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खूनी बावड़ी

"मीरा कितनी देर तक सोती ही रहोगी, जल्दी उठो राजगढ़ आने वाला होगा" मृणाल ने मीरा को जगाते हुए कहा।

"तुम्हें हमारे परिवार वालों से मिलने की कुछ ज्यादा ही जल्दी है मृणाल, थोड़ा तो सब्र करो" मीरा ने मृणाल को देखकर कहा।

"अब सब्र ही तो नहीं होता, बस जल्दी से जल्दी घर पर सबसे बात कर के, तुमसे शादी कर के अब तो यहीं बस जाना चाहता हूं" मृणाल ने राजगढ़ की खूबसूरती को निहारते हुए कहा।

"बहुत खूबसूरत है न हमारा गांव" मीरा ने गर्व से कहा।

"तुमसे ज्यादा खूबसूरत नहीं" मृणाल ने मीरा को देखते हुए मुस्कुराकर कहा।

कुछ ही देर में उनकी कार राजगढ़ के राजमहल के बाहर खड़ी हुई थी।

"खम्मा घणी" मीरा ने जब अभिवादन किया तो सब डायनिंग टेबल पर खाना खा रहे थे, जो अब आवाज़ की दिशा में देखने पर मीरा को देखने लगे थे।

"मीरा आपसे काहा था न कि आप यहां कभी भी नहीं आएंगी फिर क्यों अाई हैं आप यहां?" मीरा की मां ने उसे घूरते हुए पूछा।

"मगर मां हम यहां आप सब से मिलने आए हैं। क्या अपने घर आने के लिए भी हमें पूछ कर आना पड़ेगा? कितने सालों से हम कभी स्कूल तो कभी कॉलेज के बहाने से अपने घर से दूर थे मगर अब तो सब पूरा हो चुका है तो अब क्या समस्या है मां?" मीरा ने उदास होकर कहा।

"समस्या है मीरा वरना हम आपको यहां आने से क्यों रोकते?" मीरा के पिता ने भी कठोरता से कहा।

"ऐसी भी क्या समस्या है मां पापा जो एक भरे पूरे परिवार की बेटी यूं अकेली रहती है? हमारे चार चार भाई हैं, तीन भाभियां हैं, चार भतीजे भतीजी हैं, काकोसा है, काकीसा हैं फिर क्यों आप हमें सब से दूर रखते हैं?" अब मीरा भी आहत हो चुकी थी इसीलिए उसकी भी बातों में कड़वाहट घुलती जा रही थी।

"आपका यह रूप है इसकी वजह। यह आपकी जान ले सकता है। आपको क्या लगता है आपकी कोई बहन नहीं थी या हमने ही लड़की होने के कारण उन्हें मार दिया,नहीं मीरा नहीं। आपको अंदाज़ा नहीं है कि कितना बड़ा खतरा उठाकर आप यहां आईं हैं? मीरा हम आपकी मां हैं , आपसे नफरत नहीं करते हैं बल्कि आपकी चिंता करते हैं। क्या हम कभी आपके साथ नहीं रहना चाहते थे? मगर मीरा अगर हम आपके साथ रहते तो वह भी आपके साथ रहती, हर खूबसूरत लड़की यहां जन्म लेते ही मर जाती है, इसीलिए जब आप आने वाली थीं तब हम अपनी मां सा के घर चले गए थे।" मीरा की मां ने बताया।

"हम मृणाल को आपसे मिलवाने लाए थे ताकि आप हम दोनों का भविष्य तय कर सकें और आप न जाने किन पुरानी बातों को लेकर बैठी हैं मां" मीरा ने हताश होकर कहा।

"हमें मृणाल पसंद हैं, मगर आगे जो भी बात होगी, हम खुद आपके पास मुंबई आकर बात करेंगे अभी थोड़ा रुक कर आप दोनों वापस चले जाइए वरना हमारा मरा हुआ मुंह देखेंगी आप मीरा।" मीरा की मां ने कहा।

