naina ashk na ho - 1 books and stories free download online pdf in Hindi

नैना अश्क ना हो... - 1

नैना अश्क ना हो.…...…........



नैनों में समन्दर आंसू का
हृदय में हाहाकार है
क्या कोई समझेगा मेरी पीड़ा को
उनके लिए तो व्यापार हैं
सर्वस्व न्यौछावर किया देश पे
इसका मुझको अभिमान है
करके दफन अपनी जख्मों को
पूरे अपने फर्ज करू
कष्ट ऊठाऊं चाहे जितना
हर जनम तुम्हरा वरण करूं
हर जनम तुम्हरा वरण करू।


ये कहते हुए नव्या की आंखें से आंसुओं का वेग रोके नहीं रुक रहा था । जब ये शब्द नव्या ने वीरता पुरस्कार ले कर सभी के कुछ कहने के अनुरोध पर ये लाइनें कहीं। वहां कोई ऐसा नहीं बचा था जिसकी आंखों में आंसू ना हो। शब्दों में अपने मैं इतनी पीड़ा नहीं पीरो सकती जितना मैंने शाश्वत के जाने के बाद नव्या के भीतर महसूस किया। दोनों मेरे सामने ही बड़े हुए मैं उनकी गाइडटीचर ,दोस्त ,सबकुछ थी।
शाश्वत बेहद होनहार था उसे एक बार पढ़ते हीं सारी चीज़ें याद हो जाती थी। जबकि नव्या औसत थी पढ़ाई में। दोनों की मैं टीचर के साथ पड़ोसी भी थी। शाश्वत शुरू से ही आर्मी ज्वाइन करना चाहता था और धीरे धीरे उसकी ये इच्छा ने संकल्प का रूप ले लिया।अब उसके जीवन में एक ही मकसद था सेना में जाकर देश की सेवा करना।
समय के साथ दोनों ही बारहवीं उत्तीर्ण हुए। जहां शाश्र्वत ने स्कूल टाॅप किया वहीं नव्या भी अच्छे नंबरों से पास हो गई। जहां ग्रेजुएशन के साथ शाश्वत सीडीएस की तैयारी में जुट गया। वहीं नव्या ने बीए में एडमिशन ले लिया। नव्या बेहद खूबसूरत लगने लगी थी । उसकी भाव पूर्ण आंखें बिना कहे ही सब कुछ कह जाती थी। उसका दूधिया उजला रंग जरा से धूप में चलते हीं तपने लगता। मैं जब भी दोनों को साथ देखती जाने क्या क्या सोच जाती। एकसाथ दोनों बेहद खुश रहते। पर मैं जानती थी ये संभव नहीं है। शाश्वत एक रूढ़ीवादी परम्पराओं वाले ब्राम्हण परिवार का लड़का था तो नव्या प्रतिष्ठा की खातिर जीने वाले ठाकुरों की बेटी थी। सब जानते थे कि दोनों दोस्त है साथ पढ़ते हैं और एक-दूसरे की मदद करते हैं। किसी को ये गुमान भी नहीं था कि ये दोस्ती कोई और रंग भी ले सकती है।पर मैं जानती थी ये सिर्फ दोस्ती नहीं है। एक दिन क्लास रूम में लगातार एक दूसरे को देखने पर मैं ने उन्हें अकेले में बुला कर समझाना चाहा। शाश्वत कुछ देर तक तो चुप रहा फिर कहने लगा । हम दोनों ही एक-दूसरे के प्रति बेहद गंभीर है और अपने पैरों पर खड़ा होने के बाद शादी करना चाहते हैं। नव्या भी चुपचाप खड़ी मूक सहमति देती प्रतीत हो रही थी। मैं ने बस पढ़ईपर ध्यान देने को कहकर उन्हें वापस भेज दिया। परन्तु मन ही मन मैं सोच रही थी काश ऐसा हो जाए तो कितना अच्छा हो। काले घुंघराले बालों और ऊचे कद वाला शाश्वत और निराली नव्या दोनों की जोड़ी मुझे भाने लगी।
