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मंगला


"मंगला"

- अर्चना अनुप्रिया




यह कोई कहानी नहीं वरन् आज के समाज की एक सच्चाई है जो आए दिन शहरों में, गाँवों में देखने और सुनने को मिलती है। यह कहानी 21वीं सदी में जन्मी, पली,बढ़ी उस मंगला की है, जो अपने सपनों को टूटता देख कर भी खुद नहीं टूट जाती बल्कि हिम्मत से काम लेती है और अपनी मेहनत तथा लगन के बल पर एक ऐसा मुकाम हासिल करती है, जो उसे मर्दों के समाज में एक उदाहरण के रूप में प्रतिष्ठित करता है।



सारा घर रंग बिरंगे बल्ब की रोशनियों से नहाया हुआ था।बाहर शामियाने में करीने से टेबल सजाए गए थे,जिस पर तरह-तरह के खाने-पीने के व्यंजन रखे गए थे।जिसे जो खाना हो खाये...चाइनीज,साउथइंडियन,पिज्जा...शाकाहारी खाना, मांसाहारी खाना...पेय पदार्थ में भी हर तरह के लोगों को ध्यान में रखकर इंतजाम किया गया था ठंडा,गर्म..सब कुछ..एक तरफ स्टेज बना था जिस पर 'जयमाल' होना था। स्टेज के सामने ही सिलसिलेवार ढंग से कुर्सियाँ लगी थीं। बाहर गेट के पास जगमग लाइटों के नीचे बने एक छोटे से स्टेज पर शहनाई बजाने वाले बैठे शहनाई पर विवाह के धुन बजा रहे थे।आज मंगला की शादी थी। यूँ तो मंगला के पिता चंद्रकांत राय बहुत पैसे वाले नहीं थे, एक स्कूल में मामूली क्लर्क थे पर मंगला छः-सात भाई-बहनों में सबसे बड़ी थी और यह घर की पहली शादी भी थी, इसलिए राय साहब शादी में किसी तरह की कोताही नहीं करना चाहते थे।लड़का भी अच्छा मिल गया था।पास के शर्मा जी के रिश्तेदार का लड़का था।आजाद नाम था उसका और इसी शहर में डिप्टी इंस्पेक्टर के पद पर कार्यरत था।राय साहब के पास बहुत धन तो नहीं था परन्तु उन्होंने इंतजाम बहुत अच्छा रखने की कोशिश की थी।"अब उसकी हैसियत के हिसाब से इंतजाम तो रखना ही पड़ेगा न...न जाने शहर के कौन-कौन से बड़े लोग बारात में आयेंगे...भाई, अब तो लड़के के परिवार का मान हमारा ही मान हुआ न…"


मंगला के मामा, बंसी बाबू के फिजूलखर्ची रोकने की सलाह पर हँसते हुए राय साहब ने जवाब दिया।


"हाँ , ठीक है भाई साहब, पर अपने दूसरे बच्चों का भी ख्याल रखिए..तीन बेटियाँ और दो बेटे और भी हैं आपके...उनकी पढ़ाई-लिखाई, शादियाँ…"


"अरे, तो तुम कब काम आओगे साले साहब, आखिर मामा हो तुम उनके"...बंसी बाबू की बात काटते हुए राय साहब ने चुटकी ली….कुछ कमोबेश हो तो मामा है न...ही ही ही.."खुद को फँसते देख बंसी बाबू ने चुप रहने में ही अपनी भलाई समझी और इधर-उधर घूम-घूमकर तैयारियाँ देखने का स्वांग करने लगे।


अंदर एक कमरे में मंगला को ब्यूटी पार्लर से आयी एक लड़की तैयार कर रही थी।साधारण सी दिखने वाली मंगला आज सजधज कर बहुत सुंदर लग रही थी। वह रह रहकर खुद को आईने में निहार रही थी और खुद ही अपनी खूबसूरती पर फिदा हुई जा रही थी।आँखें बार बार दरवाजे पर उठती थीं, जहाँ से उसकी परमप्रिय सहेली कीर्ति आने वाली थी। कीर्ति उसके स्कूल के समय से ही मंगला की चहेती थी और मंगला उससे कुछ भी नहीं छुपाती थी...अपने विषय में हर अच्छी, बुरी बात वह कीर्ति से जरूर डिस्कस करती थी…"न जाने कहाँ रह गयी महारानी, बारात आने का समय हो गया है और महारानी का अब तक पता नहीं, आने दो उसे,ऐसा मजा चखाऊँगी कि घड़ी देखना भूल जायेगी… यहाँ मैं नर्वस हुई जा रही हूँ, और मैडम का अब तक पता नहीं"...मन ही मन मंगला बड़बड़ा रही थी।इतने में कीर्ति अंदर आती दिखी…"कहाँ थी, इतनी देर तक..पता है मैं कितनी नर्वस…"इससे पहले कि मंगला कुछ आगे कहती, कीर्ति ने उसके मुँह में खोये से बना पेड़े का टुकड़ा ठूँस दिया...कुछ कहने की जरूरत नहीं, मंदिर गई थी, तेरे लिए देवी माँ से पैरवी करने.."


