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नाले बा - कल आना

"वाओ अंतस! वाकई ताजमहल की खूबसूरती का कोई जवाब नहीं। अपने भारत में ही घूमने की इतनी खूबसूरत जगह हैं मगर न जाने क्यों लोग अपने भारत को न देखकर विदेशों को देखने की ख्वाहिश रखते हैं। अपना भारत चाहे न घूमा हो मगर वर्ल्ड टूर करना है.... हुंह" अन्तिम वाक्य में वेदिका कड़वाहट से भर गई थी।

"तुम क्यों चिढ़ती हो वेदी? लोगों की सोच है यह तो, हम कितनों को बदलेंगे?" अंतस ने वेदिका को मन मारकर समझाया क्योंकि कहीं न कहीं उसकी सोच भी वेदिका से मिलती थी मगर वह कुछ कर नहीं सकता था।

अंतस और वेदिका की शादी को तीन साल हो गए थे। लगभग आठ महीने पहले वेदिका का मिसकैरेज हो चुका था और वह तनाव में थी, न कुछ कहती थी न सुनती थी। उसे अपनी ही सुध नहीं रहती थी। इसीलिए अंतस अपनी मां के कहने पर वह उसे आगरा और राजस्थान घुमाने लाया था। राजस्थान घूमने के बाद वे दोनों आगरा पहुंचे थे और वहां से वापस कानपुर में बसे अपने घर जाने वाले थे।

कुछ देर बाद दोनों ताजमहल से बाहर आ चुके थे। बाहर आकर देखा तो एक बार फिर वेदिका का मन कड़वाहट से भर गया था। एक नव विवाहित जोड़ा कुछ गरीब बच्चों को खाना बांट रहा था और सेल्फी पर सेल्फी लिए जा रहा था।

"देखो अंतस यह है इनकी दरियादिली, गरीबों की खुशी के लिए नहीं, लाइक्स की बाढ़ के लिए करते है यह सब" वेदिका फिर कड़वाहट से बोली। अंतस कुछ कह पाता इससे पहले ही वेदिका उस नव विवाहित जोड़े के पास पहुंच गई और उस लड़की पर चिल्लाने लगी "यही करने के लिए इसे खाना खिलाया था ताकि तुम्हारा दिया खाना खाने के बाद तुम्हारी दुत्कार भी खा सके" दरअसल हुआ यह था कि उस लड़की के खाना देते ही एक नन्ही सी बच्ची स्नेह से उससे लिपट गई थी और उस लड़की ने उस बच्ची के मैले कुचैले कपड़ों के कारण उसपर हाथ उठाकर उसे दूर धक्का दे दिया था। वह जोड़ा वहां से चला गया और वेदिका उस बच्ची को दुलारने लगी।

कुछ देर बाद वे दोनों अपने होटल के बाहर थे जिसमें उन्होंने पहले से बुकिंग कराई हुई थी। होटल की बाहरी खूबसूरती से वेदिका प्रभावित हो गई थी मगर तभी उसका ध्यान होटल के मेन गेट के एक ओर एकदम महीन, छोटे से अक्षरों में लिखे "कल आना" पर पड़ा।

"यह ऐसा क्यों लिखा हुआ होगा?" वेदिका ने
अंतस को देखते हुए कहा।

"अंदर जाकर पूछ लेना और अपनी जिज्ञासा शांत कर लेना मेरे आइंस्टाइन" अंतस ने हंसते हुए कहा।

होटल के अंदर पहुंचते ही वेदिका ने वह बैठी रिसेप्शनिस्ट से सवाल किया "होटल के बाहर कल आना क्यों लिखा हुआ है?"