ग्रेजुएशन पूरा होते ही शाश्वत का चयन सीडीएस में हो गया । नव्या ने एम ए में एडमिशन ले लिया। ट्रेनिंग में जाने से पहले वो और नव्या मुझसे मिलने आए हाथ में मिठाई का डब्बा पकड़कर शाश्वत ने मेरे पांव छुए और कहने लगा मेरा चयन सीडीएस में हो गया है । मैंने उन्हें अंदर बिठाया और कहा बैठो मैं तुम लोगों के लिए कुछ ले आती हूं। नव्या ने कहा आप बैठिए मैं मैं लेकर आती हूं।ये कहकर उठ कर रसोई में चली गई। उसके आते हीं मैंने पूछा आगे तुम दोनों ने क्या सोचा है। शाश्र्वत ने कहा बस ट्रेनिंग पूरी होते ही घर में बात करूंगा। नव्या ने बस हां में सिर हिलाया। थोड़ी देर रूक कर दोनों चले गए।
जाने से पहले शाश्वत मंदिर जाना चाहता था। उसनेे नव्या को फोन किया । अभी वो बात कर हीं रही थी कि उसकी मम्मी (गायत्री)आ गई और बोली कब से पुकार रही हूं किससे बात कर रही है जो सुन नहीं रही नव्या गले में झूलते हुए बोली मम्मी शाश्वत का फोन है मंदिर चलने को बोल रहा है जाऊं ? कल वो देहरादून चला जाएगा। ठीक है ठीक है जा कहते हुए उन्होंने उसने गाल सहला दिया। हमेशा जींन्स शर्ट पहनने वाली नव्या आज क्या पहने नहीं समझ पा रही थी। नव्या ने सारी आलमारी खंगाल कर एक येलो सूट पसंद किया। उसे पहन कर सोचा थोड़ा सा मेकअप कर लू पर फिर उसे इसकी कोई जरूरत नहीं महसूस हुई। भावपूर्ण बड़ी बड़ी आंखें बिना काजल के ही कजरारी दिखती थी। दूधिया उजला रंग किसी भी क्रीम पाउडर का मोहताज नहीं था। तभी बाहर बाइक की हाॅर्न की आवाज सुनकर मां जा रही हूं कहते हुए निकल गई। उसके इस नये रूप को शाश्वत देखता हीं रह गया।।
नव्या के बैठते ही उसने बाइक आगे बढ़ा दी। ऊंचे-नीचे रास्ते से होते हुए दूर पहाड़ी पर स्थित मंदिर में पहुंच गए। शाश्वत ने बाइक खड़ी कर हाथ मुंह धोकर फूल माला खरीदा और नव्या के साथ मंदिर के अंदर प्रवेश कर गया। दोनों ने मिलकर दर्शन किए और मंदिर के पास बहती नदी के किनारे सीढ़ियों पर आकर बैठ गए। नव्या पूछोगी नहीं मैं यहां तुम्हें क्यूं लेकर आया हूं। ईश्वर ने मेरी जिंदगी की सबसे बड़ी ख्वाहिश देश की सेवा करने की पूरी कर दी। अब मैं अपनी दूसरी ख्वाहिश पूरी करने की प्रार्थना करने आया हूं।जिसका नाम मेरी हर सांस पर लिखा है उसे मेरी जिंदगी में शामिल करने आशिर्वाद प्राप्त करने आया हूं। और तुम......।नव्या ने अपना हाथ शाश्वत के हाथों पर रखते हुए कहा क्या अब भी कुछ कहने की आवश्यकता है। दोनों मुस्करा कर एक दूसरे को देखने लगे।
इस तरह भविष्य के सपने बुनते हुए दोनों को समय का आभास न हुआ। जब एहसास हुआ काफी देर हो चुकी थी। दोनों जल्दी जल्दी बाहर आ गए और घर की ओर चल दिए। पूरे रास्ते नव्या ने अपना सर शाश्वत के कंधे पर टिका रखा था । शाश्वत की खुशी का ठिकाना नहीं था।
