Best Friend - 4 - last part books and stories free download online pdf in Hindi

बेस्ट फ्रेंड - 4 - अंतिम भाग

बेस्ट फ्रेंड

सुरेन्द्र कुमार अरोड़ा

(4)

25. आजादी

पिता के ऑफिस में आजादी के अवसर पर एक पारिवारिक मिलन का आयोजन किया गया था । पत्नी स्कूल-टीचर होने के कारण अपने स्कूल में व्यस्त थी । इसलिए पापा के साथ आयोजन में कार्तिक को जाना पड़ा ।आफिस में प्रवेश करते ही एक कोने में, जहाँ से जीना शुरू होता था, वहां की दीवार पान की पीकों से लाल हुई पड़ी थी । कार्तिक को थोड़ी सी तीखी गन्ध भी आई । उसकी नाजुक नाक में सुरसुरी होने लगी ।

" पापा, ये क्या है ? ये दीवार लाल क्यों है ? "

पापा ने उसकी बात को अनसुना करते हुआ कहा, " कार्तिक सम्भल के, प्रोग्राम पहली मंजिल पर है ।हमें जीना चढ़कर ऊपर जाना है। "

" पापा ! बताइये न ये दीवार इतनी गन्दी क्यों है ? "कार्तिक ने जिद पकड़ ली ।

इसके पहले कि पापा कुछ उत्तर देते, एक अंकल नुमा व्यक्ति आये और अपने मुंह में भरा सारा कचरा वहीं पिक्क से उड़ेल दिया । दीवार और भी ज्यादा गन्दी हो गयी । कार्तिक ने मुहँ बनाया । उसे उबकाई होने लगी । वह इतना ही कह पाया, " ये कितने गन्दे अंकल हैं । अपने ही आफिस को गन्दा कर रहे हैं । इन्हें इतना भी नहीं पता कि गन्दगी से बीमारियां फैलती हैं । "

" चुप करो कार्तिक, ऐसा नहीं कहते ।"

" पापा इन अंकल को आपके आफिस से निकाल देना चाहिए । इनकी वजह से तो सब लोग बीमार हो सकते हैं । "

" कार्तिक बेटा अब चुप भी करो " पापा ने फिर से समझाया, " जल्दी ऊपर चलो तुम्हें वो आजादी वाली पोयम भी सुनानी है । "

" नहीं पापा पहले तो इन अंकल को आजादी का मतलब बताना पड़ेगा । "

इतना कहकर कार्तिक ने उन अंकल के करीब जाकर बोला, " अंकल ये कैसी आजादी है कि आप अपने ही आफिस की जिसने आपको रोजगार और सेलेरी दी है, जिससे आपके घर का खर्चा चलता है, उसे ही गन्दा कर रहे हैं, सॉरी बोलिये, अब से आप इस तरह गन्दगी नहीं फैलाएंगे । फैलाएंगे तो आपको पनिशमेंट मिलेगी ।"

पास खड़े सब लोग कार्तिक को देखते रह गए । कार्तिक की इस बात पर एक दीदी ने चॉकलेट के साथ एक तिरंगा भी दिया ।

पापा ने कार्तिक को गर्व से देखा और सीढ़ियां चढ़ गए ।

***********

26. चक्कलस

हर सुबह ईश्वर से प्रार्थना और पार्क में टहलना उसके नित्यकर्म में शामिल था । वह कहता, " हे ईश्वर मेरे देश में पसर रही मानसिक विपन्नता और असहनीय अशांति से मेरे देश के लोगों को छुटकारा दे, सबको निरोगी बना ।" इसके बाद वह पार्क में जाता,

लेकिन आज पार्क में प्रवेश करते ही हर रोज की उसकी दिनचर्या एक दुधमुंहे बच्चे के रोने से बाधित हो गयी. वह अनमना हो उठा. उसने देखा. रोते हुए बच्चे का पूरा शरीर पार्क की मिटटी से सना था और बच्चा मिटटी में लेटे - लेटे ही रो रहा था. जब तक वह पार्क का पहला चक्कर पूरा कर पाता, उसने महसूस किया कि बच्चे के रोने की ताकत लगभग चुक चुकी थी. अब वह सिर्फ सिसक रहा था.