"अगर ऐसा है तो हम आज ही चले जाएंगे मगर जाने से पहले क्या एक बेटी अपने मां पापा से जिंदगी भर अलग रहने का कारण जानने का भी हक नहीं रखती है मां?" मीरा ने कहा।


"बेटा, आप दोनों बैठिए, हम बताते हैं" मीरा के पापा ने कहा। इस सब के बीच राजमहल के बाकी सदस्य और मृणाल सब हक्के बक्के खड़े थे। मीरा के पापा ने कहना शुरू किया - " यह करीब सौ साल से पहले की बात है। हमारी दादीसा इसी राजमहल की बेटी थीं। जब बाबा सा से उनका विवाह हुआ था, उस रात महल में केवल वे दोनों ही थे, बाकी सब बाहर जश्न मना रहे थे। अगली सुबह जब उनकी विदाई होनी थी उससे पहले ही जो बारात दादीसा को विदा करा कर लिवाने अाई थी, वह पूरी की पूरी बारात के लोगों कि लाशें रियासत की सीमा पर स्थित उस मनहूस बावड़ी में तैरती नजर आईं थी। हमारे बाबा सा की भी रात होते होते तक मौत हो गई। दादी सा ने अकेले ही हमारे बापूसा और काकोसा की परवरिश की, दोनों जुड़वां थे। काकोसा के एक ही बेटा हुआ, आपके रमन काकोसा, मगर बापूसा के दो संतानें थीं, हम और हमारी जीजा हुकुम। मां सा कहा करती थीं कि जीजा हुकुम बिल्कुल किसी अप्सरा से भी ज्यादा खूबसूरत थीं, दो वर्ष की उम्र में ही उनकी खूबसूरती के चर्चे पूरी रियासत में मशहूर हो गए थे। उस दिन जीजा हुकुम के जन्मदिन के उपलक्ष्य में राजमहल में हवन होना था। सभी तैयारियों में जुटे हुए थे और जीजा हुकुम अपने पालने में खेल रहीं थीं। जब मां सा उनको लेने वापस कमरे में आईं तो देखा उनका दूध सा सफेद रंग एकदम कोयले सा काला पड़ गया था, उनके चेहरे पर बड़े बड़े फोड़े उभर आए थे और मां सा के समक्ष ही जीजा हुकुम ने अपनी आखिरी सांस ली। इस रियासत की बेटियों पर श्राप है बेटा, हर खूबसूरत बच्ची की जान लेने के लिए वो उस बावड़ी में इंतजार करती है। इस रियासत में सिर्फ कुछ ही बच्चियां जीवित रह पाती हैं, जो उसके अनुसार कुरूप होती है और हर वह लड़का जो यहां की बच्ची से विवाह करने आता है, उसे पहले बावड़ी पर जाकर उससे विवाह करना होता है। जो उसकी कुरूपता को स्वीकारते हुए उससे विवाह करता है, वह उसी दिन गौना कर के चला जाता है। जो उसे देखकर डर जाता है, उससे विवाह नहीं करता है, उसकी बारात में आईं हुई महिलाओं और बच्चियों कि मौत हो जाती है।"

"वह कौन पापा?" मीरा ने बाद इतना ही पूछा, राजमहल की दीवारों में इतना बड़ा रहस्य छिपा होगा यह उसने सपने में भी नहीं सोचा था।

"हमारी दादी सा स्वर्गीय रूपवती देवी की बड़ी बहन चंद्रिका" मीरा के पापा ने कहा।

"जाइए बेटा, अब आप दोनों को दिन रहते ही इस रियासत कि सीमा से दूर चले जाना चाहिए" आंखों में आसूं भरे मीरा की मां ने उससे कहा।

