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मॉरीशस किनारे....

आज साँची गंगा तलाव मे पाँव डाले विचारों की लहरों में डूबती उतराती जा रही थी ।गंगा तलाव मॉरीशस की वो जगह जहाँ पहुंच कर एक छोटा भारत दिखाई पड़ता है। बिल्कुल अपना सा ,वही अति सुंदर शिवजी का मंदिर जिसे मारिशेश्वर भी कहते हैं। इसे तेरहवां ज्योतिर्लिंग भी कहा जाता है बारह तो भारत में है।साँची ने वहाँ दर्शन किये और कुछ देर गंगा तलाव के पास बैठ गयी । आज उसे भारत वापस जाना था ।

मॉरीशस आए साँची को एक महीना हो गया था। वह मॉरीशस यूनिवर्सिटी के हिंदी डिपार्टमेंट के एक प्रोजेक्ट के सिलसिले में आई हुई थी। मॉरीशस के विषय में उसने पत्र पत्रिकाओं में खूब पढ़ रखा था कि किस तरह भारत से यहां गिरमिटिया मजदूर आए और उन्होंने अपने सोने जैसे देह को गला दिया लेकिन अपनी पहचान को नहीं खोया ,अपनी भाषा संस्कृति भारतीयता का खूब प्रचार प्रसार किया । भारत की सांस्कृतिक विरासत को किस तरह उन्होंने बचाये रखा।इसलिए साँची को यहां से एक अपनेपन की खुशबू महसूस होती और वहीं वो अपने दर्द भरे अतीत से भी दूर जाना चाहती थी …..अचानक एक छोटी सी मछली सांची के पैरों में होकर गुजरी ,सांची चौक गई, विचारों की लड़ियां टूटी और वह बड़े ध्यान से गंगा तलाव के पानी को देखने लगी । कितना निर्मल कितना स्वच्छ पानी है यहां का ,ऐसे ही निर्मल सबका मन हो ,सबके लिए स्नेह ,कोई ईर्ष्या द्वेष नहीं …..।


वह मुंबई में यूनिवर्सिटी में हिंदी प्रोजेक्ट के लिए काम कर रही थी और उसी प्रोजेक्ट के सिलसिले में जब मॉरीशस जाने की बात आई तो वह सहर्ष तैयार हो गई क्योंकि मॉरीशस के विषय में उसने बहुत पढ़ रखा था और साथ ही अपनी उलझी हुई ज़िन्दगी से दूर सुकून के पलों को भी खोजना चाहती थी ।आज गंगा तलाव के पानी की तरलता से उसका मन भी तरल हो रहा था ,पर किसके लिए ,हां शिखर के लिए ।सांची की मुलाकात शिखर से उसी हिंदी प्रोजेक्ट के दरम्यान हुई ।मॉरीशस में शिखर भी उसी प्रोजेक्ट पर काम कर रहा था। शिखर अपने नाम के अनुरूप ,लंबा ,गठीला शरीर आकर्षक मुस्कान , पुरुषोचित व्व्यक्तित्व ,शालीन ,सदा शिखर पर रहने वाला शिखर। सांची न जाने क्यों शिखर को याद कर रही थी। उसके मन में यह गीत गूँज उठा ......."न जाने क्यों होता है यूँ ज़िन्दगी के साथ….


…...और सांची सांवली ,सलोनी, बहुत सुंदर नहीं पर अच्छी उससे भी अधिक मन से अच्छी, पूरी सच्ची, अपने विषय की ज्ञाता सामाजिक संदर्भ पर अच्छी पकड़ रखने वाली ,अपने विचारों को स्पष्टता से प्रस्तुत करने वाली ।प्रोफेसर अरुण ने उस दिन दोनों का परिचय कराया-

" यह शिखर है और आप दोनों एक ही प्रोजेक्ट पर काम कर रहे हैं तो तालमेल होना बहुत जरूरी है ।"मैंने ठीक कहा न !!"

