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लॉक डाउन हल्के-फुल्के पल (हास्य व्यंग्य)

भाईयों और बहनों....घबराइए मत हम " वो बड़े वाले नेता जी" थोड़ी है ,जिनके इस एक शब्द से इन दिनों पूरा देश हिल जाता है। पूछिये क्यो...पूछिये पूछिये...अगर वो मित्रों कहते हैं तो लगता है चलो घूमने-फिरने आये होंगे।वो आजकल क्या है न आउटिंग भी नहीं हो पा रही है न। इसीलिए जब उनका मन बहुत विचलित होता है न...तो निकल लेते हैं हवा-पानी बदलने। ...पर क्या करे इन दिनों लाचार है खुद भी कही नहीं जा रहे और न हमे जाने दे रहे हैं।हाँ तो... अगर इन दिनों "वो बड़े वाले नेता जी " ने भाषण की शुरुआत भाइयों और बहनों से की तो समझ लीजिए लॉक डाउन की सीरीज में एक और इजाफा।शुरू -शुरू में लगा कोई पिक्चर देख रहे...लॉक डाउन 2.0,3.0 etc. ...पर धीरे-धीरे जब होश आया तो घरों में बैठे लोग जो अभी तक "हम साथ-साथ है" टाइप फील कर रहे थे वे लोग "मैं नागिन तू सपेरा" जैसे दिखने लगे।
हमारे एक दुर्रर्रर के मित्र....अरे रुकिए जनाब इतने भी दूर के नहीं।हमने दूर शब्द क्या कहा आप तो "नेशनल हाइवे" तक पहुँच गए। शायद वो " मैं खिलाडी तू अनाड़ी" फ़िल्म से बहुत प्रभावित है... 21 दिन लॉक डाउन की क्या घोषणा हुई... भगवान जाने उन पर माता रानी सवार हो गई या फिर भैरव बाबा अंदर का बावर्ची कुलाचे मार - मार कर बाहर निकलने लगा।भावनाएं और सपने सारी सरहदों को तोड़ कर बाहर निकलने को बेताब हो गई।भूले-बिसरे गीतों की तरह रसोईघर के सारे बर्तन और मसाले एक सुर में गाने लगे " संदेशे आते हैं हमें तड़पाते हैं कि घर कब आओगे यह पूछे जाते हैं कि ये घर सूना-सूना है"। ...और फिर शुरू हुआ पकवानों का दौर कभी जलेबी कभी रसमलाई तो कभी गोल गप्पे। सफेदी की चमकार पहने "रूपा फ्रण्ट लाइन" में चमकते दो अदद छेद पाँच-छः फोटो के साथ एक video भी चिपका देते।साथ ही साथ एक स्लोगन भी...100 परसेंट मेड by मी। बड़ा खून जलता...गलती से बच्चों ने फोटो और video देख लिया तो उसी वक्त दिन भर बर्तनों और पकवानों के साथ झुझती माँ को सर्टिफिकेट पकड़ा दिया जाता...माँ तुम तो कुछ बनाती ही नहीं।अंकल को तो देखो क्या बढ़िया-बढिया खाना बना रहे और न जब कब ममतामयी माँ शक्तिस्वरूपा चंडी काली माई का रूप धारण कर लेती।
कभी हिरनी से चंचल दिखने वाली मनभावन आँखे अचानक से आग्नेयास्त्र से लैस खड़े-खड़े भस्म करने को तैयार हो जाते।
पत्नी का भस्मासुर रूप देख कर पतिदेव सुबह से चार बार चाट चुके अखबार में ऐसे सर घुसा लेते मानो अखबार बस अभी चला आ रहा हो।प्रभु सुबह से तुम्हारे दर पर पड़े हैं ...5 रुपये का अखबार है ...इस लॉक डाउन में कमाई धमाई भी नहीं है ...पढ़ लो कम से पैसा तो वसूल लो।
मित्र महाशय स्टेप by स्टेप फोटो डालते समोसे एक के ऊपर चढ़े जा रहे थे।मन तो किया लिख दे।भाई साहब "सोशल डिस्टनसिंग" का भी ध्यान रखे ।हर समोसे को कम से कम 2 गज की दूरी पर रखे। सच्ची बता रहे विद्या कसम...जीवन मे इतने मजबूर कभी न हुए थे।गलती से घर मे नाम ले लो... आज फलां चीज़ खाने का बहुत मन कर रहा। पतिदेव ऐसी प्रश्न भरी निगाहों से देखते ...बता क्या रही.. मन हो रहा तो बनाओ।
