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बेस्ट फ्रेंड - 3

बेस्ट फ्रेंड

सुरेन्द्र कुमार अरोड़ा

(3)

17. बेस्ट फ्रेंड

" कार्तिक चलो बेटा, पहले खाना खा लो.बचा हुआ होम वर्क बाद में कर लेना. अपने पापा को भी बुला लो. " मम्मी ने कार्तिक की नोट बुक एक ओर खिसका दी, " अरे यह क्या, तूने अभी तक एक भी सम साल्व नहीं किया. मेरे जाते ही ये ड्राइंग बनाने में मस्त हो गया. तेरी पढ़ाई हो या हो घर का कामकाज, सारी जिम्मेदारी मेरी ही तो है. तेरे पापा को तो आफिस से आकर लेपटॉप पर चेस खेलने से ही फुर्सत नहीं है. कभी नहीं सोचते कि मैं भी तो सारा दिन आफिस में खटकर ही आती हुँ. भला यह क्या बात हुई कि तेरी पढ़ाई पर भी मैं ही घ्यान दूँ. कम से कम शाम को तो देख लिया करें." अन्नू झुंझला भी रही थी और खाना परोसने की तैयारी भी करती जा रही थी.

" प्लीज़ मम्मी ! गुस्सा मत करो. पहले ये बताओ कि इस गुड़िया की फ्राक में कौन सा रंग भरूं."कार्तिक ने जैसे मम्मी की कोई बात सुनी ही नहीं.

" बातें मत बना, चल पहले खाना खा ले. "

" मुझे नहीं खाना. पहले बताओ कि गुड़िया की फ्राक में कौन सा रंग अच्छा लगेगा." कार्तिक अपनी धुन में मस्त था.

" कोई भी भर दे. लाल, पीला, हरा, नीला कुछ भी. पर अब जल्दी से बाप - बेटा खाना खा लो. मुझे भी फुर्सत मिले. मैं तेरे पापा को भी बुलाती हूँ."

" कोई भी कैसे. नीति पर तो ऑरेंज कलर का फ्राक अच्छा लगता है. मैं तो वही भरूंगा. मम्मी आप तो यह बताइये की डार्क अच्छा लगेगा या लाइट ? " कार्तिक अपनी ड्राइंग को सम्भालते हुए बोला. अन्नू ने कार्तिक पर नजर डाली. वह ध्यान से अपनी बनाई हुई गुड़िया की ड्राइंग को बड़ी तन्मयता से देखे जा रहा था.

"यह नीति है कौन कानू ?"अन्न, प्यार से कार्तिक को कानू कहती है.

" मम्मी ! नीति मेरी क्लास की मेरी बेस्ट फ्रेंड है. कल मैं उसे यह ड्राइंग गिफ्ट करूंगा. वो इसे देख कर बहुत खुश होगी. "

छोटी सी उम्र में उसे बेटे से इस बड़प्पन की उम्मीद नहीं थी. उसने बेटे को दुलारते हुए कहा, " कल नीति का हैप्पी - बर्थ-डे है क्या ? "

कार्तिक ने मम्मी का हाथ पकड़ कर उसे लगभग चूमते हुए कहा, " मम्मी ! शायद आप भूल गयी. कल रक्षा - बन्धन है. टीचर कहती हैं, रक्षा बन्धन भाई - बहन के प्यार का सबसे सुरीला त्यौहार होता है. इस अवसर पर हर भाई, अपनी बहन के हर सुख - दुःख में उसका साथ देने का वचन देता है. मेरी कोई बहन नहीं न मम्मी. आप भगवान जी से मेरे लिए मेरी बहन लाये ही नहीं.इस बात को लेकर आदी हमेशा मेरी खिल्ली उड़ाता है.कल मैं उसका मुहँ हमेशा के लिए बन्द कर दूंगा.नीति को मैं यह ड्राइंग दूंगा और वो मुझे राखी बांधेगी. मम्मी, बेस्ट - फ्रेंड बहन भी तो हो सकती है न."