साँची और शिखर दोनों ने मुस्कुरा कर हामी भर दी। प्रोफेसर अरुण उन दोनों को यूनिवर्सिटी केंपस की लाइब्रेरी में अकेला छोड़ कर चले गए ।

'आप कहां ठहरी हैं? शिखर ने औपचारिक बातचीत की शुरुआत की ।"तरीसा रिसॉर्ट ,पर आई मुम्बई से हूँ " साँची का उत्तर भी संक्षिप्त था और औपचारिकता समेटे था

"..... और आप ??साँची ने प्रति प्रश्न किया ।

" मैं तो मॉरीशस का निवासी हूं, यहां मैं अपनी मां के साथ तीन पीढ़ियों से हूँ ,अब तो मॉरीशस ही हमारा देश है।"शिखर ने उत्तर दिया।

"पर मूल तो आप भारत के हैं न !" -साँची तपाक से बोली।

"हाँ वो तो है ".....शिखर मुस्कुरा कर रह गया

" वैसे आप मुझे सही व्यक्ति मिले हैं ,आपको तो मॉरीशस का चप्पा चप्पा पता होगा... तो आप मुझे मॉरीशस का दर्शन कराइए" साँची पता नहीं किस अधिकार से बोल गई ।

" जरूर -जरूर क्यों नहीं ,यूनिवर्सिटी के प्रोजेक्ट का काम तो 12:30बजे तक हो जाता है, उसके बाद आप को मॉरीशस का सैर कराता हूँ ।"शिखर ने बड़ी ही सहजता से कहा ।

अगले दिन यूनिवर्सिटी में प्रोजेक्ट का काम खत्म करने के बाद शिखर, साँची को मॉरीशस के कैपिटल 'पोर्ट लुइस' के वॉटरफ्रंट मॉल में लेकर गया। रंग -बिरंगी छतरियों से आच्छादित वह ओपन मॉल अपने रंग बिखेर रहा था । सामने ही उसके हरा समंदर ,नीला आकाश ,मॉरीशस की प्राकृतिक छटा को प्रदर्शित कर रहा था ।आज शिखर को वही सबकुछ न जाने क्यों नया नया सा लग रहा था ।उसका मन अनजानी सी किसी संगीतमय लहरी पर मदमस्त हो चला था ।

मॉल में ताजे फल सब्जियों की दुकान, गन्ने का जूस और कॉफी शॉप ,कपड़ों की चमकती दमकती दुकान थी, मॉरीशस की हस्तकला जिसमे छोटे-छोटे जहाज ,पंखे ,पर्स आदि की दुकानें ,तरह-तरह के बड़े-बड़े स्टेचू ,साँची को सभी कुछ अच्छा लग रहा था पर वो छतरी वाली जगह ,वहां से उसे जाने की इच्छा ही नहीं हो रही थी । एक अद्भुत रंग बिरंगी दुनियां का उसे एहसास हो रहा था ।कहाँ वे काले स्याह दिन और कहाँ ये बिखरे पड़े इंद्रधनुषी रंग ……..


" साँची ! आप गन्ने का जूस पिएंगी !!

"गन्ने का जूस कुछ !! खास है क्या ?? साँची बोली

"सांची !दरअसल गन्ना मॉरीशस की प्रमुख उपज है" शिखर ने जानकारी देते हुए बताया।

"हाँ हाँ तरीसा रिसोर्ट के सामने और एयरपोर्ट के पास में गन्ने के बहुत सारे खेत देखे ।"

"हां गन्ना यहां की इकॉनमी का प्रमुख आधार है और इससे पेट्रोलियम भी बनाते हैं।" शिखर ने कहा

वहां की भाषा क्रिओल में शेखर ने दो गिलास गन्ने का जूस मांगा और मॉरीशियन ₹सौ दिए ।

"क्या !इतना महंगा!!, यानी भारत के हिसाब से ₹दो सौ का जूस!!पर भारत में पंद्रह या ₹ बीस में गन्ने का जूस मिलता है ।" साँची भोली सूरत बना कर बोली ।

शिखर जोर से हंसा "अरे !मैंने बताया था न! गन्ना यहां की इकोनॉमी का मुख्य आधार है इसलिए गलती से भी तुमने अगर गन्ने के खेत से गन्ना तोड़ लिया तो जेल हो जाएगी।" सॉरी साँची !मैं गलती से आपको तुम बोल गया।"