"जी मां सा" बस इतना ही कह पाई मीरा, इतनी बड़ी कड़वी सच्चाई कि उसने कल्पना भी नहीं की थी। अपने परिवार का त्याग देखकर उसका गला रुंध गया था कि सिर्फ वह जीवित रहे इसी कारण उसका परिवार उससे दूर था।

"चलो मीरा" मृणाल ने कहा। इसके बाद दोनों सबके पैर छूकर राजमहल से निकल गए।

दोपहर के दो बजे होंगे, अभी वे दोनों थोड़े ही आगे निकले थे कि तभी मीरा के कानों में एक दर्द भरा स्वर पड़ा " मुझे बचा लो"

"कोई मदद के लिए बुला रहा है मृणाल"

"बाहर मत जाना मीरा यह कोई चाल भी हो सकती है"

"हो सकता है कोई सच में मदद के लिए पुकार रहा हो" कहते हुए मीरा कार से उतर गई और चारों तरफ देखने लगी। आवाज़ की दिशा पर गौर करने पर पाया कि वह आवाज़ बावड़ी में से आ रही थी। अब मीरा को यकीन था कि बावड़ी में ही कोई फंसा हुआ है जो मदद के लिए बुला रहा है। पीछे से भागता हुआ मृणाल और उसकी आवाज़ें अब मीरा को बिल्कुल धीमी सुनाई दे रहीं थीं। वह धीरे धीरे एक एक कदम सम्भाल कर बावड़ी में उतरने लगी। बावड़ी एकदम सूख चुकी थी। उसकी सीढ़ियों पर कई जंगली पेड़ पौधों की सूखी हुई टहनियां और जड़ें जमी हुई थीं। मीरा सम्मोहित सी नीचे उतरती जा रही थी अचानक बावड़ी में पानी भरने लगा। तेज़ लपटें मीरा के माथे को छूकर गुजरने लगीं। अब बावड़ी पानी से लबालब भर चुकी थी और उसमें से पायल की छम छम गूंज रही थी अचानक ही बावड़ी के पानी में दो लड़कियां और दो महिलाएं राजमहल के ही एक कमरे में नजर आईं।

"रेे इस छोरी ने पूरे राजमहल री नाक नीची करा दी है, ऐसी कुरूप कोई राजकुमारी होवे है काईं?" बड़ी रानी का कठोर स्वर राजकुमारी चंद्रिका के कानों में पड़ा।

"जे मैं कुरूप हूं तो इसमें म्हारा काईं दोष मां सा?" चंद्रिका ने अत्यंत धीमे स्वर में अपने पैर के अंगूठे से जमीन कुरेदते हुए कहा।

"मत कह मने थरी मां...... थारा दोष, अरे थारे इस रूप के कारण ही सारी प्रजा रे टाबर डरें हैं थारे से, कोई भी भोर में थारा चेहरा न देखना चाहे है, आज कठे भी ब्याह कोनी हो रियो थारो और इससे ज्यादा काईं कालिख चाहिए थाणे राजमहल रेे चेहरे पे?" बड़ी रानी ने राजकुमारी पर आग्नेय दृष्टि डालते हुए कहा।

"जाने दीजिए न जीजा हुकुम, बच्ची है" छोटी रानी ने हाथ जोड़कर कहा।

"अरे म्हारे को लाज आवे है कि यो कुरूप म्हारी छोटी है, कोई रूपवती ने देखो, बिल्कुल म्हारी परछाईं लागे है और इस चंद्रिका ने जन्म लेके म्हाने नीचो साबित कर दियो है, मगर यो आपरी समझ कोनी आएगा छोटी रानी सा, आप तो बांझ हो ना" बड़ी रानी ने फिर विषैले शब्द कहे।

"मैं क्षमा चाहूं हूं बड़ी रानी सा" राजकुमारी चंद्रिका ने अपने हाथ जोड़कर कहा और वहां से चली गई। बड़ी रानी, छोटी रानी और रूपवती उसी जगह खड़ी रह गईं।

