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रिश्ते


"अब नहीं जाऊँगी,कहे देती हूँ !" आते ही अपना पर्स पलंग पर फेंकते हुए चित्रा चिल्ला उठी ।
" आखिर हुआ क्या डार्लिंग, बताओ तो सही ! सुमेर को चित्रा की नाराजगी की वजह पता थी । भैया ने फोन कर के उसे स्थिति से अवगत कर दिया था । फिर भी वह अनजान बना रहा ।
"वो तुम्हारी भाभी सा हैं न..पता नहीं क्या समझती हैं अपने आपको ! और तो और मम्मी जी भी उन्हीं का साइड लेती हैं । कभी-कभी तो लगता है सब के सब मिले हुए हैं , मेरे ख़िलाफ़ । कहते हुए पैर पटकते हुए दूसरे कमरे में चली गई ।
मैं अच्छी तरह से जानता था चित्रा को। सोचती सबके लिए है लेकिन पल भर में किए कराए पर पानी फेर लेती है यह ।
आज तीज का त्योंहार था ।
चार-पाँच दिन पहले से ही मम्मी के लिए और भाभी के लिए सुंदर शिफॉन की साड़ियां खरीदकर लाई थी । घर में घुसते ही साड़ियाँ मेरे आगे फैला दी । "
"देखो अच्छी है न! भाभीजी के लिए ये लाल वाली और मम्मीजी के लिए ये पीले रंग की पसंद की है मैंने ।"

"सच में बहुत सुंदर हैं ! बिल्कुल तुम्हारी ही तरह । लाल पीली।" मैने शरारत भरे लहजे में उसे छेड़ते हुए कहा।

"ये तारीफ कर रहे हो कि बुराई.. उसने अजीब सा मुँह बनाया। "अच्छा सुमेर! तीज पर जाऊँगी न वहाँ, तो ये साड़ियाँ ले जाऊँगी ।"
"क्या ज़रूरत थी । नाहक पैसे खर्च किए ।" मैंने मोबाइल में देखते हुए जवाब दिया ।
"अच्छा तो तुम यह चाहते हो, भाभीजी मम्मी को साड़ियाँ गिफ्ट कर के महान बने ! और मैं उनकी नज़रों में गिर जाऊँ।"

"ठीक है बाबा हो जाओ उनकी नज़रों में महान ।"
मैंने कह तो दिया लेकिन मन ही मन कुछ आशंकित था क्योंकि चित्रा के स्वभाव से अच्छी तरह वाकिफ जो था ।
और हुआ भी वही जो सोचा था ।

"तुमने खा लिया खाना ?"कुछ अनमनी सी वह मेरे पास आकर बोली ।
" मीटिंग देर तक चली थी । मैं तो बाहर से ही खाकर आ गया । फंक्शन कैसा रहा? साड़ियाँ पसन्द आई सबको ?

"सुमेर एक बात कहूँ,, मैं बिना भोजन करे ही वापस आ गई । आज उपवास है मेरा । पेट में चूहे कूद रहे हैं...अब क्या करूँ ! कुछ बनाने की हिम्मत ही नहीं हो रही ।"

" क्या डार्लिंग ! तुमने वहाँ खाना नहीं खाया !"मैंने फिरकी लेते हुए पूछा ।

"नहीं । आज भाभीजी ने सब रिश्तेदारों के सामने मेरी हँसी उड़ाई । कहा-मैं दिन-ब-दिन मोटी होती जा रही हूँ ! मुझे अच्छा नहीं लगा और मैं वहाँ से चली आई ।"

" माँ ने रोका नहीं तुम्हें !"

"रोका था बहुत । लेकिन भाभी का ही साइड ले रही थी वे भी "

"अब क्या करें । कैसे खोलोगी व्रत तुम ?"

"वही तो मैं भी सोच रही हूँ । काश रुक जाती वहाँ.."

मुझे चित्रा के चेहरे पर अब गुस्से की जगह अफसोस की छाया अधिक नज़र आ रही थी । मन ही मन उसकी नादानी पर हँसी भी आ रही थी साथ ही आंशिक गुस्सा भी।
तभी डोर बेल बजी । मैंने मुख्य द्वार खोला तो सामने भैया भाभी को खड़े पाया ।

"आप दोनों इस वक्त !" मैंने उन्हें देख हैरत से पूछा जबकि फोन पर भैया ने सूचित कर दिया था कि वे लोग आ रहे हैं यहाँ ।

" कहाँ है हमारी प्यारी देवरानी .." भाभी सा ने आते ही पूछा ।
आवाज़ सुनकर तब तक चित्रा भी हॉल में आ गई । वह हैरत से भाभी सा को देखे जा रही थी । उन्होंने उसी की दी हुई लाल शिफॉन की साड़ी पहनी हुई थी ।

" तुम तो चली आई । सोचा भी नहीं,भाभी कैसे व्रत तोड़ेगी तुम्हारे बिना! टिफिन लाई हूँ । चाँद भी निकल आया है। चलो झटपट अर्ध्य देकर भोजन करते हैं ।
भाभी सा के मिश्री घुले शब्द चित्रा के अंतस को स्पर्श कर गए । वह दौड़ते हुए लिपट गई अपनी जेठानी से ।