उसने सोचा बच्चे को गोद में उठा कर सीने से लगा ले लेकिन बच्चे को उठाने का मतलब था अपने हाथ और कपड़े दोनों को मैला करना.तब भी भूख से बिलखता बच्चा शायद ही चुप होता.

उसे ख्याल आया, यदि यह नन्हा बच्चा यहां है तो अवश्य उसकी माँ भी आस पास ही होगी.उसने पार्क में चारों ओर नजर दौड़ाई. दूसरे कोने पर उसे एक औरत दिखाई दी जो एक बेंच पर अपनी टाँगें फैला कर बैठी थी. उसके पास एक और गंदा सा बच्चा भी खड़ा था. उसे समझते देर न लगी कि मिटटी से सना मैला - कुचैला बच्चा इसी औरत का है. उसे कोफ़्त हुई. वह भरे मन से उस औरत के पास गया. औरत ने कान से मोबाईल लगा रखा था और वह रोने वाले बच्चे तो क्या, किसी से भी बेखबर मोबाईल पर बातें कर रही थी.

वह भरे मन से उसकी बात खत्म हो जाने के इंतजार में खड़ा रहा और उसकी मानसिक विपन्नता पर चिढ़ता भी रहा ।

जैसे ही उसकी बात खत्म हुई उसने लगभग चीखते हुए कहा, "तुम्हे पता है, कि तुम्हारा बच्चा भूखा है और कितनी ही देर से रो रहा है ? "

एक क्षण को औरत सकपका गई और उसने अपना मोबाईल अपनी छाती में छिपाने की असफल कोशिश की ।लेकिन तुरंत ही उसने उस पर उपेक्षा की दृष्टि फेंक कर ढिठाई से कहा; " ऊँचा न बोलें बाबू, मैं जानती हूं कि बच्चा भूखा है और बड़ी देर से रो भी रहा है."

" जानते हुए भी तुम उसकी भूख मिटाने के बजाए सुबह - सुबह मोबाईल पर अपने किसी चक्कलस में डूबी हो."

उसकी बात सुनकर औरत के चेहरे पर व्यंग भरी मुस्कान तैर गयी. फिर शीघ्र ही स्वयं को संयत करते हुए बोली,

" जिसे आप चक्कलस कह रहे हैं, वही इन दोनों नासपीटों के साथ - साथ मेरे भी पेट की भूख गलने का जरिया है।

" क्या बक रही हो, एक तो चोरी ऊपर से सीना जोरी', इन बच्चों का बाप कहाँ है ? " उसने औरत को डपटते हुए पूछा

" बाबू जी, आप अपना आपा मत खोओ. बाप नाम का वो शख्स, जो इसके जनम का जिम्मेदार था अपना काम करके न जाने कहाँ दफा हो गया पर मैं तो इनकी माँ हूँ. मुझे किसी भी तरह इसका पेट भरना ही है, नहीं भरूंगी तो दोनों मिटटी से खेलेंगे नहीं, उसमें मिल जायेंगे. इसलिए इनके उस बाप से चक्कलस चला रही थी जो जिस भी रात को आता है, उसके अगले कुछ दिन तक हम तीनों का पेट भरने का इंतजाम कर जाता है पर न जाने क्यों वह मुआ भी तीन दिन से नहीं आया." इतना कह कर वह चुप हो गई।

अब उससे वहाँ ठहरते नहीं बना. वह वहाँ से चलने के लिए पीछे मुड़ा ही था, कि औरत बेबसी से बोली ; "बाबू तुम चाहो तो आज रात तुम्ही इस चककलस का हिस्सा बन सकते हो. यहॉँ कोई मनाही नहीं है."

अब तक औरत के शब्दों में बेशर्मी के साथ बेफिक्री भी पसर चुकी थी.

उसकी हिम्मत नहीं हुई कि औरत का सामना कर सके. वह वहां से भाग खड़ा हुआ.