वह सुबह के तीसरे पहर का समय था। हर तरफ गर्म लपटें चल रहीं थीं, कुओं का पानी जैसे सूर्य की आग उड़ेल रहा हो, गर्म रेत पर नंगे पांव चंद्रिका अपने महल से दूर कहीं भागी जा रहे थी।

"कठे जा रही हो जीजा हुकुम?" राजकुमारी चंद्रिका के पीछे पीछे भागती हुई उसकी छोटी बहन, राजकुमारी रूपवती ने उसे रोकने की चेष्टा करते हुए पूछा।

"मने जाने दे रूपवती, जे राजमहल म्हारे कारण बहुत बुरो वखत देख चुको है, अब जाने दे म्हारे को" चंद्रिका ने एक पल को ठहरकर कहा।

"ना जीजा हुकुम, जे आपरो भरम है, किसी ने भी आपरे रूप से समस्या कोनी है, आप तो जानो हो बड़ी रानी सा ने वो तो ऐसे ही बोल जावें हैं" राजकुमारी रूपवती ने कहा मगर कहकर चंद्रिका भागती रही, जैसे उसे कोई फर्क ही नहीं पड़ था हो रूपवती के कुछ भी कहने का। वह भागते भागते राजमहल की सीमा से काफी दूर निकल चुकी थी।

"जीजा हुकुम रुक जाओ, वठे न जाओ" कहती हुई रूपवती भी गर्म रेत पर नंगे पांव दौड़ी जा रही थी।

"म्हारो दोष केवल म्हारो जे रूप है न तो आज मैं जा रही हूं जे संसार से दूर, अपने जेई रूप ने अपने साथ लेकर मगर मैं भी कसम खा के कहूं हूं, कुरूपता के कारण आज मने मौत ने गले लगानो पड़ रियो है न, जे रियासत में कभी कोई भी सुंदर छोरी जनम कोनी लेगी, जे उसने जनम ले भी लियो तो मैं उसने जीने कोनी दूंगी, जो कोई छोरा जे रियासत की छोरी से ब्याह करनो चहवेगो उसने पहले म्हारे से ब्याह करनो होेगो, म्हारे इसी रूप ने स्वीकार करनो होेगो" चंद्रिका ने कहा और रूपवती को देखते हुए ही एक एक कदम पीछे की ओर बढ़ाने लगी।

"आगे कोनी बढ़ो जीजा हुकुम, वो बहुत गहरी बावड़ी है, थे गिर जाओगे" रूपवती अपना वाक्य पूरा भी कर पाती इससे पहले ही चंद्रिका बावड़ी में कूद गई।

इतना देखने के बाद मीरा को यकीन हो गया था कि वह चंद्रिका ही है जो रियासत कि प्रत्येक लड़की की जान लेती है और अब वह खुद चंद्रिका के जाल में फंस चुकी थी। उसने पीछे मुड़कर मृणाल को देखा तो वह बावड़ी से निकली सूखी जड़ों में उलझ चुका था। अब मीरा को साफ नजर आ रहा था, यह भी स्तिथि थी या तो वह उस आत्मा से डर कर मा जाए या लड़ते लड़ते मरे। मीरा फैसला कर चुकी थी।

"मतलब सब सच कहते हैं तुमने अपनी कुरूपता का अभिशाप सब पर लगा दिया है। अरे तुम्हें तो अच्छे काम कर के अपने गुणों से अपनी कुरूपता को छिपा लेना चाहिए था मगर तुमने तो साबित कार दिया की तुम्हारे चेहरे की तरह ही तुम्हारी आत्मा भी कुरूप है।" मीरा ने गुस्से में कहा। उसके इतना कहते ही तेज़ धूप में बारिश होने लगी, बावड़ी में लगी झाड़ियों में खुद ब खुद आग लग गई उस आग से उठती प्रत्येक लपेट मानो मीरा को जलाना चाहती हो। बावड़ी में भरे पानी से एक गुर्राहट निकली।