" नहीं कोई बात नहीं हम एक दूसरे को तुम बोल सकते हैं,आखिर हम एक प्रोजेक्ट पर काम कर रहे हैं तो हम दोस्त हुए न !!" साँची ने अपनी ने मोहक मुस्कान बिखेर दी।…...और शिखर उस मोहक मुस्कान पर निसार सा होने लगा ।


सांची वहां के मॉल से घर के लिए ,अपने दोस्तों के लिए छोटी-छोटी चीजें खरीद रही थी और शिखर साँची की हर गतिविधि को बड़े गौर से निहार रहा था ।सरल, सौम्य, सहज साँची कोई अप्सरा जैसी सुंदर नहीं या ऐसी नहीं कि जिसे देख कर आहें भरा जाए पर हाँ ऐसी जिसे देखकर फिर कभी भूलने की इच्छा ना हो ,जिसे देखकर अपनापन जागे ।कितनी अपनी सी लगती है सांची ।शिखर इन पलों को भरपूर जी लेना चाहता था ।

हिंदी विभाग में उस दिन सेमिनार था । साँची ने क्रीम कलर की साड़ी पहने थी ,माथे पर छोटी सी बिंदी और नेचुरल कलर की लिपस्टिक में अपने शालीन व्यक्तित्व के साथ खूब फब रही थी । शिखर ने ऑडिटोरियम में प्रवेश किया तो उसकी नज़र सीधे सांची पर ही जा टिकी मानो वो उस छवि को पूरी तरह आंखों में भर लेना चाहता हो ।साँची और शिखर दोनों ने ही अपने अपने पेपर्स पढ़े । साँची को शिखर के पढने के अंदाज़ बहुत भाया और वहीं शिखर भी साँची की तारीफ करते नही थक रहा था ।साँची जहां पहले अपने अस्तित्व अपने व्यक्तित्व को भूलने लगी थी ,भूलने लगी थी कि उसने स्कूल कॉलेज के दिनों में कितनी सारी वाद-विवाद प्रतियोगिताएं जीती थीं,सब उसके बोलने की कितनी प्रशंसा किया करते थे ...आज शिखर ने और बाकी लोगों ने जब सेमिनार में उसे सराहा तो उसे लगा कि मानों उसे फिर एक मजबूत आधार मिल गया हो ,अपनी पहचान स्वयं से एक बार फिर हो गई हो । शिखर की कही हुई बात तो कानों में मिश्री सी घोल रही थी ' कितना अच्छा बोलती हो साँची तुम ,आवाज़ भी अच्छी और चेहरे का भाव भी बहुत अच्छा …" शिखर ने कहा था । ….सच साँची और शिखर के बीच एक डोर बंधती जा रही थी …...


अगले दिन यूनिवर्सिटी से 12:30 बजे के बाद शिखर फिर हाजिर था साँची को घुमाने के लिए ।

"तो आज कहां जाएंगे साँची ने भोलेपन से पूछा।

" आज हम लोग चलेंगे माउंट चौयसी बीच (mount choicy beach)शिखर के उत्तर में थोड़ी चंचलता या कहूं नटखट अंदाज़ था।साँची खुश हो गई ,उसे समंदर देखना बहुत प्रिय है। मॉरीशस के उत्तर में स्थित माउंट चौयसी बीच मॉरीशस का सबसे लंबा बीच है ।समंदर का नीला पानी ,उसकी गहराई में दीखते शैवाल ,कोरल ,यह सब देख कर साँची मंत्रमुग्ध हुई जा रही थी और शिखर अपनी नज़रे बचाते हुए चुपके से साँची को निहार लेता। सांवली ,सलोनी, कजरारी आंखों वाली ,भोली भाली सांची को देखकर शिखर के मन में बार-बार अपने पन का भाव जागता।


"शिखर यहां तो पैरासेलिंग भी होती है !!मुझे करना है ।आप भी करेंगे क्या मेरे साथ?" सांची चहक कर बोली

"आप कौन ?हम जब दोस्त हैं तो इतनी औपचारिकता क्यों??"