******

27. पहिया

कुछ समय पहले तक तालाब के नाम से पहचाना जाने वाला वह स्थान गन्दगी से भरी दलदल में बदलने को आतुर था क्योंकि सरकार द्वारा नियुक्त सफाई कर्मचारी शहर का सारा कचरा वहीं डाल जाते थे. लोगों ने म्युनिस्पेलिटी के परधान से शिकायत की कि सफाई कर्मचारी द्वारा एक तालाब की हत्या हो रही है.परधान बोला " यह तालाब पहले शहर से बाहर था.चारों तरफ आबादी बस जाने से घरों का गन्दा पानी इसमें जमा हो रहा है जिससे बीमारिया फैलती हैं. इसलिए अच्छा यही है कि इसे ढक जाने दिया जाये.

कुछ दिनों में तालाब का नामो निशान मिट गया.तालाब में रहने वाले जीव उसके अंदर दफन हो गए.समय के साथ लोग उस तालाब का इतिहास भी भूल गए.कुछ समय और बीता. तब तक परधान का बेटा म्युनिस्पेलिटी का परधान निर्वाचित हो गया.

सीनियर परधान का परधान बेटा डिग्री से ही नहीं दिमाग से भी कम्प्यूटर इंजीनियर था. उसके विचार प्रगतिशील थे. शेवरलेट गाड़ी पर घूमते हुए एक दिन उसकी नजर उस खाली जमीन पर पड़ी जो कभी तालाब था.उसके कम्प्यूटर दिमाग में एक नया आइडिया, कम्प्यूटर की गति से क्लिक कर गया. उसने अपने पिता के जमाने के ईमानदार नौकर के नाम उस खाली जमीन के बैनामे के कागजातों पर सरकारी मोहरे लगवा लीं. पुत्र परधान की रहनुमाई में नौकर ने शहर के नामी ठेकेदार को जमीन ठिकाने लगाने का ठेका दे दिया.

आज वहां परधान जी के नाम से एक नई बस्ती अपना अस्तित्व ले चुकी है और बस्ती के बीचोबीच गरीब एवम परित्यक्त महिलाओं के लिए परधान अशरफ अली पशिक्षण केंद्र अपना काम कर रहा है.

नया परधान अब अगले तालाब के सही इस्तमाल की प्रगतिशील योजना पर काम कर रहा है.

उसका अटल मत है कि देश और समाज की प्रगति के पहिया कभी रुकना नहीं चाहिए.

*************

28. हिम्मत

उसकी उसकी इच्छा हुई कि बॉस को गाली दे, उल्लू कहे, कुत्ता कहे, कमीना भी कहे पर वह ऐसा कुछ भी नहीं कह सका क्योंकि वह जानता है कि अगर उसने ऐसा कुछ भी किया तो जो बॉस अकारण उससे खुंदक खाता रहता है, कुछ कहने के बाद तो खुल कर उसकी बेज्जती करने लगेगा, तब आफिस में उसका काम करना तो दूर, जीना तक मुहाल हो जाएगा.बदले में उसके अपने कहे जाने वाले दोस्त भी उससे किनारा कर लेंगे. अगर पानी सिर से ऊपर निकल गया तो हो सकता है उसे पचीस हजार पगार देने वाली इस सफेदपोश नौकरी से ही हाथ धोना पड़ जाए और अगर ऐसा हो गया तो शालू का क्या होगा और शालू को छोड़ भी दे तो नन्हे आराध्य के लिए भी मुश्किल हो जाएगी, उस नन्ही जान ने पिछले महीने ही अपना पहला जन्म - दिन मनाया है, उसके लिए दूध कहाँ से आएगा ?