"पता नहीं मैम, कोई ऐसे ही लिख गया होगा" कहकर रिसेप्शनिस्ट ने उन्हें उनके रूम की चाबी पकड़ा दी।

कुछ देर बाद दोनों अपने रूम में थे और चाय के दीवाने अंतस ने अपने और वेदिका के लिए एक एक चाय ऑर्डर की थी। कुछ ही मिनटों में चाय लेकर वेटर हाज़िर था।

"आपको होटल के बाहर लिखे "कल आना" के बारे में जानकारी क्यों चाहिए मैडम? कोई बात है क्या?" उस वेटर ने अचानक ही वेदिका से पूछा।

"नहीं बात तो कुछ नहीं मगर अजीब लगा बस इसीलिए पूछा.... वाकई कुछ अजीब तो है... नहीं?" वेदिका ने कहा।

"जी मैडम, अजीब तो है मगर आप यह बात किसी और से मत पूछिएगा होटल के लिए अच्छा नहीं रहता न" वेटर ने लगभग चापलूसी करते हुए कहा।

"ठीक है आप बता दीजिए" वेदिका ने कहा।

"मैडम यहीं होटल के पास, लगभग कोई दो किलोमीटर के दायरे में एक छोटा सा शहर है, उसका नाम है कलाना। वहां हर घर के बाहर "कल आना" लिखा होता है। शाम होने के बाद ज्यादा देर तक कोई लड़की घर से बाहर भी नहीं रहती है वहां पर। "कल आना" को जोड़कर ही कलाना बन गया और कोई चालीस सालों से लोग उस शहर को कलाना शहर के नाम से ही जानते हैं। रात होते ही वहां से अजीब अजीब सी आवाजें आने लगती हैं। सुना है कोई आत्मा वहां घूमती है। अब क्या है कि होटल है तो आगरा में मगर ये मान कर चलिए कि कलाना की सीमा से लगा हुआ है, कभी कभी वह आत्मा यहां भी आ जाती है, रातों को घूमती रहती है और यह होटल के बाहर जो "कल आना" लिखा हुआ है इसे पढ़कर ही वह आत्मा वापस लौट जाती है। जहां यह "कल आना" नहीं लिखा हुआ होता वहां कोई न कोई मौत जरूर होती है।" वेटर ने पूरी बात बताई।

"किसकी आत्मा है?" अंतस ने पूछा।

"कुछ साफ साफ पता नहीं है सर, कुछ कहते हैं किसी औरत की आत्मा है तो कुछ कहते हैं कि किसी बच्चे की आत्मा है। वैसे सुबह के उजाले में बहुत खूबसूरत शहर है कलाना। आप जाना चाहें तो देख आइएगा मगर शाम होने से पहले ही लौट आइएगा। वहां औरतें और लड़कियां ज्यादा देर बाहर नहीं रहतीं" उस वेटर ने कहा।

"हम्म" वेदिका ने छोटा सा जवाब दिया।

"मैडम मैंने आपको यह पूरी बात बताई है आप किसी से कहिएगा नहीं, वरना मेरी भी जॉब चली जाएगी और घर में अकेला कमाने वाला हूं" वेटर ने कहा।

"आप निश्चिंत रहिए भैया" वेदिका ने मुस्कुराकर कहा तब वह वेटर चला गया।

"कल कलाना चलेंगे अंतस" वेदिका ने आदेशात्मक लहजे में कहा।

"जो हुकुम मेरे आइंस्टाइन" अंतस ने फिर हंसते हुए कहा।

अगले दिन सुबह सुबह वेदिका जल्दी उठ गई थी और अंतस को भी गहरी नींद से जगा दिया था।

कुछ देर बाद वे दोनों कलाना शहर में थे। वाकई अपने नाम के अनुसार उस शहर में बनी हर इमारत पर "कल आना" लिखा हुआ था। जगह वाकई खूबसूरत थी। इतनी अच्छी जगह और हॉन्टेड कोई सोच भी नहीं सकता। वेदिका ने मन ही मन सोचा। सुबह के समय खासी चहल पहल थी। दोपहर तक वेदिका वाहन खरीददारी करती रही और हल्की शाम होने पर वह अंतस के साथ एक पार्क में बैठकर चाट खा रही थी। वेदिका और अंतस दोनों ही उस वेटर की शमा होने से पहले लौट आने वाली चेतावनी भूल चुके थे। जैसे जैसे शाम गहरा रही थी बाहर घूमने वाली औरतों और लड़कियों की संख्या शून्य की ओर बढ़ रही थी।

