संबंधों को संजोकर रखने में पूरा दिसंबर का माह निकल जाता है। लगता है, यह माह पतझड़ का हैं। छोटी डालियों से बड़े हो चुके वृक्ष में लगे खूबसूरत फूलों को एक निजी संबंध समझता हूॅ। जाे हर मौसम में यादों की तरह साथ रहने के बाद अचानक माह के अंत में जमीन पर गिरा हुआ मिलता है। मन करता है इस माह काे झंझोड़ दूॅ पुरानी घंडी की तरह ताकि फिर सभी संबध पहले के जैसे काम करना शुरू कर दे। अचानक उसका कहां याद आया, आज हम रात में बात करेंगे। मुझे दिसंबर को झंझाेड़ देने वाली बात याद आ गई। हम सालों बाद बात करने वाले थे। दोनाें का वर्तमान काफी बदल चुका था। मैं उस संवाद को बेहतर करने रिहल्स करता हूॅ। संवाद से पहले सभी सवालों के अच्छे जवाब मेरे पास थे। इस बातचीत मेंं सालों तक मैंने तुम्हे जितन अकेला जिया है और जितना तुमने मुझे याद किया है। हम वो एक-दूसर को बाटेंगे। और हमारे संवादों से था शब्द को वर्तमान के हॉ में बदल देंगे। पहले से निर्धारित हो चुका था हम वीडियाें में बात करेंगे। रात 2 बजते ही कॉल आया। शायद दोनों को उत्सुकता अंदाजा पहले से था। कॉल उठाया और दोनों के चेहरे में मुस्कुराहट थी। पहले संवाद कौन शुरू करेंगा के इंतजार में कुछ मिनट युही बीत गए है। अंत में मैने कहां, कैसे हाे तुम। यह वाक्य काफी देर तक मन में दौड़ रहा था। मेरा कहां सुन चेहरे से उसकी नजरें रूम में चली गई। मुझे लगा मैने हमारे बीच का वह तार काट दिया जिसकी वजह से हम दोनोें बैठे थे। कुछ समय तक हालचाल पूछ लेने के बाद दोनों ने एक साथ कहां, और बताओं तुम कुछ। और मैं खुद को बोर्ड की परीक्षा देते हुए नजर आया, जिसमें सभी सवालों के जवाब आने के बावजुद लिखते वक्त कुछ याद नहीं आ रहा। खुद को कोसने लगा ऐसे तैयारी क्या काम की। हम घंटो तक बात करते हुए अपनी पुराने यादों में एक नया रंग भरने लगे। अचनाक उसने कहां, रूम में मैं कहीं दिख नहीं रही। मेरे उपस्थिति तुम कैसे दर्ज कराते हो। थोड़ा चुप रहकर कहां, तुम वर्तमान में हो यार। तुुमकों उस दिसंबर माह के बाद वहीं रखा है। इस वाक्य ने संबध के अंत पर पहुंचा दिया। जब दोनों का निर्णय था हम अकेले रहेंगे। मैं सोचने लगा हमारे बीच चल रहा यह संवाद किस तरह खत्म होगा? क्या मैं कहुंगा या वो? इससे सवाल से ज्यादा उन अंतिम वाक्यों के बारे में सोच रहा था। क्या यह बातचीत हमेशा के लिए यही खत्म होगी। या हम फिर बात करेंगे वाक्य से खत्म होगा। तभी उसने नाम लेकर कहां, अब मैं फोन रखती हूॅ। सुबह जरूरी काम है। मन की मन कहने लगा, काश ये मेरा नाम ही ना होता वो किसी और से कह रही होती। अंतिम समय में देखकर मुस्कराने लगी। ये मुझे इंजेक्शन लगने से पहले दर्द जैसा लगा। फोन कट जाने के बाद सुबह का जीवन पहले की तरह था। बातचीत के सभी संवादों को काफी दिनों तक जिता रहा। तभी दिसंबर माह ख़त्म होने की याद आ गई। और मैंने देखा पेड़ के नीचे जमीन पर एक फूल गिरा हुआ था। खैर ...