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शक़

कहानी - शक़

बात उन दिनों की है जब झारखण्ड बिहार राज्य का हिस्सा था . बिहार के रांची शहर ( जो आज झारखण्ड राज्य की राजधानी है ) में तीन दोस्त रहते थे . तीनों बचपन से ही एक ही स्कूल में पढ़ते थे .पर स्कूल की पढ़ाई के बाद उनके आगे की पढ़ाई साथ नहीं हो सकी .प्रेम , जो पढ़ाई में शुरू से ही काफी अच्छा था , इंजीनियरिंग पढ़ने रांची से महज सात किलोमीटर दूर मेसरा के कॉलेज में चला गया .बाकी दोनों चेतन और विकास रांची के ही पॉलिटेक्निक में इंजीनियरिंग डिप्लोमा पढ़ने लगे .फिर भी तीनों अच्छे दोस्त बने रहे .छुट्टी के दिनों में तीनों साथ ही मौज़ मस्ती करते थे .

रांची कभी हिल स्टेशन हुआ करता था .बिहार के बंटवारे के पहले यह बिहार का समर कैपिटल था . पर बढ़ती आबादी और औद्योगीकरण के कारण अब इसे हिल स्टेशन कहना अनुचित होगा .बहरहाल इसी रांची के टैगोर हिल के पास एक पॉश कॉलोनी थी .यहीं पर हाई कोर्ट के नामी एडवोकेट सिन्हा साहब का एक आलीशान बंगला था .बंगले के सामने एक बहुत बड़ा लॉन था जो लगभग फुटबॉल मैदान के आधे से ज्यादा ही होगा .मैदान के दूसरे छोर पर दो कमरों का एक आउट हाउस था .विकास के पिता एडवोकेट साहब के मुंशी थे .सिन्हा साहब के मुकदमे से सम्बंधित पेपर वर्क मुंशीजी ही करते थे , सो उन्होंने मुंशीजी को अपना आउट हाउस दे रखा था . मुंशीजी की पत्नी सुदूर उत्तर बिहार के एक गाँव में ही रहती थीं . पर विकास पढ़ाई के लिए पिता के साथ रहता था .

तीनों दोस्त सिन्हा साहब के मैदान में ही खेला करते थे कभी क्रिकेट , कभी फुट बॉल तो कभी बैडमिंटन .सिन्हा साहब का एक दस साल का लड़का कामेश भी उनके साथ खेलता , बल्कि यूँ कहें कि उसी के कारण ही यह मैदान खेलने को मिलता था . कॉलेज के दिनों में भी तीनों सिन्हा साहब के मैदान में ही खेला करते थे . सिन्हा साहब की एक लड़की भी थी किरण जो उन दिनों लगभग सत्रह साल की रही होगी .किरण बहुत गोरी और सुन्दर थी .वह भी वहीँ के कॉलेज में पढ़ती थी . अक्सर वह चारों को खेलते देखा करती थी , मुस्कुराती और अपने छोटे

भाई को प्रोत्साहित करती थी . बीच बीच में तीनों दोस्त भी नज़र चुरा कर उसको देख लेते थे फिर इशारों इशारों में मुस्कुरा कर आपस में ही उसके हुस्न की तारीफ़ भी कर लेते थे .

विकास को अक्सर रात में अधिवक्ता सिन्हा साहब के घर जाना पड़ता था . उसके पिता कचहरी के पेपर टाइप कर , चेक कर सिन्हा साहब को भिजवा देते थे ताकि वे उसे रात में ही चेक कर अगले दिन कोर्ट में पेश करते .ऐसे में कई बार उसका सामना किरण से हो जाता था .पर दोनों ही मुस्कुरा कर हाय , हेलो भर ही करते .विकास कभी पूछ लेता था " आप कैसी हैं ? "

किरण भी मुस्कुरा कहती " ठीक हूँ , और तुम ? "

विकास तो इससे आगे कुछ बात करने की हिम्मत ही नहीं कर सकता था क्योंकि उसे मालूम था कि उन्हीं लोगों की कृपा से शहर में रहने की मुफ्त सुविधा मिली थी . पर प्रेम जरा चतुर था. वह किरण के भाई कामेश से दोस्ती किये था .

