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निमिषा - अतीत का चलचित्र

ट्रिन ट्रिन ट्रिन..................(अलार्म की आवाज)
अंगडाई लेते हुए मैं उठा सुबह के सात बज चुके थे बाहर आकर देखा तो घनघोर बादलों ने हमें चारों ओर से घेर रखा था। इस सुहावने मौसम में मुझे दो ही चीजे पसन्द आती थी एक तो सोना दूसरा चाय के साथ स्नैक्स।
फिलहाल मेरे पास दोनो ही विकल्प नही थे क्योंकि मुझे दफ्तर में बहुत जरूरी फाइल के साथ पहुँचना था जिसे मैंने बीती देर रात तक बनाया था। इस प्रोजेक्ट से मेरी प्रामोशन होने की संभावनाये बहुत ज्यादा थी तो मैं बहुत अधिक उत्साहित था तो इस मौसम के लुभावन में आना मेरे लिये हानिकारक था।

स्नान ध्यान करके मैंने नाश्ता किया और अपनी बाइक पर दफ्तर के लिये निकल पड़ा दफ्तर मेरे घर से लगभग बीस किलोमीटर की दूरी पर था लेकिन रास्ता अच्छा होने से ज्यादा से ज्यादा मुझे आधा घंटा ही लगता था। घर से लगभग पाँच किलोमीटर के बाद बारिश की हल्की हल्की बून्दों ने मेंरे हेलमेट के शीशे पर आकर शरारत करना शुरू कर दिया मुझे बार-बार शीशे को कपड़े से पोछना पड़ रहा था। धीरे धीरे मैं हल्का फुल्का भीगते हुए आधा रास्ता पार कर पाया था कि बाऱिश तेज हो गयी न चाहते हुए भी मुझे एक ओवर ब्रिज के नीचे रूकना पड़ा। जहाँ पर बारिश से बचने के लिये लोग खड़े थे। बार बार घड़ी की सुईया निहारते हुए मेरे माथे की सिकन बढ़ती जा रही थी क्योंकि मुझे अब बहुत लेट हो रहा था।

"हैल्लो...!!! माँ मैं आ चुकी हूँ बारिश की वजह से रास्ते में फँसी हूँ आप चिन्ता न करियेगा मैं बारिश बन्द होते ही घर आ जाऊँगी। ठीक है शोर बहुत है यहाँ पर आकर बात करती हूँ बाय"
सहसा यह आवाज मेरे कानों में पड़ी जिसे सुनकर मैं शून्य हो गया यह आवाज मेरी बहुत जानी पहँचानी आवाज थी। खड़े खड़े अपनी जगह पर ही मैं पत्थर की तरह जड़ हो गया था मेरी हिम्मत न हो रही थी इस आवाज के सोर्स की तरफ देखने को। लेकिन भावनाओं के वशीभूत होकर मैंने पीछे पलट कर देखा यह वही थी जिसकी आवाज मुझे यह लगी थी। हाँ ये मेरे प्रेमी जीवन का पहला सावन मेरी प्रेयषी निमिषा थी।
हल्की गुलाबी साड़ी, माँग में सिन्दूर, गले में सोने की चैन के साथ मंगलसूत्र और अधरों पर कभी न भूल सकने वाली मुस्कान के साथ मेरी निमिषा। यह बिल्कुल उसी रूप में थी जिसे मैंने अपनी कल्पनाओं में सोचा था। उसे देखकर मेंरे सारे शरीर से एक ऊर्जा का उद्भव होने लगा मैं स्वयं को हवाओं में महसूस करने लगा था जिसतरह से किसी कवि या लेखक की कल्पना उसकी रचना बनकर मूर्त रूप लेलेती है उसी तरह से मेरी निमिषा आज मेरी कल्पना के मूर्त रूप में मेरे सामने थी। मैं मुस्करा कर उसे हाय कहने ही वाला था कि उसके बगल में खड़े युवक ने उसकी जुल्फों को संवारते हुये उसे देखा। मुझे समझने में देर नही लगी कि यह युवक उसका पति था। जब तक मेरे सामने एक तस्वीर में निमिषा थी यह तस्वीर मुझे बेहद लुभावनी लग रही थी जिसके आगे मैं सबकुछ भूल गया था। लेकिन जैसे ही उस तस्वीर में निमिषा के पति ने प्रवेश किया यह मेरे लिये अत्यधिक दर्द से भरी बन गयी।
उसका रूप, उसका सिंदूर , उसका मंगलसूत्र वो सब जो मेरी कल्पना में उसे अत्यधिक रूप वती बनाता था वह आज था तो लेकिन किसी और के नाम का। एक पल में ही मेरे सामने ही वह सुन्दर तस्वीर बेरंग हो गयी और काँच की तरह पहले चिटकी और फिर उस काँच के टुकडें मेरे सारे शरीर को भेद गये।
मेरी जिह्वा कम्पन्न तक न कर सकी, मैंने पुनः अपना चेहरा घुमा लिया।
"भाई साहब.........!!! आपका फोन बज रहा है।" -किसी ने मुझे हिलाकर कहा
"जी शुक्रिया" -मैंने उस व्यक्ति से कहा
अपना फोन निकाल कर मैंने देखा मेरे दफ्तर से फोन था।
"हेल्लो प्रकाश"- (दफ्तर से मेरे सर ने कहा)
"जी सर "- मै
"कहा रह गये आज आ नही रहे हो क्या तुम्हे याद है ना आज सिंगापुर के क्लाइंट के साथ मिटिंग है जिसकी प्रोजेक्ट फाइल तुम बना कर ला रहे हो"
"जी सर मैं आ रहा हूँ लेकिन बारिश की वजह से मैं फँस गया हूँ भीग कर आ जाता लेकिन फाइल भी भीग जायेगी" –मैं
"ओ हो इस बारिश को भी आज ही होना था, चलो कोई नही मैं गाड़ी भेज रहा हूँ अपनी मोटरसाइकिल की चाभी ड्राइवर को दे देना और गाड़ी लेकर जल्दी आ जाना ओके"- सर
"जी बहुत बहुत धन्यवाद"- मैं
फोन रखकर मैंने खुद को अतीत से बाहर निकालने की कोशिस की, न चाहते हुये भी एक बार मैंने फिर से पीछे खड़ी निमिषा को देखा अब वह भी असहज महसूस कर रही थी अपनी ही जगह पर सिकुडती जा रही थी। मैं अपना फोन निकाल कर अनायास ही फोन की एप्प को देखने लगा ताकि उसे असहजता न हो। तभी मेरे दफ्तर की गाड़ी आ गयी। मैंने अपनी बाइक की चाभी ड्राइवर को दी और कार से दफ्तर की तरफ चल पड़ा।
दफ्तर पहुँचकर देखा तो सिंगापुर के क्लाइंट आ चुके थे। मैंने अपने लेट होने पर उनसे खेद जताया और मींटिंग हॉल में हमारी मींटिंग शुरू हुई मैं पहले थोड़ा डिस्टर्ब था लेकिन जब प्रेजेन्टेशन देना शुरू किया तो अतीत से बाहर आ चुका था। प्रेजेन्टेशन के बाद क्लांइट ने कहा की वे हमारे प्रोजेक्ट के बारे में सोचकर बतायेंगे। यह सुनकर मैं निराश हो गया क्योंकि अकसर ऐसे जवाब का मतलब होता है कि क्लांइट को हमारा प्रोजेक्ट पसन्द नही आया। मुझे खुद पर गुस्सा आ रहा था। मेरे बॉस ने मुझे संत्वाना दी।