"आप दोनों अभी तक यहीं हैं? आप लोग अपने होटल क्यों नहीं गए?" अंतस के पीछे से एक आवाज़ आई। जब वेदिका ने पीछे मुड़कर देखा तो पाया कि वह वही दुकानदार था जिससे उसने कुछ देर पहले कलाना शहर की कला का जीता जागता उदाहरण एक साड़ी के रूप में खरीदा था अर्थात वह व्यक्ति साड़ी की दुकान का मालिक था।

"आपको यहां के बारे में किसी ने नहीं बताया क्या कि यहां शाम होने के बाद कोई लड़की बाहर नहीं रहती?" उसने हैरत से पूछा।

"ऑफ्फो हम भूल कैसे सकते हैं उस वेटर ने बताया था, अब जल्दी चलो अंतस" वेदिका ने कहा।

"अब कोई फायदा नहीं मैडम, शाम होने के बाद शहर से कोई बाहर नहीं जा सकता है, आप चाहें तो हमारे घर चलिए, आप हमारे शहर घूमने आए तो इस हिसाब से हमारे मेहमान हुए, आप हमारे घर चलिए मगर यहां ऐसे बाहर मत बैठिए" उस व्यक्ति ने कहा। उसके चेहरे पर डर साफ नजर आ रहा था।

थोड़ा हिचकिचाते हुए अंतस और वेदिका उसके साथ उसके घर चल दिए। उसके घर पहुंच वेदिका ने देखा उसके घर में एक महिला थी जो उसकी पत्नी सुनंदा थी, दो बच्चे थे, रिया और राम और उस व्यक्ति जिसका नाम अशोक था, के माता पिता थे। आते ही अशोक ने अपने घर के सारे खिड़की दरवाजे बन्द कर लिए और इसके बाद अंतस और वेदिका को बैठने का इशारा करते हुए खुद भी एक सोफे पर बैठ गया।

"सुनंदा, जरा दो कप चाय ले आओ" अशोक ने अपनी पत्नी से कहा। चाय का नाम सुनते ही अंतस की आंखें चमक उठीं।

"वैसे यहां के बारे में क्या बातें हैं भैया? यह हर घर के बाहर "कल आना" क्यों लिखा हुआ है?" वेदिका ने अनजान बनते हुए पूछा।