"....अ ...अ शिखर तुम भी पैरासेलिंग करोगे क्या ? साँची बोलते हुए कुछ शरमा सी गई ।

" हाँ जरूर करूंगा , मुझे भी यह यह वॉटरस्पोर्ट बहुत पसंद है। "शिखर पूरे जोश में था ।

शिखर और साँची पैरासेलिंग के जरिए हवा से बातें करने लगे

अचानक साँची का पैराशूट समुद्र में बने प्लेटफॉर्म पर लैंड होने के बजाय समुद्र में ही लैंड हो गया और साँची इतना डर गई कि बेहोश हो गई । उसे जब होश आया तो उसने खुद को मॉरीशस के 'सिटी हॉस्पिटल 'के बेड पर पाया और सामने शिखर चिंतित सा दिखाई पड़ा ।

" मुझे यहां आप ले कर आये!!! " साँची धीमे से बोली

"फिर आप …..नहीं ..पैराशूट से सीधे हॉस्पिटल के बेड पर आ गई …."शिखर ने हंसते हुए कहा

"पर ….मुझे यहां लाने की क्या ज़रूरत ….साँची की आवाज़ गले में ही अटक कर रह गई

"दरअसल तुम्हें सीवियर सी इंफेक्शन हो गया था ...कल तुमने समंदर में डुबकी जो लगाई थी ...इसलिए एडमिट करना पड़ा । कल छुट्टी मिल जाएगी "शिखर बोला।

"अच्छा ये ऑरेंज खाओ 'शिखर ने बड़े प्यार से ऑरेंज छील कर साँची के मुँह में डाल दिया।

साँची कुछ बोल नहीं सकी बस आंखों के किनारों से दो बूँदे ढुलक कर तकिये को भिगोती चली गई ……और वहीं गूंज गईं वो बातें जिन्हें वो कभी नहीं सुनना चाहती "तबियत खराब का तो बहाना बना रखा है ,कोई काम आता है ठीक से तुम्हें ………."

कहाँ शिखर का इतना ख्याल रखना और कहाँ वो सब ….साँची की आँखे आंसुओं के सैलाब से भर गयी थीं।



दूसरे दिन साँची को हॉस्पिटल से छुट्टी मिल गयी ।शिखर ने साँची को बड़ी ही आत्मीयता से कंधे का सहारा देते हुए अपनी कार में बिठडाय और तरीसा रिसोर्ट पर साँची को ड्रॉप किया। सांची बोली "शिखर आप आइए यहाँ के रेस्टोरेंट में डिनर कर लेंगे"

" फिर आप !! शिखर मुस्कुराया

"मेरा मतलब …. तुम आओ न डिनर करके जाओ"साँची के स्वर में संकोच साफ झलक रहा था।

"नहीं फिर कभी' माँ मेरा इंतजार कर रही होगी…….टेक केयर साँची " साँची एक टक शिखर की आंखों को देखती रह गयी जिसमे उसे सौम्य स्नेह ही दीख रहा था ।शिखर एक हाथ से बाय करते हुए मुस्कुराते हुए कार ड्राइव करते हुए चला गया ।

सांची ने कमरे में ही डिनर मंगवा लिया पर उससे खाया नहीं जा रहा था। मन कुछ विचलित हो रहा था,उसका गुज़रा कल उसे कचोटता और वहीं शिखर का ख्याल बार-बार उसके मन मस्तिष्क पर छा रहा था जिसे वह हटाना चाहती थी ।



साँची ने मन को संतुलित करते हुए प्रोजेक्ट का काम करने लगी । व्यस्त रहो मस्त रहो यह सिद्धांत उसे हमेशा प्रिय रहा है।

अगली सुबह स्वस्थ मन के साथ सांची यूनिवर्सिटी केंपस गई और काम में जुट गई।

" साँची ! आज क्या घूमने का मूड नहीं है "? शिखर ने मुस्कुराते हुए पूछा

"आज ….आज कहाँ चलेंगे शिखर !! वैसे भी तो दो ही दिन बचे हैं, थकान हो जाएगी।

" नहीं होगी थकान ,बल्कि तुम रिचार्ज हो जाओगी और मन को विश्रांति मिलेगी " शिखर ने जोर देकर कहा ।

"अच्छा!!" साँची ने अपनी प्यारी सी मुस्कान बिखेर दी

आज शिखर सांची को गंगा तलाव ले गया ।वह जगह तो ऐसी थी कि मानो भारत का ही कोई शहर हो। रामकृष्ण ,गणेश के मंदिर तलाव का नाम भी गंगा और सुंदर स्वच्छ शिव मंदिर जिसे मौरिशेश्वर कहते हैं। शिखर ने बताया कि यह 13वा ज्योतिर्लिंग माना जाता है 12 तो भारत में हैं ।सचमुच साँची को यहां आ कर बहुत शांति मिली । शिखर और साँची ने मौरिशेश्वर के दर्शन किए ।

