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अग्नि पूर्व

पूर्वकांड
भारत को आज़ाद हुए कुछ ही समय हुआ था। जिले और राज्यों की सीमाएँ धीरे धीरे बन रही थी। प्रतापगढ़ के एक छोटे से क़सबे में प्राथमिक स्कूल के एक शिक्षक मास्टर हरिसिंह रहते थे। सभी गावों में स्कूल ना होने के कारण आसपास के गावों से बच्चे उनके स्कूल में पढ़ने आते थे। मास्टरजी थोड़े कड़क थे और बच्चों को हमेशा अनुशासन में रखते थे। प्रतापगढ़ में मास्टर जी की काफ़ी इज़्ज़त थी। उन्हें अंग्रेज़ी, हिंदी और उर्दू तीनों भाषाओं का ज्ञान था। आसपास के गाँव के कुछ पढ़े लिखे प्रतिष्ठित लोग मास्टर जी के मित्र थे। पास के गाँव में ठाकुर का लड़का बलदेव जो जिले के कॉलेज में पढ़ता था, से तो मास्टर जी की ख़ूब बनती थी।

मास्टर जी की पत्नी उन दिनों गर्भवती थी और अपने पिता के घर किशनपुर में गयी हुई थी। मास्टर जी इधर प्रतापगढ़ में ही थे। पत्नी को नौवाँ महीना लग चुका था तो वो रोज़ तार से आने वाली ख़ुश ख़बरी का इंतज़ार कर रहे थे। जैसे जैसे तारीख़ नज़दीक आ रही थी मास्टर जी की बेचैनी बढ़ती जा रही थी। पढ़ाते समय भी उनका मन किशनपुर के चक्कर लगाकर आता।

एक दोपहर को मास्टर जी की पत्नी को प्रसव वेदना शुरू हुई। उनके पिता उन्हें जिले के अस्पताल में लेकर गए। डॉक्टर ने जाँच करके ये बताया की सब कुछ ठीक और शाम तक ख़ुश खबरी मिल जाएगी। उन्होंने वहीं से मास्टर जी को तार भी कर दिय गया।
शाम तक मास्टर जी की पत्नी की प्रसव पीड़ा बढ़ती गयी और मामला उलझने लगा. शिशु को माता से मिलने वाले रक्त का प्रवाह लगतार काम हो रहा था लेकिन वो जन्म नहीं ले पा रहा था. अगले कुछ घंटो में ऑपरेशन करके शिशु को बाहर निकालने पर ही शिशु की जान बच सकती थी। किशनपुर जैसी छोटी जगह पर ऑपरेशन की सुविधा नहीं थी इसलिए शिशु को जिले के अस्पताल में तत्काल ले जाना ज़रूरी था। लेकिन वहाँ ना तो कोई ऐम्ब्युलन्स भी ना कोई बस। मास्टर जी के आने का सब इंतज़ार कर रहे थे लेकिन मास्टर जी आकर भी क्या कर सकते थे। सभी कुछ भगवान के भरोसे छोड़ने के अलावा कोई चारा नहीं था।
उधर मास्टर जी को तार मिला तब मास्टर जी बलदेव से गपशप कर रहे थे. बलदेव कॉलेज की छुट्टियों में अपने गाँव आया था और मास्टरजी से मिलने प्रतापगढ़ आया था. तार पा कर मास्टर जी बड़े खुश हुए लेकिन किशनपुर जाने के लिए प्रतापगढ़ से शाम की कोई बस नहीं थी. बलदेव को जब इसका पता चला तो उसने अपनी जीप में मास्टर जी को किशनपुर ले जाने का प्रस्ताव रखा. मास्टर जी ने शुरू में तो मना किया लेकिन जब बलदेव ने उनकी एक ना सुनी तो वो उसके साथ जाने तो तैयार हो गए. बलदेव मास्टर जी को लेकर जल्दी ही किशनपर के अस्पताल में पंहुचा। बलदेव का आना वो भी जीप लेकर आना किसी देवदूत के आने से कम नहीं था। वहाँ की परिस्थिति सुनकर, समय ना गँवाते हुए अस्पताल की एक नर्स, होने वाली माँ और मास्टर जी को लेकर बलदेव ज़िला अस्पताल की तरफ़ निकल पड़ा। रास्ते में मास्टरजी की पत्नी की प्रसव वेदना बढ़ती ही जा रही थी। बलदेव तूफ़ान की गति से जीप को भगाता हुआ ज़िला अस्पताल पहुँचा। वहाँ के डॉक्टर भी उसके परिचय के थे। तुरंत ऑपरेशन करके डिलीवरी की गई। ऑपरेशन सफल हुआ और इतनी देर तक रक्त प्रवाह कम होने के बावजूद बच्चा स्वस्थ पैदा हुआ।
मास्टर जी ने बलदेव के आभार मानते हुए कहा की आज मेरा बेटा सिर्फ़ तुम्हारे कारण ज़िंदा है। अगर आज आप ना होते तो शायद मैं अपने बेटे का मुँह नहीं देख पाता। बलदेव ने उन्हें मुबारकबाद देते हुए कहा की ये सब तो उपरवाले की इच्छा है।
कुछ देर बाद मास्टर जी ने अपने बेटे को गोद में लिया। उनकी आँखों में आँसू भर आए। उन्होंने कहा की
"इतनी तकलीफ़ों के बाद तूने जन्म लिया है तो तू ज़रूर कोई बड़ा काम करेगा।तूने पैदा होने के पहले से ही मुश्किलों का सामना किया है तो मैं तेरा नाम गब्बर रखता हूँ। मेरा बेटा एक अहिंसावादी, कर्तव्यनिष्ठ और सबका भला करने वाला आदमी बनेगा। गब्बर सिंह वलद हरी सिंह एक बड़ा नामी व्यक्ति बनेगा और यहाँ से ५० ५० कोस दूर तक तेरा नाम होगा।"

आगे की कहानी तो आप जानते ही हो