Anu aur Manu Part-13 books and stories free download online pdf in Hindi

अणु और मनु - भाग-13

गौरव कुणाल के घर की बेल बजाता है | कुणाल की माँ दरवाज़ा खोलती हैं | गौरव पाँव छू कर बोला “आंटी कुणाल घर पर है” | वह मुस्कुरा कर बोलीं “हाँ बेटा, वह अपने कमरे में कुछ काम कर रहा है” | “ठीक है आंटी” कह कर वह कुणाल के कमरे की ओर बढ़ जाता है |

गौरव कमरे का दरवाज़ा खोलता है और कुणाल को कमरे में न देख कर वहीं से बोलता है “आंटी वह तो कमरे में नहीं है” | कुणाल की माँ रसोई की तरफ़ जाते हुए बोली “बेटा तुम बैठो, वह शायद टॉयलेट में होगा” |

“ठीक है आंटी”, कह कर गौरव कमरे से सटे टॉयलेट के दरवाजे को खड़का कर बोला “अंदर क्या कर रहा है” |

“साले तू टॉयलेट में क्या करता है | जो तू करता है वही मैं कर रहा हूँ”, अंदर से ही कुणाल बोला |

“मुझे बुला कर तू टॉयलेट में जा कर बैठ गया है | तुझे शर्म नहीं आती” |

“नहीं मुझे शर्म नहीं आती | मैंने तुझे जल्दी बुलाया था और तू अब आ रहा है | कितना इन्तजार करता” |

“तेरा मतलब इसमें शर्म की कोई बात ही नहीं है | तुम्हारे कोई संस्कार हैं कि नहीं | यही सीखा है तुमने आज तक | घर आये मेहमान का ऐसे स्वागत किया जाता है” |

“साले तू मेहमान कब से हो गया | और जो मैं कर रहा हूँ उसे तेरा इन्तजार स्वीकार नहीं था” |

“हद हो गई यार, तेरा तेरे शरीर पर नियंत्रण नहीं है | तुम ज़िन्दगी में क्या करोगे” |

“क्यों तुझे आज सुबह से कोई नहीं मिला जो मुझे पका रहा है” |

“तू इसे सुबह कहता है”

“अबे मुझे करने दे, पका नहीं” |

“अच्छा ये तो बता कि ऐसा क्या हो गया था कि मुझे सुबह-सुबह बुला लिया” | गौरव काफ़ी देर कुणाल के उत्तर का इन्तजार करता है | जब कुणाल कुछ नहीं बोलता है तो गौरव लगातार दरवाज़ा खड़काने लगता है | जब कुणाल कोई उत्तर नहीं देता है तो वह मुस्कुराते हुए कुणाल के बेड के साथ ही रखी कंप्यूटर टेबल के पास पड़ी कुर्सी खींच कर बैठ जाता है |

कुणाल टॉयलेट से निकलते हुए बोला “भाई क्या दरवाज़ा तोड़ने का इरादा था” |

गौरव मुस्कुराते हुए बोला “साले पोटी मुँह से कर रहा था जो बोलने में तकलीफ़ हो रही थी” |

“बाहर तो आना ही था | दो मिन्ट सब्र नहीं हो रहा था” |

“अंदर से बोलने में क्या तकलीफ़ हो रही थी” |

“भाई मज़ाक न कर | मेरा मज़ाक करने का कोई मूड नहीं है | मैंने तुझे यह बात करने के लिए बुलाया है कि पिछले चार-पाँच दिन से मोहित गायब है | उसके एक साथ वाले ने रात को मुझे फ़ोन करके बताया है” |

“मतलब जिस दिन हमारी कॉलेज की कैंटीन में उन लड़को से बहस हुई थी वो उसी दिन से गायब है”|

“भाई कहीं उन्हीं ने तो मोहित को कुछ.....”?