खेल कूद के दौरान भी वह अक्सर बॉल को जान बूझ कर छोड़ देता ताकि बॉल उसके बरामदे तक चला जाये , जहाँ किरण कुर्सी पर बैठी उनका खेल देखा करती थी . और वह उससे मुस्कुरा कर ' हाय ' कर लेता .इस तिगड़ी का तीसरा मित्र चेतन जरा शांत , संकोची और शर्मीला स्वाभाव का था . वह बस अपने दोस्तों की करतूतें देखता और मुस्कुरा देता .पर तीनो ही किरण को मन ही मन चाहते थे , पर कोई भी किरण तक नहीं

पहुंच सका .प्रेम तो उसके समीप आने का कोई मौका गवांना नहीं चाहता था , उससे जी भरकर अपने मन की बात कहना चाहता था , पर ऐसा हो न सका .बहरहाल किसी की भी बात इससे आगे नहीं बढ़ी .पर प्रेम और कामेश आपस में संपर्क में थे .

देखते देखते तीनों अपनी पढ़ाई पूरी कर नौकरी करने लगे .प्रेम मुम्बई के एक फैक्ट्री में इंजीनियर था . विकास वहीँ रांची नगर निगम में ओवरसियर था और चेतन टाटा की एक फैक्ट्री में लग गया .तीनों की शादी भी हो चुकी थी . उधर किरण ने भी स्नातकोत्तर कर , बी .एड .कर लिया था . उसकी भी शादी मुम्बई में भारत सरकार में कार्यरत्त एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर राजन के साथ हो गयी थी और वह भी मुम्बई आ गयी .किरण की शादी हुए तीन साल हो चुके थे पर अभी तक वह माँ नहीं बन सकी थी .इसी बीच किरण के पिता का देहांत भी हो गया था .किरण का छोटा भाई कामेश भी मुम्बई में ही पढ़ रहा था .

इसी बीच एक शॉपिंग माल में किरण की मुलाक़ात प्रेम से हुई .दोनों काफी गर्मजोशी से मिले भी .किरण ने अपने पति राजन से उसका परिचय कराया .चलते समय किरण ने कहा " जब मुंबई में ही हो तो कभी घर पर भी आना ."

राजन ने भी कहा " हाँ , जरूर आना ." और अपना एक कार्ड उसे दिया .

प्रेम ने भी अपना कार्ड राजन को दिया .वह मन ही मन बहुत खुश हुआ कि कम से कम अब उसके पास बैठ कर बातें तो कर ही सकता है .

राजन का घर सायन में ही केंद्रीय सरकार के कर्मचारियों की कॉलोनी में था .प्रेम थोड़ी ही दूर पर परेल में किराए के मकान में रहता था . एक दिन राजन ने फोन कर प्रेम से कहा " कल संडे की शाम को हम लोग साथ चाय पीयेंगे .घर पर आ जाना .किरण ने बुलाया है ."

प्रेम " क्यों तुम नहीं बुला रहे , सिर्फ किरण ने कहा है ?"

" अरे नहीं यार , मैंने तो बस यूँ ही कहा था ताकि तुम किरण की बात नहीं टालोगे ." राजन बोला

" मैं भी यूँ ही मज़ाक कर रहा था . अच्छा , अब यह बताओ कि अकेले ही आऊं कि बीबी को ...."

राजन ने बीच में बात काटते हुए कहा " मुझे तो पता ही नहीं था कि तुम्हारी पत्नी भी यहीं है . यह भी कोई पूछने की बात है , उन्हें भी लाना ."

संडे शाम को प्रेम अपनी पत्नी और दो साल के बेटे के साथ किरण के घर पहुँचा .राजन और किरण ने उनका स्वागत किया . प्रेम ने अपनी पत्नी हेमा का परिचय उनसे कराया .

किरण ने हेमा से पूछा " तुम्हारा बेटा कितने साल का है ?"

हेमा "बंटी अगले महीने दो साल का हो जायेगा .जन्म दिन पर आपलोगों को निमंत्रण भेजूँगी ,जरूर आएंगे ."

राजन और किरण दोनों ने एक साथ कहा " जरूर आएंगे ."

चाय नाश्ते के बाद कुछ देर तक सभी गप्प करते रहे कुछ इधर उधर की , कुछ परिवार की और कुछ दोस्तों की .फिर प्रेम अपने घर लौट गया .

अगले महीने प्रेम के बेटे के जन्म दिन पर किरण और राजन उसके घर गए थे . बंटी को किरण ने अच्छा सा उपहार दिया था .पार्टी में बहुत कम गिने चुने लोग ही थे .बातों बातों में हेमा ने किरण से पूछा " आप दो से तीन कब हो रहीं हैं ?"

