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आत्म कथा

प्रिय पाठकों मेरा सादर प्रणाम, मैं रनजीत कुमार तिवारी अपनी आत्म कथा आप लोगो से साझा कर रहा हूं।जो मेरी जिंदगी के कुछ खट्टे मीठे यादों के झरोखों से है। मैं एक साधारण ब्राह्मण परिवार से हूं मेरा परिवार छोटा है। सब खुश हैं और अपने जिवन का गुजारा चल रहा है। कुछ ऐसी घटनाओं को मैंने महसूस किया अपने जीवन में जो आपसे साझा कर रहा हूं।बात उस समय की है जब मैं छोटा था यही कोई मैं पहली या दुसरी कक्षा में पढ़ता था।मेरे एक चचेरे बाबा थे उनका कोई नहीं था नाम श्री रामसागर तिवारी था उनका।अपने कुल खानदान के होने के नाते हमारे रिश्तेदार और जो मेरे सगे बाबा लोग थे हमारे घर वालों को उनकी सेवा करने के लिए तरह-तरह के प्रलोभन देकर उनके घर में रहने को बाध्य करने लगे।मेरे चार सगे बाबा थे जिनमें मेरे बाबा दूसरे नम्बर के थे।वह गांव में ही खेती बाड़ी का कार्य और घर परिवार की देखभाल करते थे।जो तिन बाबा लोग थे वह सारे लोग सरकारी नौकरी करते थे।और मेरे जो चचेरे बाबा(रामसागर तिवारी)वह अपने मां बाप के एकलौते पुत्र थे। उन्होंने शादी विवाह नहीं किया हुआ था।सब लोग हमारे बाबा को यह कहकर की इनका कोई नहीं है।इनकी देख रेख आप करो जो इनका है वह आपका ही तो होगा मेरे बाबा बहुत सिधे और भोले इन्सान थे उनके अन्दर अपने भाइयों को लेकर कल छपट नहीं था। उन्होंने अपना घर छोड़कर बड़े वाले बाबा(चचेरे बाबा) के घर में रहने लगे। लगभग यह बात सन 1975 के आस पास की है। हमारे जो अपने घर थे उसमें हमारे जो सगे बाबा के भाई लोग रहने लगे सब ठिक ठाक चलता रहा। लेकिन समय बदलता रहता है,सन 1998 में मेरे बड़े चचेरे बाबा श्री राम सागर तिवारी जी का देहांत हो गया।उसी दिन उनकी जो बहन थी उनके नाती पोतों और मेरे सगे बाबा के भाईयों ने उनके जमीन जायदाद के लिए कलह कर दिया नौबत यहां तक आ गयी हमें घर से बाहर निकाला जाने लगा।जो अपना घर था उसपर बाबा के भाईयों ने कब्जा कर रखा था। बहुत बड़ी समस्या हो गई थी उस दिन वह दिन मुझे आज भी विचलीत कर देता है।अभी उनके दाह संस्कार भी नहीं हुए लोगों ने ढोंग कर दिया तरह तरह-तरह के मेरे पिता श्री शोभ नाथ तिवारी पर लांछन लगाने लगे लोग।यही से मेरी मनोदसा खराब हो गयी मेरे पिता जी भी कोई नौकरी नहीं करते थे घर में खाने पिने की कमी होने लगी।घर का गुजारा मुश्किल हो गया जो जमीन बड़े बाबा की थी उससे जो उपज होती उससे गुजारा चलता था घर का जो विवाद के बाद खेती बन्द हो गया।हम छोटे थे हमारे जीवन पर एक बहुत बड़ा आघात लगा जो आज हमे ठोकरें खाने पर मजबूर कर दिया है। हमारी पढ़ाई में मन नहीं लगता,खाने को सही से नहीं मिलता।धिरे धिरे हम किशोर अवस्था में पहुंच गए हमें और तकलीफ होने लगी जब दोस्तों को अच्छा खाते और पहनते हुए देखते।समाज भी हमें हिन और गरिब भावनाओं से देखने लगा था।आय का कोई दुसरा स्रोत नहीं था।मेरे पिता जी पुजा पाठ और एक प्राइवेट स्कूल में पढ़ाने लगे जिससे हम पढ़ सकें हमारी फिस नहीं लगती थी। लेकिन रोजमर्रा की जरूरतों की पूर्ति कैसे हो यह समस्या बढ़ती जा रही थी। जैसे हम बड़े हो रहे थे हम चार भाई बहन थे मेरा जी भर गया ऐसी जिल्लत भरी जिंदगी से मैं घर से सन् 2005 में भग गया। दिल्ली आकर काम करने लगा धीरे-धीरे सब समान्य होता गया।आज भी हम उनके घर में है,खुश हैं और हमारा घर परिवार फल फुल रहा है। हमारे घर वालों ने ऐसा संस्कार दिया है हम गलत नहीं कर सकते।हम आज चाहे तो उनके साथ वैसा व्यवहार कर सकते हैं। जैसा उन्होंने हमारे परिवार के साथ किया और आज भी कर रहे हैं। लेकिन हम ऐसा नहीं कर सकते हमारी मजबूरी समझो आप या हमारे परिवार के संस्कार लोग एक इंच जमीन के लिए मरने मारने को तैयार हैं। लेकिन इन लोगों ने हमारे परिवार का जिवन ही चौपट कर दिया है। फिर भी हम सब सहते चले जा रहे हैं। क्या बताऊं दोस्तो दुःख और गुस्सा तो कभी कभी इतना आता है।सब कुछ खत्म कर दूं मेरे बाबा श्री गोपी नाथ तिवारी इतना दुःख और चिंता होने के बाद भी हमें बस यही कह कर सांत्वना देते सब भगवान के ऊपर छोड़ दो आज वह नहीं है। लेकिन उनकी बातों और उनके लिए दिल में जो सम्मान है।वहीं हमें जुर्म सितम सहने की शक्ति देता है।और मुझे भरोसा है कभी मैं और मेरा परिवार गलत नहीं कर सकता। इन्हीं सब कारणों से मेरा मन पढ़ाई में नहीं लगता था और आज भी मुझे हमेशा चिंता होती रहती है।और यह जिवन भर दुःख रहेगा दिल में इस दुनियां में अपने सगे भी अपने नहीं है।यह कहानी मेरे जिवन की सच्ची घटना है।मेरी आत्म कथा कैसी लगी मुझे जरूर बताएं और कोई गलती हो गई होगी मुझसे कुछ तो माफ़ करना धन्यवाद।