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नूरीन - 4

नूरीन

- प्रदीप श्रीवास्तव

भाग 4

अंततः मुन्ने खां को हवालात में डाल दिया गया। अगले तीन दिन उनके हवालात में ही कटने वाले थे। क्योंकि अगले दिन किसी त्योहार की और फिर इतवार की छुट्टी थी। नुरीन जब अम्मी, ख़ालु के साथ घर पहुंची तो देखा रात नौ बजने वाले थे फिर भी घर के आस-पास दर्जनों लोगों का जमावड़ा था। सारे लोगों के चेहरे घूम कर उन्हीं लोगों की तरफ हो रहे थे। अंदर पहुँचते ही नुरीन फूट-फूटकर रोने लगी। अब तक एक-एक कर सारी फुफ्फु-फूफा, ख़ालु-खाला सब आ चुके थे। घर लोगों से भर चुका था। साथ ही दो धड़ों में बंटा भी हुआ था। एक धड़ा दादा की लड़कियों उनके परिवारों का था जो दादा को अम्मी की साजिश का शिकार एकदम निर्दोष मान रहा था। दूसरी तरफ नुरीन की ननिहाल की तरफ के लोग थे जो मासूम नुरीन को दादा के जुल्मों का श्किार, उनकी करतूतों की सताई लड़की मान रहे थे। जो यह कहने से ना चूक रहे थे कि बेचारी के बाप की अब-तब लगी है। और बुढ्ढा उसे अभी से अनाथ समझ हाथ साफ करने में लगा हुआ है। तो कोई बोल रहा था कि ऐसे गंदे इंसान को तो दोज़ख में भी जगह न मिलेगी। अरे इसकी हिम्मत तो देखो। इसे तो जेल में ही सड़ा कर मार देना चाहिए। नुरीन के कानों में यह बातें पिघले शीशे सी पड़ रही थीं। उसके आंसू बंद ही नहीं हो रहे थे। मारे शर्मिंदगी के वह कमरे से बाहर नहीं निकल रही थी। दरवाजा अंदर से बंद कर रखा था।

सारी फुफ्फु उससे बात कर सच जानना चाह रही थीं। लेकिन अम्मी और उनका धड़ा मिलने ही नहीं दे रहा था। देखते-देखते घर में ही दोनों धड़ों के बीच मार-पीट की नौबत आ गई। फिर फुफ्फु -फूफा सारे और मुहल्ले के कई लोगों का हुजूम थाने पहुंचा कि किसी तरह दादा को छुड़ाया जाए जिसका जो बन सका फ़ोन-ओन सब कराया गया। लेकिन पुलिस ने कानून के सामने विवशता जाहिर करके सबको वापस भेज दिया। उन सबके आने पर नुरीन की अम्मी ने एक और हंगामा किया। अपने सारे लोगों के साथ मिलकर किसी कोे घर के अंदर नहीं घुसने दिया। बात बढ़ गई। आधी रात हंगामा देख किसी ने पुलिस को फ़ोन कर दिया। पुलिस ने मामले की गंभीरता को देखते हुए फुफ्फु-फूफा आदि सबको उन्हें उनके घर वापस भेज दिया। नुरीन करीब तीन बजे कमरे से बाहर निकल कर अब्बू के पास गई। अब तक अम्मी सहित सब सो रहे थे। उसने अब्बू को देखा वह भी सो रहे थे। वह उनके सिरहाने खड़ी उनके चेहरे को अपलक निहारती रही। उसे लगा जैसे अब्बू के शरीर में कोई जुंबिस ही नहीं हो रही है।

उसने घबराते हुए उनके हाथ को पकड़ कर हलके से हिलाया, कोई जवाब न मिला तो उसने दुबारा हिलाते हुए ‘अब्बू’ आवाज़ भी दी तो इस बार उन्होंने हल्के से आंखें खोल दीं। नुरीन को लगा वह नाहक घबरा उठी थी। अब्बू तो पहले जैसे ही हैं। मगर उनकी आंखों में हल्की सी सुर्खी जरूर आ रही थी। उसने अब्बू के कंधे पर कुछ ऐसे थपकी दी जैसे कोई मां अपने दुध-मुंहे बच्चे को थपकी देकर सुलाती है। उसने देखा अब्बू ने भी आंखें बंद कर ली और सो गए। अगला पूरा दिन अजीब से कोहराम और कशमकस में बीता। जंग का मैदान बने घर में उसे लगा कि एक पक्ष जहां दादा को छुड़ाने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा रहा है वहीं अम्मी और उनका गुट दादा को हर हाल में लंबी सजा दिलाने में लगा है। इतना ही नहीं अम्मी उस पर बराबर नजर भी रखे हुए हैं, किसी से मिलने भी नहीं दे रही हैं। इस बीच मान-मनौवल, दबाव, सुलह-समझौते की सबकी सारी कोशिशें अम्मी की एक ही बात के आगे ढेर होती रहीं कि ‘मैं ऐसे आदमी को बख्श के अपने सिर पर गुनाह का बोझ न लादुंगी जिसने मेरी जवान, मासूम बेटी की इज़्जत पर हाथ डाला है।‘ नुरीन ने देखा कि अम्मी के बेअंदाज तेवर के आगे सब धीरे-धीरे पस्त होते जा रहे हैं। इतना ही नहीं लोगों के बीच यह बात भी दबे जुबान हो रही है कि ऐसी औरत का क्या ठिकाना, अपना स्वार्थ सिद्ध करने के लिए ना जाने किस पर क्या आरोप लगा दे।