"अरे..क्या करती है, व्रत है मेरा...और किस बात की पैरवी करनी थी तुझे..?"मंगला मुँह से पेड़े का टुकड़ा निकालती हुई बोली।कीर्ति ने फिर वो टुकड़ा मुँह में ठूँस दिया और कहने लगी.."चुपचाप खा जाओ, देवी माँ का प्रशाद है ये...और मैडम ..पैरवी इस बात की करने गई थी कि मेरी मंगला के पाँव धरती पर ही रहें, चुलबुल पांडे के साथ कहीं उड़ न जाये मेरी सहेली...हा हा हा.."।दोनों सहेलियाँ जोर से हँस पड़ीं।


स्कूल खत्म करके जब मंगला कॉलेज में पहुंची थी तभी कॉलेज की दुनिया ने उसके सपने रंगीन करने शुरू कर दिए थे।अब तक गर्ल्स स्कूल में पढ़ती थी..अचानक कॉलेज में लड़कों के साथ क्लास में पढ़ते हुए वह सतरंगी दुनिया में सैर करने लगी थी।हर लड़के में उसे शाहरुख और सलमान नजर आने लगा था ।इससे पहले कि वह किसी चेहरे को अपने लिए चुन पाती, राय साहब ने उसकी शादी तय कर दी थी।डिप्टी इंस्पेक्टर के ओहदे पर आजाद उसे दबंग फिल्म का चुलबुल पांडे नजर आने लगा था।सगाई से लेकर शादी तक में उसने न जाने आजाद के साथ कितने रंगीन सपने सजा लिए थे। आज उन सपनों के हकीकत में बदलने की रात थी, इसीलिए मंगला बहुत ही खुश नजर आ रही थी।


बारात आई और जयमाल करते समय आजाद की कद-काठी देखकर मंगला मन ही मन मीठे सपनों में झूमने लगी… मोटरसाइकिल पर बैठाकर शहर घुमाता हीरो आजाद और पीछे बैठी हीरो के कमर में हाथ डाले सपनों की दुनिया की सैर करती हिरोईन मंगला.."हाययय..कितना सुहाना होगा न, शादी के बाद का जीवन…"मंगला खुद को सातवें आसमान पर उड़ती देख रही थी।उसकी सहेली कीर्ति रह-रहकर उसे कोहनी मारकर गुदगुदा रही थी-"यार, तेरी तो निकल पड़ी...इतना हैंडसम पुलिस वाला...बड़ी जलन हो रही है तुझसे…काजल का टीका लगाकर रखना दूल्हे मियां को…"हँसती-छेड़ती कीर्ति की ऐसी बातें और आजाद की सोच उसे मीलों ऊपर उड़ा ले जाती सपनों के और भी रंगीन आसमान में।भविष्य के सुनहरे सपने देखती मंगला मन ही मन में सोच रही थी कि वह कितनी भाग्यशाली है कि उसे इतना अच्छा पति और इतना अच्छा परिवार मिला है,वह सबको बहुत खुश रखेगी...सास-ससुर, आजाद,उसका परिवार… सभी को अपनी सेवा से मोह लेगी...।


