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बकरी और बच्चे (भाग -०२)

बकरी और बच्चे (भाग -०२)
बकरी की सींग


जब शेर दोबारा फिर मुंह की खा कर लौट जाता है और रात में बच्चों की मां बकरी आती है तो, सभी बच्चे उसे दिन में शेर के दोबारा आने की सूचना देते हैं और यह भी बताते हैं कि किस प्रकार मेव की चालाकी से वे सब बच जाते हैं बकरी यह सुनकर सभी बच्चों को शाबाशी देती है और आगे से उन्हें और अधिक सतर्क रहने के लिए कहती है, बकरी सभी बच्चों को सुला देती है, लेकिन उसे रात भर नींद नहीं आती और वह बच्चों की सुरक्षा के लिए चिंतित हो जाती है। अब बकरी प्रतिदिन भोजन के लिए बाहर नहीं जाती थी, बल्कि कई दिनों का भोजन एक साथ एकत्रित कर लिया करती थी। इस प्रकार बकरी अपने घर से कई दिनों के बाद ही बाहर निकलती और वह भी कुछ ही समय के लिए इस कारण से शेर कई दिनों तक घात नहीं लगा सका, लेकिन एक दिन जब बकरी घर से बाहर गई तो शेर ने उसे देख लिया और वह इस अवसर का लाभ उठाते हुए बकरी के घर के बाहर पहुंच गया। शेर दरवाजा खटखटा कर बकरी की आवाज में कहने लगा कि-


"खोल किवड़ियां मेरे बच्चे, लायीं हूं मै गूलर कच्चे
उछलो कूदो इनको खाओ, पलंग बिछा कर फिर सो जाओ"
"अल्लो किमाड़ा खोल!, बल्लो किमाड़ा खोल!
चेव किमाड़ा खोल!, मेव किमाड़ा खोल!"


इस बार बच्चे धूर्त शेर की आवाज से चकमा खा गए और उनमें से कोई भी उसे पहचान ना सका, उन्होंने सोंचा कि दरवाजे पर उनकी मां है, और वह झूमते हुए दरवाजा खोलने के लिए दौड़ पड़े, पर जैसे ही उन्होंने दरवाजा खोला उन्हें धूर्त शेर ने धर दबोचा, शेर सब को मारकर खा गया और बकरी के इंतजार में बच्चों के बिस्तर पर चादर ओढ़ कर लेट गया। जब बकरी अपना खाना इकट्ठा करके अपने घर को आई तो उसने देखा कि घर के दरवाजे खुले हुए पड़े हैं, तो उसको कुछ संदेह हुआ उसने घर के अंदर चुपके से जाकर देखा कि बच्चों के बिस्तर पर कोई चादर ओढ़ कर लेटा हुआ है, वह बिना कुछ बोले ही दबे पांव घर से बाहर आकर लोहार के यहां पहुंची और लोहार से कहकर उसने अपनी दोनों सींगो में तेज नुकीले चाकू लगवा कर अपने घर की ओर चल दी। बकरी ने घर पहुंच कर वही गीत गाया किंतु कोई बाहर नहीं आया, तो बकरी ने घर जाकर शेर के ऊपर से चादर खींच ली, यह देख शेर बकरी को मारने के लिए दौड़ा पर जैसे ही शेर बकरी के ऊपर झपटा वैसे ही बकरी ने अपने दोनों नुकीले सींगो से उसके पेट को चीर डाला, शेर का पेट फटते ही बकरी के चारों बच्चे अल्लो, बल्लो, चेव, मेव शेर के पेट से बाहर आकर अपनी मां से चिपक गए, और शेर दर्द से कराहता हुआ जंगल की ओर भाग गया।
इस प्रकार बकरी और उसके बच्चे फिर से खुशी-खुशी रहने लगे।


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(यह मेरे नाना के द्वारा सुनाई गई लोककथा का दूसरा भाग है, कहानी का तीसरा और अंतिम भाग भी जल्दी लिखने का प्रयास करूंगा। तब तक आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी)