naina ashk na ho - 8 books and stories free download online pdf in Hindi

नैना अश्क ना हो... - 8

रात भर के सफ़र के बाद जब सुबह आंख खुली तो नई दिल्ली
स्टेशन बस आने ही वाला था।

जैसे ही ट्रेन रुकी शांतनु जी बाहर गेट के पास आए देखने की किसी कुली को बुला ले समान उठाने के लिए ; पर सामने से सेना के कुछ जवान आते दिखाई दिए । वो समझ
गए कि ये उनको ही रिसीव करने आए है ।

सबसे आगे चल रहे जवान ने पास आकर शांतनु जी के पैर
छुए और बोला ,
"सर मै आपको लेने आया हूं ।"

शांतनु जी बोले,"पैर भी छूते हो, और सर भी कहते हो !!!!
अंकल कह सकते हो बेटा ।"

जवाब में जवान ने ," जी अंकल "कहा और समान उठा लिया।
अब तक नव्या, साक्षी और उनकी मां सब ट्रेन से उतर चुके
थे।
सब के साथ शांतनु जी स्टेशन से बाहर आए , और उस जवान द्वारा बताई गई कार में बैठ गए।

रास्ते में उस जवान ने अपना परिचय देते हुए कहा,
"मेरा नाम प्रशांत है ,अंकल वैसे तो आप सब के लिए आर्मी का गेस्ट हाउस बुक है ,पर मैं आप सब को अपने बंगले पर ले जाना चाहता हूं अगर आप इजाजत दें तो???? "

"मैंने और शाश्वत ने एक साथ ट्रेनिग की थी ,वो मेरा बहुत अच्छा मित्र था ,मुझे खुशी होगी अगर आप मेरे साथ मेरे
घर चले ।"

प्रशांत ने इतने भावुक अंदाज में शांतनु जी से अनुरोध किया कि वो मना नहीं कर पाए।

वो बोले ,"ठीक है बेटा हमें कोई दिक्कत नहीं है तुम्हारे साथ
रुकने में । तीन दिन तो हमें रहना ही है तुम्हारे साथ रहें या
गेस्ट हाउस में बात एक ही है ।"

प्रशांत ने मुस्कुरा कर, "थैंक यू अंकल" कहा और गाड़ी अपने घर की ओर मोड़ दी ।

घर पहुंचने पर प्रशांत ने गाड़ी रोकी और शांतनु जी और
सभी को सम्मान सहित घर के अंदर ले आया।

नौकर को आवाज लगाकर बुलाया, और बोला गाड़ी से समान निकालकर ले आए ।

प्रशांत के परिवार में सिर्फ उसकी मां निर्मला देवी ही थीं।

उसके पिता सीआरपीएफ़ में थे । जब वो पंद्रह वर्ष का था तभी सुकमा में हुए नक्सली हमले में शहीद हो गए थे।

घर में मां पूजा कर रहीं थीं । उन्हे आवाज देकर प्रशांत ने बुलाया, "मां .....मां.…..…कहां हो ? बाहर तो आओ ।"

आवाज सुनकर मां बाहर आ गई।

प्रशांत ने सब से मां का परिचय करवाया ।

" मां मैंने आपको अपने दोस्त शाश्वत के बारे में बताया था ना ; ये उसके मम्मी - पापा है, (साक्षी के पास आकर बोला)
ये साक्षी है,(नव्या की ओर इशारा कर के बोला) और ये नव्या भाभी हैं ।

निर्मला देवी ने बड़े ही खुले मन से उत्साह के साथ स्वागत किया ।

नौकर से समान अंदर कमरे में रखने को कहा और खुद उनके साथ कमरा दिखाने गई ।
एक रूम में शाश्वत के मम्मी पापा का सामान रखवा दिया
और दूसरे रूम में नव्या और साक्षी का समान रखवा दिया।

फिर बोली,"आप सब फ्रेश होकर आइए तब तक मैं नाश्ता
लगवाती हूं।"

जब तक फ्रेश होकर शांतनु जी परिवार के साथ आए, नाश्ता लग चुका था ।

प्रशांत ने आग्रह के साथ सब को नाश्ता कराया । वो और
उसकी मां अपनी तरफ से पूरी कोशिश कर रहे थे कि शाश्वत के परिवार को अपनापन महसूस हो ।

बीच बीच में शाश्वत की बात भी हो रही थी । प्रशांत बोला ,
"हम आर्मी वाले इसी भावना के साथ ज्वाइन करते है कि
जिसे देश के लिए कुर्बान होने का मौका मिलता है वो बहुत
भाग्यवान होता है। शाश्वत को ये मौका बहुत शीघ्र मिल गया।"

आज पच्चीस तारीख थी । कल सुबह लाल किले के
परेड में शामिल होना था फिर शाम को शाश्वत को राष्ट्रपति द्वारा मरणोपरांत शौर्य चक्र प्रदान किया जाना था।