"साँची! तुमने कुछ मांगा' शिखर ने पूछा

" नहीं मैं कुछ नहीं माँगती ईश्वर से, ईश्वर जो करेगा अच्छा करेगा' साँची ने शांति और सौम्यता के साथ उत्तर दिया।

" तुमने कुछ मांगा शिखर !साँची ने भी पूछ लिया

"हां मांगा तो…….". शिखर ने लंबी सांस खींचते हुए कहा।

"क्या ?" सांची ने तुरंत दूसरा प्रश्न किया

"मांगा हुआ बताते नहीं ,नहीं तो पूरा नहीं होता 'शिखर ने हँस कर उत्तर दिया ।

साँची के चेहरे पर भी मुस्कान बिखर गई ।


साँची और शिखर दोनों के बीच बंध रहा था आकर्षण का पुल , पनप रहा था मौन संवाद जहां बिना बोले एक दूसरे के भाव पढ़ भी लिए जाते हैं और समझ भी लिये जाते हैं ।

" साँची ! मेरा घर यहीं पास में है ,माँ भी तुमसे मिलकर खुश होंगी " शिखर ने कुछ अधिकार भाव के साथ कहा ।

"अरे वाह! चलो आंटी से भी मिलना हो जाएगा …….और आज न मुझे गरम समोसे खाने का मन कर रहा है, मुझे समोसे बहुत पसंद है ,आंटी के साथ गर्म चाय और समोसे …."साँची चहक कर बोली ।

"अरे वाह !चलो मेरे घर के पास इंडियन रेस्टोरेंट है ,वहां समोसे मिलते हैं " शिखर बोला

शिखर सांची को अपने घर ले गया और उससे पहले उसने रेस्टोरेंट से समोसे लिए।

" अरे शिखर! तुम क्यों खर्च कर रहे हो मैं पैसे देती हूं न 'साँची जोर से बोल पड़ी।

" मैं तो तुम्हारा पूरा खर्च उठाना चाहता हूँ ,यह तो कुछ नहीं "शिखर धीरे से बुदबुदाया।

" क्या …!! "सांची कुछ ठीक से समझ नहीं पाई

"कुछ नहीं मैं समोसे के पैसे दूंगा ,आखिर मैं तुम्हें अपने घर लेकर आया हूं न "शिखर के स्वर में अधिकार भाव स्पष्ट हो रहा था ।

समोसे लेकर शिखर सांची को अपने घर ले आया। शिखर का घर गंगा तलाव से मात्र 10 मिनट की दूरी पर था। छोटा सा प्यारा सा घर ,बाहर थोड़ी सी जगह में फूल पौधे लगे थे और एक छोटा सा झूला लटक रहा था ।अंदर कमरे में सादगी साफ दिखाई पड़ रही थी ।किताबें सजी हुईं ,सरस्वती की छोटी सी मूर्ति ,मेज पर कई सारी हिंदी की पत्रिकाएं ….लग रहा था किसी हिंदी साहित्यकार का घर ।भीतर से शिखर की मां बाहर आईं । साँची ने तुरंत ही उठ कर उनके पैर छुए ।"

अरे अरे खुश रहो इसकी कोई जरूरत नहीं" माँ बोलीं

" नहीं आंटी हमारे यहां तो अपने से बड़ों के पैर छूने की परंपरा है" साँची स्नेह से बोली।

" खुश रहो ,खुश रहो बेटा" मां की बोली में वात्सल्य भाव समा गया ।

"मां !मैं समोसे लाया हूं तुम चाय बना दो" शिखर ने माँ का हाथ पकड़ कर दुलराते हुए कहा।

" अरे नहीं आंटी! आप मुझे बता दीजिए चीनी, चाय ,दूध कहां रखा है ,मैं बनाती हूं चाय। मैं अच्छी चाय बनाती हूं "साँची ने बड़े ही अपनेपन से कहा ।