राजन बीच में ही बोला " प्रयास जारी है ." और हंस पड़ा था .

कुछ महीनों बाद किरण और राजन की वेडिंग एनिवर्सरी थी .उस दिन शाम को पार्टी में सब मिले थे . राजन ने शानदार पार्टी रखी थी ,उसके

लिए एक और विशेष कारण था .उसने सबको बताया कि अगले सप्ताह चार महीने की ट्रेनिंग के लिए सरकार उसे अमेरिका भेज रही है.प्रेम और हेमा ने उसे बधाई भी दी .

अगले सप्ताह राजन अमेरिका चला गया . उसे विदा करने एयरपोर्ट तक किरण और कामेश के अतिरिक्त प्रेम भी सपरिवार आया था .

इधर प्रेम की पत्नी गर्भवती थी सो वह कुछ दिनों के लिए बेटे के साथ मैके चली गयी थी . राजन के जाने के बाद प्रेम छुट्टी के दिनों अक्सर किरण के घर जाता था . घंटों वहां रहता , बातें होतीं कुछ मज़ाक की तो कुछ बीते दिनों की और कुछ भविष्य की .ज्यादातर कामेश भी उनके साथ होता था . अक्सर प्रेम लंच वहीँ कर लेता . कभी शाम को आता तो किरण डिनर के लिए रोक लेती बोलती " यहाँ तो बाबर्ची खाना बना देता है . तुम घर जा कर या तो खुद बनाओगे या फिर होटलबाजी करोगे .कम से कम छुट्टी के दिन यहाँ घर का खाना भी मिलेगा और दोनों का वक़्त भी कट जायेगा ."

चंद सप्ताह के बाद किरण को अपने अंदर बदलाव महसूस होने लगा. खाना खाने को जी नहीं करता और उल्टियाँ होती थी .मेडिकल चेक अप हुआ तो पता चला कि वह माँ बनने वाली है .उसकी ख़ुशी का ठिकाना न था.उसने राजन को भी फोन कर सूचित किया . वह भी खुश हुआ . उसने किरण से सावधानी बरतने को और अपना ध्यान

रखने को कहा तब किरण बोली " तुम चिंता न करो .यहाँ कामेश और प्रेम हैं न .प्रेम अक्सर आता रहता है .आजकल वह भी अकेला है. उसकी बीबी भी माँ बनने वाली है तो वह भी मैके गयी है ."

किरण के आखिरी वाक्य सुनने के बाद वह काफी विचलित और चिंतित हुआ था . उसके मन में संदेह होने लगा कि इतने दिनों तक तो किरण माँ नहीं बन सकी थी अब प्रेम के संपर्क बढ़ा तो वह गर्भवती हुई .जब तक वह विदेश में रहा उसका मन अशांत रहा .

चार मास बाद राजन भारत लौट आया था . तब तक मातृत्व के उभार किरण के शरीर पर दिखने लगा था . फिर भी वह अपना शक अपने अंदर ही छुपाये रहा . अभी भी प्रेम छुट्टी के दिन उसके घर आया करता और देर तक उन लोगों से बातें करता था . किरण भी राजन से उसकी तारीफ़ करती थी , बोलती कि उसकी अनुपस्थिति में वह किरण का पूरा ध्यान रखता था , डॉक्टर के यहाँ ले जाना ,टेस्ट कराना और जरुरी दवाईयां लाना .कामेश भी अक्सर उनके साथ जाता था . कामेश उन दिनों पैथोलॉजी का कोर्स कर रहा था . राजन को ब्लड प्रेशर की बिमारी थी , कामेश हर चार पाँच महीने पर राजन का ब्लड सैंपल लेकर खुद लैब जाता और रिपोर्ट्स लाता था .

उधर प्रेम की पत्नी को दूसरा बेटा हुआ तो वह अपने ससुराल गया था , पर दो हफ्ते में अकेला ही लौटा .लौटने पर राजन को बताया कि अभी हेमा को नहीं ला सका क्योंकि दो छोटे बच्चों को अकेले संभालना आसान नहीं है . लड़का कुछ बड़ा हो जायेगा तो वह उसे ले कर आएगा . .