अन्नू को लगा उसका बेटा बहुत बड़ा हो गया है. उसने बेटे को अपनी बाहों में भरते हुए कहा, " बेटे, वही रंग भरो जो नीति को पसन्द है. हाँ बहन भी बेस्ट फ्रेंड होती है. नीति को घर भी लेकर आना. मैं उसे ढेर सारा प्यार करूंगी. "

कार्तिक ने देखा, मम्मी की आँखें भीगी हुई थी.

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18. बादल

मैंने उससे कहा, " तुमने अच्छा नहीं किया."

उसने कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की. वह चुप चाप मेरी ओर देखती रही. उसकी भंगिमाएं कह रही थीं की उसे मेरे चेहरे पर फैली मायूसियों से कुछ भी लेना - देना नहीं है. मैंने उसे याद दिलाने की कोशिश की कि देखो उन दिनों की हर पहल तुम्हारी थी." मैंने तुम्हारी किसी भी मानसिक मजबूरी का कोई फायदा नहीं उठाया.तुम्हारे मनोबल को सहारा दिया. जब तुम भावनात्मक रूप से लगभग पूरी तरह टूट चुकीं थीं तब मैंने तुम्हारे आत्म - विशवास की वापसी के लिए तुमसे कहा था " जहां एक रास्ता बन्द होता है, वहीं ढेर सारे दूसरे रास्ते खुलते भी हैं. जानती हो न कि जल कितना शीतल और कोमल होता है. हरेक को अपने अंदर गहरे डूबने कि अनुमति देता है, हरेक को शीतल भी करता है, न जाने कितनी सीपियों का भंडार बनता है और फिर भी कभी रुकता नहीं है. जैसे ही कोई उसका रास्ता रोकता है, वह तुरन्त कोई और रास्ता ढूंढ लेता है.नए भवन के निर्माण के लिए, पुराने भवन का टूटना जरूरी है, अवसान के बाद तो सृजन फिर से शुरू हो जाता है, इसलिए अवसान भी उत्सव ही है. तुम्हारी टूटन से तुम्हे मुक्ति मिले, उन दिनों यही मेरा मिशन बन गया था. इस मिशन में कब तुमसे मुझे न जाने कैसा लगाव हो गया कि मैं भी नहीं समझ पाया. अब जब मैं तुममें अपना भविष्य देखने लगा हूँ, तब अचानक तुमने मुझसे दूरियां बना ली हैं. यह मेरे लिए असहनीय है."

मेरी तमाम दलीलों के बाद भी मेरे प्रति उसकी हिकारत भरी दृष्टि में कोई परिवर्तन नहीं हुआ. मैंने चाहा मैं जी भर कर रो दूं. मैंने अपने भरे मन को कई बार सहलाया. मेरी इच्छा हुई कि मैं सूरज की सारी तपिश अपने अंदर उतार लूँ. पर मैंने ऐसा कुछ नहीं किया.मैं जानता था सूरज, ऊर्जा का स्रोत है. विनाश, उसकी प्रकृति नहीं है.

तभी जल से भरपूर बादल मेरे अंदर घुमड़ने को हुए.

मुझे उसके ही कुछ शब्द याद आये, उसने एक महान विभूति की एक तस्वीर दिखाते हुए एक बार कहा था, " हम बन्द कमरे में बिलकुल अकेले होते हुए भी अकेले में नृत्य करके आनंदित हो सकते हैं, चुपचाप मन ही मन कोई मनपसन्द गीत गुन - गुना कर प्रफुल्लित हो सकते हैं. हमें अपनी खुशियां ढूंढने के लिए किसी और की जरूरत नहीं है ? " उसकी इस कविता पर मैं बहुत देर तक उसे यूँ देखता रहा था जैसे कोई शिष्य अपने चमत्कारिक गुरु को देखता है.

मैंने उसके भाव विहीन चेहरे से अपनी नजरें हटाकर आसमान की तरफ देखा.