शिखर बड़े ध्यान से सांची की एक -एक बात पर गौर कर रहा था ।साँची की हर बात शिखर को अपनी ओर खींच रही थी। अपनेपन की खुशबू से शिखर खोया जा रहा था ।साँची इतनी अपनी सी क्यों लगती है ,वह नहीं जानता। वह साँची को कहना चाहता है अपने मन की बात पर कह नहीं पाता ।

साँची ने अदरक वाली अच्छी सी कड़क चाय बनाई । माँ और शिखर दोनों ही साँची के इस अपनत्व से बहुत खुश हो गए । शाम हो रही थी इसलिए शिखर साँची को तरीसा रिसोर्ट तक छोड़ने चला गया ।कार से उतरते समय साँची और शिखर की आँखे मिल गयीं …..साँची झेंपते हुए अंदर चली गई। कपड़े बदल कर वह रिसॉर्ट के सामने वाले बीच पर टहलने लगी पर उसका मन तो कहीं शिखर के ख्यालों से गुजर रहा था। कहीं वह शिखर से……. नहीं नहीं ऐसा नहीं ….ऐसा नहीं है


अगली सुबह यूनिवर्सिटी कैंपस में शिखर और साँची मिले। काम पूरा होने के बाद वही यूनिवर्सिटी की कैंटीन में दोनों ने साथ -साथ चाय पी। कुछ मिनटों की चुप्पी के बाद शिखर बोला" साँची! मैं तुमसे कुछ कहना चाहता हूँ "

साँची ने कुछ भी नहीं कहा बस चाय के कप की ओर निहारती रही ।

"सांची ! हममें कितनी सारी बातें एक सी हैं और तुम्हारा साथ तो मुझे बड़ा प्यारा लगता है स्वीटनेस इज़ द रिवॉर्ड ऑफ आवर फ्रेंडशिप "क्या तुम चाहोगी कि मैं तुम्हारा खर्च जीवन भर उठाऊँ"!! शिखर स्नेहिल भाव से बोला


साँची की आंखें भर गई थी ।उसने पलके झुकाए हुए कहना शुरू किया।" शिखर !तुम बहुत अच्छे हो ,बहुत ज़िम्मेदार ,अनुशासित हो ,कोई भी लड़की तुम्हारे साथ खुश रहेगी पर …...पर तुम्हें मेरा अतीत नहीं मालूम ,......मेरे जीवन का एक स्याह पक्ष है ,मेरा तलाक हो चुका है ,मैं तलाकशुदा हूँ … "कहते कहते साँची की आंखों से आंसू की बूंदें चाय के कप में गिर गई। शिखर अनमने भाव के साथ मौन रह गया। वह शायद समझ नहीं पा रहा था कि वह क्या करें ,वह शायद ऐसी स्थिति के लिए तैयार नहीं था ।वेटर बिल ले आया था ,साँची ने बिल के पैसे दिए और आसूं पोछते हुए भी चली गई । शिखर अकेला कुर्सी पर बैठा रह गया।

अगले दिन साँची की शाम की फ्लाइट थी ।सुबह-सुबह सांची गंगा तलाव गई और मारिशेश्वर के दर्शन किए और मन ही मन शिखर के लिए अनगिन दुआएं मांग ली और फिर गंगा तलाव में पैर डाले साँची विचारों की लहरों में डूबती उतराती जा रही थी।मॉरीशस से जाने का दर्द या शिखर से दूर जाने की पीड़ा .शायद सांची के मन को साल रही थी। जिंदगी ऐसी ही होती है जहां धीरे-धीरे सब कुछ छूटता है। छूटने का दर्द, किसी के ना होने का दर्द …….।साँची अचानक चौक गई किसी ने उसके सर पर हाथ रखा। पीछे मुड़कर देखा तो मोरेश्वर के पंडित जी थे

"बेटा ये लो मारिशेश्वर का प्रसाद"

साँची ने भाव सहित प्रसाद ले लिया और उन्हें प्रणाम किया पर उसकी आंखें किसी को ढूंढती हुई सी लग रही थी पर कोई नहीं था वहाँ ….साँची की कार मॉरीशस के रामगुलाम एयरपोर्ट का सफर तय करने लगी। दोपहर की उसकी फ्लाइट थी ।एयरपोर्ट उतरकर सांची ने फिर पीछे मुड़कर देखा शायद … . कोई ….नहीं कोई नहीं था उसके पीछे ।दोपहर ठीक बजे साँची ने मॉरीशस से भारत की ओर उड़ान भरी ।