“पागल है क्या ? वो ऐसा क्यों करेंगे ? और बहस तो मेरे से हुई थी | मोहित को गुस्सा जरूर आया था लेकिन फिर सब कुछ ठीक भी तो हो गया था | उन्होंने अपनी गलती मानी भी थी” |

“भाई तू मोहित के गुस्से और उसके बारे में कुछ नहीं जानता | जैसा तू उसे समझता है वो ऐसा नहीं है” |

“ठीक है | तू उसके बारे में सब कुछ जानता है | अब ये बता कि तूने उसे फ़ोन किया कि नहीं”, गौरव अपनी जेब से फ़ोन निकालते हुए बोला|

“भाई मैं उसे रात से आज सुबह तक कई बार फ़ोन कर चुका हूँ | उसका फ़ोन भी बंद है | मैंने सुबह स्वीटी को भी फ़ोन किया था | वह घर भी नहीं गया है | मुझे तो कुछ गड़बड़ लग रही है | कुछ कर यार प्लीज | अगले हफ्ते से पेपर भी तो हैं | इस हिसाब से तो वह इस बार भी गया”?

“तेरी बात तो ठीक है”, कह कर गौरव कुछ देर के लिए चुप कर जाता है | वह फिर कुछ सोचते हुए बोला ये स्वीटी कौन है जिसे तूने फ़ोन किया था” |

“वो तो मैं अभी बता दूंगा लेकिन अभी जो मुद्दे की बात है वो कर” |

“तुझे उसके घर कर एड्रेस मालूम है” |

“नहीं | लेकिन एक बार मैं उसके साथ उसके घर गया था” |

“कमाल है | अच्छे दोस्त हो” |

“घर जा कर क्या करेंगे | मैंने अभी तो बताया कि वो घर गया ही नहीं है” | “हाँ यह भी बात है” |

कुणाल गंभीर भाव से बोला “भाई अब तू ही बता कि क्या किया जाए” |

गौरव अपने सिर पर हाथ फेरते हुए बोला “मेरे हिसाब से उसके घर जा कर ही कुछ पता लग सकता है” |

कुणाल गंभीर भाव से बोला “भाई मैंने तुझे इसीलिए बुलाया था | मैं तुझे मोहित और उसके घर के हालात के बारे में कुछ बताना चाहता था” |

“क्या” ?

कुणाल वहीं बेड पर तकिया रख कर आराम से बैठते हुए बोला “यह बात पहले समिस्टर की है | मेरी सबसे पहले दोस्ती मोहित से ही हुई थी | तब वह इतना बिगड़ा हुआ नहीं था ऐसा उस समय मुझे लगता था | ईद की छुट्टी शुक्रवार को आ रही थी | मैं अभी कॉलेज से निकल ही रहा था कि पीछे से मोहित आया और मेरा हाथ पकड़ कर उसने मुझे रुकने का इशारा किया |

“क्या हुआ भाई”, मैं रुकते हुए बोला |

मोहित मुस्कुराते हुए बोला “यार कुणाल, मैं कल दो दिन की छुट्टी पर अपने घर जा रहा हूँ | क्या तू भी मेरे साथ मेरे घर चलेगा | बहुत मजा आएगा | बोल क्या कहता है” ?

“भाई मैं घर पर पूछ कर ही ‘हाँ’ या ‘ना’ कह सकता हूँ”|

“तू कहे तो मैं भी तेरे साथ घर चलता हूँ | तेरे माता-पिता से मैं बात कर लूँगा” |

“नहीं ऐसी कोई बात नहीं है | अगर उन्होंने ‘हाँ’ करनी होगी तो करेंगे और अगर ‘ना’ करनी होगी तो तेरे चलने से भी कोई फर्क नहीं पड़ेगा” |

“देख ले | मजा आएगा अगर तू चलेगा” |

“ठीक है मैं बात कर लूँगा”, कह कर मैं अपनी मोटरसाइकिल के पास पहुँचा ही था कि मोहित किसी को देख बाहर की ओर तेज कदमों से निकल गया |