राय साहब की हैसियत के हिसाब से बहुत अच्छी तरह मंगला का विवाह संपन्न हो गया और वह ससुराल विदा हो गई ।ससुराल में आते ही वह सबका मन जीतने की कोशिश में लग गयी।आजाद वैसे तो देखने में बहुत अच्छा था पर पुलिस इंस्पेक्टर होने का बड़ा रौब और घमंड था उसे...बात-बात में गुस्सा और हर दूसरी लाईन में अपनी तारीफ...मंगला को बड़ा अजीब सा लगता था। हर जगह सबसे वह अपनी बात मनवा कर ही छोड़ता था और उसकी बात नहीं माने जाने पर बहुत गुस्सा भी करता था।बेटा इंस्पेक्टर था, इसीलिए परिवार के सब लोग उसकी जी-हुजूरी में रहते थे।ससुराल आते ही एक दो दिनों में मंगला को अंदाजा हो गया था कि उसे आजाद और उसके परिवार वालों के सामने दबकर रहना होगा। मंगला को कोई एतराज भी नहीं था..आखिर उसके पति की इतनी इज्ज़त है घर में तो धीरे-धीरे सब उसे भी पलकों पर रखने लगेंगे।पति को पुलिस की वर्दी में देखती तो मंगला का अंतर्मन खिल उठता-" आजाद का प्यार पाने के लिए तो मैं सब कुछ करूँगी"..मन ही मन में सोचती थी मंगला। शुरु-शुरु में तो आजाद का बंधन उसे अच्छा लगा,परंतु, धीरे-धीरे उसके व्यवहार से मंगला क्षुब्ध होने लगी...विवाह और आजाद को लेकर संजोया हुआ उसका नाजुक प्यारा काँच सा सपना थोड़ा-थोड़ा करके चटकने लगा।बात-बात पर खीजना,डाँटना,पति होने का रौब दिखाना, उसे माँ-बाप के ताने देना मंगला को अंदर तक तोड़ने लगा था।और तो और उसकी बात का जवाब देने पर उसके ऊपर हाथ भी उठाने लगा था आजाद।परिवार वाले भी आजाद का ही साथ देते थे। छोटी से छोटी बात की शिकायत कर देते थे और आजाद के हाथ उठाने पर भी किसी तरह की प्रतिक्रिया नहीं दिखाते थे। मानो, आजाद ने उसे थप्पड़ मारकर ठीक ही किया...।आजाद को तो बस मर्दानगी दिखाने का कोई मौका चाहिए था,ये तक जानने की कोशिश नहीं करता कि क्या सच है और क्या झूठ।उसके ऐसे व्यवहार से मंगला बहुत दुखी होती थी लेकिन दोनों परिवारों की इज्जत का ख्याल करके वह खामोश रह जाती थी। मंगला के माता-पिता तक जब बात पहुँची तो उन दोनों ने आकर समझाना चाहा पर आजाद और परिवार वालों ने उनकी बेइज्जती करके उन्हें घर से निकाल दिया और हिदायत दी कि दुबारा बेटी की पैरवी करने इधर आने की जरूरत नहीं है।मंगला का मन बहुत दुखा , खूब रोई पर उसके आँसू की परवाह किसे थी..? उल्टा दुनिया भर के ताने सुनने पड़े और आजाद की डांट भी खानी पड़ी। धीरे-धीरे तो यह रोज का किस्सा बन गया…. सुबह से उठकर सारे काम करो, सास-ननद की दस बातें सुनो और पति से कुछ कहो तो मार भी खाओ...। काम के बहाने पति का देर से आना, अक्सर शराब के नशे में धुत्त रहना, सैलरी हो या ऊपरी आमदनी-पाई-पाई सास के हाथों में देना और मंगला के मां-बाप को गालियाँ देते रहना….अब मंगला को घुटन सी होने लगी थी, जी चाहता था जान दे दे...क्या ऐसे पति का सपना देखा था उसने..?कीर्ति को बताया तो वह अवाक् रह गई...कुछ सलाह देती तो मंगला उसे एकदम से चुप कर देती.."तुझे अपना समझकर बताती हूँ, कीर्ति, आजाद को खबर भी हुई कि तुझसे कुछ कहती हूँ तो, पता नहीं, वो मेरा क्या हाल कर बैठे...एक तू ही तो है, जिससे मैं अपनी बात शेयर कर सकती हूँ.."...


"लेकिन..मंगला..कबतक झेलती रहेगी ऐसे..?"कीर्ति उसे कुछ कहती पर फिर मंगला की आँखों में आँसू देखते ही चुप हो जाती…"चल कुछ और बातें करते हैं…"।


