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शरारती मिनमिन

शरारती मिनमिन

मिनमिन बहुत प्यारी थी. वह चेरी की पालतू बिल्ली थी. चेरी को अपनी मिनमिन से बहुत प्यार था. स्कूल से आकर वह पूरा समय अपनी मिनमिन के साथ ही खेलती. मिनमिन भी चेरी से बहुत प्यार करती. वह उसके साथ खेलती, उसके पास ही सोती, जब चेरी पढाई करती तो मिनमिन उसके टेबल पर उसके साथ बैठी रहती. माँ भी मिनमिन से खूब लाड़ करती. जब चेरी स्कूल में होती तब तक मिनमिन माँ के आसपास घूमती लडियाती.

बस परेशानी थी तो एक ही कि मिनमिन बहुत ही नटखट थी. वह रोज ही एक न एक शरारत करती और सबको मुसीबत में डाल देती.

आज चेरी स्कूल से आई तो खाना खाकर मिनमिन के साथ आँगन में खेलने लगी. दोनों अभी खेल ही रही थी कि मिनमिन का ध्यान आँगन में लगे अमरुद के पेड़ पर बैठी चिड़िया पर चला गया. चिड़िया एक डाल से दूसरी डाल पर फुदककर चहचहा रही थी. बस फिर क्या था मिनमिन चेरी के साथ खेलना छोडकर चिड़िया के पीछे लपककर अमरुद के पेड़ पर चढ़ गयी. चेरी उसे मना करती रह गयी.

“मिनमिन चिड़िया को प्रेषण मत करो, पेड़ पर मत चढो...”

लेकिन मिनमिन भला कहाँ सुनने वाली थी, वो तो चिड़िया के पीछे एक-एक कर डालियाँ चढती जा रही थी. चिड़िया ने भी मिनमिन को देख लिया. मिनमिन जिस डाल पर चढ़ती, चिड़िया फुदककर उससे उपर वाली डाल पर बैठ जाती. जब मिनमिन सबसे उपर वाली डाल तक पहुँची तो चिड़िया फुर्र से उड़ गयी. मिनमिन बेचारी मुँह तकती रह गयी.

“कहा था न मैंने मत चढ़ो, अब जल्दी नीचे उतरो.” चेरी बोली.

लेकिन वह कैसे उतरती. वो चढ़ तो गयी लेकिन उसे उतरना नहीं आया. वह डाल पर पलट नहीं पा रही थी. और दूसरे उसने नीचे देखा तो अब वह ऊँचाई से भी डर गयी. वह वहीँ डाल पर दुबककर बैठ गयी और “म्याऊं-म्याऊं” करके रोने लगी. चेरी ने उसे खूब पुचकारा, बुलाया लेकिन वह उतरने की हिम्मत नहीं जुटा पाई. अब चेरी ने माँ को आवाज लगाई-

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“माँ-माँ जल्दी बाहर आओ”

“क्या हुआ बेटा?” माँ दौड़ी-दौड़ी बाहर आई.

“देखो न माँ मिनमिन पेड़ पर चढ़ गयी और अब उसे उतरते नहीं आ रहा.” चेरी ने बताया.

“हे भगवान! यह मिनमिन भी न रोज कोई नई परेशानी खड़ी कर देती है. अब इसे कौन उतारेगा. वैसे यह पेड़ पर चढ़ी क्यों?” माँ ने पूछा.

“इसे चिड़िया दिख गयी थी पेड़ पर तो उसके पीछे यह भी चढ़ गयी.” चेरी ने बताया.

“माँ अब सोच में पड़ गयी. पेड़ इतना मजबूत भी नहीं था कि उस पर चढ़ कर मिनमिन को उतार लिया जाए. और वैसे भी एक हाथ से उसे पकडकर नीचे उतरना भी मुश्किल. माँ और चेरी देर तक उसे मनाती रहीं. दूध की कटोरी, ब्रेड, मलाई सब पसंदीदा चीजें उसे दिखाई लेकिन वह नहीं उतरी उलटे और जोर-जोर से रोने लगी. तब माँ अंदर जाकर एक चादर ले आई और चेरी से बोली-

“अब यही एक तरीका है इसे नीचे उतारने का. चेरी तुम ये चादर उधर से पकड़ो.”

माँ और चेरी मिनमिन जिस डाल पर बैठी थी उसके नीचे चादर फैलाकर खड़ी हो गयी.

“मिनमिन अब तुम हिम्मत करके इस चादर पर कूद जाओ देखो तुम्हे चोट भी नहीं लगेगी. आओ जल्दी.” माँ ने उसे हिम्मत दिलाई.

मिनमिन ने उपर से देखा तो उसे थोडा ढाढस बंधा. चादर जमीन से ऊँचाई पर भी थी और कूदने पर उसे चोट भी नहीं लगती. सब तरफ से तसल्ली करने के बाद आखिर हिम्मत करके पाँच मिनट बाद वह चादर पर कूद गयी. माँ ने चैन की साँस ली.