ये बच्चे कल का पढ़ाया आज पूछ लो तो वो याद नहीं रहता पर दादी ये बनाती थी ...नानी वाली पनीर बनाओ न और पिछले साल आप की दोस्त के यहाँ डिश खाई थी वो बनाओ न... ऊपर से इस you tube ने अलग फजीहत की हुई है। ये कह कर भी नहीं निकल सकते कि मुझे नहीं आता ...करमचंद जासूस के वंशज है ढूंढ कर हाजिर कर देते हैं। अब तो बेचारे बर्तन भी "त्राहि माम्" करने लगे हैं ...अब तो रसोईघर में घुसो तो भगोने,कड़ाही और भगोने भी डरने लगे हैं "अम्मा कितना पकाओगी ...इतना तो साल भर में भी कभी याद नहीं किया।
लॉक डाउन (सीरीज 1) की अपार सफलता के बाद सोचा लोगों के दर्द को और बयां ( मेरा मतलब कुरेदा जाए) किया जाए। ।दर्द... वो भी ऐसे-वैसो का थोड़े ही... हमारे नौ निहालो का... कुल दीपकों का। हमारे " बड़े वाले नेता जी" को कम से कम लॉक डाउन करने से पहले एक बार...कसम से एक बार तो सोचना ही चाहिए था। आखिर ...वो भी तो उसी नैया पर सवार है। खैर...उनको क्या चिंता...उनको थोड़ी सोचना है कि कांता बाई और रामू काका लॉक डाउन में नहीं आ रहे। सच्ची बता रहे भगवान कसम...हमारे छोरो की हथेलियों में I.A.S. बनने की बड़ी गहरी लाइन थी ...पर इस लॉक डाउन के चक्कर मे बर्तन घिसते-घिसते न जाने जूठे बर्तनों के साथ... अकेला छोड़कर किस नाली में बह गई। कसम से... आजकल जगमीत सिंह की गजल की ये लाइन बहुत याद आ रही "रेखाओं के खेल है मुकद्दर...क्या हाल है क्या दिखा रहे हो"।
" बड़े वाले नेता जी " ने अम्मा के पास वापस लौटने का अवसर भी नहीं दिया।सच्ची बता रहे...इततु सा भी हिंट दे दिये होते "कि बेटा निकल लो वरना ...।अब हमें क्या पता था कि "गोभी जी" समता कपूर के येSsssss.... बड़े वाले फैन है ।वो एक के बाद एक "लॉक डाउन" दिखाए जा रहे...अब तो सच्ची में ये शब्द कभी गलती से डिक्सनरी में भी नहीं देखेंगे।
सच बता रहे है... शुरू- शुरू में बड़ा मजा आ रहा था...पूरी की...पूरी अलमारी मैग्गी से भर ली। उन्होंने भी कमर कस ली थी ...सोते-जागते,उठते-बैठते बस मैग्गी ...कभी गीली वाली कभी सूखी वाली... तो कभी सब्जी वाली।शुरू-शुरू में तो राजा बेटा बने टहलते रहे। जीन्स, टी शर्ट बनियान कचछे...पर लॉक डाउन बढ़ने के साथ शरीर के कपड़े भी कम होते गए। जीन्स की जगह बरमूडा ने ली ।टी शर्ट पहनी तो बनियान नहीं... और बनियान पहनी तो टी शर्ट गायब। भईया...वो भी तो खुद ही धोने थे...अगर गलती से किसी ने video कॉल कर दी ...फालतू में कपड़े क्यो गंदे करने ...कौन देख ही रहा... रटा-रटाया जवाब चिपका देते।
झाड़ू,पोछा, बर्तन और कपड़े धोने के बाद भूख भी बड़ी जोर से लगती।...अब कुम्भकर्ण के उदर की भूख तुच्छ मैग्गी भी नहीं मिटा पा रही थी। थक-हार के माता जी से सम्पर्क करने की बारी आ गई ।माँ...माँ तो आखिर माँ ही होती है ।चाहे हर महीने कमर की साइज बढ़ती जा रही ...पर जब माँ video कॉल पर अपने लाल का मुँह देखती तो वो बेचारी के मुँह से अनायास ही निकल जाता "देखो जी ...कितना छोटा सा मुँह निकल आया है।" अब माँ से क्या कहें ...मुँह का साइज तो शुरू से ही ऐसा ही था ...अलबत्ता कमर का साइज जरूर घट गया है।