इधर नव्या के पापा नवल जी घर आने पर नव्या को आवाज दी। गायत्री ने कहा वो शाश्वत कल ट्रेनिंग पर चला जाएगा ना इसलिए उसी के साथ मंदिर गई है। हूं कहते हुए वो बोले अब वो बच्चे नहीं रहे जो साथ भेज देती हो। गायत्री बोली आप चिंता मत करिए शाश्वत ऐसा वैसा नहीं है वो बहुत अच्छा लड़का है। वो बोले यही तो चिंता है कि वो बहुत अच्छा लड़का है। हम राठौर है वो ब्राम्हण समाज से है । कहीं नव्या को भी ................... कहकर वहां से बाहर निकल कर नव्या के आने की प्रतीक्षा करने लगे। थोड़ी देर बाद वो आ गई शाश्वत उन्हें देखते ही बाइक से उतरा और नमस्ते अंकल कहते हुए वो उनके पांव छू लिया। वो पीछे ये कहते हुए हट गए हमारे यहां ब्राम्हण से पैर नहीं छुआते। क्या अंकल अब ये सब कौन मानता है। मैं मानता हूं कहकर रुष्ट से नव्या अंदर चलो कहते हुए अंदर चले गए।नव्या भी हाथ हिलाते हुए अंदर आ गई।
रात में खाने की टेबल पर मां ने पूछा कहां निकल गया था बड़ी देर कर दी। मां मैं मंदिर चला गया था । सोचा जाने से पहले भगवान के दर्शन कर लूं। ठीक किया बेटा तू अकेला गया था? मां ने पूछा नहीं मां नव्या भी गई थी।ये सुनते ही उसके पापा नाराज हो गए। शाश्वत अब तुम लोग बच्चे नहीं रहे।जो साथ घूमते रहो।कल को साथ देखकर कोई भी कुछ भी कह सकता है । शाश्वत खामोश रहा। वो अपने मां पापा का बहुत सम्मान करता था। पर अपने प्यार को छिपाना भी नहीं चाहता था। उसे झूठ बोलना बिल्कुल भी पसंद नहीं था। आज जब बात चली है तो वो उन्हें अंधेरे में रखना नहीं चाहता। जो बात कल मुझे उनसे करनी है आज ही कर लेता हूं। नहीं तो बाद में फिर उन्हें लगेगा मैं ने उनसे झूठ बोला।
रात में सोने के पहले वो मां पापा के कमरे में गया। और बिस्तर पर बैठ कर पापा के पैर दबाने लगा। अरे!!
शीतू तू सोया नहीं कल जाना है जा सो जा। बहुत प्यार आने पर शांतनु जी शाश्वत को इसी नाम से पुकारते थे। नही पापा रास्ते भर तो सोना हीं है मैं बचा समय आप सब के साथ बिताना चाहता हूं। पैर दबाते हुए शाश्वत ने कहा पापा मैं आपको कुछ बताना चाहता हूं। शांतनु जी आंखें बंद किए हुए हघ बोले क्या बेटा बोल। पापा वो .... पापा वो.....
क्या पापा वो कर रहा है बोल ना। पापा वो मैं नव्या से शादी करना चाहता हूं। सुनते ही शांतनु जी का रक्त जैसे जम गया।उनका सनातनी मन पंडित के घर के अलावा किसी के घर का पानी भी नहीं स्वीकार करता था । और बेटा ठाकुर की बेटी लाने की बात कह रहा है।


उन्हें इस बात की खुशी थी कि शाश्वत ने झूठ नहीं बोला था उनसे।



आगे क्या हुआ जान ने के लिए पढ़े आगे का भाग...!!