साँची को भारत गए 10 दिन हो रहे थे इधर शिखर का मन झंझावातों से घिरा था ।आंखों के आगे बार-बार सांची का चेहरा घूमता। साँची और उसमें कितनी समानता थी ,दोनों प्रकृति प्रेमी, अपनी भाषा के अनुरागी , बौद्धिक तालमेल जिसे उसने प्रोजेक्ट के दौरान कई बार अनुभव किया था, साँची का गाम्भीर्य ,उसकी भोली सी मुस्कान ,उसका शालीन व्यक्तित्व और इन सब के ऊपर उसका अपनापन, आत्मीयता ,शिखर कुछ भी नहीं भूल पा रहा था। और नहीं समझ पा रहा था साँची के अतीत को स्वीकार कर पाना ।चारों ओर सूनापन ,बेचैनी ,तन्हाई से भर गया था शिखर ।

साँची ,साँची कहते हुए शिखर सुबकता जा रहा था ।


साँची को मुंबई आए छः महीने हो रहे थे ।उस दिन कलिना मुंबई यूनिवर्सिटी के हिंदी डिपार्टमेंट में सेमिनार था । साँची की ख्याति एक अच्छी वक्ता के रूप में और विषयवस्तु की जानकर के रूप में हो चुकी थी । साँची ने अपना पेपर पढ़ा ,तालियों की गड़गड़ाहट से पूरा हॉल भर गया । साँची मुस्कराहट बिखेरती हुई पोडियम से नीचे उतरने लगी तो उसका पैर लड़खड़ा गया ,वह लगभग गिरने ही वाली थी कि किसी ने उसका हाथ थाम लिया ।

"अरे !ये तो शिखर है " ,साँची अवाक रह गई ।

"तुम !यहां"...... सांची आश्चर्य से बोली।

' हां मैं यहां तुमसे मिलने आया हूं "शिखर शांत भाव से बोल रहा था।

शिखर ने कहा "चलो साँची!यूनिवर्सिटी की कैंटीन में बैठते हैं. वही दोनों जाकर बैठ गए और दो चाय समोसे मंगवा लिए ।शिखर बड़े आत्मीय भाव से सांची से कहने लगा

" साँची ! इन् छः महीनों में मैंने बहुत सोचा…. बहुत सोचा तुम्हारे बारे में ,सोचा मन से शायद तुम्हें हटा सकूँ पर ऐसा मैं नहीं कर पाया और मुझे यही लगा कि तुम्हारा अतीत जो भी रहा हो पर जितना मैंने तुम्हें जाना है तो बस मुझे यही लगा कि वह व्यक्ति बहुत अभागा है जिसने तुम्हारी कद्र नहीं की और सबसे बड़ी बात मुझे तुम बहुत अपनी सी लगती हो ।ऐसा लगता है ,मैं तुम्हें कई बरसों से जानता हूं ,इसी अपनेपन की डोर से मैं तुम्हारी ओर खिंचा चला आता हूँ ।मैं तुमसे दूर नहीं रह सकता ,तुम्हारा साथ तुम्हारी बातों में इतना रस मिलता है मानो मेरी पूरी जिंदगी मिठास से भर जाएगी…..साँची !मैं तुम्हारे जीवन भर का खर्च उठाना चाहता हूँ, बोलो साँची !क्या तुम तैयार हो ,क्या ….क्या मैं तुम्हें पसंद हूं ?"शिखर एक सांस में सब बोलता चला गया कैंटीन वाला चाय समोसे का बिल ले कर आ गया था । साँची ने बिल शिखर की ओर बढ़ा दिया ..…सांची की पलके भीगी जा रही थी साथ ही बिखर गई थी उसके होठों पर प्यारी सी मुस्कान ।




इति शुभम


लेखिका -डॉ जया आनंद

प्रवक्ता ,स्वतंत्र लेखन -मुम्बई आकाशवाणी ,दिल्ली आकाशवाणी ,विविध भारती ब्लॉग समाचार पत्र पत्रिकाएं