वह कुछ नहीं कर सकता. पर वह इस बेइज्जती को भी कब तक सहे. इज्जत भी तो कोई चीज होती है. बहुत से आत्म सम्मानी लोगों ने तो अपनी आबरू के लिए घास की रोटियां खाकर गुजारा कर लिया था. तो क्या वह है क़ि इस नौकरी की खातिर जिल्लत की जिंदगी जीता रहेगा. उसे याद है उसकी पिछली नौकरी में जब इंचार्ज ने उसकी नियत पर शक किया था तो उसने इंचार्ज को खरी - खोटी सुनाने में एक सेकेण्ड की देरी नहीं की थीं और नौकरी को लात मार कर घर आ गया था. तब आराध्य होने को था. सारी कहानी सुनने के बाद शालू ने कहा था, " मुझे अपने पति पर गर्व है. '' तब उसने रूआँसा होकर पूछा था, " तुम्हे गर्व तो है पर इस गर्व से घर का खर्च कैसे चलेगा " शालू ने न जाने कहाँ से तीस हजार रूपये लाकर उसके हाथ में रखते हुए कहा था, " आपने अपनी बीबी को समझ क्या रखा है. घर का अर्थशास्त्र वह अच्छी तरह से जानती है और घर के आर्थिक आपातकाल के लिए हमेशा तैयार रहती है. आप घर - खर्च के लिए जो रुपए मुझे देते हैं, वे सारे खर्च कर देना, मेरी फितरत में नहीं है. आपकी इज्जत से बढ़कर मेरे लिए और कुछ नहीं है. उस घमंडी को उसकी औकात बता कर, आपने बहुत अच्छा काम किया है. वो इंसान ही क्या जो अपनी इज्जत का सौदा कर ले. जिसमे काबलियत होती है, नौकरी खुद उसका पीछा करती है. आपमें हुनर है इसलिए मुझे विशवास है कि आप को जल्द ही पहले से भी अच्छी नौकरी मिल जाएगी. "

हुआ भी ऐसा ही. उसे बीस की जगह पच्चीस हजार की नौकरी मिल गयी. कुछ दिन तो सब कुछ ठीक चला पर बाद में यहां भी वही हाल शुरू हो गया. असल में उससे भी बुरा. अब क्या किया जाय. चिन्ता ने उसे घेर लिया.उसकी भूख मर गयी.

शालू कमाल की मनोवैज्ञानिक है. बिना बताये ही उसकी परेशानी समझ लेती है, " क्या बात है आजकल तुम्हारी भूख को क्या हो गया है. लगता है जैसे मजबूरी में खाना खा रहे हो. तबियत तो ठीक है न."

" मेरी तबियत को क्या हुआ ? सब कुछ ठीक है. तुम ऐसा क्यों कह रही हो. पूरा खाना ले जाता हूँ और पूरा खाना खाता भी हुँ."

" बीबी हूँ आपकी. आपकी रग - रग से वाकिफ हुँ. लगता है इस आफिस का बॉस भी बकवास और खडूस है."

उसे लगा, शालू ने उसकी दुखती रग पर हाथ रख दिया है. वह रूआसाँ हो गया, " मैं क्या करूं शालू. जरूर मुझमे ही कोई कमी है जो कहीं एडजेस्ट ही नहीं हो पाता. और लोग भी तो हैं. सालों - साल एक ही जगह, एक ही बॉस के नीचे गुजार देते हैं. उनका तो कोई झगड़ा नहीं होता अपने बॉस से."

" क्योंकि वो लोग आपकी तरह खुद्दार और ईमानदार नहीं होते. बेईमानी उनकी कमजोरी और चापलूसी उनकी फितरत होती है. छोड़नी पड़े तो छोड़ दीजिये इस नौकरी को भी पर अपने उसूलों को मत छोड़िएगा. " लगा शालू नहीं, उसकी धड़कने बोल रही है.

" हम तो कुछ दिन भूखे रह लेंगे शालू पर अब हम सिर्फ दो नहीं हैं. नन्हां आराध्य भी तो है. उसका क्या होगा ? "

" आपको पता है न कि आराध्य एक खुद्दार बाप का बेटा है.वो भी आपकी तरह हिम्मत हारने वालों में से नहीं है."

उसने धीरे से कहा " हम सब की हिम्मत तो तुम हो शालू. बड़ी जोर की भूख लगी है, जल्दी से खाना लगा दो."

शालू ने प्यार से आराध्य को अपनी गोद में लिया और दोनों ने नई योजना पर काम करना शुरू कर दिया.