इधर किरण को जब प्रसव पीड़ा हुई तो राजन ऑफिसियल टूर पर मुंबई से बाहर था . एक बार फिर प्रेम और कामेश ने ही मिल कर स्थिति को संभाला .जब तक राजन लौट कर आया किरण अपनी बेटी को लेकर अस्पताल से घर आ गयी थी . प्रेम अभी भी अक्सर किरण के घर आया करता था और उसकी बच्ची रिया को काफी प्यार करता था . किरण प्रेम से अब और भी फ्रैंक हो चुकी थी और काफी घुल मिल कर बातें करती थी . राजन को अंदर अंदर यह अच्छा नहीं लगता था . उसके मन का शक और गहरा हो चला था .

एक दिन प्रेम की प्रशंसा करते हुए किरण ने पति से कहा " यह हमलोगों का सच्चा मित्र है .काफी सहायता की है इसने ."

राजन " असल में तो वह तुम्हारा बचपन का दोस्त है ."

" नहीं ,नहीं ऐसी कोई बात नहीं है . मैं तो शादी के पहले उससे मिली तक नहीं .उसका एक दोस्त हमारे आउट हाउस में रहता था . उसी के पास आता था . " किरण बोली

" इतनी सफाई क्या देनी है . मैंने बस यूँ ही कहा था . "

पर इसके बाद दोनों कुछ सीरियस हो गए थे . यह बात तो आई गयी हो गयी .पर अभी प्रेम का आना जाना बना रहा .वह आता तो साथ में अक्सर बच्ची के लिए खिलौने और कपड़े लाया करता था .

एक दिन जब प्रेम रिया को प्यार कर रहा था किरण ने पति से कहा " देख रहें हैं न , कितना प्यार करता है रिया को ,जैसे अपनी ही बेटी हो . "

राजन बोला " ठीक ही कहा .लगता है उसी की बेटी है . "

" क्या बक रहे हो ? " किरण

राजन " ठीक ही तो कहा है . गर्भ धारण से प्रसव तक तुम्हारे करीब रहा है . और अब भी तुमसे और बच्ची से काफी जुड़ा है . मुझे कहीं न कहीं शक तो होता है . "

" तो मैं क्या समझूँ ? प्रेम ने जो उपकार हम पर किया है उसके लिए हम दोनों को उसका आभारी होना चाहिए और तुम बकवास किये जा रहे हो . "

राजन " तुम चाहे जो भी समझो .पर मैं सोचता हूँ कि एक बार डी.एन.ए . टेस्ट हो जाता तो मेरा शक दूर ..."

किरण का चेहरा क्रोध से आरक्त हो उठा . वह बोली " मैं किसी टेस्ट से नहीं डर रही .पर तुम ऐसा सोच सकते हो यह मेरे जीवन का सबसे बड़ा कलंक है और तुम्हारे जीवन की सबसे बड़ी भूल जिसके लिए मैं तो तुम्हें आजीवन माफ़ नहीं करूंगी . इसके आगे मुझे एक शब्द भी नहीं बोलना है ."

उसी रात किरण ने सारी बात कामेश को बतायी .उसने कहा कि वह राजन से बात कर उसे समझा देगा पर किरण ने मना कर दिया और कहा " बात सिर्फ समझने समझाने की नहीं , उसने मेरे चरित्र पर ऊँगली उठाई है . मैं तो अब उस से आजीवन बात नहीं करुँगी ."

कामेश तो अच्छी तरह जानता था कि उसकी बहन कहीं पर भी गलत नहीं है .अगले दिन सुबह राजन का ब्लड टेस्ट कराना था तो हमेशा की तरह कामेश ने उसका सैंपल लिया . जब वह ऑफिस चला गया तब किरण अपना सारा जरुरी सामान लेकर मैके रांची के लिए निकल पड़ी . कामेश ने किरण से कहा " दीदी , मेरा कोर्स भी दो हफ्ते में पूरा हो रहा और मुझे रांची के प्राइवेट अस्पताल से ऑफर भी मिला है .तुम चलो , मैं भी आ रहा हूँ . तब तक मैं अपने दोस्त के यहाँ रह लूंगा .घर की चाभी जीजाजी को ऑफिस में दे दूंगा ."

जाने समय कामेश ने राजन की एक कैप अपने पास रख ली थी . रिया को दो दिन से बुखार था .उसने टेस्ट के बहाने रिया का भी ब्लड एक फ़िल्टर पेपर पर ले लिया था .