“अब कभी पेड़ पर मत चढ़ना.” चेरी ने उसे गोद में उठाते हुए कहा.

एक दिन जब चेरी स्कूल गयी हुई थी तब मिनमिन माँ के आसपास रसोईघर में घूम रही थी. तभी उसे दीवार पर छिपकली दिखाई दे गयी. बस फिर क्या था उसने छिपकली पर छलाँग लगा दी. माँ जब तक उसे रोकती तब तक तो वह दीवार पर टकराकर दूध की पतेली पर गिरी, सारा दूध फ़ैल गया. मिनमिन फिर उठकर छिपकली पर कूदी. छिपकली तेज़ी से

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रेंगकर खिड़की के बाहर चली गयी और मिनमिन इस बार घी के डिब्बे पर गिरी, घी का डिब्बा चाय के कप से टकराया और प्लेटफोर्म पर चाय फ़ैल गयी.

“मिनमिन तुम्हे मना किया था न पर तुम बिलकुल नहीं सुनती. बिखरा दिया न सबकुछ. तुम कभी शरारतों से बाज आओगी की नहीं. सारा काम बढ़ाकर रख दिया. जाओ भागो यहाँ से नहीं तो अब तुम्हारी पिटाई हो जाएगी.” माँ उस पर चिल्लाई. माँ की डांट से घबराकर मिनमिन दुम दबाकर वहाँ से भाग गयी. माँ रसोईघर की सफाई में जुट गयी. जब सारा काम खत्म हुआ तब माँ को ध्यान आया कि मिनमिन को भूख लगी होगी उसका खाने का समय हो गया है. माँ ने उसके डोंगे में दूध-रोटी रखी और उसे आवाज लगाई. रोज वह एक आवाज में आ जाती थी लेकिन आज कई आवाज देने के बाद भी वह नहीं आई.

माँ ने पूरे घर में उसे ढूँढ लिया लेकिन वो कहीं नहीं मिली. माँ आस-पडौस में भी पूछ आई लेकिन वह वहाँ भी नहीं मिली. अब उन्हें चिंता हुई कि सुबह की डांट से नाराज होकर वह कहीं चली तो नहीं गयी. बेचारी डर गयी होगी, भूखी-प्यासी न जाने कहाँ भटक रही होगी. माँ उसे आवाज लगती सब तरफ ढूँढ आई लेकिन वह कहीं नहीं थी.

दो बजे चेरी स्कूल से घर आई तो देखा माँ बहुत परेशान है. पता चला मिनमिन सुबह से ही गायब है. वजह पता चलने पर चेरी ने जोर से रोना शुरू कर दिया.

“तुमने उसे क्यों डांटा माँ...अब अगर वो वापस ही नहीं आई...कहीं खो गयी तो...कहीं से भी उसे ढूँढ लाओ.”

माँ चेरी का रोना देखकर घबरा गयी. एक तो वह खुद ही परेशान थी मिनमिन के लिए. उस पर चेरी का रोना. माँ उसे समझाने लगी. बहुत देर बाद चेरी का रोना बंद हुआ. पर उसने और माँ ने न खाना खाया न कुछ और. बहुत देर बाद माँ ने उसे दुलराकर कपड़े बदलने के लिए मनाया ताकि एक बार फिर आसपास जाकर मिनमिन को ढूँढ आये. सुबकती हुई चेरी कपड़े बदलने के लिए बाथरूम में गयी तो जोर से चिल्लाई-

“माँ-माँ जल्दी से यहाँ आओ.”

“क्या हुआ चेरी तुम इतनी जोर से चिल्लाई क्यों.” माँ घबरा गयी.

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“वह देखो माँ.” चेरी ने इशारा किया.

माँ ने हैरानी से देखा. कपड़ों की डलिया में नर्म कपड़ों के ढेर पर मिनमिन रानी आराम से पसरकर सो रही थी.

“नटखट बिल्ली हम तुझे ढूँढ-ढूँढ कर परेशान हो गये और तू यहाँ आराम से सो रही है.” माँ ने उसे गोद में उठाकर लाड से कहा.

“मिनमिन तुमने तो हमें डरा ही दिया था. ऐसे कोई नाराज होकर छुप जाता है क्या?” चेरी उसे प्यार करते हुए बोली तो मिनमिन ने प्यार से आँखे मिचमिचा दी.

“चलो आओ भूख लगी होगी, तुम दोनों को खाना खिला दूँ.” माँ बोली.

माँ ने चेरी को खाना दिया और मिनमिन को दूध-रोटी. खाने के बाद चेरी मिनमिन को गोद में लेकर सहलाने लगी और मिनमिन....

वह तो चेरी के हाथ पर प्यार से सर रगड़ते हुए फिर एक नयी शरारत करने का सोच रही थी.

डॉ विनीता राहुरीकर