"बड़े वाले नेता जी"...आपने एक बार भी नहीं सोचा... जो बच्चे दाड़ी बनाने के लिए कटोरी भर पानी गरमाने के लिए भी गीजर चलाते हैं वो बेचारे... खाना कैसे बनायेगे। खैर ...कॉन्वेंट स्कूल के बच्चे हैं दिनभर इंटरनेट पर ही तो बैठे रहते हैं । ढूढ ही लिया एक सेलिब्रिटी सेफ...उसे देखकर तो लगता था कि वो खाँसता औऱ छीकता भी अंग्रेजी में ही होगा...उसने साधारण सी भिंडी की सब्जी को बनाने की विस्तृत व्याख्या की ...हमारे रण -बाँकुरे भी मैदान छोड़कर भाग गए।
200 ग्राम भिंडी में, 30 मिली. वेजिटेबल आयल, 10 ग्राम हल्दी, हाफ टी स्पून नमक।अब कोई ये बताए कि ये मात्रा नापने के लिए तराजू कहाँ से लाये। अरे भाई...सब्जी बना रहे हैं सोना थोड़ी तौल रहे। टेबुल स्पून...अब ये कौन सी बला है...घर मे एक ही तरह का चम्मच होता है जिससे जरूरत पड़ने पर हम पीठ भी खुजला लेते हैं और जलते गैस के बर्नर को भी एडजस्ट कर लेते हैं।
वैसे इंटरनेट पर आशा कोमोलिका आँटी जी भी है...सच्ची बता रहे एकदम हम लोग टाइप है... उनको देखकर मौसी जी वाली फीलिंग आती हैं।
खैर... अंत मे माता जी की देख -रेख में खाना बनाना शुरू कर दिया। यार ये मम्मी लोग भी न...क्या बताए "बेटा दाल में चार ....सुने कि नहीं चार अंगुल और चावल में एक अंगुल पानी डाल देना।अब भला बताओ... ये भला कौन सी नाप है।एक तो ये औरतें आधा-आधा इंच का नाखून बढ़ाये रहती है फिर बात करेगी एक अंगुल और चार अंगुल। अब ये नाखून सहित था या नाखून रहित ...बहुत देर तक यही समझ नहीं आया। फिर आई सब्जी की बारी ....शुरुआत हुई आलू की सब्जी से ..बड़ी आसान।मम्मी पहले ही बोल दी नमक पहले ही डाल देना ...सब्जी जल्दी पकेगी।बस तब क्या श्लोक मम्मी बता दी...चालीसा तो हम खुद ही लिख देंगे।तभी आकाशवाणी हुई...मेरा मतलब माता जी की आवाज गूंजी...हरी सब्जियों में पंचफोरन का छौंका लगाना।सच्ची बता रहे...जीवन मे कभी नाम भी नहीं सुने थे ...दो घण्टे की मशक्कत के बाद एक डिब्बी हाथ लगी। बस ...फिर क्या ये छौंका लगाया और आलू, पालक, नमक कड़ाही में...पर इस बार आलू की सब्जी वाला फॉमूला फेल हो गया ।सब्जी गल कर आधी और नमक....। सब्जी थाली में नहीं ...डस्टबिन में परोसी गई। माता जी ने सुना उन्होंने सर पीट लिया।"बेटा नमक स्वादानुसार डाला जाता है...मन तो बहुत किया कि पूछ लें कि स्वादानुसार नमक चम्मच से पड़ेगा या चुटकी से...पर माता जी का रौद्र रूप सामने आ जाता।
अब सोच लिए थे कुछ भी हो जाएं ...मम्मी से नहीं पूछेंगे। 10 मिनिट की सब्जी ... 20 मिनिट में बनती है। कितनी बार कहा कुछ सीख ले ...काम आएगा।"बड़े वाले नेता जी" किस जन्म का बदला ले रहे।"
....पर हौसले अभी भी बुलंद थे...जब भी एनर्जी लेवल डाउन होता " बार-बार हाँ बोलो यार हाँ... अपनी जीत हो उनकी हार हाँ" गाना लगा देते। छोला भटूरे खाने की बड़ी प्रबल इच्छा हो रही थी । अपने साथी मित्र को फोन किये तो उसने खड़े-खड़े धो दिया "बेटा जेब मे नैनो खरीदने के पैसे लिए टहल रहे और सपनें bmw के देख रहे। औकात में रहकर सपने देखो।...पर हिम्मत तब भी नहीं टूटी। हिम्मत जुटाकर दूसरे मित्र को फोन किया "यार उसी चकले पर भटूरे बन जायेंगे कि नहीं...उस ने भी घुड़क दिया चुपचाप मैग्गी बना कर खाओ...एरिसट्रोक्रेट की औकात है और अमेरिकन टुइस्टर के सपने देख रहे।