सुबह मेरे कॉलेज आने के बाद मेरे माता-पिता का आपस में शायद झगड़ा हुआ था | जिसका एहसास मुझे उस दिन घर पहुँचने पर हुआ | उनके बिगड़े हुए चेहरे देख पहले तो मेरी हिम्मत नहीं हुई | ज्यादा से ज्यादा मना ही तो करेंगे यह सोच कर मैंने डरते-डरते उनसे मोहित के घर जाने की बात की तो दोनों ने ही बिना कुछ सोचे-समझे ‘हाँ’ बोल दी |

मैं पहली बार अकेले कहीं जा रहा था और वह भी अपने घर वालों की मर्जी से | मैंने रात भर में कई सपने संजो लिए थे | सुबह भी मेरी नींद जल्दी खुल गई थी | मैंने अपना एक छोटा-सा बैग पैक किया और नाश्ता कर चुप-चाप कॉलेज के लिए निकल पड़ा |

*

नवम्बर का महिना था इसलिए शाम के समय हल्की-हल्की ठण्ड थी | दिल्ली से बस को चले लगभग दो घंटे हो चुके थे | मैं और मोहित दोनों बस की खिड़की से बाहर दूर तक फैली हरियाली को देख रहे थे | सूर्य देवता अपना कार्य संध्या सुन्दरी को देकर अस्ताचल की ओर बढ़ चले थे | ऐसा लग रहा था कि जैसे सूर्य देवता के जाने के दुःख में आकाश का चेहरा लाल हो गया था | पक्षी कलरव करते हुए अपने नीड़ो की तरफ उड़े जा रहे थे | कितनी आनन्दमय होती है शाम यह एहसास मुझे पहली बार हो रहा था|

मैं यह सोच कर अपनी आँखें बंद कर लेता हूँ कि यह दृश्य मेरे मन और मस्तिष्क में सदा के लिए अंकित हो जाए | मैंने पढ़ा था कि कुछ दशक पहले शाम को सब थके-हारे अपने परिवार में आ मिलने को आतुर तेज गति से घर की ओर चल पड़ते थे | एक जमाना था जब शाम के खाने पर पूरा परिवार एक साथ खाना खाते हुए अपने दिन भर की दास्तान सुनाया करते थे | इस दौड़ती-भागती जिन्दगी ने सब कुछ छीन लिया | अब तो शाम को दिन शुरू होता है और सब अपने-अपने तरीके से शाम का आनन्द लेते हैं | और ऐसी ही एक शाम को मैं अपने परिवार को छोड़ कर मोहित के घर जा रहा हूँ | यही सोचते-सोचते कब मैं नींद के आगोश में समा गया मालूम ही नहीं चला |

“भाई सो गया क्या”, मोहित की आवाज सुन मेरी नींद खुलती है | वह अपना बैग उठाये बोल रहा था |

“हाँ, यार ऐसी नींद का मजा ही कुछ अलग है | आगरा आ गया क्या”, मैं उठते हुए बोला |

“और क्या, मैं भी सो गया था | साला पता ही नहीं चला कब चार घंटे बीत गए | जल्दी से उठ”, कह कर वह उतरने के लिए बस के दरवाजे की ओर चल देता है |

बस से उतरने के बाद इधर-उधर देखते हुए मैं हैरान हो कर बोला “आगरा में बस अड्डा नहीं है क्या”?