वहां पर घने - काले बादल सूरज को ढकना चाहते थे. वे अपने अंदर समाहित जल को रोक नहीं पा रहे थे. मुझे लगा धरती की प्यास मिटाना बादलों की प्रकृति है. प्रकृति ने अपनी हरेक रचना को खास काम दे रखा है. मैं भी प्रकृति से अलग कैसे हो सकता हुँ ! क्यों न मैं बादल बन जाऊं और खुद पर बरस लूँ. मेरी सारी तपिश खुद ही दूर हो जाएगी.

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19. सह्रदयता

घर में टी. वी. का प्रवेश होते ही, छत पर टी. वी. के एंटीने ने अपनी जगह बना ली. एंटीने की कोमल ढाल को आसमान में उड़ते मैना के जोड़े ने देखा तो सुस्ताने के लिए उस पर आ बैठा. पास ही मिटटी के बर्तन में पानी रखा था. दोनों ने अपनी प्यास बुझाई और एंटीने की कोमल ढाल पर बैठ कर अपनी थकान भी मिटाने लगे. थकान से राहत मिलते ही मादा मैना ने अपने नर से कहा, " देखो इस घर में रहने वाला परिवार कितना सह्रदय है कि अपने घर के ऊपर उसने हमारे लिए न केवल हमारी प्यास बुझाने का इंतजाम कर रखा है बल्कि हमारी थकान मिटाने के लिए एक आश्रय - स्थल की भी व्यवस्था कर दी है.ऐसी सात्विक वृति के परिवार के लोगों से मिलकर हमें उनका आभार व्यक्त करना चाहिए.

नर मैना ने स्वीकृति में अपना सिर हिला दिया.

मैना का वह जोड़ा घर की खिड़की से होकर कमरे में प्रवेश कर गया.

कमरे में परिवार के सदस्य टी. वी. पर कोई रोमांटिक फिल्म देख रहे थे.

खाली पड़ी मेज पर बैठकर मैना का वह जोड़ा सबकी ओर देखते हुए अपनी भाषा में ची - ची, चूं - चूं की ध्वनियाँ निकाल कर उनके प्रति आभार व्यक्त करने लगा.

फिल्म अपने क्लाइमेक्स पर थी. मैना के जोड़े की अप्रत्याशित ची - ची, चूं - चूं ने फिल्म के प्रति उन सबकी उत्सुकता में व्यवधान उतपन्न कर दिया.परिवार के सभी सदस्य असुविधा का अनुभव करने लगे. उन्होंने तय किया कि पक्षियों के इस अवैद्य प्रवेश से तुरंत मुक्त हुआ जाय. सबने उन्हें कमरे से बाहर निकलने के लिए अपने - अपने हथियार उठा लिए. किसी ने हवा में तकिया लहराया तो किसी ने चादर का सहारा लिया.कोई तालियां बजाकर दोनों को कमरे से बाहर निकाल देने की जुगत भिड़ाने लगा.

अचानक हुए इस चौतरफा हमले से मैना का जोड़ा संकट में पड़ गया. उनके पास कमरे से बाहर निकलने के अलावा कोई चारा नहीं था.

किसी तरह दोनों अपनी जान बचाकर फिर से छत पर आ गए.

जब उनकी जान में जान आयी तो मादा मैना ने अपने नर से कहा, " अगर हम वहां थोड़ी देर और रुक जाते तो निश्चय ही हमारी जान चली जाती. शुक्र है जान तो नहीं गयी पर यह समझ में नहीं आया कि इन इंसानो की सह्रदयता का सच ये आश्रय-स्थल और कसोरे में रखा पानी है या इनका वो व्यवहार है जो इन्होने अभी - अभी हमारे साथ किया है\ "

नर कुछ देर तक अपनी मादा को देखता रहा पर उसकी शंका का कोई समाधान करना उसकी समझ से भी बाहर था |

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20. जेल

" पिता जी ! मैं जा रही हुँ, चलिए चलें ? "

" बेटा, मेरी तबियत ठीक नहीं है और फिर दस बजने को हैं इतनी रात गए हमें घर की चिंता करनी चाहिए. तुम्हें तो सुबह भी आफिस के लिए जल्दी निकलना होता है."