बेइज़्ज़ती तो बहुत हो रही पर क्या करे...दिल है कि मानता नहीं।आजकल मार्केट में एक नया ट्रेंड शुरू हुआ..."वेव सीरीज " का।शायद अपने "बड़े वाले नेता जी"भी इसके बड़े वाले फैन है ...।उन्होंने सोचा ...चलो..."आज कुछ शैतानी करते हैं"... और फिर क्या था ... उन्होंने लॉक डाउन 1 की अपार सफलता के बाद सीरिज की झड़ी लगा दी।भगवान उठा ले...सच्ची अब तो उठा लें... कसम से काम करते-करते उबिया गए हैं।अब तो उठा ही ले... सच मे...भगवान अगर मैंने जीवन में कोई भी अच्छा काम किया हो तो मेरी पुकार सुन लें। अब बस उठा ले...अरे रुकिए ...रुकिए जनाब आप तो सीरियस हो गए।हम तो कह रहे ...इस मुए लॉक डाउन और कोरोना को उठा ले। आप भी न... पता नहीं क्या-क्या सोच लेते हैं....।
लॉक डाउन... इन दिनों लोग अपने आप को व्यस्त रखने के लिए भिन्न-भिन्न तरह के कार्य कर रहे हैं।शायद उन्हें इस लॉक डाउन में अपनी छिपी हुई प्रतिभा का भी ज्ञान हुआ...मुझे भी हुआ। याद है आपको ...बचपन में इम्तिहान से चार-पाँच दिन पहले 10 नम्बर का सरप्राइज टेस्ट लेते थे। साथ में शिक्षक एक आदेश भी चिपका देते कि घर से माता-पिता के हस्ताक्षर लेते आना।सोचती हूँ तो आँखे भर आती है... कितने निर्दयी होते थे उस समय के शिक्षक...पर हम भी कम निर्लज थोड़े ही थे। कूट कर घर से स्कूल भेजे जाते और कूट कर ही स्कूल से घर...भेदभाव करने की आदत हममें बचपन से नहीं थी।इस कूटा-कुटी के साथ पूरा बचपन गुजर गया... पर सच बता रहे कभी घमंड नहीं किया। "चार दिन बाद पेपर है और मोहतरमा के ये नम्बर आये हैं...माता जी द्वारा कुटाई और सुताई के बाद भी हम पूरे आत्मविश्वास के साथ खड़े रहते "वो तो सर ने अचानक से पेपर ले लिया... ये वाला विषय तो हम आखिरी के लिए बचा के रखे थे ... ऐसा लगता था मानों चार दिन में हम टॉप ही कर लेंगे....वो तो कहिए माता जी ने कलयुग में जन्म लिया...सतयुग में जन्म लिया होता तो आँखों से खड़े -खड़े भस्म कर देती।
सच पूछिए...तो कुछ ऐसा ही धोखा हमारे साथ हुआ ...एक दिन का लॉक डाउन कहकर "बड़े वाले नेता जी" ने हमारा सरप्राइज टेस्ट ले लिया।हम भी कमर कस के तैयार थे...फिर शुरू हुआ लॉक डाउन सीरिज ..."मन में है विश्वास पूरा है विश्वास" गाने को दिमाग मे एकदम बैठा लिए थे। सोचे सारे काम खुद करेंगे ...काम का काम भी हो जाएगा और हमारा शरीर जो इधर-उधर से थाली में रायते की तरह फैल गया है...वो भी समेट जाएगा। शुरू के कुछ दिनों तो हाथों से पोछा लगाया...धीरे....धीरे हिम्मत जवाब देने लगी तो वाइपर में पोछा लपेट कर लगाने लगे..पर कुछ मजा नहीं आ रहा था।अंत मे याद आया...ऑन लाइन भी तो डंडे वाला पोछा मंगवाया था। शुरू-शुरू में उसे कभी माइक तो कभी गिटार समझ कर किसी फिल्मी हेरोइन की तरह पोछा लगाया...पर अंत मे इसी नतीजे पर पहुँचे...भैया पोछा किसी भी ढंग से लगाया जाए दर्द और तकलीफ बहुत होती है। एक बात और ...इस दौरान एक और भी ज्ञान प्राप्त की मकान अपनी औकात के हिसाब से ही बनवाना चाहिए।जो लोग हमेशा छोटे मकान का रोना रोते थे...अचानक से उनका घर सुरसा के मुँह की तरह विशाल लगने लगा...भैया आगे से मकान सोचकर ही बनवाना अगर पोछा लगाना पड़े तो...