मोहित हँसते हुए बोला “भाई यहाँ से बस अड्डा चार किलोमीटर आगे है | घर यहाँ से पास पड़ता है इसलिए रास्ते में ही उतरना पड़ता है ”, कह कर मोहित पीछे से आ रहे ऑटो रिक्शा को रुकने का इशारा करता है | ऑटो कुछ आगे जा कर रुकता है | मोहित भाग कर उसके पास जाता है और उससे कुछ बात कर मुझे इशारे से जल्दी आकर ऑटो में बैठने को कहता है |

ऑटो कुछ दूर तक हाईवे पर चलने के बाद शहर की ओर जाने वाले रास्ते पर मुड़ जाता है | ऑटो एक छोटे से भीड़-भाड़ वाले बाजार से होता हुआ एक माध्यम-निम्न वर्ग के लिए बने दो मंजिला मकानों की कालोनी की ओर मुड़ जाता है | शायद वहाँ सात-आठ सौ मकान होंगे | ऐसा लग रहा था कि लगभग सब मकानो पर आठ-दस साल से पुताई नहीं हुई है | ज्यादात्तर मकानों की दीवारों से जगह-जगह सीमेंट झड़ चुका था और अंदर से ईंटे झाँक रहीं थी जो उस जगह और उसमें रहने वालों के स्तर को बयाँ कर रहीं थी | एक ऐसे ही मकान के पास जोकि कोने का था हमारा ऑटो रुका तो मोहित बोला “भाई घर आ गया | चल उतर”, कह कर मोहित ऑटो से उतर जाता है |

मैं ऑटो से उतर कर अभी आस-पास देख ही रहा था कि मोहित की आवाज मेरे कानो में पड़ती है | “यहीं खड़ा रहेगा कि अंदर भी चलेगा”, कह कर वह अपने घर के लोहे का गेट खोल कर आंगन में प्रवेश कर जाता है | मैं भी उसके पीछे-पीछे अंदर आ जाता हूँ | उस मकान के छोटे से आँगन के कोने में पानी के नल के पास एक वृधा औरत बैठी बर्तन धो रही थी | वह लगभग सत्तर साल की होगी | उसने सफ़ेद रंग की साड़ी पहन हुई थी | मोहित उस वृधा औरत के पैर छूते हुए बोला “दादी देखो मैं आ गया” |

दादी चौंक कर मोहित को देखती है | वह जब तक कुछ समझ पाती मोहित “दादी”, कह उससे लिपट जाता है | दादी हैरान होते हुए बोली “बाबू मेरे लाल, तू कब आया”, कह वह मोहित का माथा चूम लेती है |

मोहित बैग वापिस अपने कंधे पर रखते हुए बोला “देख दादी, मैं आ भी गया और तुझे कुछ पता ही नहीं चला” |

“बेटा अब आँखों और कानों से लाचार इस बूढ़ी को कहाँ पूरा दिखता और सुनता है”, दादी मोहित का हाथ पकड़ कर उठते हुए बोली |

मोहित मेरी ओर मुड़ते हुए बोला “मेरी दादी” और फिर दादी को देखते हुए बोला “ये मेरे कॉलेज का दोस्त कुणाल है”|

“माल ये कैसा नाम हुआ”, दादी हैरान होते हुए बोली |

मेरी व मोहित की हंसी निकल जाती है | मोहित हँसते हुए जोर से बोला “दादी कू...णाल” | “यूँ बोल न, कुनाल | अच्छा नाम है लेकिन बेटा तेरा कोई छोटा नाम नहीं है | इस बूढ़ी के बस का नहीं है इतना मुश्किल नाम लेना” |

मैं मुस्कुराते हुए बोला “दादी आप बब्लू बोल लेना” |

दादी खुश होते हुए बोली “यह नाम ठीक है | आओ बेटा अन्दर आओ”, कह कर वह दरवाजे पर पड़े परदे को हटाते हुए हमें अंदर आने का इशारा करती है | हम दोनों दादी के पीछे-पीछे घर के अंदर आ जाते हैं |

घर में घुसते ही दाएँ ओर रसोई और बायें ओर गुस्लखाना था और बीचो-बीच में बैठक थी जिसके दोनों तरफ बेड रूम था | अंदर आते ही दादी रसोई में चली जाती है और मोहित अपना बैग रख कर टॉयलेट में चला जाता है | मैं वहाँ एक तरफ रखे छोटे से सोफासेट पर बैठ जाता हूँ | सोफासेट के सामने की ओर दो लकड़ी की पुरानी कुर्सियां और बीचो-बीच में एक नई लकड़ी की टेबल और कोने में पुराना-सा दीवान था |