******

29. पिल्ले

" हराम की औलाद ! तुझे कहा था न कि इसे मत छोड़ियो. कितना बढ़िया माल था. चूक गए न.

“ ओये, पिल्लै ! जबान को लगाम दे. हराम की औलाद होगा तू और तेरा बाप. मेरी अम्मा को गाली मत दे.”

" अबे अम्मा के पिल्लै, है तो छोटा सा पर इस तरह के जुमले खूब समझता है. हराम का नहीं है तो बता अपने बाप का नाम ? "

" अबे अम्मा बताती तब ही तो बता पाता उस हरामी का नाम. कई बार कोशिश की है पर अम्मा ने बताया ही नहीं."

" बताया ही नहीं नहीं. छोड़ दे रोटी - पानी एक - आध दिन, सब उगल देगी."

" ठीक है इस बार पक्का पुछूंगा पर एक दिक्क्त है."

" वो क्या ? "

"वो ये कि अम्मा को कुछ भी याद नहीं की मेरा जन्म किस महीने हुआ था. उसका भी तो कइयों से चककर था. चल छोड़ ये बता तू किस माल की बात कर रहा था ?"

"अबे कल वाले की. अकेला माल था. आराम से गटक लेते.".

" रहने दे ! उसके साथ उसका यारनुमा ब्वाय फ्रेंड भी तो था. उसका क्या करते ? "

" अबे कुतिया के ! वो पुददन्ना सा था, उसे तो देते एक हाथ और करने लगता लीद.ज्यादा तीन - पांच करता तो एक ही सरिये में उसका काम हो जाता और फिर तो बस माल होता और बारी - बारी से हम दोनों. मजा आ जाता."

" मजा तो आ जाता और अगर पकड़े जाते तो ?"

" बड़ा पकड़े जाते. कितने पकड़े गए हैं आज तक. और पकड़े भी जाते तो दो - चार साल फ्री की रोटी और फिर यहीं के यहीं."

" वो कैसे ! "

" तू अभी छोटा है.कोर्ट - कचेहरी के नुक्ते नहीं जानता. इन बातों को बाद में समझेगा. "

छोटा कुछ देर चुप रहा फिर उत्साहपूर्वक बोला, " लगता है कल तो गलती हो गयी पर आज नहीं करेंगें. चल चलते हैं.इस शहर में माल की कोई कमीं नहीं है और शाम भी ढलने को है, बहुत सर्दी लग रही है यार ! पहले कहीं चलकर दो - चार घूट का इंतजाम तो करते हैं. "

दोनों एक नई ऊर्जा के साथ अपनी मुहीम पर निकल पड़े.

***********

30. धन्यवाद सभा

टेंडर निकला तो ठेकेदार ने टेंडर भर दिया.

सरकार बदल गयी थी. साथ ही सचिव महोदय नए आ गए. बदली हुई सरकार के सर्वे - सर्वा के सख्त आदेश थे कि भ्र्ष्टाचार और भ्र्ष्ट अधिकारिओं का नई व्यवस्था में कोई स्थान नहीं है. कोई भी सरकारी कर्मचारी किसी भी स्तर का हो यदि भ्र्ष्टाचार में लिप्त पाया गया तो नौकरी से तो जायेगा ही, उसे जेल भी जाना पड़ेगा.

ठेकेदार का काम बहुत पुराना था. उसने कई सरकारों के साथ कई सचिवों को आते और फिर जाते हुए देखा था. हर नई सरकार के साथ इस तरह के अनुभव उनके लिए कोई खास मायने नहीं रखते थे. उसे अपनी कामयाबी के सभी तरीके पता थे. परन्तु समय के साथ बढ़ती उम्र अब उनका साथ नहीं दे रही थी इसलिए अधिकतर कामकाज बेटे आर्यन ने संभाल लिया था.