"आज से चालीस साल पुरानी बात है, तब मैं पांच साल का था। मुझे यह बात बाबा ने बताई है। एक बहुत सुंदर लड़की थी रेवती। उसे अपनी सूरत पर बहुत गर्व था और अपने लिए कोई अच्छा वर चाहती थी मगर अपनी गरीबी के चलते उसके माता पिता ने उसकी शादी इस शहर में ही रहने वाले एक मजदूर से करा दी। रेवती घर घर जाकर काम करती और अपना घर चलाती। उसका एक बेटा था श्याम। बहुत सुंदर होने के बावजूद भी उसकी शादी एक मजदूर से हो गई थी वह कुढ़ी हुई थी जिसपर भी श्याम नैन नक्श में बिल्कुल अपनी मां पर गया था और रंगत में अपने बाप पर। सो रेवती और कुंठित हो गई। मगर फिर भी रेवती ने अपनी शादी निभाने की बहुत कोशिश की मगर उसका पति शराबी था और उसे बात बात पर तंग करता था। एक तो वह कुंठित थी ही ऊपर से पति का खराब व्यवहार। वह जहां काम करती थी, एक दिन अपने उसी मालिक के साथ भाग कर ब्याह रचा लिया। उससे ब्याह करने की शर्त केवल यही थी कि वह श्याम को अपने साथ न लेकर जाए, रेवती को श्याम से भी कोई खास लगाव तो था नहीं, सो वह उसे छोड़कर चली गई और अपनी अलग गृहस्थी बसा ली। श्याम के पिता ने उसे एक अच्छी परवरिश देने की कोशिश की, उसे स्कूल भेजता, उसका खयाल रखता मगर अत्यधिक शराब पीने से एक दिन श्याम का पिता भी चल बसा। अब नौ साल का श्याम बिल्कुल अकेला पड़ चुका था। उसने कई लोगों से सुना था कि उसकी मां किसी बड़े साहब के साथ रहती है, सो वह एक दिन वहां जा पहुंचा। हर अबोध की तरह वह भी अपनी मां का वात्सल्य चाहता था। वह जब उस सेठ के घर गया तो उसने अपनी मां से मिलने की इच्छा जताई तब सेठ ने उसे कह दिया कि कल आना, श्याम बच्चा ही तो था, उसने सेठ की बात पर यकीन कर लिया और चला गया। अगले दिन वह फिर अपनी मां से मिलने सेठ के पास पहुंचा तो उसने फिर श्याम से कह दिया कि कल आना, वह फिर लौट गया। इस बीच रेवती जानती थी कि श्याम उससे मिलने आता है मगर वह खुद ही उस सेठ को उससे मिलने से मना कर देती थी, भला वह श्याम के लिए अपनी ऐशो आराम की जिंदगी क्यों छोड़ती। श्याम कई दोनों तक "कल आना" सुनता और लौट जाता और फिर एक दिन उसने सोचा कि वह सेठ के घर के बाहर ही रुक कर अपनी मां का इंतजार करेगा। वह रात भर उस सेठ के घर के बाहर पड़ा रहा। वे सर्दियों के दिन थे नन्हा बच्चा बिना गर्म कपड़ों के, ठंड में पड़ा रहा था सो रातों रात उसकी मौत हो गई। मरते वक़्त भी अपनी मां से मिलने की उसकी आखिरी इच्छा पूरी नहीं हुई थी इसीलिए वह आत्मा बनकर भटकने लगा और एक दिन उस सेठ के घर में अंदर चला गया। वहां जाकर उसने उस सेठ को जान से मार दिया। वहां जब वह अपनी मां से मिला तो उसने उसे अपने पति का हत्यारा कहा, जीते जी तो क्या मरने के बाद भी उसे अपनी मां का प्यार न मिल सका। वह रोज रेवती से मिलने जाता मगर अपने पति के हत्यारे अपने बेटे से नफ़रत करती रेवती परेशान हो चुकी थी और वह समझ गई की उसे रोकने का बस एक ही तरीका है घर के बाहर लिख दिया जाए "कल आना" और उसने यही किया भी। श्याम की आत्मा उस "कल आना" को पढ़ती और लौट जाती। मगर अपनी मां का प्यार न मिलने के कारण अब वह बाहर वात्सल्य ढूंढने लगा था। वह हर किसी के घर में चला जाता और वहां की युवा लड़कियों और महिलाओं से वात्सल्य पाना चाहता मगर उनमें अपनी मां का चेहरा न पाकर वह निराश हो जाता और गुस्से से भरा हुआ वह उन्हें मार दिया करता। तब सभी शहर वासियों ने रेवती को उसके पापों की शिकायत करते हुए कहा कि अब श्याम की आत्मा सबको परेशान करती है। तब रेवती ने बड़ी ही बेशर्मी से श्याम की आत्मा से छुटकारा पाने का उपाय "कल आना" लिख देना बता दिया। हालांकि शहर वालों को श्याम से हमदर्दी थी मगर जिस तरह से वह सबकी जान ले रहा था, मजबूरी में सबने रेवती का बताया उपाय अपना लिया और अपने अपने घरों के बाहर "कल आना" लिख दिया।" इतना कहकर अशोक ने पानी पिया और अंतस और वेदिका की ओर देखने लगा।

"ऐसी औरत को तो मर जाना चाहिए था" वेदिका ने घृणा से कहा।

"आगे क्या हुआ?" इस बार सवाल अंतस ने किया।

"अब घरों और इमारतों के बाहर "कल आना" लिखा होने से श्याम अंदर तो नहीं जा पाता था मगर वह बाहर घूमती हुई हर लड़की और औरत में अपनी मां तलाशने लगा मगर उनमें अपनी मां न पाकर वह उन्हें मार दिया करता। तब लोगों ने अंधेरा होते ही अपनी बहू बेटियों को घर के बाहर निकलने से मना कर दिया। मगर अब भी अगर किसी घर के आगे "कल आना" न लिख हो या किसी कारणवश लिखाई मिट गई हो या कोई औरत या लड़की बाहर घूमती नजर आईं तो फिर श्याम उनमें अपनी मां खोजने लगता है...... तभी तो आज मैं तुम दोनों को अंदर के आया। वह हमारे घर में नहीं आएगा बाहर "कल आना" लिखा हुआ है।" इतना कहकर अशोक ने अपनी पत्नी को आवाज़ लगाई और उससे खाना बना या नहीं पूछने लगा।