"अरे थारे खून में ही म्हारे को गलत समझने की समस्या है,म्हारा त्याग आज तक कोई देख ही कोनी पाया" एक गुस्से से भरी आवाज़ गूंजी। यह आवाज़ मीरा को मदद के लिए पुकारने वाली आवाज़ से भिन्न न थी।

"क्या मतलब?" अब मीरा ने थोड़े नर्म स्वर में पूछा।

"ना मीरा बाईसा, आज तक म्हारे से बात करने की जहमत ही कोई उठायो कोनी, जे थारे जैसी कोशिश कोई और कियो होतो तो यो रियासत यों तबाह कोनी हुई होती" बावड़ी के पानी में से ही वह आवाज़ फिर गूंजी।

"म....त....ल....ब" मीरा बमुश्किल इतना ही बोल पाई।वह डर तो रही थी मगर हिम्मती भी थी, अब एक नया रहस्य उसके सामने था। अगर यह सब चंद्रिका ने नहीं किया तो और किसने किया। उसका दिमाग अब कुछ भी सोच पाने की स्तिथि में नहीं था।

"थाने छोटी रानी सा देखी है ना पाणी में, वोई है जे सब रेे पीछे, उसीने राजा सा मतलब म्हारे बापू सा ने अपने रूप रे जाल में फंसाके उनसे ब्याह कियो पण वो चुड़ैल थी चुड़ैल, हर सुंदर छोरी रे रूप ने खा के खुद जिंदा रहती। वा रात भी वो रूपवती री जान लेने वास्ते काला जादू करने लाग री थी,मने उसने देख लियो वो सब करते हुए, उसके ख़तम होने रो अकेलो उपाय भी पता लगा लियो। इसके बाद मने बस इतनो ही समझ आयो कि मैं जीते जी तो उस चुड़ैल ने मार कोनी सकू हूं, काईं पता मरने बाद छोटी रानी ने रोक पाऊं, और उसी दिन मने अठे कूदकर अपनी जान दे दी। मगर मरने रे बाद भी मैं आत्मा ही रह गई, उसने रोक कोनी सकी। मने उसके जादू करते समय देख्या था कि अगर वो चुड़ैल किसी छोरी ने मारती तो वो भी चुड़ैल ही बन जाती, अब म्हारे पास रियासत ने चुड़ैलों से बचाने रो बस एक ही उपाय था, हर छोरी ने मार देनो वरना वो मारती तो पूरी रियासत में बस चुड़ैल ही चुड़ैल घूमतीं।" चंद्रिका ने पानी में रहकर ही कहा।

"और हर लड़के से शादी, वो आप क्यों चाहती थीं?" मीरा ने पूछा।

"जो भी म्हारे से ब्याह करता, वो म्हारे बाद किसी और से भी ब्याह करता, इस नाते उसकी दो पत्नी हो जाती और रिश्तों रे अनुसार, मैं भी उस होने वाले बच्चे री मां होती, बड़ी मां, और वो चुड़ैल, एक कुरूप रे बच्चे ने कभी हाथ भी न लगाती, उसने तो सब रूपवान चाहिए थे न। जो म्हारे रूप ने स्वीकार कर के म्हारे से ब्याह कर पाता आज तक ऐसा कोई हुआ ही कोनी। जे कोई म्हारे से ब्याह कर पाता जबी तो मैं उसने चेता पाती, उस चुड़ैल ने ख़तम करने का रास्ता बता पाती। उस चुड़ैल ने इसी चीज रो फायदा उठायो और एक एक कर सब बारात में आईं औरतों और बच्चियों री उम्र खाती गई। आज भी इस बावड़ी में वो सब औरतें और छोरियां चुड़ैल बनके घूमे हैं, पर अठे मैं उन्हें रोक सकूँ हूं।" चंद्रिका ने कहा जोकि अब भी पानी में ही थी।