भाई बहन दोनों ने राजन का घर छोड़ दिया था . राजन बार बार किरण को फोन करता ,पर वह फोन काट देती थी और बाद में उसका नंबर रिजेक्ट में डाल दी .वह एक बार रांची भी गया पर किरण ने मिलने से भी इंकार कर दिया था और कहलवा भेजा कि भविष्य में उस से मिलने की कोशिश नहीं करे . किरण काफी पढ़ी लिखी थी . उसे एक स्कूल में टीचर की नौकरी भी मिल गयी . प्रेम किरण और उसके भाई दोनों से फोन पर बात कर लिया करता था ,पर बाद में किरण ने उसे मना कर दिया . पर वह कामेश के संपर्क में रहा , उसी से सब का हाल चाल पूछ लेता था . उसे अपने पर भी ग्लानि हो रही थी कि कहीं न कहीं उसी के कारण यह सब हुआ . उसने जो भी किया महज बचपन की जान पहचान के कारण .

देखते देखते वर्षों बीत गए . किरण की बेटी रिया भी अब बड़ी हो चुकी थी . उसकी शादी की भी बात चल रही थी .राजन भी अपने किये पर पछता रहा था . वह कभी कभी कामेश से बात कर लेता था . इस बीच रिया की शादी भी ठीक हो गयी .कामेश ने राजन को एक कूरियर द्वारा लिफाफा भिजवाया .उसमें रिया की शादी की सूचना के अलावा डी.एन .ए . ( DNA ) टेस्ट का रिपोर्ट भी था जो प्रमाणित करता था कि वही रिया का पिता भी है .उसको देखते ही वह पागलों की भाँती अपना सर पीटने लगा था .

उसने कामेश को फोन किया तो कामेश ने कहा " आप को याद होगा घर छोड़ने के दिन आपका ब्लड सैंपल लिया था , साथ में आपकी एक टोपी भी रख ली थी जिसमें आपके कुछ बाल भी थे .आप रिपोर्ट के डेट को देखें .सैंपल का डेट उसी दिन का है .रिपोर्ट सही हो इसलिए मैंने आपके ब्लड और बाल दोनों से टेस्ट कराई थी . मुझे अपनी बहन पर पूरा भरोसा था .बस भविष्य में आपको आईना दिखाने के लिए यह सब किया .अभी तक दुनिया में शक की बीमारी दूर करने वाली दवा का अविष्कार नहीं हुआ है .अब तो आप समझ गए होंगे . "

राजन बोला " अब तो जितना बुरा होना किस्मत में लिखा था हो चुका .मैंने किरण , रिया और प्रेम तीनों को ही बहुत दुःख दिया . मेरी गलती माफ़ी के काबिल तो नहीं , पर एक एहसान मुझ पर करना .रिया के कन्यादान में मेरा भी हाथ हो . इसे मेरी अंतिम इच्छा समझना ."

कामेश बोला " मैं पूरी कोशिश करूँगा . "

उस दिन रिया की शादी थी . मंडप सजा था , पंडित मंत्रोचारण कर विधि विधान से रस्में पूरी करा रहे थे .वहां प्रेम भी आया था . भीड़ में दाढ़ी बाल बढ़ाये एक बुजुर्ग सबसे अलग खड़ा था .वह और कोई नहीं रिया का पिता और किरण का पति राजन था जो कामेश के बुलाने पर वहां आया था .

कन्यादान के समय जब पंडित ने माता पिता दोनों को मंडप में बुलाया तो किरण ने कहा " पिता तो नहीं हैं ,यह रस्म लड़की का मामा अदा करेगा . "

उसी वक़्त कामेश ने इशारा कर राजन को मंडप में बुलाया और कहा " पंडितजी , लड़की के पिता भी यहीं हैं , उन्हें बैठने का आसन दें .कन्यादान माता पिता दोनों के हाथों संपन्न होगा ."

किरण और रिया दोनों ने सर उठा कर राजन को अश्रुपूर्ण आँखों से देखा .राजन ने किरण के साथ बैठ कर बेटी का कन्यादान किया . फिर वर वधु को अक्षत्त और पुष्प छिड़क कर आशीर्वाद दिया. इसके बाद वह चुप चाप मंडप से बाहर आया और किरण के घर से भी निकल गया .

भीड़ में लोगों की निगाहें उसे जाते हुए देख रहीं थी .न तो राजन ने मुड़ कर देखा और न ही उसे रोकने का किसी ने प्रयास किया .वह चलता गया और धीरे धीरे सब की नज़रों से ओझल हो गया .

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यह कहानी पूर्णतः काल्पनिक है और किसी पात्र का भूत या वर्तमान से कोई सम्बन्ध नहीं है .

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