"फिर रेवती का क्या हुआ भैया?" अंतस के आइंस्टाइन यानि वेदिका ने पूछा।

"रेवती को लकवा हो गया था और वह जल्दी ही मर गई, भगवान ने उसे उसके कर्मों की सज़ा दे दी थी मगर श्याम आज भी भटक रहा है.... न जाने कब बेचारे को मुक्ति मिलेगी" अशोक ने एक ठंडी सांस लेकर कहा।

कुछ देर बाद सभी डायनिंग टेबल पर बैठे हुए थे। अंतस और वेदिका थोड़े हिचकिचाए हुए थे मगर उनके पास दूसरा कोई विकल्प नहीं नहीं था। अभी किसी के मुंह में पहला निवाला भी नहीं गया था कि तभी सबको एक दर्द भरी चीख सुनाई दी।

"हे भगवान!" डरते हुए सुनंदा के हाथ से पानी का जग छूट गया।

"न जाने आज किसकी मौत आई है" अशोक ने अपने माथे पर उभर आई पसीने की बूंदों को पोंछते हुए कहा। सुनंदा दोबारा किचन में गई और पानी लेकर आ गई। एक एक ग्लास पानी सबको पकड़ा दिया। अशोक एक ही बार में पूरे ग्लास का पानी गटागट पी गया। अब सामने रखा खाना किसी से नहीं खाया गया और सब हॉल में आकर बैठ गए। बाहर चल रहे मौत के तांडव से बचने के लिए सब मन ही मन प्रार्थना कर रहे थे। हालांकि वे जानते थे कि श्याम घर के अंदर नहीं आएगा मगर डर तो डर है। कुछ देर बाद एक और भयानक दर्द भरी चीख गूंजी और इसके तुरंत बाद किसी बच्चे के जोर जोर से रोने की आवाज़ें आने लगीं जो कुछ मिनटों बाद गुर्राहट में बदल गईं।

"लगता है आज वह कुछ ज्यादा ही गुस्से में है, ऐसा तो पहले कभी नहीं हुआ" अशोक ने कहा। उसका इतना कहना था कि उसके दरवाजे पर दस्तक होने लगी। खट खट की वह भयावह आवाज़ सबके दिलों को बाहर उछालने के लिए काफी थी।

अशोक ने बहुत हिम्मत कर के बाद इतना ही कहा "कल आना" और इसके बाद वह ठक ठक की आवाज़ें बन्द हो गईं। सब तरफ शांति छा गई। श्याम चला गया था। इतनी देर तक अंतस और वेदिका तो सांस रोक सब देख - सुन रहे थे। उन्होंने बचपन से भूत प्रेत की कहानियां सब रखी थीं मगर किसी दिन उनका खुदका किस आत्मा से सामना होगा यह उन्होंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था। सब वापस अपनी अपनी जगह बैठ गए थे।

"मां.... मां.... बाहर आ जाओ मां, मैं तुम्हारा कब्ज इंतजार कर रहा हूं मां" बाहर से रोते हुए श्याम की आत्मा की आवाज़ आई। जिसे सुनकर अशोक और उसका परिवार। एक झटके में अंतस और वेदिका से दूर खड़े हो गए।

"क... क्या?" अचानक उनके ऐसे व्यवहार से वेदिका और अंतस दोनों ही चौंक गए थे।

"उसकी मां तुम हो.... तुम रेवती हो तुम" सुनंदा ने गुस्से से वेदिका को देखते हुए कहा।

"आप ऐसे ही हर किसी को घर उठा लाए और देखिए अब इनकी वजह से वह मुसीबत बाहर खड़ी है" सुनंदा ने अशोक से गुस्से में कहा।