सच कहते हैं लोग "जिसका काम उसी को सोहे".... थकहार के हमने चौके की तरफ रुख कर लिया।46 -47 डिग्री की प्रचंड गर्मी के बीच बेटे ने मठरी खाने का फरमान जारी कर दिया। मरती क्या न करती...चलो बच्चे माँ से जिद नहीं करेंगे तो क्या पड़ोसियों से करेंगे। बच्चे का मन रखने के चक्कर में मठरी बनाने लगे...भीषण गर्मी....सर का पसीना पैरों तक आ रहा था।" माँ क्या कर रही हो... मन तो किया कह दे ..."स्ट्रगल कर रहे"। खैर...मठरी थोड़ी ज्यादा बन गई...खाते-खाते उबिया गए ।बेटा बोला माँ पापड़ी चाट बना दी। पापड़ी चाट बनाई तो मटर बच गई...फिर मटर को खपाने के लिए टिकिया बना ली...अब एक और मुसीबत ढेर सारी मीठी दही बच गई ...उसको खपाने के चक्कर में बड़े बना लिया...लो जी थोड़े बड़े भी बच गए ..बाल-बच्चे वाले हैं कोई पेट नापकर थोड़ी खाना बनाते हैं।वैसे भी हमारी अम्मा हमको अन्नपूर्णा का अवतार कहती है...अब उस बड़े को निपटाने के चक्कर मे सांभर बना लिए ...तब भी दो कटोरी सांभर बच गया। साम्भर को निपटाने की भी घनघोर समस्या थी... मेरे माथे पर चिंता की लकीरें देखकर बेटा बोला ...क्या हुआ माँ ...क्या कर रही हो ...हम फिर से वही पहुँच गए जहाँ से शुरुआत किये थे...मन तो किया कह दें ..."संघर्ष कर रहे हैं"।
सच्ची बात बता रहे हैं... इन दिनों जिस हिसाब से औरतें घरों में तेज़ी से गोलगप्पे बनाने की प्रैक्टिस कर रही है....लॉक डाउन के बाद शहर में हर नुक्कड़ पर चाट की दुकानें खुल जाएगी। कभी - कभी सोचती हूँ शराब की ओपनिंग जब इतनी खतरनाक थी तो गोलगप्पे की मार्केट कैसी होगी अंदाजा लगाना भी मुश्किल है।
कल ही एक सदविचार आया... लॉक डाउन के खुलने के बाद सबसे पहले हम अपने दुर्रररर के मित्र की पत्नी से अवश्य मिलेंगे...और पूछेंगे ...बहिन सोमवार का व्रत तो हम भी रखते थे पर तुम कितने सोमवार का व्रत रखी थी?
इन दिनों प्रेस वाला भी बहुत दुखी हैं...क्योंकि प्रेस के लिए कपड़े नहीं निकल रहे ...जीवन तो बरमूडा बनियान में गुजर रहा तो प्रेस के लिए क्या दें। पार्लर और नाऊ की दुकानों के बन्द होने से औरतों और मर्दों के जो हालत है...कभी-कभी लगता है कि "रामायण " के कुछ पात्र हमारे घरों में ही छूट गए हैं।इस लॉक डाउन सीरिज देखने के बाद भी... का करूँ सजनी आये न बालम...दिन भर 24 x 7 सामने देखने के बाद भी अगर किसी की शिकायत रह गई हो कि पतिदेव समय नहीं देते।अगर अभी भी किसी की इच्छा अधूरी रह गई हो तो कहिए तो "बड़े वाले नेता जी " से लॉक डाउन बढ़वाने की सिफारिश कर दें...
वैसे अंत मे जाते-जाते "बड़े वाले नेता जी" को एक पते की बात बताते जा रहे ।लॉक डाउन 5.0लगाने की तकलीफ न करें...हम खुद ही इतने आलसी हो गए हैं कि घर से बाहर नहीं निकलेंगे ...वो बरमूडा और बनियान में घर मे डोलने का सुख है ना....अहहहा...उसका आपको अंदाजा नहीं।