ऐसी ही किच-किच के बीच पूरा दिन बीत गया। ना ठीक से खाना-पानी। न ही आराम! समोसा चाय, नमकपारा, चाय पर ही सब रहे। मर्द लोग बाहर खा-पीकर आते रहे। उसने अब्बू के लिए उनके हिसाब से लिक्वड फूड नली के जरिए दिया। उसे दिनभर सबसे ज़्यादा कुढ़न अम्मी और ख़ालु के बीच गुपचुप होती गुफ्तगू से हुई। काली रात फिर घिर आई। बड़ी जिद पर उसे अम्मी ने अपने कमरे में सोने की इजाजत दी। वह जब सोने के लिए कमरे में पहुंची तो देखा उसकी बहनें सो चुकी हैं। उसके तख्त पर का बिस्तर गायब था। मतलब साफ था कि किसी मेहमान के लिए ले लिया गया था। उठाने वाले को यह परवाह बिल्कुल नहीं थी कि वह कैसे सोएगी। आधी रात में कोई और रास्ता ना देख वह बिना बिस्तर के ही लेट गई। कम रोशनी का एक बल्ब अंधेरे से लड़ने में लगा हुआ था।

दो दिन से ठीक से सो ना पाने। खाना-पीना न मिलने, भयंकर तनाव के चलते उसे सिर दर्द हो रहा था। आंखें जल रही थीं। मगर फिर भी उसका मन दादा पर लगा हुआ था। उसका मन बार-बार उस हवालात में चला जा रहा था जिसमें दादा बंद थे। वह यह सोच-सोच कर परेशान होने लगी कि उनकी जर्जर-सूखी हड्डियां हवालात की पथरीली जमीन का कैसे मुकाबला कर रही होंगी। अब तक तो उनका अंग-अंग चोटिल हो चुका होगा। जिस तरह से उन्हें जीप में बिठाया गया। थाने पर इधर-उधर किया गया उस कड़ियल व्यवहार, कड़ियल माहौल को वह कितना झेल पाएंगे। दो-चार दिन भी झेल पाएं तो बड़ी बात होगी। अम्मी के दबाव उनके डर के चलते मैंने एक फरिश्ते जैसे इंसान पर वह भी अपने सगे दादा पर एकदम झूठा वह भी इतना घिनौना आरोप लगाया। इन खयालों ने उसे भीतर ही भीतर और तोड़ना शुरू कर दिया। उसकी आंखों के किनारों से आंसू निकल कर कानों तक जा कर उन्हें भिगो रहे थे। इस बात पर वह सिसक पड़ी कि वह अम्मी, खालू की साजिश का आखिर विरोध क्यों न कर पाई। तमाम बातों पर अम्मी से अकसर भिड़ जाने की उसकी हिम्मत आखिर कहां चली गई थी कि दादा पर ऐसा आरोप लगाया।

वह दादा जो मेरे अब्बू, हम सबके भविष्य के लिए अपनी जान से प्यारी दुकान, पुरखों की निशानी कैसे एक पल गंवाए बिना बेचने लगे। और एक अम्मी है। जो अब्बू का क्या होगा उसे इससे ज़्यादा चिंता प्रॉपर्टी की है। उसे बचाने के लिए इस हद तक गिर गई। मुझे अब्बू के नाम पर कितना डरा धमका रही हैं। एक तरह से ब्लैकमेल कर रही हैं। अब्बू की जान का भय दिखा कर ब्लैकमेल कर रही हैं। जब कि सच यह है कि ऐसे तो अब्बू जितने समय के मेहमान हैं वह भी ना चल पाएंगे। और मुझे तो मुंह दिखाने लायक ही नहीं छोड़ा है। मैं किस तरह लोगों को अपना मुंह दिखाऊंगी। सच तो सामने आएगा ही। दादा छूटेंगे ही। या अल्लाह मैं कैसे करूंगी इन सबका सामना। अपना यह काला मुंह दुनिया के किस कोने में ले जाऊंगी। कहां छिपाऊंगी अपना गुनाह। अल्लाह कभी माफ नहीं करेगा मुझे। पुलिस वाले जिस तरह बार-बार पूछताछ कर रहे हैं, मैं ज़्यादा समय उनको अंधेरे में रख नहीं पाऊंगी। वैसे भी उन सब की हमदर्दी दादा ही के साथ है। उन्हें सिर्फ़ प्रमाण नहीं मिल पा रहा है कि झूठ पकड़ सकें। जिस दिन वह मेरा झूठ पकड़ेंगे। उस दिन मुझे जेल भेजे बिना छोडे़ंगे नहीं। और तब मुझे सजा होने से कोई नहीं बचा सकेगा। मैं बर्बाद हो जाऊंगी। बताते हैं लेडीज पुलिस भी बहुत मारती है।

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