"डोंट वरी प्रकाश इट्स हैप्पन्स हम और क्लाइंटस से मिलेगें दिल छोटा मत करों।"- बॉस

" जी सर"-(उदास मन से मैंने कहा)

"सर अगर आप कहें तो मैं घर जाना चाहता हूँ मेरा मन कुछ ठीक नही है"- मैंने कहा

"ठीक है जाओ जैसा होगा मैं तुम्हें शाम को फोन पर बताता हूँ ।"-बॉस

ड्राइवर मेरी मोटरसाइकिल लेकर आ चुका था बारिश थम गयी थी। मैं मोटरसाइकिल से घर की तरफ रवाना हुआ। ओवर ब्रिज के आने पर अनायास ही मैं रूक गया। जो सुबह हुआ था वह सब मेरी आंखों के सामने चल रहा था। मेरी आँखों से आँसू निकल पड़े।
फिलहाल खुद को समेट कर मैं घर पहुँचा। बिना किसी से कुछ बोले छत पर पड़े झूले पर आंख बन्द करके जाकर बैठ गया।
आंखो के सामने हमारी पहली मुलाकात का चलचित्र चलने लगा। हम उस साल की पहली बारिश के दिन ही मिले थे। रास्ते में बारिश के चलते हम एक जगह ठहरे थे एक दूसरे को निहार रहे थे तभी निमिषा ने अपनी अंजुली में बारिश का पानी इक्ठ्ठा करके मेरे चेहरे पर फेंका ।

"प्लीज ऐसा मत करों, मैं भीग जाऊँगा प्लीज"- मैं

बारिश की बूंदों ने मेरी चेतना को जाग्रत किया मेरी आँखे खुली तो सामने मेरी पत्नी खड़ी जो पानी को अपनी हथेली पर लेकर ठिठोली करती हुई मेरे चेहरे पर पानी की बूंदे फेंक रही थी। उसे देखकर मैं निशब्द हो गया क्या कहूँ कुछ समझ नही आया। भूत और वर्तमान दोनो ही एक साथ मेरे सामने थे।

"कब से बुला रही हूँ कहा खोये हुये हो जी......??? आपके ऑफिस से सर का फोन आया था बोल रहे है कि सिंगापुर के क्लाइंट को आपका प्रोजेक्ट पसन्द आ गया है।"- भावना ( मेरी पत्नी)।

"लेकिन ये सब छोड़ो पहले ये बताओ कहा गुमसुम हो जब से आये हो यही पड़े हो कुछ हुआ है क्या?? "-भावना

"नही कुछ नही........... बस ऐसे ही"- (मैंने मुस्कारा कर कहा और भावना के गले से लग गया)..........✍️