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बेगम की कोठी

बेगम़ की कोठी...!!

निरंजन की मोटरसाइकिल की आवाज़ सुनकर, सुमित्रा ने गेट खोला और गेट खोलते ही निरंजन से कहा।।
लल्ला! कहाँ रह गए थे,कब से इंतजार कर रहे हैं हम तुम्हारा, कब से खाना बना के रखा हैं, अब तक तो ठंडा भी हो गया होगा,देखों तो शाम होनें को आई हैं, तुम इतने दिनों बाद गांव लौटे थे,तो हमने आज सब तुम्हारी ही पसंद का खाना बनाया था।।
अम्मा!!अब का बताएं,देर हो गई और तुम चिंता ना करों, हमनें खाना खा लिया था,बहुत थक गए हैं, बस एक कप चाय पिला दो,निरंजन बोला।।
हां...हां..काहें नहीं, अभी लाते हैं चाय,सुमित्रा इतना कहकर रसोई में चली गई।।
थोड़ी देर में सुमित्रा चाय ले आई लेकिन निरंजन के चेहरे पर उसे कुछ चिंता के भाव नजर आए,आखिर मां हैं, बच्चे के चेहरे को भलीभांति पढ़ना जानती हैं।।
का बात हैं लल्ला? का हुआ, तुम्हारा चेहरा काहे उतरा हुआ हैं? सुमित्रा ने निरंजन से पूछा।।
हां,अम्मा! चिंता में तो हैं, निरंजन बोला।।
ऐसा का हुआ हैं, जरा हमें भी तो बताओ,सुमित्रा निरंजन से बोली।।
निरंजन ने बोलना शुरु किया__
हमारा एक दोस्त हैं जिसका नाम आलोक हैं, वो भी हमारे साथ शहर में ही पढ़ता हैं, यहां से कोई तीस पैतीस किलोमीटर होगा उसका गाँव, जहाँ वो रहता हैं, आज हम वहीं गए थे,इसलिए तो सुबह तड़के ही निकल गए थे।।
हां तो फिर, सुमित्रा बोली।।
वहां पहुंचकर हमनें अपने दोस्त के साथ खाना खाया, थोडी़ देर उससें बातें की फिर वो बोला कि चल तुझे अपना गांव दिखाकर लाता हूँ,निरंजन बोला।।
फिर का हुआ, रूक क्यों गया,आगें बोल ना,सुमित्रा खिजाकर बोली।।
वहां, गांव से बाहर एक कोठी थीं, उसने मेरा मन मोह लिया, अभी तो वो बड़ी जर्जर अवस्था में थी परन्तु अपने समय में उसमें चमन बरसता होगा,इतनी जर्जर होने के बावजूद भी वो सुन्दर ही दिख रहीं, ऐसा लगा उससें हमारा कोई सम्बन्ध हैं, हम उस जगह पहले कभी भी नहीं गए लेकिन उस कोठी को देखकर ऐसा लगा कि वो हमसे कह रही हो कि आखिर तुम आ ही गए, वो कोठी हमें अपनी सी लगी,निरंजन बोला।।
फिर क्या हुआ? सुमित्रा बोली।।
फिर हम आलोक के साथ उस कोठी के भीतर गए, फिर पता नहीं वहां जाकर हमें चक्कर सा आ गया और हम गिर पड़े,हमें आलोक अपने कंधे का सहारा देकर बाहर लाया और वहीं पास में एक पेड़ के नीचे लिटाकर अपने गमछे को हैंडपंप के पानी से गीला किया और हमारे चेहरे पर पानी निचोड़ा,तब हमें होश आया,निरंजन बोला।।
का नाम बताया गांव का? सुमित्रा ने निरंजन से पूछा।।
फूलपुर... फूलपुर नाम हैं गांव का,निरंजन बोला।।
और ये सुनकर पता नहीं सुमित्रा किस गहरी सोच मे डूब गई।।
का हुआ अम्मा! अब तुम कौन सी सोच मे डूब गई, कछु बात हो तो हमें भी बताओं, निरंजन ने सुमित्रा से पूछा।।
हैं तो बहुत कुछ लेकिन लगता हैं कि तुम्हें बताने का समय आ गया हैं, सालों पहले तेरी दादी ने मरते समय हमें ये राज बताया था,सुमित्रा निरंजन से बोली।।
ऐसा का हैं अम्मा? जरा हम भी तो सुनें, निरंजन ने सुमित्रा से कहा।।
तो सुन,तू भी जान ले आज ये राज और सुमित्रा ने कहना शुरु किया।।
बहुत समय पहले की बात हैं, तेरे दादा जी फूलपुर गाँव के जमींदार थे उनका नाम रघुनंदन सिंह था,वो बहुत ही दयालु प्रवृत्ति के थे और सारे गुण उन्हें उनके पिताजी से विरासत में मिले थें, बहुत ही कम उम्र मे उनके सिर से पिता का साया उठ गया था,उनकी मां चाहती थीं कि उनका ब्याह हो जाए लेकिन वो इसके लिए तैयार नही थे क्योंकि वो किसी को चाहते थे लेकिन उससे ब्याह नहीं कर सकते थे,क्योंकि वो एक नाचने गानें वाली लड़की थीं उसका नाम नूरजहाँ था।।