टॉयलेट से आकर सोफे पर बैठते हुए मोहित बोला “दादी ये टेबल कहाँ से आई और पहले वाली कहाँ गई”, फिर मुस्कुरा कर मुझे देखते हुए बोला “अबे यार, मैं भी न, ऊँचा सुनने वाली दादी को मेरी बात कहाँ से सुनाई देगी” |

दादी रसोई से पानी के गिलास ट्रे में रख कर लाते हुए बोली “बेटा जी कभी-कभी इस बहरी को सुनाई भी पड़ जाता है | तेरी माँ के हाथ से पानी का गिलास शीशे वाली टेबल पर गिर गया था | इसलिए ये नई टेबल वही लेकर आई थी” |

पानी का गिलास हाथ में पकड़ते हुए मोहित बोला “दादी कभी-कभी मुझे लगता है कि आप बहरे बनने का नाटक करती हो | वरना इतने धीरे बोली बात इतनी दूर से कैसे सुनाई पड़ सकती है” |

दादी पानी का गिलास मुझे थमाते हुए बोली “बेटा इन दोनों माँ-बेटे को हमेशा मुझ पर शक करने की आदत-सी पड़ गई है” |

मैं मुस्कुराते हुए बोला “नहीं दादी, मोहित तो मज़ाक कर रहा था”|

दादी बोली “बेटा अब तो मुझे यह सब सुनने की आदत पड़ गई है | भगवान् किसी को बुढ़ापा न दे | दे तो ऐसे लाचार न बनाए | खैर छोड़ो, तुम लोग आराम करो, मैं अभी चाय बना कर लाती हूँ”, कहते हुए वह रसोईघर की ओर चली जाती है |

मैं दादी की बात सुन कर गुमसुम-सा हो गया था | मुझे समझ नहीं आ रहा था कि आखिर दादी मुस्कुराते हुए भी इतनी दुःखी क्यों लग रही थी | मैं अभी इसी उधेड़बुन में खोया हुआ था कि मोहित मेरे कंधे पर हाथ रखते हुए बोला “भाई कहाँ खो गया | चल बेडरूम में चल | तू थोड़ा आराम कर ले जब तक मैं अपने दोस्तों से मिल कर आता हूँ | इस बार बहुत दिनों के बाद आया हूँ न”, कह कर वह मुझे अपने बेडरूम में ले गया | बेडरूम में एक डबलबेड व दो पुरानी लोहे की अलमारियों के इलावा एक लकड़ी की मेज व उसके पास एक पुरानी सी लकड़ी की कुर्सी पड़ी थी | मेज पर तीन चार दवाईयों के खाली रेपर और दो प्लास्टिक के पैकेट पड़े थे जिनमें सफ़ेद रंग का पाउडर-सा कुछ भरा हुआ था |

मैं अभी उस मेज के पास पहुंचा ही था कि मोहित आया और जल्दी से मेज पर बिखरे रेपर और प्लास्टिक के पैकटों को दराज में डालते हुए बोला “तू कुछ आराम कर ले मैं अभी गया और अभी आया” |

उसके जाते ही मैं बेड पर लेट जाता हूँ | थकावट से मेरी आँखें बंद हो रहीं थी कि अचानक मुझे लगा कि शायद मोहित मुझ से कुछ छुपाना चाह रहा था तभी वो वह बहाने से वापिस आया और दवाइयां दराज में डाल कर चला गया | आखिर क्या था उनमें ? यह जानने के लिए मैंने उठकर मेज की दराज खोली | उस दराज में एक ही दवाई के कई पत्ते पड़े हुए थे | किसी पत्ते में से दो तो किसी में से चार गोलियां ली गई थीं | मुझे बहुत ही अजीब लगा कि यदि किसी ने भी यह दवाई खानी थी तो एक बार में एक ही पत्ते को खत्म करके भी खा सकता था | एक ही जगह पड़े अलग-अलग पत्तो में से क्यों लिया गया है | उसी दराज में पोलिथीन की छोटी ज़िप वाली तीन-चार थैलियां पड़ी थीं जिन में कुछ सफ़ेद रंग का पाउडर जैसा भरा हुआ था | ये पाउडर क्या होगा सोचते हुए मैं वापिस आकर फिर से बेड पर उल्टा हो कर लेट जाता हूँ |