" पिता जी, आप उसकी चिंता न करें. आप चल सकते हैं तो चलिए वरना मैं तो जा रही हुँ स्टाप पर उनको लेने."

" बेटा ! जमाना खराब है इतनी रात को बहू - बेटियां घर से नहीं निकला करती."

" पिता जी ! प्लीज, वो सब छोड़िये. वे पति हैं मेरे, मैं तो उन्हें लेने जाऊंगीं ही. "

" बहू ! कहा न, इतनी रात को तुम कहीं नहीं जाओगी.भले घर की स्त्रियां देर - सवेर सिर्फ घर की चिंता करती हैं. रोहन आज पहली बार इतनी देर से नहीं आ रहा है.वो तो रोज इसी टाइम घर आता है.तुम उसके खाने की तैयारी करो."

" पिता जी ! जिद न कीजिये. गाड़ी है न मेरे पास. आपको पता है न कि खाने की पूरी तैयारी मम्मी जी ने कर रखी है. उनके आने पर मैं परोस दूंगीं. बेमतलब आप मुझे नहीं रोकिये. "

" बहू ! तुम जिद कर रही हो. कहा न तुम नहीं जाओगी."

" अजीब मुसीबत है. ये घर है या जेल है. जहां हर जरा - जरा सी इच्छा के लिए भी गिड़गिड़ाना पड़ता है और वह भी पूरी नहीं होती."

उसने पैरों को जोर से पटका. गाड़ी की चाबी को फेंका और अपने कमरे में बंद हो गयी.

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21. अध्यापक

सुमन को सुबह - सुबह स्कूल छोड़कर आना महेश की परिवारक जिम्मेदारी थी. उसने अपनी इस जिम्मेदारी से कभी किनारा नहीं किया.हर सुबह सुमन जैसे ही स्कूल के लिए तैयार हो चुकी होती, महेश पहले ही अपनी बाइक को घर से बाहर निकाल कर खड़ा हो जाता. सुमन उस पर बैठती और महेश की किक से बाइक हवा से बातें करने लगती. सर्दी हो या बरसात सुमन बातों ही बातों में स्कूल के गेट पर पहुंच जाती. सुमन महेश के दिल में अपने प्रति इस जिम्मेदारी को हमेशा गहराई से स्वीकार करती और उसके लिए कुछ भी करने को तैयार रहती,

" आज मैं तुम्हे ठीक दस बजे लेने आ जाऊंगा."

" दस बजे क्यों ? छुट्टी तो साढ़े बारह बजे होगी. " सुमन ने दबी मुस्कराहट के साथ कहा.

"कमाल करती हो यार! कोई जरूरी काम भी तो हो सकता है ! "

" खूब जानती हूँ तुम्हारे जरूरी काम. स्कूल में बच्चों के इम्तहान सर पर हैं, कोर्स पूरा नहीं हुआ है. स्कूल की प्रिंसिपल मेरी सास नहीं लगती कि वह आये दिन मुझे, तुम्हारे जरूरी काम के लिए स्कूल से बंक मारने देगी." सुमन ने मीठी झिड़की के साथ कहा.

" ठीक है, बंक मत मारना, छुट्टी तो ले सकती हो ? "

" जब देखो तब कैसे भी करके अपनी जिद जरूर मनवाते हो, अच्छा देखती हूँ, कोई न कोई बहाना मार दूंगीं. तुम आ जाना, बस दस मिनट पहले एक मिस काल दे देना, मैं गेट पर मिलूंगी." यह कहकर सुमन रुके हुए स्कूटर से उतर ही रही थी कि मोटरसाइकिल पर गुजरते हुए एक झपटमार ने सुमन की गर्दन पर निशाना साध कर उसकी सोने की चेन झपट ली और तीव्र गति से फरार हो गया.

