश के गांव से दूसरे गांव को। बीच में मन्दिर वाला गांव पड़ता था, वहाँ बद्रीनाथ जी का मन्दिर है। परंपरा चली आ रही थी जब वहाँ से बरात जाती थी तो दूल्हे को डोली या घोड़े से उतर जाना होता था, कुछ दूर तक,यह देवता को सम्मान देने वाली बात ठहरी। वैसे कबीर ने कहा है "पत्थर पूजे हरि मिलें तो मैं पूजों पहाड़---।" कहा जाता है कि बारात में कुछ लोग मिर्च को पानी में घोल कर लाये थे।बरात का इरादा दूल्हे को मन्दिर के गाँव में नीचे उतारने की नहीं थी,जो पहले तय हो चुका था।गाँव की महिलाओं ने दूल्हे को डोली से नीचे उतारने को कहा।जब दूल्हा गाँव की महिलाओं के कहने पर नहीं उतरा गया तो गाँव की महिलाओं ने गाँव वालों को बुलाया। उन में एक फौजी भी था जो छुट्टी आया हुआ था।उसके विरोध करने पर उसे मार दिया गया। कोई धारदार हथियार उसके पेट में घोंप दिया गया था, जिससे उसकी मृत्यु हो गयी थी।कहते हैं, उस दिन उस गाँव से भी एक बारात अन्य गाँव गयी थी क्योंकि लग्न चल रहे थे। वह बारात जिसने छुट्टी आये फौजी को मार दिया था, उसी गाँव में किसी के घर रूक गयी थी। गाँव के लोगों ने घर के अन्दर पिरुल डाल कर आग लगा दी।कोई कहता है पाल पर आग लगायी और कोई कहता है पाख(छत) से लगायी गयी थी। जिसमें कुछ लोग जल कर मर गये, कुछ को भागते हुए मारा गया और कुछ भाग गये थे जिसमें दूल्हा भी था। कहा ये भी जाता है कि पिरुल लाने में महिलाएं अधिक थीं और पटवारी को भी दूसरे दिन वहाँ नहीं आने दिया गया। तत्कालीन गृहमंत्री मानीला तक आये थे और वहाँ से लौट गये थे।जहाँ दुर्भाग्यपूर्ण घटना हुयी वहाँ वे नहीं गये।" श्याम ने उमेश से पूछा," फौजी को मारने के बाद बारात उसी गाँव में किसी के यहाँ क्यों रूक गयी थी? हत्या के बाद तो लोग भाग जाते हैं या अपने को बचाने का प्रयत्न करते हैं? उसने कहा इसकी जानकारी उसके पास नहीं है। जब न्यायालय में केस गया तो छोटे न्यायालय से उच्च न्यायालय तक सबूत के अभाव में किसी को सजा नहीं हुयी। फिर केस उच्चतम न्यायालय गया।उच्चतम न्यायालय ने सोलह लोगों को उम्र कैद की सजा दी,लगभग सत्रह साल बाद। जिनको सजा हुयी उनमें से कुछ का कहना था उनके साथ अन्याय हुआ है,वे निर्दोष हैं। सोलह लोग आग लगाने में नहीं थे,कुछ रोकने वालों में भी थे।कुछ का कहना था,उन्होंने ठीक किया।फौजी की हत्या के फलस्वरूप हुआ था सब, उन्हें कोई अफसोस नहीं है। जिस गाँव की बरात थी,वहाँ से अधिकांश लोगों ने अपनी नौकरी के साथ दिल्ली, लखनऊ आदि शहरों में अपना घर बना लिये हैं।गरीब,साधारण लोग ही गाँव में रह गये हैं। कुछ आँसू लिए, कुछ तटस्थ। "
श्याम ने कहा ," यार,मैं तो सभी वर्गों के साथ रहा हूँ। सभी दोस्त रहे हैं। रक्त दान भी किया हूँ, सभी के लिए।ऐसी कटुता का कारण राजनैतिक या आपसी रंजिश तो नहीं थी? या फिर देवता में ऐसी आस्था कि जिसने व्यापक हिंसा को जन्म दिया।कुछ लोग देवी-देवताओं के लिए कुछ भी कर सकते हैं। परंपराएं उनकी आत्मा की खाद होती हैं। " उसने कहा पता नहीं। लेकिन क्रूर और दुर्भाग्यपूर्ण घटना घटी थी। ये भी पता नहीं कि जिसने फौजी को सबसे पहले मारा था जहाँ से हिंसा आरंभ हुयी थी वह आदमी भाग गया था या बारात के साथ रूका रहा!"
मनुष्यों की सोच को कभी-कभी उनकी संख्या या अहंकार भी बदल देता है। यदि मनुष्य अमर होता तो वह कटे सिर,हाथ,पैर वाला होता। मन्दिर वाले गाँव वालों का मानना है फौजी अब भी देवता के सम्मान में दूल्हे को डोली या घोड़े से उतार देता है, बद्रीनाथ मन्दिर के सम्मान में।ऐसी मान्यता भी हो गयी है कि जो वहाँ पर डोली या घोड़े से नहीं उतरता है उसके साथ कुछ न कुछ अनिष्ट होता है।मनुष्य चाहे तो वह रचनाकार भी हो सकता है और विध्वंसक भी।
श्याम बातों का संदर्भ बदलते हुए फिर बोला," कोरोना वायरस में बंद के समय जब सब्जियां लेने जाता हूँ तो ऐसा लगता है जैसे अपने खेतों से ही पैदा कर ला रहा हूँ। सुना है, उत्तराखंड में किसी किसान ने छ फुट लम्बा धनिये का पौधा उगाया है। व्हाट्सएप पर आजकल चर्चा में है।ये गिनीज बुक आँफ वर्ल्ड रिकार्ड में दर्ज हो चुका है।" उमेश ने हाँ में हाँ मिलायी।

***महेश रौतेला