अचानक मुझे महसूस हुआ कि कोई मेरी पीठ और सिर पर दनादन कुछ हल्की-सी चीज मार रहा है | मैं अपनी आँख मलते हुए जल्दी से पलटा तो देखा एक सुंदर लड़की तकिया हाथ में लिए खड़ी थी | वह फटी आँखों से मुझे देख रही थी | उसने गहरे नीले रंग का पंजाबी सूट पहना हुआ था जिसमें उसका गोरा रंग और भी गोरा लग रहा था | उसके कंधे से नीचे तक लटकते हुए बाल खुले हुए थे जिसमें से कुछ लटें उसके चेहरे पर भी आ रही थीं | उसकी सुन्दरता देख मेरी नजरें उस पर अटक जाती है | अचानक उसे होश आता है और वह तकिया वहीं फेंक कर बोली “सॉरी !” | मैं कुछ समझ पाता इस से पहले ही वह भागते हुए कमरे से बाहर निकल जाती है |

दादी कमरे में आते हुए बोली “क्या हुआ बेटा, ये स्वीटी ऐसे क्यों भाग गई” |

मैं बिस्तर से उठते हुए बोला “कौन स्वीटी” ?

“ये लड़की जो अभी यहाँ से गई है इसका नाम ही स्वीटी है” |

“कौन है ये स्वीटी”?

“बेटा ये सामने के घर में रहती है” |

“ओह! ये शायद मुझे मोहित समझ कर उठा रही थी” |

“अच्छा, हाँ हो सकता है | ये काफी दिनों से मोहित को पूछने के लिए आ रही थी | आज शायद तुम्हें देख कर मोहित समझ बैठी होगी” | कोई बात नहीं, अभी फिर आएगी | उसे भी चैन नहीं है | चल छोड़ इस बात को, आ जा मैंने चाय बनाई है पी ले” |

“दादी मोहित को तो आने दो” |

“बेटा, मोहित को छोड़ | वो न आता रात तक” |

“क्यों”?

“बस बेटा इन माँ-बेटों का यही हाल है” |

“तू तो मोहित का दोस्त है उसे क्यों नहीं समझता है” |

“क्या दादी” |

“यही कि इस दोस्ती-यारी में कुछ नहीं रखा है | सब मिलकर इसे बर्बाद कर देंगे” |

“कौन दोस्त-यार” |

“तू तो ऐसे कह रहा है जैसे कुछ जानता ही नहीं है” |

“सच में दादी, मैं कुछ नहीं जानता ” |

“इस बूढ़ी से क्यों मजाक करता है” |

दादी इससे पहले कुछ और बोलती, बाहर से आती आवाज सुन सहम-सी जाती है और तेज कदमों से बाहर निकल जाती है | बाहर से आती आवाज सुन मैं बिस्तर से उठ कर खड़ा हो जाता हूँ | मैं अभी अपने जूते पहनता ही हूँ कि एक महिला पुलिस की वर्दी पहने कमरे में दाखिल होती है | वह कड़क आवाज में मुझे देख बोली “आप कौन”?

मैं झेंपते हुए बोला “म...मैं मोहित के कॉलेज का दोस्त कुणाल” |

“ओह! आप उसके कॉलेज के दोस्त हैं | दिल्ली से आए हैं” |

“जी” |

“सॉरी बेटा, मैं समझी उसका यहाँ का कोई दोस्त है | मांजी किसी को भी घर में बैठा लेती हैं” |

“आप”?