झपट इतनी तेजी से हुई कि सुमन को पता ही नहीं चला कि कब - क्या हुआ है.वह सकते में प्रतिक्रिया - हीन मुद्रा में सब कुछ होता हुआ देखती रह गयी. महेश ने अपने स्कूटर पर मोटरसाइकिल सवार झपट मार का पीछा करने का असफल प्रयास किया पर उसे पकड़ने में नाकाम रहा. उसी समय महेश को गश्त पर एक कांस्टेबल दिखाई दिया. महेश ने अपने साथ हुई इस लूट का ब्योरा देते हुए कांस्टेबल से कार्यवाही करने को कहा.कांस्टेबल ने सारी बात ध्यान से सुनने के बाद दार्शनिक मुद्रा में जवाब दिया, " मामला तो बहुत गंभीर है, थाने चलकर रिपोर्ट लिखवानी पड़ेगी, फिर देखते हैं कि इस मामले में क्या किया जा सकता है."

" पर तब तक झपट मार न जाने कितनी मील दूर जा चुका होगा. " महेश उत्तेजित होकर बोला.

" सर जी ! ज्यादा टेंशन मत लो, काम तो काम के तरीके से ही होगा, बिना रिपोर्ट लिखे तहकीकात नहीं हो सकती. "

महेश की समझ में नहीं आया कि काम जिस तरीके से होगा उसकी जानकारी कहाँ से प्राप्त करे, उसने कांस्टेबल पर कातर दृष्टि डालकर कहा, " सही तरीके की जानकारी कौन से स्कूल से मिलेगी दीवान जी ? "

कांस्टेबल ने अपनी जेब में हाथ डाला और बड़े इत्मीनान से बीड़ी निकाल कर अपने होठों से लगाते हुए बोला, " तरीके की पूरी जानकारी उस स्कूल से मिलेगी जिसमें आपकी मेमसाहब पढ़ाती है और जिसे आप हर चौथे दिन स्कूल की छुट्टी से पहले अपनी बाइक पर बिठा कर ले जाते हो भले ही उनके स्कूल छोड़ने के बाद बच्चे धमाचौकड़ी मचाते हों."

महेश स्कूल से बाहर उस व्यक्ति से जिंदगी का पाठ पढ़ने को मजबूर था जो अध्यापक नहीं था.

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22. सहमति

सॉफ्टवेयर के पुनःव्यवस्थित किये जाने के कारण रजिस्ट्रेशन रुके पड़े थे. लोग रजिस्ट्रेशन की बहाली को लेकर परेशान थे. रजिस्ट्रेशन खुला तो काउंटर पर लोगों की लम्बी कतार लग गयी. नंबर आने में दो - तीन घंटे लग सकते थे.

अजय बाबू को आफिस में केवल दो घंटे देरी से आने की सुविधा मिल पायी थी. इससे ज्यादा वे रूकना भी नहीं चाहते थे क्योंकि उसके बाद क्लायंट ने आना था और अगर उनकी अनुपस्थिति में डील हो गयी तो उनके हाथ कद्दू भी न लगता. सारा का सारा माल चक्रवर्ती अकेला ही पी जायेगा.आज की तारीख में उन्हें अलका के रजिस्ट्रेशन का काम करना ही था क्योंकि आज रजिस्ट्रेशन का आखिरी दिन था.

उन्होंने इधर - उधर देखा, दिमाग दौड़ाया और चुपचाप कम्प्यूटर रूम के उस गेट के पास खड़े हो गए जो सिर्फ उस वक्त खुलता था, जब कोई पावरफुल व्यक्ति उस कमरे में जाने को आता था.किस्मत ने साथ दिया और एक पावरफुल किसम का आदमी जल्द ही वहां आ गया. बिना देरी किये, नई करंसी का पांच सौ का कड़कता नोट उस व्यक्ति की हथेली में हाथ मिलाने के बहाने उन्होंने टिका दिया. अब उन्हें कमरे के अंदर कम्प्यूटर के पास पहुंचने में कोई कठिनाई नहीं हुई. समझदार के लिए आँख का इशारा काफी था. इशारे ने पूरा काम किया. आपरेटर ने उनके डाक्यूमेंट पकड़े और उसकी अंगुलियां की - बोर्ड पर मचलने लगीं.