टेंडर भरते ही आर्यन नए सचिव के पास पहुंच गया. शहर में अब से पहले अपने द्वारा सड़को - नालों - खड़ंजों के किये गए कार्यों का बखान करने के बाद बोला, " साब जी ! नया टेंडर भर दिया है. ठेका किसी को भी मिले यह मायने नहीं रखता. पिता जी हर अधिकारी का सम्मान करते रहे है. आपके सम्मान स्वरूप भी उन्होंने यह डिब्बा भिजवाया है.उनका कहना है कि आपकी कृपा बनी रहे बस और कुछ नहीं चाहिए."

" इस डिब्बे में क्या है ? " सचिव महोदय ने पूछा.

" कुछ ख़ास नहीं.थोड़ी सी पेशगी है. टेंडर मिलते ही आप जो आदेश देंगें, हो जायेगा. " आर्यन ने बात को संक्षेप में समझा दिया.

सचिव महोदय पहले उसे और फिर बंद डिब्बे को कुछ देर तक विस्मय से देखते रहे. थोड़ी देर बाद शब्दों को चबाते हुए बोले, " आपका नाम क्या है ?"

" जी ! मुझे आर्यन कहते हैं."

" मिस्टर आर्यन. आप इस डिब्बे को बाइज्जत उठा लीजिये और दुबारा इस तरह की कोई कोशिश करेंगें तो वह आपको महंगी पड़ सकती है. आप जानते होंगे कि आपके प्रदेश में सिर्फ सरकार नहीं बदली है. सरकार चलाने की संस्कृति भी बदल गयी है. मंत्री जी के स्पष्ट आदेश हैं कि अब बिना किसी रिश्वत खोरी के टेंडर उसे मिलेगा जो सबसे अधिक सही होगा. किसी किसम की कोई दलाली नहीं चलेगी. "

" साब जी आप को गलत फहमी हुई है. मेरा ऐसा कोई मतलब नहीं था, यह तो केवल शुभकामना संदेश है." आर्यन बोला.

" देखिये, बहुत हुआ मुझे बहुत से काम निपटाने हैं. अब आप जा सकते हैं."

आर्यन निराशा के साथ - साथ चिंता में डूब गया. घर आकर उसने सारी बाते पिता को बताईं.

पिता ने कहा, " आर्यन डिब्बा सेफ में रख दो और जाकर रिलेक्स होने के बाद खाना खाकर सो जाओ."

पिता ने राजधानी को फोन लगाया. ईश्वर साथ था. क्षेत्र से नए - नए चुन कर गए नेता जी से पहली ही बार में फोन लग गया, "जी मैं आर्यन का पिता बोल रहा हुँ. "

" बड़ा होनहार बालक है. बहुत काम किया है उसने पूरे चुनाव में. कहिये कैसे याद किया ? "

"जी आपकी ऐतिहासिक जीत को सेलिब्रेट करने के लिए कार्यकर्ताओं ने एक धन्यवाद रैली की व्यवस्था की है. जब आप समय दें तो आर्यन की अध्यक्षता में एक जनसभा का आयोजन कर दिया जाये. "

“आपके लिए तो समय ही समय है. इस बहाने कार्यकर्ताओं से संवाद भी हो जायेगा. " नेता जी के स्वर में उत्साह था.

" जी ! आप जैसे नेता से कार्यकर्ताओं के लिए यह संदेश ही उनके लिए आशा की किरण है. बहुत दिन बाद प्रदेश को एक कर्मठ सरकार मिली है. अफसरों की मनमानी से जनता त्रस्त है. " उनकी अनुभवी लफ्फाजी पूरे जोश में थी.

" निश्चिन्त रहिये. आप पूरी तैयारी के साथ सभा का आयोजन कीजिये. नियत तिथि को हम आ जायेंगें. सारी भ्र्ष्ट नौकरशाही को ठीक करने के लिए ही तो जनता ने नई सरकार को जनादेश दिया है. सबके होश ठीक कर दिए जायेंगे." नेता जी की बात में इशारा स्पष्ट था.