"आप बाहर आइए, कोई तो रास्ता होगा उसे ख़त्म करने का?" मीरा ने कहा।

"राजमहल में ही ऊपरी मंजिल पर वोई कमरा है, उस कमरे में छोटी रानी रो जादू तो समान भरो पड़ो है और उसी सामान में उसकी आत्मा अटकी पड़ी है, वो समान ख़तम तो वो चुड़ैल भी ख़तम" चंद्रिका ने पानी से बाहर आकर बताया। उसे देखकर मीरा का कलेजा मुंह को आने लगा। एकदम सफ़ेद पड़ चुका गला हुआ चेहरा जिसपर कईयों फोड़े थे जिनसे खून और पीला द्रव टपक रहा था।

"इसीलिए आज तक कोई उसे ख़त्म नहीं कर पाया क्योंकि उस कमरे में जाना मन है?" मीरा ने कहा।

"अब थारे को ही उसने ख़तम करना होगा और जाके कह देना सब ने खूनी बावड़ी अब कभी किसी रो खून कोनी करेगी" चंद्रिका ने भरी आंखों से मीरा को देखा और उसके सिर पर हाथ फेरती हुई एक रोशनी की बिंदु बनकर बावड़ी के पानी में समा गई, और मीरा के बावड़ी से निकलते ही पूरी की पूरी बावड़ी ढहने लगी, अब बावड़ी का कोई नामो निशान तक न था। बावड़ी पट चुकी थी .... हमेशा के लिए । चंद्रिका अपने साथ साथ सभी चुड़ैलों को ख़त्म कर गयी थी।

मीरा अब एक पल की भी देर नहीं करना चाहती थी, वह जानती थी अब छोटी रानी की रूह जरूर उसे रोकने आएगी और अब तो उसकी मदद करने वाली चंद्रिका की आत्मा भी मुक्त हो चुकी थी। मीरा ने मृणाल को उठाया। चंद्रिका के मुक्त होते ही जड़ों में लिपटा हुआ मृणाल भी उसके बंधन से मुक्त हो गया था।

"जल्दी राजमहल चलो" मीरा ने मृणाल से कहा और खुद गाड़ी चलाने लगी। रास्ते में उसने सारी बात मृणाल को बता दी और उसे कुछ समझा नहीं दिया। अब बस वह जल्द से जल्द राजमहल पहुंचना चाहती थी। जैसे जैसे वह गाड़ी की रफ्तार बढ़ा रही थी वैसे वैसे ही दोपहर के समय तपती धूप में भयानक चीखें गूंजती जा रहीं थीं।

"रुक जाओ मीरा" मृणाल ने अपनी गर्दन एक ओर लटकाकर फुफकारते हुए कहा। उसकी आंखों के पास पड़े काले घेरे और होठों की लाली चुगली कर रहे थे कि उस पर चुड़ैल ने अपना कब्ज़ा जमा लिया था। अब मृणाल उसका हाथ चबाने लगा था, उसके हाथ का एक बड़ा हिस्सा मृणाल अब चपर चपर की आवाज़ के साथ खा रहा था। डर और दर्द से मीरा की चीख निकल गई। उसने अपने पास रखी स्टील की बॉटल मृणाल के सिर पर मार दी ताकि वह कुछ वक़्त तक बेहोश हो जाय, उसकी तरकीब काम कर गई, मृणाल बेहोश हो चुका था। उसने गाड़ी रियासत के मंदिर की ओर बढ़ा दी और मृणाल को वहां छोड़कर अकेली ही राजमहल की ओर बढ़ने लगी। अब चारों तरफ शांति थी। मीरा को पता था यह तूफान से पहले की शांति है, सांय सांय की हवाएं उसका आत्मविश्वास कमज़ोर कर रही थीं। उसने जैसे ही महल में प्रवेश किया, सब हक्के बक्के रह गए।

