safar in Hindi Poems by Krunalmore books and stories PDF | सफर....

Featured Books
  • खोयी हुई चाबी

    खोयी हुई चाबीVijay Sharma Erry सवाल यह नहीं कि चाबी कहाँ खोय...

  • विंचू तात्या

    विंचू तात्यालेखक राज फुलवरेरात का सन्नाटा था. आसमान में आधी...

  • एक शादी ऐसी भी - 4

    इतने में ही काका वहा आ जाते है। काका वहा पहुंच जिया से कुछ क...

  • Between Feelings - 3

    Seen.. (1) Yoru ka kamra.. सोया हुआ है। उसका चेहरा स्थिर है,...

  • वेदान्त 2.0 - भाग 20

    अध्याय 29भाग 20संपूर्ण आध्यात्मिक महाकाव्य — पूर्ण दृष्टा वि...

Categories
Share

सफर....



हा, वक्त्त की जरुरत है


सफ़र ये ख़ूबसूरत है

हा, वक्त्त की जरुरत है

संभल गया मे रूठ के

खडा हुआ भी टूट के

मर गया जो डर गया

सफ़ल हुआ जो कर गया

अंजाने मोड पर

रास्तो को तोड कर

हार हार जोड़ कर

तू जीत का सफर कर

तू जीत का सफर कर


ख्वाहिशो को अपनी जगाये रखना

मंज़िलो पे अपनी निगाहे रखना

जानता है तू अगर फुल है तो काँटे है

विश्वास की ज्योत जलाये रखना

छोड कर अगर मगर

मंज़िलो की डगर पर

आगे बढ तु आगे बढ

तू जीत का सफर कर

तू जीत का सफर कर


कल की तलाश मे

आज हुँ उदास मे

छोड दिया दम हम ने

जब मंज़िल के पास थे

हा, ऐसे क्यु हालात थे

खुद से ही नाराज थे

आफतो से हार चुके

कदम अब थक चुके


जान ले तू मान ले

अपनी राह को पेहचान ले

आंसुओ को पोछ ले

अगर जीत ना मिले

आंखो से तू नोच ले

हार के वो मामले

साफ कर, माफ़ कर

गिर गया तू अगर

पलट वार कर

चलकर तू आग पर

तू जीत का सफर कर

तू जीत का सफर कर


सफ़र ये ख़ूबसूरत है

हा, वक्त्त की जरुरत है


💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐


अधूरे ख्वाब

शाम का वो वक्त्त था, किसे खबर थी क्या पता

कोई था जो मेरे स्वप्न की पहेचान को वो जानता

एक उम्मीद सी जगी है दिल मे स्वप्न की उडान मे

यही था वक्त्त जो तुजे तलाश थी उस शाम मे

क्या गलत क्या सही इस भेद को पहेचानू कैसे

मिल चुका जो सत्य उसके मान को मे जानू कैसे

मानता हु वर्तमान की क्षण मे कुछ फरक था

पर वो भी सत्य एक जिसका भविष्य कुछ अलग था

विश्वास की नाव को चढ के पार कर गया

लालत है उस जबान पर जो कह के फिर मुकर गया

टुटा मे कुछ इस कदर फिर जोडे से मे ना जुडा

घाव गहरे वक्त्त के मरहम से भी न भरा

भेद खुल चुका है अब स्वार्थ का, विश्वास का

खेद दिल मे भर चुका जिंदगी के उस पडाव का

सोचता हुँ जब भी एक चमक सी मच जाती है

यादों मे बिती शाम की खटक सी रहे जाती है

निश्चल मन, मजबुत बन फिर से ऊठ खडा हूँ मे

छोटी ऊँमर मे इन बड़े हालातो से लडा हूँ में

कुछ अधूरे ख्वाब अधूरे से ही रहे गये

अश्रु जल प्रलय बनकर आखों से ही बह गये

लुटाया जिसकी चाह मे मिला वो रत्ती भर नहीं

गवाया जो मुज मे था कही जिसकी ज़माने को ख़बर नहीं

अतीत की चौकट पर छोड़ा वो सपनो का जहान था

बुलाया जिसने आज मे वो हकीकतो का पैगाम था

जिस मोड पर हम जा रहे मिली हमे कभी ना कदर

वक़्त के उस ख़ेल मे सोचा सपनो को दू बदल

जो देखे सपने थे नये अतीत मे सिमट ही गये

अधूरे ख्वाब फिर अधूरे से ही रह गये

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐


ज़ख्म

ख्वाब दिखते नहीं आसानी से,

ज़ख्म कुछ इतने बडे है

दब सी गइ है जुनूनीयत की आवाज,

ज़ख्म जो जिद पे अडे है

पुछता हुँ उस खुदा से,

कब खत्म होगा ये सिलसिला,

ज़ख्म ओर कितने पडे हैं

ऐ खुदा, महसुस हुआ तू हरजगह जहां

ज़ख्म कुछ अधूरे तो कुछ भरे है

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐




By " Krunal More "




💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