वे निश्चित थे कि अब ज्यादा देर नहीं लगेगी. आफिस में दस हजार की लेनदारी उनका इन्तजार कर रही थी. एक हजार खर्च करके भी नौ तो बचेंगें ही. पर कभी - कभी किस्मत कुछ अड़ंगें भी डाल देती है.

बाहर खड़े एक नौजवान ने उनकी इन सारी हरकतों को ताड़ लिया था. जैसे ही आपरेटर ने काम शुरू किया, वह चिल्ला पड़ा, " ये क्या बदमाशी है. सरे आम कमीशनबाजी ! हम लोग मूर्ख हैं क्या." उसकी चिल्लाहट सुनकर माहौल गर्माने को हो आया. बात बिगड़ भी सकती थी. पावरफुल आदमीं ने समय की नब्ज को समझ लिया. वह बिजली की गति से कमरे से बाहर आया और बोला, " भाइयो. बिना वजह हंगामा करने से कुछ नहीं होगा. हो सकता है होता हुआ काम भी रुक जाए. "

" तो क्या हम लोग यू हीं लाइन में लगे रहें और अंदर मनमानी होती रहे. " नौजवान भड़भड़ाया.

" बात को समझा करो. यह सहमति का जमाना है. न तो उस देने वाले को आपत्ति है और न हीं लेने वाले को कोई एतराज है तो फिर हम - आप कौन होते हैं जो उनकी आपसी डील पर कोई एतराज उठायें. जो काम आपसी सहमति से हो रहा है, उसे हो जाने दीजिये, सब्र से काम लेंगें तो आपका काम भी हो जायेगा."

वहीं बाँहों में बाहें डाले दो लड़कियों ने भी उस पावरफुल आदमी की हाँ में हाँ मिलाई, " बिलकुल ठीक बात है. किसी को भी दो लोगों के बीच की सहमति के बीच में नहीं आना चाहिए.

लाइन में लगे अधिकाँश लोगों को लगा, " ये आदमी ठीक कह रहा है." सब लोग चुपचाप लाइन में लग गए और आपरेटर ने सहमति के की- बोर्ड पर अपनी अंगुलियां चलानी शुरू कर दीं.

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23. बारात घर

" अरे ये तो बहुत बड़ा बारात घर है, यहां तो बच्चों की भी धूम है. "

" अबे पागल तो नहीं हो गया यही तो स्कूल है जहां मैं पढ़ाता हूँ. "

“ झूठ मत बोल भाई ! ये स्कूल कैसे हो सकता है ? “

" क्यों ? क्या कमी है इसमें ? देख इतने सारे कमरे, हर कमरे में बड़े - बड़े डेस्क, प्रधानाचार्य का इतना बड़ा कक्ष और कल्चरल प्रोग्रामों के लिए इतना बड़ा हॉल. खेल के लिए का इतना बड़ा मैदान. इतना ही नहीं ऊपर की मंजिल पर चल, तुझे हजारों किताबों वाला पुस्तकालय और विज्ञानं के हर विषय की सुसज्जित प्रयोगशाला भी दिखाता हूँ....बता और कैसा होता है एक अच्छा स्कूल और मैं इसी अच्छे से स्कूल में पढ़ाता हूँ."

" बारात घर गया है कभी ? "

" हाँ गया हूँ...तो ! "

" वो देख तेरे इस खेल के मैदान का नजारा कितना दिलचस्प है जहाँ कंधे पर बैग लटकाये सैकड़ो बच्चे पूरी तरह से धमाचौकड़ी में मस्त हैं. ढेर सारे कमरे खाली पड़े हैं जबकि स्कूल के बड़े गेट के अंदर स्कूल चल रहा है, प्रधानाचार्य का कक्ष लोगों कि भीड़ से अटा पड़ा है. भीड़ में औरतें अधिक है. और सबसे सुंदर दृश्य तो तेरे उस बड़े से स्टाफ रूम का है...जिसमें ज्यादातर लोग आराम कि मुद्रा में पिकनिक मना रहे हैं, कुछ लोग मोबाइल पर विडिओ का आनंद ले रहे है तो कुछ लोग अपनी नींद भी पूरी कर रहे हैं जैसे सब के सब किसी बारात में आये हों और गर्मा - गर्म चाय - नाश्ते की प्लेटें उनका इन्तजार कर रही हों...! "

" समझा कर यार ! गर्मी की छुट्टियों के बाद स्कूल खुला हैं, थोड़ा - बहुत चलता है न. तू तो टेंशन लेने लगा. "

" टेंशन - वेन्शन कुछ नहीं, तू इसे स्कूल मत कह बस."