नाश्ते के बाद सब को आराम करने के लिए बोल कर प्रशांत
अपनी ड्यूटी पर चला गया ।

मां को सबका ध्यान रखने को बोल कर प्रशांत ने कहा, "ओके अब मै चलता हूं रात को डिनर पर मुलाकात होगी
तब तक आप सब बिना किसी औपचारिकता के घर में आराम करिए । मां है आप सब का ख्याल रखेगी। कुछ
भी चाहिए तो बिना किसी संकोच के मां से कह दीजिएगा।"

नौकर रघु को भी समय पर चाय - कॉफी देने को बोलकर
प्रशांत चला गया ।

साक्षी और नव्या एक रूम में आराम करने चली गई और
शांतनु जी पत्नी सहित दूसरे कमरे में आराम करने चले
गए ।

साक्षी एक पल के लिए भी नव्या को अकेला नहीं रहने दे
रही थी ।
नव्या की मानसिक अवस्था का अंदाज़ा उसे भली - भांति
था ,भले ही वो अभी उम्र में छोटी थी।

शाम को निर्मला जी ने सब को बाहर चाय के लिए बुलाया।
शांतनु जी और उनकी पत्नी, नव्या और साक्षी सब ने साथ चाय पी ।

नव्या की सुंदरता निर्मला जी को मोहित कर रही थी। साधारण से सलवार सूट में भी वो बेहद खूबसूरत लग रही थी।
जो निर्मला जी दिन रात पूजा - पाठ किया करती थी, ईश्वर
का ये अन्याय उन्हे बहुत खल रहा था।
वो बार - बार ईश्वर से यही प्रश्न करना चाह रही थी कि इस मासूम ने कौन सा गुनाह किया था । किस बात की सजा नव्या को मिली ।

जिस समय उसके जीवन में सतरंगी इन्द्रधनुष के रंग बिखरे होने चाहिए थे । उस वक़्त..........?

निर्मला जी ने चाय पीने के बाद सब को घर दिखाने के लिए ले गईं।
उसके बाद सब बाहर लॉन में बैठ कर बाते करने लगे ;नव्या
बिल्कुल खामोश थी ।
उसके मन में चल रहे तूफान का किसी को अहसास नहीं था।
वो ऊपर से तो बिल्कुल सामान्य दिखाने कि कोशिश कर रही थी , पर मन चीख चीख कर रोने का कर रहा था ।
थोड़ी देर बाद रघु आया और पूछा ,"मेमसाब रात के खाने
में क्या बनाऊं?"
निर्मला जी ने शांतनु जी से पूछा," बताइए शांतनु जी खाने मे क्या बनवाऊ?"
शांतनु जी ने हंस कर कहां ,"भाभी जी हमारे यहां तो ये सब नव्या ही डिसाइड करती है । आप उसी से पूछो ।"

(शांतनु जी उपर से सब के सामने तो हंस रहे थे, पर इकलौते पुत्र को खोने का दुख क्या होता है ये उनका दिल ही जानता था।
वो जब खुद को संभालेंगे , तभी नव्या और अपनी पत्नी को
संभल पाएंगें । एक दूसरे कि खातिर सभी ने अपना अपना दुख जब्त कर रक्खा था ।)

नव्या ने कहा ,"आंटी आप इजाजत दें तो मै किचेन में रघु की कुछ हेल्प कर दूं ! मै बैठे बैठे बोर हो रही हूं ।"

निर्मला जी बेहद समझदार महिला थी उन्हे भान था नव्या की मन:स्थिति का ; नव्या का ध्यान बाटना जरूरी था।
इस कारण उन्होंने तुरंत कहा,
" अरे बेटा! इसमें इजाजत की क्या बात है । ये तुम्हारा भी घर है जो चाहो करो ।"
फिर रघु को हिदायत देती हुई बोली ,"रघु तुम भाभी के साथ किचेन में जाओ , और जो भाभी चाहें उनकी हेल्प करो ।"

नव्या रघु के साथ किचेन में आ गई ।
रघु ने पूछा," भाभी पनीर बना लूं ?"
नव्या ने हां में सिर हिलाया ।

रघु ने तैयारी के लिए प्याज और टमाटर निकाल कर काटने लगा ।
नव्या ने उसके हांथ से प्याज की प्लेट ले ली, और कहा,
"इसे मुझे दो मै काट देती हूं ।"
" पर भाभी आपके आंखों में लगेगा " रघु ने कहा।
"नहीं लगेगा " कह कर नव्या वही बैठ कर प्याज काटने लगी ।
आंखो से नमकीन जल की धारा बह चली । ये जलन प्याज की थी या दिल का गुबार बाहर आ रहा था .......?
सहेज कर रक्खे आंसू हर बांध को तोड़ कर बहने को आतुर थे।


क्या हुआ जब नव्या अवॉर्ड फक्शन् के लिए गई । वहां उसके सामने क्या प्रस्ताव रक्खा गया।

आगे क्या हुआ जानने के लिए पढ़े नैना अश्क ना हो का अगला भाग।🙏🙏🙏🙏🙏🙏