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सुनो मीता !

सुनो मीता !मैंने कितने ख़्वाब बुने थे तुम्हारे साथ ,हर ख्वाब का एक एक धागा प्यार के रंग में रंगा था ,उनका रंग कितना चटकीला था ऐसे ही चटक रंग तो हम दोनों को पसंद है। याद है उस दिन सीढ़ियों पर बैठकर हम दोनों चंपई आसमान को देख कितना खुश थे ,हां आसमान उस दिन सूरज की लाली से चम्पई ही तो हो गया था ,तुमने कहा था “यह चम्पई ही रंग तुम्हारे चेहरे पर उतर आया है, कितनी आभा समा गई है तुममें "। मेरी नजरें आसमान से सीधे सीढ़ियों के अंतिम पायदान पर जाकर टिक गई थी और चेहरे पर छा गई थी स्मित मुस्कान…...सुनो मीता! मेरी मुस्कान भी तुम्हें बहुत प्रिय थी न “मद्धम मद्धम तेरी गीली हंसी सुनके हमने सारी पीली हंसी”.... ऐसे ही तो गुनगुना रहे थे तुम और मेरी मुस्कान खिलखिलाहट में बदल जाती थी


वैसे तुम गाते बहुत अच्छा थे, सभी तुम्हारे गाने की तारीफ करते थे । सुनो मीता! उस दिन मेरे हाथों में मेहंदी लगी थी ,मेहंदी का चटक रंग जो हम दोनों को पसंद है। तुम जी भर देख रहे थे और देखते-देखते मेरा हाथ अपने हाथों में ले लिया था तुमने ,”यह साथ हमारा अब कभी भी नहीं छूटेगा कभी भी नहीं “ …..तुम्हारी स्नेहिल अभिव्यक्ति मुझे अंदर तक भिगोती जा रही थी और शरमाते हुए मैंने मिट्टी उठाई और तुम्हारी चेहरे पर फेक दी थी ।”मिट्टी से क्या डरा रही हों ? इसके लिए तो हम जीते और मरते हैं " तुमने बड़े ही रौब से कहा था ।


“हां हां मेरे वीर सिपाही मुझे मालूम है तुम्हें इस देश की मिट्टी से कितना प्यार है “ मैंने कुछ उल्हाना देते हुए कहा “ “लेकिन प्यार तो तुमसे भी है इसलिए लौट कर आऊंगा तुम्हारे पास तुम्हारी मेहंदी का रंग और भी चटक करने , तुम्हें मेरे प्यार की लाल चुनरी ओढ़ाने ".... तुम्हारी आवाज़ कोमल सुरों से मुझे सपनीली दुनियां में ले जा रही थी ।

“आओगे ना मीता! आओगे न !! आओगे ना !

“हां आऊंगा ,जरूर आऊंगा ‘.....मेरी आंखें छलक गईं थीं ।


सरहद पर लड़ाई छिड़ गई थी भारत के वीर सिपाही पूरे जोश के साथ युद्ध में डटे थे हर परिस्थिति से लोहा लेने को तैयार बैठे थे । पड़ोसी देश के आतंकियों को नेस्तनाबूत करने के लिए हमारे वीर सैनिक जी जान से जुटे हुए थे ।देश से बढ़ कर कुछ भी नहीं यह भाव हर वीर सेनानी के चेहरे से प्रदर्शित हो रहा था ।देश के लिए तन समर्पित, मन समर्पित और जीवन समर्पित । हम अपने घरों में आराम से ज़िन्दगी गुज़ारते हैं वो सिर्फ इन वीर सिपाहियों के कारण …….शत् शत् नमन है तुम्हें वीर सिपाहियों ।….. गोलियों की बौछार तो दोनों ओर से हो रही थी ,बम गोले की आवाज से पूरी वादी गूंज रही थी और लहरा रहा था भारत माँ का परचम ।

"सुनो मीता! मैं तुम्हारी प्रतीक्षा कर रही हूं, तुम बस आ जाओ ।शहनाई की मीठी धुन से और मेरा मन तुम्हारी याद की भीनी भीनी खुशबू से महक रहा है।'


सरहद पर भारतीय सैनिक शत्रु पक्ष से जूझ रहे थे ।कुछ बम को डिफ्यूज भी करना था। मेजर विघ्नेश ने पहले भी कई बम डिफ्यूज किये थे ।अचानक जोर का धमाका

..…..क्या हो गया ,क्या यह अचानक कैसे ………


"सुनो मीता! अब आ जाओ, अब आ जाओ जल्दी ,मेरी मेहंदी, मेरी चूड़ियां, मेरी बिंदिया सब अपने चटकीले रंग के साथ तुम्हारे इंतजार में हैं "……लेकिन कई बार इन्तज़ार कभी खत्म नहीं होता …...और खत्म होता भी है तो अलग तरीके से ….

बम डिफ्यूज करते हुए मेजर विघ्नेश शहीद हो गए थे । शहीद मेजर विघ्नेश का पार्थिव शरीर उनके पैतृक निवास पर पहुंच चुका था ।

“सुनो मीता! सुनो ,तुम्हें सुनना पड़ेगा, बोलो कुछ कहो तुमने कहा था, तुम आओगे मेरी मेहंदी का रंग चटक करने , मुझे लाल चूनर ओढ़ाने ...तुमने वादा किया था और आज खुद तिरंगे में लिपटकर …….उठो मीता ,उठो ! सुनो !!सुनो न ! …… .हां मैं समझ गई ,मैं समझ गई तुम्हें मुझ से भी प्यारी इस देश की मिट्टी है ,मुझसे ज्यादा प्यार तुमने देश से किया है न !! मीता !मैं समझ गई मैं अब रोउंगी नहीं ,बिल्कुल नहीं ,बिल्कुल नहीं ,......मैं जानती हूं कि हमदोनों का प्रेम कितना निःस्वार्थ ,कितना निश्छल रहा है ...मैं तुम्हारे लिए आंसू नही बहाउंगी ,मैं गर्व से कहूँगी कि मैंने प्यार किया तुम्हारे जैसे वीर सिपाही से ...आय एम रियली प्राउड ऑफ यू ... आय एम ….."

भारत माता की जय, भारत माता की जय भारत माता की जय ‘....वंदे मातरम वंदे मातरम के ओजपुर नारों से मानों सारा आकाश तरंगायित हो रहा था


….. इति शुभम्……


लेखिका - डॉ जया आनंद

प्रवक्ता ( सीएच एम कॉलेज ,मुम्बई यूनिवर्सिटी )

स्वतंत्र लेखन - विवध भारती, मुम्बई आकाशवाणी ,दिल्ली आकाशवाणी , ब्लॉग ,पत्र पत्रिकाएं )