bakari aur bachhe - 3 books and stories free download online pdf in Hindi

बकरी और बच्चे - 3 मेव का चूना

बकरी और बच्चे (भाग -०३)
मेव का चूना


जब बकरी ने शेर का पेट अपने सींगो पर लगे तेज, नुकीले चाकू से चीर दिया, तो बहुत दिनों तक शेर के घाव भरे ही नहीं और घाव भर जाने के बाद वह बहुत कमजोर हो गया था, लेकिन जब शेर कई वर्षों के बाद ठीक हुआ तब भी वह बकरी के सींगो पर लगे चाकू को याद करके उसके घर की तरफ नहीं जाता था। वह जानता था कि अपने बच्चों की रक्षा करती मां से अधिक हिंसक और कोई नहीं हो सकता उस समय उसका मुकाबला कोई नहीं कर सकता है, क्योंकि शेर के पास अपनी भूख मिटाने के कई विकल्प थे लेकिन अगर वो उन बच्चो और उनकी मां का शिकार करता तो बकरी को अपनी और अपने बच्चो की प्राण रक्षा के लिए शेर को मारने के अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं था। सच है, विकल्प हमें कमजोर करते हैं। लेकिन कई वर्षों के बाद बकरी मर जाती है और अल्लो, बल्लो, चेव और मेव बड़े हो जाते है, मां के मर जाने पर सभी भाईयों अल्लो, बल्लो, चेव और मेव का आपस में मनमुटाव हो गया और वो अलग अलग रहने लगते है, अल्लो एक फूस की टटिया में रहने लगता है, बल्लो कच्चे मिट्टी के घर में जबकि चेव अपने लिए एक पक्का घर बनवाता है और मेव अपनी मां के एक गहरे मित्र अपने बंदर मामा के पास रहने लगता है।
जब शेर को यह पता चलता है के बकरी मर गई है और उसके बच्चे अब साथ में नहीं रहते हैं तो उसने सभी बच्चों को मारकर बदला लेने की योजना बनाई और वो उन्हें मारने के लिए दोबारा आ धमकता है, सबसे पहले शेर अल्लो के घर जाता है और उसकी फूस कि टटिया को गिरा कर उसे खा जाता है, फिर दूसरे दिन बल्लो के कच्चे घर की दीवार को तोड़कर उसे भी खा लेता है, जब यह बात चेव और मेव तक पहुंची तो वो बहुत डरने लगे, चेव ने सोचा कि उसके पक्के घर में शेर नहीं घुस सकता और उसने घर से निकलना बहुत कम कर दिया था, उधर मेव भी बन्दर मामा के पास ही बना रहने लगा, शेर भी हमेशा उन दोनों कि ताक में रहने लगा लेकिन बहुत दिनों से उसे मौका नहीं मिल पा रहा था, एक दिन चेव के घर की खिड़की खुली रह जाती है, यह देखते ही चेव के घर की खिड़की से शेर घुस जाता है और उसे खा जाता है, जैसे ही ये बात मेव को पता चलती है तो वो बहुत डर जाता है और उदास हो जाता है, बंदर उसका ढाढस बांधता है, बन्दर मेव से कहता है कि सब ठीक हो जाएगा, दूसरे दिन शेर मेव को ढूंढता हुआ आता है, और पेड़ के ऊपर चढे बंदर से उसके बारे में पूछता है, बन्दर शेर से मित्रता कर लेता है, बंदर शेर से कहता है कि वह मेव को पकड़ने में उसकी सहायता करेगा। बन्दर शेर को अगले दिन आने को कहता है, शेर बन्दर से खुश हो जाता है, शेर मेव के मिल जाने के बाद बन्दर को बड़ा पुरस्कार देने को कह कर चला जाता है, अगले दिन शेर योजना के अनुसार मेव को मारने के लिए बन्दर के पास जाता है। पेड़ के ऊपर से बन्दर शेर को देखते ही खुश हो कर कहता है कि "आइए महाराज आपका शिकार मैंने अपने पेड़ के नीचे रस्सी से बांध रखा है, ये कह कर बन्दर पेड़ के नीचे बंधे मेव कि ओर इशारा करता है। शेर जल्दी से मेव पर टूट पड़ता है और उसे खा जाता है, शेर को खाने के बाद पता चलता है कि उसने नकली कपड़े के बने मेव को कहा लिया है, बन्दर ने चालाकी से उस कपड़े के मेव के अंदर चूना भर दिया था, जिसके कारण शेर जैसे ही उसे खाता है उसके पेट में चूना उबलने लगता है और शेर के चीथड़े-चीथड़े उड़ जाते है, शेर के पेट से मेव के सभी भाई अल्लो, बल्लो और चेव निकल आते है, सभी भाई एक दूसरे से गले मिलते है और बन्दर मामा को धन्यवाद कहते है, इसके बाद अल्लो, बल्लो, चेव और मेव फिर से एकसाथ खुशी-खुशी रहने लगते है।।

(यह मेरे नाना के द्वारा सुनाई गई इस लोककथा का अंतिम भाग था। इसमें शायद कुछ असम्भव बातें भी कहीं गई हैं, लेकिन प्रथमतया तो यह की यह कहानी बच्चो के लिए है, जिनके लिए कुछ भी असम्भव नहीं और दूसरा ये की इसे पढ़ कर बड़े भी अपने बचपन में फिर एक बार लौटेंगे, हां बचपना बुरा नहीं है कृपया बचपना बनाए रखिए और अपने आस पास के बचपन को जिंदा)