नूरजहां की मां अपने जमाने की मशहूर तवायफ हुआ करतीं थीं, असहाय औरतों ,ससुराल से निकाली गई औरतों और अनाथ लड़कियों को अपने यहाँ पनाह देकर उनकी मदद किया करती थीं, वो कभी भी लड़कियों के साथ जबर्दस्ती नहीं किया करतीं थीँ, जिसका मन होता था वो ही इस काम को अपनाता था लेकिन पेट पालने के लिए उनमें से सारी लड़कियां कोई ना कोई काम करतीं रहतीं थीं क्योंकि अंग्रेजों का जमाना था इसलिए वो अंग्रेजों की जासूसी करके स्वतंत्रता सेनानियों की मदद किया करतीं थी।।
वो कोठी नूरजहाँ की मां की थी,अपनी मां के मरने के बाद उस काम को नूरजहाँ ने जारी रखा,उस समय नूरजहाँ अपनी गायकी के लिए मशहूर थीं, सब कहते थे कि उसकी मखमली आवाज़ मे जादू था,उसकी दादरा और ठुमरी के तो लोग दीवाने थें, उनके एक दीवानों मे से एक रघुनंदन सिंह भी थें, वो हमेशा कहते कि नूरजहाँ मुझसे ब्याह कर लो,सारे जहान की खुशियां तुम्हारे कदमों में रख दूंगा।।
लेकिन नूरजहाँ कहतीं__
सरकार! आप से मौहब्बत की हैं हमनें, आपकी बदनामी हम कैसे करवा सकते हैं, आपकी इज्जत पर दाग लगें, ये हमें कभी भी मंजूर नहीं होगा और अगर हम आपसे निकाह कर भी लें तो आपके घरवालों को ये कभी भी मंजूर ना होगा और इतनी सारी लड़कियां हमारे सहारे पल रहीं हैं, हमारी अम्मीजान ने हमें ये जिम्मेदारी सौंपी हैं और उसे हम ताउम्र निभाने की कोशिश करेंगें और आप मायूस ना हो सरकार इस जन्म मे नहीं तो अगले जन्म मे हम जरूर मिलेगें।।
आप हमें हमेशा निराश कर देतीं हैं, नूरजहाँ बेगम़!चलिए इस जन्म ना पा सकें आपकी मौहब्बत तो अगला जन्म जरूर पा लेगें ,आपके लिए और एक जन्म सही लेकिन अगले जन्म आपको हमसे आपकी कोई भी मजबूरी अलग नहीं कर पाएगीं।
और नूरजहां ने अपनी कसम देकर रघुनंदन सिंह का ब्याह करवा दिया,उसकी पत्नी का नाम हेमलता था लेकिन रघुनंदन सिंह हेमलता के साथ अपना पारिवारिक जीवन शुरू नहीं कर पाए ,उन दोनों के बीच नूरजहां की मौहब्बत आड़े आ जाती और इस बात का हेमलता को पता चला कि रघुनंदन किसी और से मौहब्बत करते हैं और एक रोज हेमलता ने नूरजहाँ से मिलने की सोची और जा पहुंचीं उसकी कोठी।।
हेमलता ने नूरजहां से कहा कि जमींदार साहब मुझे अपनाने के लिए तैयार नहीं हैं आप ही कुछ उन्हे समझाएं,नूरजहां ने कहा, अभी आप यहाँ से तशरीफ़ ले जाएं हम हुजूर से इस मसले मे बात करेंगे,आप जैसी शरीफ़ औरत का हम तवायफों के यहां आना ठीक नहीं हैं।।
और नूरजहां ने रघुनंदन को बहुत समझाया,उन्होंने कहा कि वो कोशिश करेंगे, लेकिन लाख कोशिशों के बावजूद भी वो हेमलता को अपना नहीं पाए और उन्होंने इस बार हेमलता से भी कह दिया कि वो नूरजहां के रहते उससे कभी भी प्यार नहीं कर पाएंगे ना ही उसे अपना पाएंगे।।
इस बात से हेमलता का गुस्सा उबल पड़ा और वो नूरजहाँ से मिलने फिर उसकी कोठी गई, कुछ देर उसके साथ बैठी,कुछ इधरउधर की बातें की और फिर पानी मांगा, नूरजहां जैसे ही पानी लेने गई हेमलता ने उसके पान के डिब्बे में ज़हर मिला दिया और रात तक पता चला कि नूरजहाँ नहीं रही।।
नूरजहां के जाने के बाद उस कोठी मे रह रही लड़कियों की हालत बततर होती गई, जमींदारों ने भी वहां जाना छोड़ दिया कुछ तो भूख से मर गई और कुछ यहां वहां बस गई अपना पेट पालने के लिए और ऐसे ही नूरजहां ब़ेगम की कोठी धीरे धीरे खण्डहर मे तब्दील हो गई, ये थीं नूरजहां बेगम़ की कोठी की कहानी और तुझे वो कोठी अपनी सी शायद इसलिए लगी कि जिस रोज तू पैदा हुआ था उस रोज ही तेरे दादा रघुनंदन सिंह स्वर्ग सिधारे थे।।

समाप्त___
सरोज वर्मा___