" ठीक है मेरे भाई ! बारात घर ही सही पर यह सच है कि यही मेरा स्कूल है जिसमें, मैं इसमें पढ़ाता हुँ.'

" और यह भी सच है कि पढ़ाने के बदले तुझे सरकार से मोटी पगार मिलती है."

“ तू सारे सच आज ही बोल ले, समझा ! चल बाहर चल कर कोल्ड - ड्रिंक पीते हैं. तेरे दिमाग को ठंडा करना जरूरी है. “

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24. डिप्राइवड केटेगरी

"डैडी ! कल फी - डे है."

" तो कल स्कूल से आपकी छुट्टी ! "

" छुट्टी क्यों.मैं तो ठीक - ठाक हूँ !"

" मैं भी तो यही कह रहा हूँ बेटे. आपकी मम्मा की शिकायत रहती है कि हम उन्हें बहुत दिन से कहीं घुमाने नहीं ले गए.कल आपके स्कूल की छुट्टी है. कल पिकनिक का प्रोग्राम पक्का. मैं भी छुट्टी कर लेता हूँ."

" डैडी ! फी - डे है, फ्री - डे नहीं. मैं कल भी स्कूल जाऊँगा. मैंने तो फी- डे इसलिए बताया है कि आप मुझे तीन महीने की स्कूल फीस जो फाइव थाउसेण्ड थर्टी फाइव रूपीस है, दे दीजिये. "

"पर बेटा ! आपकी फीस कहाँ लगती है. आप तो डिप्राइव केटेगरी के स्टूडेंट हैं."

" डिप्राइव क्यों डैडी ! क्या आपकी सेलेरी इतनी नहीं है कि आप मेरी स्कूल फीस दे सकें. सब बच्चे कहते हैं, इतने अच्छे घर से आता है, इतने अच्छे कपड़े पहनता है, कभी - कभी तो इसे छोड़ने इतनी बड़ी गाड़ी भी आती है पर स्कूल -फीस के नाम पर मेरी केटेगरी, डिप्राइव हो जाती है. मेरा मजाक बनता है. मैं तो स्कूल - फीस दुँगां डैडी. "

" बातें मत बना. ये हक़ हमें मुफ्त में नहीं मिला है. सदिओं की स्ट्रगल के बाद मिला है."

" प्लीज डैडी, जो सचमुच डिप्राइवड हैं, यह हक़ उन्हें ले लेने दीजिये.आप मेरी फीस नहीं देंगे तो मैं कल से स्कूल नहीं जाऊंगा.

टीचर ने कहा है कि अगर मैं डिप्राइवड केटेगरी से अपना नाम वापस ले लूँ तो हरनाम, जो पास की झुग्गी - बस्ती में रहता है पर उसके मार्क्स मुझसे कम हैं और उसके पापा बहुत गरीब हैं, को इस केटेगरी में एडमिशन मिल सकता है. उसे सचमुच इसकी जरूरत है डैडी. मुझे अच्छा नहीं लगता कि आपकी इतनी अच्छी जॉब होते हुए भी कोई हमें डिप्राइवड क्लास का कहे. इससे मुझे बहुत बुरा लगता है.मैं हर्ट होता हूँ डैडी."

पिता कुछ देर तक बेटे की ओर प्यार से देखते रहे फिर बोले, "लगता है बेटे तुम ठीक कहते हो, तुम इस तरह हरनाम की मदद्त भी कर सकोगे. कल अपनी स्कूल फीस लेकर जाना. पिकनिक संडे को चलेंगें.

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