वह हंसते हुए बोली “मैं मोहित की माँ हूँ” |

मैं झेंपते हुए बोला “ओह ! नमस्कार आंटी” |

“नमस्ते, बैठो बेटा, मेरी कड़क आवाज से घबराने की ज़रूरत नहीं | हर किसी पर शक करने की हम पुलिस वालों की आदत ही हो जाती है” | फिर वह बाहर की तरफ देखते हुए बोलीं “मांजी ने चाय-वाय पिलाई कि नहीं”, कह कर वह मेज के पास ही रखी कुर्सी पर बैठते हुए बोलीं “हमारी मांजी की आदत है वह कुछ खिलाने-पिलाने से पहले कहानियाँ सुनाने बैठ जाती हैं” |

“नहीं, नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है | मैं बिस्तर पर लेटते ही कुछ देर के लिए सो गया था”|

“ओह! अच्छा | हाँ शायद थक गए होगे | बस में सीट तो मिल गई थी कि नहीं” |

“हाँ, हाँ | बस में तो आराम से आये थे | बस वैसे ही कुछ थकावट-सी हो गई थी” | अभी हम बात कर ही रहे थे कि दादी हम दोनों के लिए चाय व बिस्कुट ले आई | आंटी व मुझे चाय का कप पकड़ा वह चली गईं |

माँ ने चाय पीते-पीते मुझ से मेरे पूरे परिवार का इतिहास और वर्तमान दोनों पूछ लिया | परिवार के बाद हमारी क्लास में कौन-कौन है | उनके माँ-बाप क्या करते हैं | मोहित के और दोस्त कौन हैं | वह छुट्टी वाले दिन क्या करता है, आदि, आदि | जब उन्हें पूरा इत्मीनान हो गया कि अब बात करने को कुछ भी बाकी नहीं है तो वह उठते हुए बोलीं “बेटा तुम आराम करो मैं रात के खाने का इन्तजाम करती हूँ | मुझे सुबह जल्दी ड्यूटी पर जाना है”|

खाना खा कर मैं सोने ही वाला था कि मोहित आ गया | वह बेड पर बैठते हुए बोला “भाई बोर तो नहीं हुआ | माँ ने सब कुछ पूछ लिया कि कुछ बाकी है” |

“तू कहाँ चला गया था | तेरी आवाज से तो लग रहा है कि तू दारु पी कर आया है”|

वह काफी नशे में था | अटकते हुए बोला “हाँ... यार.., बस इतने दिनों के बाद आया था तो....” कहते-कहते वह बेड लेटते ही सो गया | मैं काफी देर तक उसे बैठे देखता रहा फिर उसे बेड पर ठीक से लेटा कर मैं भी लेट गया | रात को मुझे काफ़ी देर तक नींद नहीं आई | बार-बार यही ख्याल आ रहा था कि मैं भी कहाँ आकर फंस गया |

*

सुबह जब मैं उठा, तब तक माँ अपनी डियूटी पर जा चुकी थीं | मोहित भी मुझे नहीं दिख रहा था | मैं कमरे से बाहर निकला तो देखा कि दादी बैठक में नीचे बैठी आटा गूंध रही थी | मैं उन्हीं के पास जा कर बैठ गया | मुझे देख वह खुश होते हुए बोली “बेटा रात को नींद तो ठीक से आ गई थी” | मैं अंगड़ाई लेते हुए बोला “हाँ दादी | थका हुआ था | लेटते ही नींद आ गई”, कह कर कुणाल चुप कर जाता है |

काफी देर तक कुणाल को चुपचाप छत पर नजर टिकाये देख कर गौरव बोला “अबे साले आगे बोल | इतनी छोटी सी बात पर इतनी लम्बी स्टोरी सुना दी | अब जब थोड़ा-सा इंटरेस्ट आने लगा था तो चुपचाप बैठे छत को निहार रहा है”, कह कर गौरव कुणाल को हिलाते हुए बोला |