"म.... मैं.... मैं उसकी मां नहीं हूं... वह तो चालीस साल पहले की बात है भैया मैं तो अभी अठ्ठाईस साल की ही हूं" वेदिका ने घबराते हुए कहा।

"आत्मा, आत्मा को पहचान लेती है। हो न हो तुम ही श्याम की मां रेवती का पुनर्जन्म हो तब ही तो वह तुम्हें मां कह रहा है। आज से पहले उसे कभी किसी के घर में ऐसे नहीं पुकारा। बेहतर होगा यह रात बीतते ही तुम लोग सुबह यहां से चले जाओ" अब अशोक के भी शब्दों में कठोरता आ गई थी।

बाहर की ओर तेज आंधी तूफान बारिश और रोने की सम्मिलित आवाज़ें सुनाई दे रही थीं।

"यह तुम लोग मेहमानों से किस तरह से बात कर रहे हो? अगर वेदिका बिटिया का पुनर्जन्म है भी तो उसने पिछले जन्म में को किया इससे उससे इस जन्म में नफ़रत करने से क्या होगा? रेवती को उसके कर्मों की सज़ा मिल चुकी थी। यह वेदिका है, इसकी कोई गलती नहीं है।" अशोक के पिता ने अपने बेटे बहू को डांटते हुए कहा।

"हमें माफ करना पिताजी हमसे गलती हो गई" अशोक को तुरंत ही अपनी और अपनी पत्नी की गलती का अहसास हो गया था।

"मैं बाहर जाऊंगी, श्याम अगर रेवती का बेटा है और वो रेवती मैं ही हूं तो मैं बाहर जाऊंगी" वेदिका ने दृढ़ता से कहा।

"तुम पागल हो गई हो क्या वेदी? तुम जानती हो न अगर तुम रेवती नहीं हुई तो वह तुम्हें भी बाकी सबकी तरह मार देगा" अंतस ने चिल्लाते हुए कहा।

"वह खुद एक मासूम बच्चा है अंतस, मां बाप का प्यार न मिलना और अनाथों का जीवन जीना क्या होता है यह मुझसे बेहतर भला कौन जान सकता है? मैं बाहर जाऊंगी" वेदिका ने उसी दृढ़ता से कहा।

"मां बाहर आओ मां" जैसे जैसे वक़्त बीत रहा था श्याम की आत्मा का रोने का स्वर खूंखार होता जा रहा था। अब आंधी इतनी तेज़ हो चुकी थी कि घर में लगी खिड़कियां के पल्ले कभी भी टूट सकते थे। सभी का ध्यान उन खिड़कियों पर था और इतने में वेदिका घर से बाहर निकल गई और बाहर से अशोक के घर का दरवाज़ा बन्द कर दिया। अंदर से सबकी आवाज़ें आ रही थीं जो उसे अंदर बुला रहे थे मगर कुछ ही पलों में उसका सारा ध्यान श्याम की दयनीय हालत पर गया तो उसे किसी की भी आवाज़ सुनाई देनी बन्द हो गई। वेदिका ने जैसे ही गली में बाहर निकल कर पलटकर दूसरी ओर देखा, डर से उसकी चीख निकल पड़ी। आसमान अमावस सा काला पड़ चुका था। तेज़ आंधी अब एक बवंडर का रूप ले चुकी थी बारिश के साथ साथ ओले भी गिर रहे थे। भराभर गर्मी में भी दिसंबर की ठंड जैसी ठंडक वातावरण में फैल गई थी। अशोक के घर से सामने वाले घर के दरवाज़े के दाईं ओर दीवार पर जब उसकी नजर पड़ी तब उसे सारा माजरा समझ आ गया। दीवार पर लिखा हुआ "कल आना" में से "कल" बारिश के पानी से धुल गया था, उन्होंने कोयले से लिखा हुआ था जबकि बाकी सभी घरों पर "कल आना" पक्के रंगों से लिखा गया था। सामने गली की सड़क पर, तीन लड़कियों के क्षत विक्षत शरीर पड़े हुए थे और उनका चेहरा बिल्कुल खराब कर दिया गया था, बारिश के पानी और धूल मिला हुए खून सड़क पर बह रहा था जो बहते बहते वेदिका के पैरों के नीचे तक आ गया था। उसने उन लाशों पर से अपनी नजरें हटाकर सामने देखा तो उसे वह नजर आया। सफेद शर्ट और भूरे रंग की स्कूल ड्रेस में श्याम खड़ा हुआ था। उसका चेहरा बिल्कुल भी भयानक नहीं था, हां हल्का सफेद पड़ा हुआ था। उसके नाक नक्श बिल्कुल वेदिका जैसे ही थे जैसे उसी की कॉपी हो वह। उसे अशोक की बात याद आई, श्याम के नाक नक्श अपनी मां रेवती पर गए थे। अब वेदिका को यकीन हो चुका था कि वह ही रेवती है। श्याम के हल्के सफेद पड़ चुके चेहरे पर उसकी आँखें जरूर सुनहरी हरी पड़ गई थीं जैसी रात को किसी जानवर की आंखों में रोशनी डालने पर उनकी आंखे चमकीली सुनहरी हरी लगती हैं, ठीक वैसी ही। उसके बाल उसके माथे पर बिखरे हुए थे और उसके मैले कुचैले कपड़ों में कहीं खून तो कहीं मिट्टी के धब्बे थे। श्याम की आंखों से काले आंसू बह रहे थे।