उन्होंने सोने से पहले डिब्बे में रखी राशि को दुगुना करके अपनी तैयारियां शुरू कर दीं. फिर मन ही मन बोले, " बेचारा सचिव ! उसके भाग्य में यह डिब्बा नहीं था. "

******

31. जेहाद

" अमां ठोक इसे ! "

" ट्रिगर दबा और धायं की साईलेंसरी आवाज के साथ एक जवान जिंदगी लाश में तब्दील हो गयी ! वादी में एक हल्की सी चीख गूंजी और फिर किसी भुतहे सन्नाटे की तरह सब कुछ शांत हो गया.

उस चीख ने न जाने कैसा दर्द पैदा किया कि गोली चलने वाला दरिंदा बोल उठा, "अल्लाह की खिदमत में कहीं इसे गलत तो नहीं पेश कर दिया. "

" भाई मियां अब सोचो मत ! गलत या सही, कर दिया तो कर दिया. वैसे यकीन करो इसे ठोककर कोई गलती नहीं हुई है. साला काफिरों की फ़ौज के लिए लड़ता था. इसलिए काफिर ही था. इसे सजा मिलनी जरूरी थी. इसकी मौत की खबर जब पूरी घाटी में फैलेगी तो इसका खानदान तो क्या घाटी में रहने वाले हर बाशिंदे की कई पुश्ते कभी ये सोचेंगी भी नहीं कि अल्लाह की फ़ौज के खिलाफ लड़ने का मतलब है अल्लाह के हुकुम की नाफ़रमानी और जब कोई शख्स अल्लाह के हुकुम की नाफ़रमानी करता है तो उसका सिर्फ एक ही हश्र होता है - जिबह. इस काफिर की रूह शुक्र मनाएगी कि इसे हमारे खंजर ने जिबह नहीं किया, राइफल से निकली गोली के एक झटके से ही इसके पाप धुल गए और यह खुदा की सल्तनत में फरियादी की तरह जा बैठा. " झाड़ियों में छिपे दूसरे दरिंदें ने भी अपनी ए. के. 47 को संभालते हुए मुस्तैदी से कहा, " ओये ! वो देख जीता - जागता गुलाब. जवान शोरबा. हुस्न का चलता - फिरता टोकरा. इतना करारापन देखा है कहीं ? "

" ठोक दूँ इसे भी. उसी काफिर की बहन लगती है." पहला पूरे जुनून में था.

" पागल हो गया है क्या. ये झटके का माल नहीं है. ऐसा करते हैं पहले इसका जायका लेते हैं. फिर आगे की सोचेंगें. " दूसरे ने अपने होठों को जबान से तर करते हुए दरिंदगी से सराबोर अपनी रूह का एक और नमूना पेश किया.

" तो क्या इसका लोथड़ा कच्चा चबायेगा ? " पहला कुछ समझ नहीं पाया.

" अमां इतने दिन हो गए फातिमा को छोड़े हुए. तुझे भी तो घर से बेदखल हुए दो महीने हो गए हैं. हम भी तो इंसान हैं यार. कमब्क्त जिस्म हमारे पास भी है. जवानी हर तरह का जोर मरती है. आज ये माल दिखा है, पहले मैं इसे फातिमा बनाता हुँ फिर तू इसे कुछ भी समझ लियो. " दूसरा वहशीपन की नई मिसाल कायम करने पर उतर आया.

" नहीं यार ! तू कहे तो मैं इसे ठोक देता हुँ, पर ये करना ठीक नहीं है ! इसने हमारा क्या बिगाड़ा है ? "

पहले का जमीर शायद बाकी था पर दूसरे ने उसकी बात पर कोई गौर नहीं किया और आती हुई उस बाला पर भेड़िये की तरह टूट पड़ा. अभी उसने अपनी दरिंदगी को अंजाम देना शुरू ही किया था कि पलक झपकते ही जय माँ काली के उद्घोष के साथ पांच जवानो की टुकड़ी की राइफलों से निकली गोलियों ने दोनों दरिंदों की दरिंदगी को लाशों में तब्दील कर दिया.

************

सुरेन्द्र कुमार अरोड़ा

डी - 184, श्याम पार्क एक्सटेंशन,

साहिबाबाद-201005(उ.प्र.),

मो:9911127277,

E.mail: surendrakarora1951@gmail.com