"मीरा आप वापस कैसे आईं?" उसकी मां ने डर कर पूछा।

"छोटी रानी का कमरा कहां है?" मीरा ने बदले में सवाल किया। उसके इतना कहते ही राजमहल की खिड़कियों में लगे कांच एकसाथ टूटकर परिवार के प्रत्येक सदस्य को घायल करने लगे। दोपहर के वक्त पूरा राजमहल कभी घनघोर अंधेरे में डूब जाता तो कभी आंखें चुंधियाने वाले उजाले में डूब जाता। गर्म लपटें राजमहल की हर वस्तु को राख करने लगी थीं। चारों तरफ से भयानक चीखें गूंज रही थीं।

"मीरा आप वापस कैसे आईं? अब आ तो गई हैं आप मगर जाएंगी कैसे?" मीरा की मां ने गर्दन टेढ़ी करते हुए कहा। उनकी आंखों के पास वही काले घेरे और होठों पर लाली आ गई थी जो कुछ समय पहले मृणाल के चेहरे पर थी।

"आपको खत्म कर के जाएंगे अब हम" मीरा ने दृढ़ता से कहा और ऊपर की ओर बनी सीढ़ियां चढ़ने लगी कि तभी उसे अपने पैरों पर कुछ गर्माहट महसूस हुई, और इसके तुरंत बाद उसे कईयों चीखें एकसाथ सुनाई दीं। उसने नीचे झुक कर देखा तो सीढ़ियों पर खून ही खून फैला पड़ा था और एक शाही तलवार उसके आर पार हो चुकी थी। उसने पीछे मुड़कर देखा तो पाया कि उसकी मां में प्रवेश कर चुकी उस चुड़ैल के चेहरे पर एक विजई मुस्कान थी और उसके परिवार के सभी लोग जमीन पर पड़े हुए ही आंसू बहा रहे थे, सब के सब किसी अनजानी शक्ति से बंधे हुए थे और हिल भी नहीं पा रहे थे। मगर जब उसका ध्यान अपने पिता की ओर गया तो उसका दिल धक्क से रह गया, वह वहीं सीढ़ियों पर धम्म से गिर पड़ी। जमीन पर गिर हुए उसके पिता के भी सीने में एक शाही तलवार घुपी हुई थी, अपनी पत्नी में प्रवेश की हुई छोटी रानी को रोकने की कोशिश में उनकी जान चली गई थी। अब मीरा की मां ( छोटी रानी ) ने मीरा के पेट में घुपी वह तलवार निकाली और अपना ही गला काटने वाली थी कि तभी वह उछल कर सीढ़ियों से जमीन पर आ गई और मीरा की मां का शरीर एक ओर पड़ा था और वह चुड़ैल किसी अदृश्य पानी में डूबने लगी और कुछ ही पलों में गायब हो गई। तभी ऊपर की मंजिल से मृणाल नीचे आता हुआ नज़र आया।

"तुमने सब खत्म कर दिया?" मीरा ने लगभग बन्द हो चुकी अपनी आंखों से मृणाल को देखते हुए पूछा।

"हां मीरा, तुम्हारे बताए अनुसार मैंने राजपुरोहित जी की मदद से वह कमरा ढूंढ़ लिया था और गुप्त रास्ते से जाकर सब जला दिया, तुम्हारे कहे अनुसार पंचतत्वों का इस्तेमाल करके सब जला दिया, सब खत्म हो गया मीरा" मृणाल ने कहा। यह सुनकर अब मीरा के चेहरे पर विजई मुस्कान थी, उसने सुकून से अपनी आंखें मूंद लीं।

राजमहल ने अपना राजा , अपनी रानी और अपनी बेटी हमेशा के लिए खो दिए थे मगर अब उसके पास चार नहीं पांच बेटे थे। अब राजगढ़ ही मृणाल का अपना घर था। वह मीरा के बाकी के परिवार के साथ ही रहने लगा था। अब राजगढ़ की कोई भी लड़की कभी नहीं मरती थी......