कुणाल गंभीर स्वर में बोला “भाई मैंने तुझे इतना विस्तार से सिर्फ इसलिए सुनाया ताकि तू यह समझ सके कि वहाँ कितना दमघोटू वातावरण था | मैं नहीं जानता था कि नेगटिव और पॉजिटिव वातावरण कैसा होता है लेकिन उसके घर जा कर समझ आया कि दोनों में क्या फर्क होता है | भाई मैं दो दिन रहने के लिए गया था लेकिन एक दिन में ही मेरा दम घुटने लगा था | फिर मोहित घर पर मेरे साथ तो रहता नहीं था | मैं अगले ही दिन शाम को अपने घर वापिस आ गया था” |

कुछ देर चुप रहने के बाद कुणाल फिर से बोला “भाई एक बात तो मैं बताना ही भूल गया कि मुझे उसकी दादी ने जो कुछ भी मोहित, उसके पिता और माँ के बारे में बताया वह हैरान करने वाला था | दादी का कहना था कि मोहित के पिता बहुत ही शरीफ और इमानदार पुलिस वाले थे | मोहित की माँ ने ही मोहित के पिता को ताने दे-देकर रिश्वतखोर बनाया | पैसे के चक्कर में वह ड्रग्स के काले धंधे में फंस कर नशा भी करने लगे | उन्होंने कुछ समय तक खूब पैसा भी कमाया और नशा भी किया | और एक दिन जब वह बीमार पड़े तो पता लगा कि उनको कैंसर हो गया था | दो साल तड़फ-तड़फ कर आखिर एक दिन चल बसे | मोहित की माँ की नौकरी अपने पति की जगह लगी | एक-दो साल सब कुछ ठीक चला लेकिन फिर धीरे-धीरे मोहित की माँ को पैसे कमाने का भूत सवार होने लगा | दादी को शक है कि उसको देख-देख कर मोहित भी अब उसी ओर चल पड़ा है” |

“मोहित के बारे में जब तुझे उस समय पता लग गया था तो इतने दिन तूने हम लोगों को क्यों नहीं बताया | साले कम से कम उस दिन तो बताना चाहिए था जिस दिन सिम्मी उसके बारे में बता रही थी | कमीने आज बता रहा है जब वह गायब हो गया है | कुत्ते पहले बताया होता तो कुछ करते | अब तू ही बता क्या करें” |

कुणाल हैरान होते हुए बोला “मतलब आज से पहले तुझे उसके बारे में कोई अंदाजा नहीं था कि वह क्या कर रहा है” |

गौरव कुणाल के कंधे पर हाथ रखते हुए बोला “अंदाजा ही नहीं विश्वास था कि वह कुछ तो गलत कर रहा है | लेकिन मुझे सिर्फ इतना लगता था कि उसकी संगत बुरी है और यह भी लगता था कि वह ड्रग्स लेता है लेकिन वह इस कद्र डूब चुका है इसका अंदाजा नहीं था”, कह कर गौरव अपनी आँखें पोंछते हुए फिर से बोला “हमने सच में बहुत बड़ी गलती कर दी है | खैर कोई बात नहीं | मैं देखता हूँ अभी भी क्या हो सकता है | चल ठीक है मैं अब चलता हूँ | घर जा कर अगर मौका मिला तो अप्पा से बात करूँगा”, कह कर गौरव सिर झुकाए तेजी से कमरे से निकल जाता है |

गौरव जाते हुए यह सोच रहा था कि उसने क्यों मोहित पर ध्यान नहीं दिया | एक अच्छा दोस्त पता नहीं अब हाथ आएगा कि नहीं | वहीं कुणाल बेड पर लेटते हुए अपने आप को कोस रहा था कि मैंने मोहित के बारे में पहले गौरव को क्यों नहीं बताया | पता नहीं अब हम मोहित को देख भी पाएंगे कि नहीं|

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