वेदिका ने "श्याम यहां आओ बेटा" कहकर अपने हाथ फैला दिए। श्याम भागता हुआ आया और उसके गले लग गया। "मां, मां तुम आ गईं" कहते कहते श्याम रोने लगा, बहुत बुरी तरह सिसक सिसक कर रोने लगा।

"मां तुम कहां चली गईं थीं?" श्याम रोते रोते ही पूछा।

"अब कहीं नहीं जाऊंगी बेटा" वेदिका ने लाड़ से श्याम के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा।

"मां देखो वो तेज़ रोशनी देखो वो मुझे बुला रही है, मां अबकी बार जब मैं लौट कर आऊंगा न तब कहीं नहीं जाऊंगा, कोई शैतानी नहीं करूंगा, अच्छा बच्चा बन जाऊंगा और तुम भी मुझे छोड़कर कहीं भी नहीं जाना मां, मैं दोबारा तुम्हारे साथ खुश रहने आऊंगा" श्याम ने सिसकते हुए कहा।

"नहीं बेटा अबकी बार तुम खूब सारी शैतानी करना, खूब शरारत करना, मां तुम्हें बहुत अच्छा खाना खिलाएगी, अच्छे अच्छे खिलौने देगी और सुंदर सुंदर कपड़े पहनाएगी और तुम्हें अपनी जान से भी ज्यादा प्यार करेगी। वेदी मां तुम्हें कभी अकेला नहीं छोड़ेगी बच्चा" वेदिका भी सिसकते हुए बोली। हालांकि उस अपने पिछले जन्म का कुछ भी याद नहीं था मगर श्याम उस अपना ही बेटा लग रहा था। उसके गाल को लाड़ से चूम कर श्याम उसे देखकर अलविदा की मुद्रा में हाथ हिलाता हुआ, मुस्कुराता हुआ आसमान में ऊपर उठ गया और एक रोशनी की तेज़ चमकती छोटी सी बिंदु में बदल कर आकाश में कहीं विलुप्त हो गया। वेदिका दहाड़ें मार मारकर रोती रह गई। वह उठी और अशोक के घर का दरवाज़ा खोल दिया जिसे उसने बाहर से बंद कर दिया था। वह अंतस के गले लगकर "मेरा श्याम चला गया" कहकर रोए ही जा रही थी।

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एक साल बाद

वेदिका हॉस्पिटल के एक बेड पर लेती हुई थी और नर्स ने आकर एक बच्चा उसके पास ही लेटा दिया।

"बिल्कुल तुम्हारी कॉपी है हमारा बेटा" अंतस ने वेदिका के सिर पर हाथ रखकर कहा।

"हां... मेरा श्याम लौट आया" पहले वेदिका ने और फिर अंतस ने मुस्कुराते हुए अपने नन्हे से श्याम का माथा चूम लिया।