कुछ ऐसे ही दिनचर्या के साथ दिन गुजरने लगे।


ससुराल में तो बस पति का नाम ही आजाद था..."आजादी" जैसी तो कोई चीज ही नहीं थी वहाँ मंगला के लिए....हर बात में रोक-टोक,कदम-कदम पर पहरे...बहुत परेशान रहती थी वह...नतीजन, 21-22 वर्ष की कम उम्र में ही मंगला अपने सपनों को दबाकर चुप रहना सीखने लगी थी। एक दिन अचानक खाना खाते-खाते मंगला का जी मिचलाने लगा और मंगला की तबीयत खराब हो गई। जांच के बाद पता चला कि वह मां बनने वाली है। एक बार फिर उम्मीदों और ख्वाहिशों ने उसके दिल में हिलोरें मारीं... लगा, अब सब कुछ ठीक हो जाएगा…. लेकिन,आजाद के रिश्ते की एक डॉक्टर बुआ ने चेक करने के बाद जैसे ही चुपचाप सास को बताया कि पेट में पल रहा बच्चा लड़का ना होकर लड़की है तो बस.. क्या सास-ससुर और क्या पति सभी उसे बच्चा गिराने को कहने लगे।सुबह-शाम बस इसी बात को लेकर घर का माहौल बिगड़ने लगा। मंगला हैरत में थी- "इंस्पेक्टर होकर प्रताड़ित लड़कियों का साथ देने की बजाय आजाद उसे ही इस घिनौने कार्य के लिए उकसा रहा है? क्या आजाद को मालूम नहीं है कि जांच में भ्रूण का लिंग बताना गैरकानूनी है? और अबॉर्शन करना अपराध है?..कैसा पति है ये?.. बस अब बहुत हो चुका जब तक मेरे ऊपर जुल्म हो रहे थे मैंने चुपचाप सहन कर लिया पर अब मेरे कोख में आई बच्ची के साथ इतना अन्याय नहीं होने दूँगी... आजाद को मैं अपनी बच्ची के साथ कोई जुल्म नहीं करने दूँगी..।"मंगला ने मन ही मन ठान लिया, चाहे कुछ भी हो पर अपनी बच्ची को वह दुनिया में लाकर रहेगी। "पहला बच्चा घर आ रहा है, क्या फर्क पड़ता है वह लड़का है या लड़की..?माँ बनने के सुखद अहसास पर इस तरह की काली नजर नहीं पड़ने दूँगी"...मंगला के प्रतिकार करने पर आजाद और ससुराल वालों ने उसे घर से निकल जाने का हुक्म सुना दिया। मंगला भी आजाद और उसके परिवार वालों के व्यवहार से बहुत दुःखी थी, इसीलिए उसने चुपचाप अपना सामान समेटा और मायके चली आई। मायके में उसके जन्मदाता मां बाप ने मायके में, जिसे वह अपना घर समझती थी अपना परिवार समझती थी, संस्कारों की दुहाई देकर स्थाई आसरा देने से मना कर दिया। राय साहब ने तो यहाँ तक कह दिया कि तुम्हारे इस करतूत से तुम्हारी छोटी बहनों के विवाह में अड़चन आ सकती है,इसीलिए दोबारा इस घर की देहरी लाँघकर अंदर आने की कोशिश भी मत करना...।सन्न रह गई मंगला पिता के मुँह से ऐसे कठोर वचन सुनकर… आत्मा रो पड़ी उसकी.."मेरे माता-पिता इतने क्रूर भी हो सकते हैं..?...क्या यह घर नहीं है मेरा..?पति का घर मेरा नहीं, पिता का घर मेरा नहीं, फिर मेरा क्या है इस दुनिया में..?"बंद दरवाजे के बाहर खड़ी फूट-फूटकर रोने लगी मंगला...कुछ देर रोने के बाद वह एकदम से उठ खड़ी हुई, मन ही मन कुछ तय किया और आँसू पोंछकर निकल गई वहाँ से। बेबस मंगला दुखी जरूर हुई पर 21वीं सदी की हिम्मत वाली मंगला टूटी नहीं...।उसने अपनी सहेली कीर्ति की मदद से अपने तन पर पहने हुए गहने बेचकर एक मकान किराए पर ले लिया और दोबारा से अपनी पढ़ाई शुरू कर दी।अब उसने कुछ बनकर सबको दिखाने की ठान ली थी…"हिम्मत नहीं हारूँगी मैं,कोई मेरा साथ दे या न दे..अपना भविष्य मैं खुद गढ़ूँगी…"।अपने गर्भ में पल रही बच्ची का ध्यान रखती हुई वह मन लगाकर प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में लग गई। तरह -तरह की कठिनाइयाँ आयीं पर वह लगी रही।कुछ ही दिनों में आजाद ने उससे तलाक लेकर दूसरी शादी कर ली। इस दुखदायी घड़ी में भी मंगला ने खुद को पत्थर बनाये रखा,मन को बिल्कुल टूटने नहीं दिया। मुश्किलें बहुत आयीं पर मंगला ने हिम्मत नहीं हारी। बेटी को जन्म दिया और यूपीएससी की परीक्षा भी पास की। उसकी मेहनत और लगन रंग लायी और वह भारतीय पुलिस सेवा के लिए चुन ली गई।उसके इस संघर्ष में कीर्ति और उसके घरवालों ने पग-पग पर उसका साथ दिया। मंगला की मेहनत से किस्मत ने पलटी खायी और उसकी जिंदगी बदल गई।


आज उसकी बेटी दो वर्ष की है और वह पुलिस की ट्रेनिंग लेकर उसी शहर में एसपी बनकर आ रही है, जहाँ आजाद उसपर इंस्पेक्टर होने का रौब दिखाया करता था और अपने ही माता-पिता ने आसरा देने से मना कर दिया था।उसने मन ही मन में ठान लिया है कि मर्दों की दुनिया में औरतों का स्थान ऊँचा बनाकर रहेगी। 21वीं सदी की आत्मविश्वास से भरी लड़की मंगला है वह...न किसी का एहसान लेना है न ही किसी के सामने झुकना है।उसे खुले आसमान में उड़ान भरनी है उसके जैसी समाज की अन्य दुखी, सतायी लड़कियों की प्रेरणा बनकर।


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